रविवार, 3 मार्च 2019

अमेरिका, चीन का फिर सरपंच बनने की कोशिश


विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले और भारत की बालाकोटा में एयर स्ट्राईक के बाद दोनों देशों के बीच जिस तरह से युद्ध के हालात बने थे वह पायलट अभिनंदन की वापसी के बाद सुधरे हैं लेकिन आतंकवाद बीमारी समाप्त हो गये हैं यह सोचना ही गलत होगा। दोनों देश में युद्ध न हो इसकी कोशिश में दोनों ही देश के लोग लगे है लेकिन दोनों देशों के तनाव का फायदा उठाकर अमेरिका-चीन सहित कई देश सरपंच बनने की कोशिश में लगा है। भारत ने रणनीतिक जीत हासिल कर ली है लेकिन आतंकवाद पर जीत दर्ज करना बाकी है।
पुलवामा में आतंकवादी कार्रवाई में जिस तरह से हमारे चालीस जवान और अफसर शहीद हुए थे उसके बाद देश में आतंकवादियों के खिलाफ आक्रोश के स्वर फुटने लगे थे। सरकार के खिलाफ ही नहीं पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा फुटने लगा था। मोदी सरकार पर बदला लेने का दबाव बढ़ता ही जा रहा था। फिर सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जिस तरह की कार्रवाई की उसके बाद दोनों देशों के बीच युद्ध का माहौल बनने लगा था। हालांकि बालाकोट की घटना के कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान ने भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की लेकिन हमारी सेना ने इसे नाकामयाब कर दिया। इस आपाधापी में हमारा एक पायलट पाकिस्तान के कब्जे में चला गया और फिर तनाव और बढ़ गया।
भारत और पाक के बीच युद्ध के हालात बनने लगे थे और भारत हर हाल में पाक के खिलाफ पूरे विश्व को एक करने की कोशिश को सफल बनाता जा रहा था। पायलट अभिनंदन की वापसी की घोषणा पाकिस्तान को करनी पड़ी।
दोनों देशों के बीच इस हालात का फायदा उठाकर अमेरिका-चीन सऊदी अरब सहित कई देश सरपंची हासिल करने में लग गये जबकि भारत का स्पष्ट मत है कि दोनों देश की लड़ाई में किसी की भी मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जायेगी।
पाकिस्तान के द्वारा पायलट अभिनंदन की वापसी की घोषणा को भारत की रणनीतिक जीत के रुप में देखा जाना चाहिए लेकिन इस जीत की खुशी में हमें यह नहीं भुलना चाहिए कि इससे आतंकवाद की बीमारी खत्म नहीं हुई है और जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करती तब तक पाकिस्तान पर पूरी तरह विश्वास कर लेना हमारी भूल होगी।
अंधी राष्ट्रीयता न कहे क्योंकि राष्ट्रीयता हमेशा अंधी होती है। भले ही रुस के इतिहासकार ने यह बात किसी और संदर्भ में कही हो लेकिन यह भारत-पाक के बीच तनाव के समय साफ तौर पर देखी जा सकती है। तनाव के इस माहौल में जिस तरह से कुछ दक्षिणपंथी और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने विषवमन किया उससे आम लोगों के लिए खतरनाक माना जाना चाहिए। जिस तरह से न्यूज चैनलों ने मार डालो, काट डालो की भाषा का इस्तेमाल किया वह हैरान करने वाला ही नहीं शर्मनाक भी रहा। ये इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे जिसे आतंक की भाषा कहना गलत नहीं होगा।
इस मामले में राजनीति साधने की कोशिश हुई। यहां तक की राममंदिर तक के मुद्दे गौण हो गये, राफेल, बेरोजगार, किसानों के मुद्दे की बात तो छोडिय़े, संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा वाले मुद्दे पर भी कोई बोलने को तैयार नहीं था। यह सही है कि 1971 के बाद पाकिस्तान के खिलाफ हुई इस सबसे बड़ी कार्रवाई ने भारतीय जनता पार्टी के लिए संजीवनी का काम किया है और अब तक सत्ता जाने का डर लिये बैठी भाजपा को अब सत्ता में वापसी का भरोसा मिला  है लेकिन अभी चुनाव में समय है देखना है कि भाजपा को इसका कितना फायदा मिलता है।
कर्नाटक भाजपा के नेता यदिरप्पा ने जिस तरह से एयर स्ट्राईक के बाद कर्नाटक में 28 सीटों में से 22 सीट जीतने का दावा किया है। उसके बाद राहत इंदौरी का यह शेर पुन: याद आता है कि 
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या
पता तो करो कहीं चुनाव है क्या