सोमवार, 12 अप्रैल 2010

अब मुख्यमंत्री का मौन!


छत्तीसगढ ही नहीं पूरा देश बस्तर में जवानों की मौत से स्तब्ध है। कांग्रेस और भाजपा नक्सली समस्या को लेकर एक दूसरे का मुंह नोच रहे हैं और आम आदमी तमाशाबीन है। वह जानना चाहता है कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है। सरकार क्या कर रही है। उसे इस बात से भी मतलब नहीं है कि नक्सली समस्या का मामला केन्द्र का है या राज्य का। पिछले 6 सालों से डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री है और उन्होंने इस समस्या को हल करने क्या कदम उठाये हैं।
राजनैतिक बयानबाजी या गलतियां एक दूसरे पर थोपने की राजनीति से आम लोगों को कोई लेना देना नहीं है। हर बार शहीद होते जवानों के लिए मोमबत्तियां जलाने का सिलसिला कब खत्म होगा। क्या सलवा जुडूम ही इस समस्या से छुटकारे का उपाय है नहीं तो फिर सरकार ने इसे प्रश्रय क्यों दिया। जवानों की बलि और आदिवासियों को भेड़ बकरी की तरह काटे जाने का यह सिलसिला चलता रहेगा। यदि पिछली कांग्रेस सरकार ने नक्सलियों को नहीं छेड़ने की गलती की है तो फिर 6 सालों में भाजपा शासनकाल ने क्या किया। क्या यह सच नहीं है कि छत्तीसगढ में नक्सलियों ने समनान्तर सरकार चला रखी है जहां सिर्फ उनका कानून चलता है और आदिवासी भेड़ बकरी की तरह कभी पुलिस तो कभी नक्सलियों के हाथों मारे जा रहे हैं।
यदि नक्सलियों से भिड़ने केन्द्र सरकार सुविधाएं नहीं दे रही है तब राज्य सरकार क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकती है। मंत्रियों और अधिकारियों पर हो रहे खर्चों में कटौती कर धन का उपयोग नक्सली समस्या को दूर करने में लगाने की बजाय 18 हजार रुपए वेतन बढ़ाने वाली सरकार के पास इस बात का जवाब है कि सुविधा के नाम पर वह केन्द्र को ही क्यों कोसते रही है। छत्तीसगढ में कानून व्यवस्था की स्थिति किसी से छिपी नहीं है और न ही भ्रष्टाचार ही किसी से छिपा है दोषारोपण की लड़ाई में माहिर लोग यह समझ लें कि यह समस्या अब विकराल रुप धारण कर चुका है इसके लिए बाकी निर्माण कार्य रोक कर भी लड़ाई लड़ी जा सकती है।
हर बात के लिए मीडिया पर दोषारोपण करने वाले डा. रमन सिंह ने पत्रकार विनोद दुआ के सवाल पर चुप्पी साध ली तो इसका मतलब साफ है कि कानून व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ चुकी है। खुद डा. रमन सिंह के जिले के कलेक्टर को दलाल और एसपी को निकम्मा कहने वाले गृहमंत्री ने विधानसभा में यह बात स्वीकारा है कि थाने वाले दारू वालों की बात ज्यादा सुनते हैं उनकी नहीं। इस स्वीकारोक्ति के बाद भी कोई मुख्यमंत्री यह कहे कि प्रदेश की कानून व्यवस्था नियंत्रण में है तो आम लोग इसे मजाक ही समझेंगे। मुख्यमंत्री अपने दावे में यह कहते नहीं थकते कि उन्होंने दंतेवाड़ा से लेकर सुदूर बस्तर में पचासों सभा ली है और कभी कुछ नहीं हुआ। लेकिन यह कहते हुए वे भूल जाते हैं कि ऐसी सभाओं की तैयारी हफ्ते भर पहले से होती है और वे सुरक्षा जवानों से घिरे भाषण देते हैं। शायद इसलिए विनोद दुआ ने उन्हें बीच में रोक दिया और पूछा था आप महात्मा गांधी नहीं हो जो अत्याचारी अंग्रेजों के सामने लाठी टेककर पहुंच जाते थे।
बस्तर में गांव के गांव उजड़ रहे हैं लोग शिविर में रहने मजबूर है इसके बाद भी हर शहादत के बाद यह कहा जाना कि अब मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा मजाक नहीं तो और क्या है।
कुछ सवाल सीधे मुख्यमंत्री से-
0 छत्तीसगढ क़ो नक्सलियों से मुक्त करने कब और कैसे लड़ाई की जाएगी।
0 क्या केन्द्र पैसा नहीं देगा तो वे पैसे का इंतजाम कैसे करेंगे।
0 सरकारी सुविधाओं में कब तक विस्तार कर अपनी जेबें गरम की जाती रहेगी।
0 नई राजधानी किसके लिए बनाई जा रही है।
0 मीडिया में छापी जा रही भ्रष्टाचार की खबरों पर वे क्या करते हैं।
0 भ्रष्ट नेताओं को मंत्रिमंडल से कबर हटायेंगे।
0 भ्रष्ट अधिकारियों की छुट्टी कब होगी।इसके अलावा भी कई सवाल है जो समय-समय पर सीधे मुख्यमंत्री से पूछे जाएंगे चाहे मुख्यमंत्री कोई भी हो?

सरपंच की हठधर्मिता से उद्यमी आत्महत्या करने मजबूर

विद्युत मंडल भी कनेक्शन देने असहाय
यह तो जिसकी लाठी उसकी भैस की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना कृषि उपकरण के निर्माण के लिए लघु उद्योग लगाने वाले उद्यमी श्रीमती सोनिया को आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। कहा जाता है कि भाजपाई सरपंच की दादागिरी की वजह से शासन-प्रशासन भी मूक दर्शक बना है और मामला बिगड़ता जा रहा है।
मामला दुर्ग जिले के पिरदा पंचायत का है। यहां श्रीमती सोनिया ने गांव की बस्ती से 1 किलोमीटर दूर कृष यंत्र के निर्माण के लिए लघु उद्योग स्थापित किया है और सरपंच द्वारा इस पर अड़ंगा लगाया जा रहा है। बताया जाता है कि मामला लेन-देन का है इसलिए सबसे पहले सरपंच ने भूमि के डायवर्सन नहीं होने व गांव की महिलाओं द्वारा शौच जाने की बात कहकर उद्योग को बंद करने की चेतावनी दी और तहसीलदार ने डायवर्सन नहीं होने के नाम पर उद्योग बंद करने कहा।
इसके बाद श्रीमती सोनिया ने एसडीएम से गुहार लगाई तो उन्हें कहा गया कि ग्राम की जनसंख्या दो हजार से कम हो तो डायवर्सन की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है कृषि औजारों और मवेशियों के लिए मकान का निर्माण डायवर्सन करना नहीं है। इस आदेश के बाद भी सरपंच अपने रुख पर अड़ा रहा इस बीच विद्युत कनेक्शन के लिए राशि जमा की गई और विद्युत विभाग ने जब खंभा गड़ाना शुरु किया तो सरपंच ने इसका भी विरोध किया और विद्युत मंडल असहाय है।
इधर उद्यमी श्रीमती सोनिया के पति जयपाल ने आरोप लगाया है कि सरपंच ने रुपए की मांग की थी और नहीं देने पर दादागिरी कर रहे हैं जबकि लघु उद्योग के कारण गांव के दर्जनभर परिवार को रोजगार मिल रहा है। उन्हाेंने कहा कि वे पुलिस से लेकर सभी लोगों का चक्कर लगा चुके है लेकिन उनकी कोई नहीं सुन रहा है और उसके सामने आत्महत्या करने की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस संबंध में जब सरपंच बलदेव परघानिया से बात करने की कोशिश की गई तो वे उपलब्ध नहीं हुए।

आरडीए पर कमल भारी

बजट की आधी राशि कमल विहार में खर्च होगी
आम लोगों की शिकायतों को नजरअंदाज करते हुए रायपुर विकास प्राधिकरण ने अपने कुल बजट की आधी राशि कमल विहार योजना में खर्च करने का निर्णय ले लिया है। जबकि इस योजना का सांसद रमेश बैस कई विधायकों सहित हजारों लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है।
यह सरकार की हठधर्मिता है या नौकरशाहों की मर्जी यह तो वहीं जाने लेकिन जिस कमल विहार योजना को बंद करने की मांग उठ रही है इसी योजना को आरडीए न केवल चालू रखने तत्पर है बल्कि अपने कुल बजट की आधी राशि तक इसमें लगा रहा है।
अपनी योजना को पूरा करने आरडीए ने हुडको से 500 करोड़ रुपया ऋण लेने का भी निर्णय ले लिया है और इसकी गारंटी राय सरकार द्वारा लिए जाने की खबर है। यही नहीं इसे हर हाल में पूरा करने तमाम हथकंडे अपनाने की भी खबर है।
उल्लेखनीय है कि कमल विहार योजना का न केवल आमलोग बल्कि भाजपा के सांसद और विधायक तक विरोध कर रहे है। सांसद रमेश बैस के अलावा कई भाजपा नेताओं का मानना है कि नगर निगम चुनाव में हार की वजह कमल विहार योजना ही रही है और इसे जनता की राय समझकर यह योजना बंद की जानी चाहिए। इन तमाम दलीलाें को नजरअंदाज करके भी कमल विहार योजना को लागू की जा रही है। बहरहाल आरडीए के इस बजट को लेकर भाजपा में ही तीखी टिप्पणी की जा रही है।