बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

हजारों तरह के आंसू...

 

आंसूओं को लेकर शायरों और कवियों ने जो बातें और जितनी भी बातें कहीं है उससे इतर भी कोई बात होगी या नहीं कहना कठिन हैं। लेकिन गुलाम नबी आजाद निश्चित रुप से उस तरह के राजनेता है जिन्हें आसानी से भूला देना मुश्किल है।

छत्तीसगढ़ में राज्य गठन के दौरान जब वे पर्यवेक्षक बनकर आये तो उनके ही सामने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कथित रुप से पिटाई हुई। लेकिन उन्होंने न तब अपने ताकत का इस्तेमाल किया न कभी भी उनके बारे में यह बात सुनने को नहीं मिली कि कांग्रेस हाईकमान तक अपनी पहुंच का कभी उन्होंने बेजा इस्तेमाल किया । कश्मीर के इस नेता ने हमेशा ही देश हित को लेकर काम किया और आज राज्य सभा से उनकी विदाई पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बोलते-बोलते जब भावुक हो गये तो सहसा कई सवाल मन में उठने लगे।

वर्तमान नफरत के दौर में यह सवाल उठना स्वाभाविक भी था। जिन लोगाों के लिए हिन्दू राष्ट्र के अलावा कोई स्वीकार्य ही नहीं है और जो लोग मुसलमानों को इस देश का दुश्मन समझते हुए विषवमन करते रहते हैं उनके लिए प्रधानमंत्री मोदी का गुलाम नबी आजाद के प्रति स्नेह की क्या प्रतिक्रिया हुई होगी यह बताने की जरूरत नहीं हैं। क्योंकि जब किसी के दिल में सांप रेंगता है तो उसके मुंह से जबान चली जाती है।

ये देश गंगा-जमुना तहजीब का है, इस देश की आजादी में हर धर्म और हर जाति ने अपनी कुर्बानी दी है और आजादी के बाद उत्पन्न हर विषम परिस्थितियों का कंधे से कंधा लगाकर मुकाबला किया है लेकिन 2014 में जिस ढंग का अवतार हुआ हालांकि उसका बीज 2002 में ही लगाया जा चुका था, उस अवतार ने इस देश में नफरत की ऐसी आंधी चलाई है कि पूरा एक वर्ग हाशिये पे डाल दिया गया। नफरत के इस दौर में सत्ता भी वही फैसला करते रही ताकि सत्ता के लिए हथियार जुटाये जा सके लेकिन इसका दुष्परिणाम क्या हुआ। हम आर्थिक रुप से टूट गये, युवाओं के पास रोजगार खत्म हो गया, बढ़ती मंहगाई ने जीना दूभर कर दिया लेकिन राष्ट्रवाद और हिन्दूवाद के झांडे का छाया इतना गहरा रहा कि इस देश की भलाई किसमें है यह दिखना ही बंद हो गया।

क्या यह भावुक क्षण यह इशारा नहीं करता कि देश को जितनी जरूरत हिन्दुओं की है उतनी ही जरूरत मुसलमानों या दूसरे धर्म के लोगों की भी है। क्या ये आंसू उन भक्तों को भी दिखावा लगेगा जो अपने दिल में नफरत की आग लेकर चल रहे हैं या इस आंसू के बाद कथित अवतारी में इतना साहस होगा कि वह अनेकता में एकता के लिए मार्ग प्रशस्त करे।

सवाल कई हैं, लेकिन सत्ता की घिनौनी राजनीति ने जिस, बीज को बोया है उसे पेड़ बनने से रोकना ही होगा। वरना प्रधानमंत्री के आंसू पर सवाल उठने से कोई कैसे रोक सकता है!

आंसूओं को लेकर शायरों और कवियों ने जो बातें और जितनी भी बातें कहीं है उससे इतर भी कोई बात होगी या नहीं कहना कठिन हैं। लेकिन गुलाम नबी आजाद निश्चित रुप से उस तरह के राजनेता है जिन्हें आसानी से भूला देना मुश्किल है।

छत्तीसगढ़ में राज्य गठन के दौरान जब वे पर्यवेक्षक बनकर आये तो उनके ही सामने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कथित रुप से पिटाई हुई। लेकिन उन्होंने न तब अपने ताकत का इस्तेमाल किया न कभी भी उनके बारे में यह बात सुनने को नहीं मिली कि कांग्रेस हाईकमान तक अपनी पहुंच का कभी उन्होंने बेजा इस्तेमाल किया । कश्मीर के इस नेता ने हमेशा ही देश हित को लेकर काम किया और आज राज्य सभा से उनकी विदाई पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बोलते-बोलते जब भावुक हो गये तो सहसा कई सवाल मन में उठने लगे।

वर्तमान नफरत के दौर में यह सवाल उठना स्वाभाविक भी था। जिन लोगाों के लिए हिन्दू राष्ट्र के अलावा कोई स्वीकार्य ही नहीं है और जो लोग मुसलमानों को इस देश का दुश्मन समझते हुए विषवमन करते रहते हैं उनके लिए प्रधानमंत्री मोदी का गुलाम नबी आजाद के प्रति स्नेह की क्या प्रतिक्रिया हुई होगी यह बताने की जरूरत नहीं हैं। क्योंकि जब किसी के दिल में सांप रेंगता है तो उसके मुंह से जबान चली जाती है।

ये देश गंगा-जमुना तहजीब का है, इस देश की आजादी में हर धर्म और हर जाति ने अपनी कुर्बानी दी है और आजादी के बाद उत्पन्न हर विषम परिस्थितियों का कंधे से कंधा लगाकर मुकाबला किया है लेकिन 2014 में जिस ढंग का अवतार हुआ हालांकि उसका बीज 2002 में ही लगाया जा चुका था, उस अवतार ने इस देश में नफरत की ऐसी आंधी चलाई है कि पूरा एक वर्ग हाशिये पे डाल दिया गया। नफरत के इस दौर में सत्ता भी वही फैसला करते रही ताकि सत्ता के लिए हथियार जुटाये जा सके लेकिन इसका दुष्परिणाम क्या हुआ। हम आर्थिक रुप से टूट गये, युवाओं के पास रोजगार खत्म हो गया, बढ़ती मंहगाई ने जीना दूभर कर दिया लेकिन राष्ट्रवाद और हिन्दूवाद के झांडे का छाया इतना गहरा रहा कि इस देश की भलाई किसमें है यह दिखना ही बंद हो गया।

क्या यह भावुक क्षण यह इशारा नहीं करता कि देश को जितनी जरूरत हिन्दुओं की है उतनी ही जरूरत मुसलमानों या दूसरे धर्म के लोगों की भी है। क्या ये आंसू उन भक्तों को भी दिखावा लगेगा जो अपने दिल में नफरत की आग लेकर चल रहे हैं या इस आंसू के बाद कथित अवतारी में इतना साहस होगा कि वह अनेकता में एकता के लिए मार्ग प्रशस्त करे।

सवाल कई हैं, लेकिन सत्ता की घिनौनी राजनीति ने जिस, बीज को बोया है उसे पेड़ बनने से रोकना ही होगा। वरना प्रधानमंत्री के आंसू पर सवाल उठने से कोई कैसे रोक सकता है!