सोमवार, 3 मई 2021

मोदी की मात...

 

सवाल यह नहीं है कि पश्चिम बंगाल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के लिए कौन दोषी है, जबकि पार्टी ने जीत के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखा था? बल्कि सवाल यह है कि क्या कोई प्रधानमंत्री एक राज्य में जीत हासिल करने पूरे देश को दांव पर कैसे लगा सकता है। हर मोर्चे में बुरी तरह विफल रहने के बाद भी यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार रखने का दावा किया जा रहा है तो इसका मतलब साफ है कि छल-प्रपंच, झूठ-नफरत के इस खेल को चंद पैसों की लालच में बढ़ावा देने वालों की रणनीति सफल हो रही है।

जिस ढंग से संघ का मैनेजमेंट काम कर रहा है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में घृणा की खाई और चौड़ी होगी और देश में तरक्की बात बेमानी हो जानी है। कोविड के पहली लहर में जिस तरह से तबगिली जममात को निशाने पर लेकर नफरत फैलाई गई ुसका भांडा फूट जाने के बाद भी यदि देश के लोग सचेत होने की बजाय नफरत के रास्ते को ही चुन रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि संघ ने अपनी ताकत ही नहीं बढ़ाई है बल्कि उसने अपने मैनेजमेंट को भी इतना तगड़ा कर लिया है कि उससे निपटना आसान नहीं है।

बंगाल चुनाव में भले ही ममता बैनर्जी ने उम्दा प्रदर्शन किया है लेकिन भाजपा के तीन से करीब 80 सीट हासिल करना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है और यह एक तरह से समूचे देश को चेतावनी है कि आने वाले दिनों में नरेन्द्र मोदी को मात देना आसान नहीं है। बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद समूचा विपक्ष ममता बैनर्जी की ओर देख रहा है। यह ठीक है कि ममता ने बंगाल बचा लिया लेकिन फिल्म तारिका कंगना रनौत के ट्वीट ने भविष्य का संकेत दे दिया है। रनौत ने जिस तरह से ममता की जीत पर ट्वीट किया है क्या वह नफरत का सैलाब नहीं है, कंगना अपने ट्वीट में कहती है कि अब वहां बहुमत में हिन्दू नहीं बचे हैं, एक और कश्मीर जन्म ले रहा है?

भले ही लोग इसे भाजपा का हार का झल्लाहत बता रहे हैं लेकिन यह झल्लाहत नहीं संघ की रणनीति का हिस्सा है, हिन्दुओं में खौफ पैदा करने का तरीका है, बहुसंख्यक समाज को उत्तेजित करने का कार्यक्रम है। बंगाल चुनाव से पहले ही जिस तरह से ममता बैनर्जी पर हमला हुआ है वह कम खतरनाक नहीं है। एक ब्राम्हण महिला पर जिस तरह से नफरती बाण चलाए गए, विष वमन किया गया यदि कोई धर्मनिरपेक्ष दल के लोग किसी दक्षिणपंथी विचारधारा के नेता पर इस तरह का दुष्प्रचार करते तो अभी तक उसका समाज जाग जाता। लेकिन सूती साड़ी और हवाई चप्पल पहनकर भी ममता ने क्षत्राणी जैसा रुप दिखला कर भाजपा को करारी शिकस्त दी।

जो लोग बंगाल चुनाव के दुरगामी परिणाम की आशा में डूबे है उनके लिए यह जानना जरूरी है कि प्रेम और घृणा की लड़ाई आसान नहीं होती, और जिन्हें लगता है कि प्रेम की जीत तो होनी ही है वे महाभारत फिर से पढ़ लें क्योंकि धर्मराज की जीत के बाद भी क्या बचा रह गया था। इसलिए सच की जीत जो चाह रहे हैं वे त्याग, कुर्बानी और दुनिया भर के आक्षेप के लिए खुद को तैयार कर लें।