शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

दोगली शख्सियत...

 कोई भी शख्सियत जब नफरत के मसाले से पकी हो तो वह आम आदमी कहां रह पाता है, उसमें मानवीय संवेदनाओं का तो अभाव होता ही है अपने घर परिवार के प्रति भी निष्ठुर हो जाता है, ऐसेलोग घडिय़ाली आंसू बहाने में तो माहिर होते ही हैं प्रमुख पदों पर बैठते ही इनकी ताकत खौफनाक हो जाती है। वे बात-बात पर झूठ और गुमराह करने वाली तस्वीरें पेश करते रहते हैं। और यह दोगली शख्सियत अचानक रुप नहीं लेता बल्कि यह सालों की मेहनत का नतीजा है। 

खैर इन सब बातों को अब कहने का कोई मतलब ही नहीं है क्यों यह समय कोविड से निपटने का है, इस देवभूमि को पिछली लाशों से मुक्त करने का है, आप इस समय सत्ता से न इस्तीफा मांग सकते हैं और न ही उनसे इस्तीफे की उम्मीद ही कर सकते है। हां उनकी लापरवाही और गैर जिम्मेदारी को चुपचाप किसी तमाशाबीन की तरह देख सकते हैं, जिनके अपने चले जा रहे हैं उनकी हिम्मत बढ़ा सकते हैं ताकि जो सत्ता की इस लापरवाही के बाद भी बच गये हैं वे कम से कम अच्छे से जी तो सके।

अपनों के जाने का दुख वही जानता है जिसका अपना घर-परिवार होता है लेकिन जब व्यक्ति अपने धर्म-जाति को लेकर कुंठित हो जाये तो उसके भीतर की आत्मा कहां जिन्दा रहती है उसे तो बस अपने धर्म को ही श्रेष्ठ बताना है। और इसके एवज में पिछली लाशें उन्हें कभी नहीं दिखाई देगी। कोरोना के शिकार तो फिर भी ठीक हो जा रहे हैं लेकिन सत्ता की लापरवाही के शिकार लोगों का दर्द कोई नहीं समझ सकता। ऐसे मे कल जब रिजाईन मोदी का नारा बुलंद हुआ तो इसे ब्लाक कर दिया गया। सरकार यानी मोदी सत्ता कह रही है कि उसने ब्लॉक नहीं किया? और न ही उसके इशारे पर ही ब्लॉक हुआ है?

लेकिन एक बात सत्ता जान ले किन इस देश की जनता सब-कुछ देख रही है। अब तो पूरी दुनिया में मोदी सत्ता की थू-थू हो रही है और हाईकोर्ट ने जिस तरह से लानत भेजी है उसके बाद तो सत्ता को एक दिन भी बने रहने की नैतिकता नहीं है लेकिन शरम कहां बनती है तब क्या बचा रहता है। अब तो लोगों का भी कहना है कि लानत है सत्ता की आजाद मिजाजी को। मौत के इस मंजर के लिए भले ही कुछ लोग अकेली सत्ता को दोषी मानने से इंकार कर रहे हो। लेकिन सच तो यही है कि यदि उपलब्धि का चोंगा सत्ता अकेले पहनती है तो इन लाशों की साड़ी भी उन्हें ही पहनना है।

प्रख्यात कवि कुमार विश्वास ने जिस ढंग से अपने ट्वीट में कहा है कि उससे तो साफ है कि उनके दिल में कितना गुस्सा है।

यह मंजर क्या गुस्सा दिलाने वाला नहीं है, मां का बच्चों की जिन्दगी के लिए कलपना, पत्नी का मुंह से ही पति को आक्सीजन देने की कोशिश और लाशों को रिक्शा, ठेला, सायकल से ले जाना। क्या सरकार इतनी भी व्यवस्था करने के लायक नहीं बची है तो फिर वह क्यों हैं।