बुधवार, 5 मई 2021

साजिश...

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता यदि इस भीषण आपदा में भी सेन्ट्रल विस्टा है तो यकीन मानिये ये सत्ता देश के लाखों लोगों की जान लेने का क्या षडयंत्र नहीं कर रही है। यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे है ताकि लोग अपने घरों में चुपचाप बैठे रहे और कोरोना से बचे।

वैसे भी पूरी दुनिया में भारत ऐसा देश होगा जिसकी सत्ता हर समस्या के लिए अपने नागरिकों को ही दोष देती है, बेरोजगारी, महंगाई के लिए सत्ता ने बढ़ती जनसंख्या को वजह बताती है। तो कुंठित हिन्दुओं को लगता है कि आबादी बढऩे की वजह मुसलमान है। वैसे कुंठित हिन्दु तो हर समस्या के लिए ही मुसलमानों या अल्पसंख्यकों पर निशाना साधते रहे है।

ये कुंठित हिन्दू जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपाय भी बताती है तो मानसिक रुप से दिवालिया हो चुके वे लोग हिन्दुओं को अधिकाधिक बच्चा पैदा करने की सलाह भी देते हैं। कोरोना की पहली लहर के लिए नरेन्द्र मोदी की नाकामी छुपाने जिस तरह से तब्लिकी जमात पर निशाना साधा गया वह किसी से छिपा नहीं है। नोटबंदी के दौरान मां को लाईन में लगाना और किसान आंदोलन के दौरान अल्पसंख्यक सिखों को खालिस्तानी और देशद्रोही बताकर निशाने में लेने की कोशिश को भी इस देश ने देखा है। बंगाल चुनाव में भाजपा नेताओं की टिप्पणी तो विभाजनकारी थी ही खुद प्रधानमंत्री की भाषा ने सारी मर्यादाओं को लांघकर पूरी दुनिया में भारत को शर्मसार करने में कोई कमी नहीं रखा था। उनके नेताओं ने जिस तरीके से दो र्म को ममता के जाने के बाद टीएमसी को सबक सिखाने की धमकी देते रहे उसका दुष्परिणाम सबके सामने है।

स्व. इंदिरा गांधी ने 80 के दशक में मेरठ दंगे के बाद अटल बिहारी बाजपेयी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि यह अजीब संयोग है कि संघ के लोगों के जाने के बाद ही दंगे भड़कते हैं? सवाल बंगाल चुनाव के बाद की हिंसा निश्चित रुप से निंदनीय है लेकिन इसके लिए संघ और भाजपा को भी आत्ममंथन की जरूरत है कि उनका तेवर कितना आक्रमक होना चाहिए। कंगना रनौत जैसी फिल्म अभिनेत्री के नफरत भरा ट्वीट का मतलब क्या है?

आज जब देश कोरोना के भीषण महामारी की चपेट में है और न्यायालय लगातार सरकार के क्रिया कलापों को लेकर नाराजगी जाहिर कर रही है तब भी यदि सरकार कोई योजना नहीं बना रही है और तो और दुनियाभर के देशों से प्राप्त राहत सामग्री को भी हवाई अड्डे से जरुरतमंदों तक नहीं पहुंचा रही है तब क्या यह लोगों को मौत के मुंह में ढकेलने का उपक्रम नहीं है। 

दिल्ली के बीचों बीच बन रहे प्रधानमंत्री के आवास को जल्द से जल्द पूरा करने की प्राथमिकता को लेकर अब तो प्रधानमंत्री की नियत को लेकर चौतरफा सवाल उठने लगे हैं? सरकार द्वारा मौतों के आंकड़े छुपाने का आरोप लगने के बावजूद यदि सरकार का यही रवैया रहा तो मई में एक लाख से उपर मौत होना तय है।

तब यह भी सवाल उठेगा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए क्या महामारी को जरिया बनाया जा रहा है। या महामारी की आड़ में एक झटके में जनसंख्या कम करने की कोशिश हो रही है।