रविवार, 27 मार्च 2011

आदिवासियों पर अत्याचार,कहाँ है सरकार ?

दक्षिन बस्तर में अराजकता, आदिवासियों के तीन सौ घर फूंके गए, ग्रामीनो की बेरहमी से पिटाई, महिलाओं से बलात्कार , कलेक्टर-कमिश्नर रोके गए। यह हेड लाईन छत्तीसगढ़ के प्रमुख समाचारपत्रों की है जो छत्तीसगढ़ सरकार के क्रिया-कलापों को उजागर ही नहीं कराती बल्कि धुर नक्सली छेत्र में नारकिय जीवन जी रहे आदिवासियों की जिंदगी को भी रेखां-कित करती है और यह सब स्थिति लाने वाली कोई और नहीं छत्तीसगढ़ में बैठी भाजपा की वह सरकार है जिसके मुखिया डा. रमन सिंह की छवि को साफ सुथरा प्रचारित की जाती है। बस्तर के हालात -किस कदर बेकाबू हो गए है यह बताने डॉ. रमन सिंह के सात सालों के आकडें¸ ही काफी है।


डा. रमन सिंह के कुर्सी संभालने के बाद बस्तर के लगभग 500 ग्राम उजड़ गए और हजारों नहीं बल्कि लाखों की संख्या मे आदिवासी शरणार्थी शिविरों में जीवन जीने मजबूर है।

कभी अमेरीका के विकास को लेकर कहा जाता था की वहां लाखों की संख्या में रेड इंडियन (आदिवासियो) को काट डाला गया।

क्या बस्तर में आदिवासियों के साथ सरकार और उसके अफसर ऐसा ही कुछ नहीं कर रहे हैं? क्या तीन गांवों ताड़मटेला, तिमापुर और मोरपल्ली में तीन सौ घरों को फूंके जाने की घटना के बाद भी कोई यह कह सकेगा की वहां सब कुछ ठीक है और सरकार में बैठे अफसर आदिवासियों पर अत्याचार नहीं कर रहे हैं।

घटना के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रभावित छेत्र में जा रहे कलेक्टर-कमिश्नर को पुलिस सुरक्षा के नाम पर रोका जाना क्या अराजकता नहीं है।

वहां की खबर लेकर लौट रहे मीडिया कर्मियों के खिलाफ मामूली घटना को लेकर रिपोर्ट दर्ज करने से लेकर पुरुषों से मारपीट और महिलाओं से बलात्कार की गूंज के बाद भी क्या सरकार यही कहेगी क़ि छत्तीसगढ़ में अफसरों का राज नहीं है।

ऐसा नहीं है क़ि निरीह आदिवासियों पर पुलिस की गुंडागर्दी की छत्तीसगढ़ में पहली बार गूंज उठी है इसी सरकार में ऐसे कई बार पुलिस प्रताड़ना व फर्जी मुठभेड़ की आवाज उठते रही है पर क्या हुआ ?

सवाल और भी -कई हैं। जिसका जवाब भले ही सरकार न दे लेक़िन एक बात तय है क़ि आदिवासियों पर हुए अत्याचार पर काग्रेसियों की चुप्पी की सजा उन्हें भी मिलेगी। उपर वाला तो है ही।

सरकार इस घटना के बाद क्या करेगी?

नक्सली क़िसी दूसरे देश में नहीं आये हैं वे हमारे ही देश के हैं और हमारी ही व्यवस्था के सताये हुए हैं। भूख,बेरोजगारी, बीमारी और गरीबी के मारे हुए हैं वहां सड़कें नहीं हैं ऐसी जगह में रहने वाले लोग हथियार उठा रहे हैं। व्यवस्था के खिलाफ उस के खिलाफ जो उन्हें कुछ नहीं देता। उनसे सहानुभूति रखना गलत बात नहीं है। ब्यूरोक्रेसी में भी ऐसे लोग हैं जो उन पर सहानुभूति रखता है क्योंकि व्यवस्था से सताये लोगों पर सहानुभूति नहीं रखना भी बहुत बड़ा अपराध है।

रमन सरकार को छत्तीसगढ़ के विकास माडल को दोबारा नए सिरे से तय करना चाहिए वरना यह आग और भड़केगी। कल उड़ीसा के डी एम अगवा हुए हैं और उन्हें छुड़ाने नक्सलियों की मांगे माननी पड़ी। कल डी आई जी से लेकर मंत्री तक अगवा किये जा सकते हैं। उड़ीसा के बहाने सारे देश के मुख्यमंत्री को सोचना पड़ेगा की व्यवस्था नहीं बदली तो आप या आपके बच्चे उन लोगो के चंगुल में फंस जायेंगे जो भूख बीमारी और बुनियादी सुविधा पाने लड़ रहे हैं यह खतरे की घंटी है, इसलिए जो लोग सत्ता में बैठे हैं उन्हें चाहिए --की सुविधा सिर्फ शहरों तक न हो गांवो को भी सुविधा संपन्न बनायें। कम से कम पीने का साफ पानी, सिंचाई की सुविधा व स्वास्थ्य -शिक्षा के मॉडल नये सिरे से बनायें।

घटना पर किसने क्या कहा

डॉ. रमन सिंह (मुख्यमंत्री)-जाँच के लिए कह दिया है.

अजीत प्रमोद जोगी- यह घोर निंदनीय कृत्य है विधानसभा कमेटी की संयुक्त समिति से जांच होनी चाहिए।

स्वामी अग्निवेश (सामाजिक कार्यकर्ता )- पुलिस ज्यादती की न्यायिक जांच होनी चाहिए क्योंकि दंडाधिकारी जांच पर भरोसा नहीं। तभी लोग नक्सली बनते हैं!

विश्वरंजन (डीजीपी)- पुलिस व जिला प्रशासन दोनों सरकार की एजेंसी है अनबन नहीं। जांच कर रहे हैं।

श्रीनिवासलू (बस्तर कमिश्नर)- हमारा पहला मकसद प्रभावितों को राहत पहुंचाना है। गलतफहमी की वजह से रोका गया।