रविवार, 8 अगस्त 2010

नाराज अधिकारी की 'हकीकत'

छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित अखबार का हकीकत जनसंपर्क विभाग से संबंधित वह अधिकारी द्वारा लिखा जा रहा है जो सरकार से नाराज है। यह खुलासा होने के बाद हिन्दी तक ठीक से नहीं बोल सकने के द्वारा हकीकत लिखने के भ्रम पर से परदा उठ चुका है। हालांकि पत्रकारों को पहले से ही किसी शासकीय अधिकारी पर शक था कि सरकार के भीतर की इतनी जानकारी कैसे बाहर आ रही है अब जनसंपर्क के इस अधिकारी की करतूत सामने आ चुकी है और हकीकत पर से परदा हट चुका है। हालांकि हकीकत पर परदा डालने की कोशिश तो पहले ही दिन से हो रही थी और अधूरे नाम से छापा जा रहा था।

जीएम के चमचे
की पिटाई...

हालांकि कानून की दृष्टि से किसी पिटाई अपराध है और यह स्थिति किसी कर्मचारी के लिए तभी उत्पन्न होती है जब पानी सिर से उपर चला जाता है। ऐसा ही वाक्या एक अंग्रेजी अखबार में हुआ। बताया जाता है कि इस अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार ही नहीं अन्य कर्मचारी भी जीएम और उनके चमचों की करतूत से परेशान थे। आए दिन 'माउजर' से धमकाया जाता था। पिछले दिनों जीएम का चमचा कर्मचारी से जा भिड़ा। बस क्या था चमचे की पिटाई हुई। प्रेस के भीतर तो पिटा ही गया बाहर निकाल कर भी तबियत से धूना गया।

पत्रिका का भय

पत्रिका से भयभीत एक अखबार के संपादक द्वारा अब अपने पत्रकारों को चमकाने का मामला सामने आने लगा है। सत्ता प्रमुख के दत्तक पुत्र के मार्फत अनाप-शनाप पैसा कमाने में लगे इस संपादक को पद भी एप्रोच से ही मिला था और पत्रिका में सर्वाधिक इसी अखबार से लोग जा रहे हैं। अपनी करतूत छुपाने या सुधारने की बजाय मातहतों पर गुस्सा करना अच्छी बात नहीं। यह संपादक को समझ में नहीं आ रहा है।

देश का हाल
कभी प्रेस क्लब का रेडियो गायब करने के आरोप से मुक्त होकर अखबार मालिक बने, इस अखबार ने कई उतार चढ़ाव देखे। कभी अपने सगे पुत्रों के प्रति व्यवहार को लेकर चर्चा में रहे तो कभी कर्मचारियों का पीएफ तक डकार देने का आरोप मुस्कुराकर झेल जाते है। इन दिनों सिटी रिपोर्टर की कमी इस अखबार में हो गई है। कुल जमा तीन लोग है उनका भी तीन हाल है। एक तो रोज 10 बजे रात खिसककर 'नेशनल-लुक' में सेवा बजा रहा है तो दूसरा नाम का ही डाक्टर है।

और अंत में....

राजेश मूणत की कार्रवाई देख अवैध निर्माण और कब्जा करने वाले एक अखबार मालिक इन दिनों तेल लगाने में व्यस्त है। कभी ये मंत्री के घोर विरोधी थे और अब वे मंत्रीजी को पटाने में लगे है। है न कहावत सही 'वक्त आने पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है।' या आदमी कब अपनी जात बदल दे कोई नहीं जानता।