सोमवार, 5 जुलाई 2021

राफेल : छद्म राष्ट्रवाद का चेहरा...

 

बाफोर्स तोप सौदे में कमीशन जब भ्रष्टाचार है तो राफेल सौदे में कमीशन बिजनेस डील कैसे हो सकता है? क्या छद्म राष्ट्रवाद का ये जीता जागता प्रमाण नहीं है। प्रारंभ से ही राफेल सौदे में हुई गड़बड़ी को मोदी सत्ता नकारते रही है लेकिन जिस तरह फ्रांस में राफेल डील की आपराधिक जांच शुरु हुई है उसके बाद यह साफ हो गया है कि राफेल डील दो सरकार के बीच के सौदे की बाते न केवल बकवास है बल्कि कमीशनखोरी भी जमकर हुई है। 

हालांकि अभी जांच के परिणाम पर कुछ भी बोलना जल्दबाजी होगी लेकिन जिस तरह की जांच फ्रांस में शुरु हुई है वैसी जांच की कल्पना करना भारत में मुश्किल है। चौकीदार चोर है के नारे के साथ शुरु हुआ आरोप-प्रत्यारोप के इस खेल में भले ही सत्ता हावी हो, और वह विरोधियों को देशद्रोह बताता रहा हो लेकिन कालेधन का मामला हो, पनामा पेपर का मामला हो या फिर बड़े उद्योगपतियों या भगोड़े उद्योगपतियों के बैक लोन को बट्टा खाते में डालने का मामला हो मोदी सत्ता की भूमिका संदिग्ध रही है। तब राष्ट्रवाद की बात कितना उचित है अब जनता ही तय करेगी।

सत्ता को क्लीन चीट देने, राष्ट्रवादी बताने, इमानदार बताने जिस तरह से मीम फैलाई गई कि उसके तो परिवार भी नहीं है तब किसके लिये भ्रष्टाचार किया जायेगा कि पोल तो शोले फिल्म के गब्बर सिंह से ही समझा जा सकता है जिसका कोई परिवार नहीं था लेकिन तबाही लूट खसोट और आतंक का पर्याय था। तब यदि गब्बर सिंह के तर्ज पर गब्बर सिंह जब कहते है कि इन्हें (जय वीरु) लाए हो रायगढ़ की रक्षा के लिए? तो याद कीजिए ये बात सत्ता पप्पू के संबंध में कहती है और पप्पू अपने कार्य में तल्लीन है।

हम यहां रायगढ़ की रक्षा की बात नहीं कर रहे हैं वह तो फिल्म शोले था लेकिन अभी बात काले धन को लाने की बजाय दो गुना हो जाना, पड़ोसी पाकिस्तान में पनामा पेपर मामले में सजा हो जाना और भारत में जांच रिपोर्ट तक नहीं आना की बात भी हम यहां कहकर राष्ट्रवादी सरकार पर उंगली नहीं उठाना चाहते। हम तो राफेल सौदे में हुई घपलेबाजी और आपराधिक जांच में भारत के नाम, मोदी के चहेते कंपनी जैसी बात के जिक्र पर चर्चा नहीं करना चाहते।

हम तो सिर्फ यही कहते हैं कि राफेल सौदे में यदि सबकुछ ठीक है तो क्यों जांच नहीं होनी चाहिए, भारत की सरकारी कंपनी की बजाय निजी कंपनी को काम देने से लेकर कई सवाल है जिसका जवाब देश को चाहिए। तब सवाल यही है कि राष्ट्रवाद का लबादा ओढ़ कर कुछ भी कर गुजरने का दिन क्या पूरा होने वाला है, क्या रंगा सियार का सच उजागर फ्रांस करेगा या सत्ता बदलने का इंतजार किया जाए।