रविवार, 7 मार्च 2021

किसानों के सौ दिन...

 

किसानों के आंदोलन को सौ दिन पूरे हो गये है लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब भी है यह दिखाई नहीं देता? इसका मतलब क्या है? क्या मोदी सत्ता ने यह तय कर लिया है कि उसे चुनाव जीतने आता है और वह ऐसे किसी भी आंदोलन की परवाह नहीं करेगी? इसका मतलब साफ है कि किसानों का आंदोलन अभी और लंबा चलने वाला है। वैसे भी केन्द्र की पूरी सत्ता इन दिनों पांच राज्यों में होने वाली चुनाव में व्यस्त है तब किसानो के आंदोलन का क्या होगा?

सवाल यह भी है कि यदि मोदी सत्ता 2 मई को आने वाले चुनाव परिणाम में जीत जाती है, तब किसान क्या आंदोलन समाप्त कर देंगे? ऐसा भी नहीं है तब आने वाले दिनों में किसान आंदोलन का रुख क्या होगा? क्या किसान अब पांच राज्यों में जाकर भाजपा के खिलाफ माहौल बनायेंगे? अडानी-अंबानी के बहिष्कार को और गति देंगे या इसके बाद खुद चुनाव लड़ेंगे। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि किसान आंदोलन अब गांव-गांव तक पहुंचने लगा है।  यहां तक कि गांवों में भाजपा के सांसद विधायक और दूसरे नेताओं को किसानों के बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में आंदोलन को लेकर जो परिस्थितियां बन रही है वह देश को किस दिशा में ले जायेगी कहना कठिन है।

मोदी सत्ता ने साफ कर दिया है कि न वे तीनों कानून को वापस लेंगे और न ही एमएसपी को कानूनी दर्जा ही देंगे। इसके बाद भी यदि किसान आंदोलन कर रहे हैं और आंदोलन को गांव-गांव तक पहुंचा रहे है तो फिर सवाल यही है कि आने वाले दिनों में यह आंदोलन का स्वरुप क्या होगा?

हमने पहले ही कह दिया है कि जिस तरह से किसानों ने पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा से जुड़े नेताओं का बहिष्कार कर रहे हैं वैसा बहिष्कार यदि दूसरे राज्यों में होने लगे तब क्या होगा? क्या तब भी सरकार अपने कार्पोरेट मित्रों के भरोसे चुनाव जीत जायेगी।

कहना कठिन है क्योंकि किसानों की रणनीति को लेकर साफ है कि आगे वे कार्पोरेट घरानों का ही नहीं सत्ताधारी दल के नेताओं का भी बहिष्कार की रणनीति को विस्तार देने में लगे हैं। तब क्या भाजपा पांचों राज्यों में चुनाव हार जायेगी। क्योंकि चुनाव होने वाले राज्यों में भी तो बड़ी संख्या में किसान है?

सवाल कई है लेकिन एक बात तो तय है कि किसान आंदोलन लंबा ही नहीं चलेगा बल्कि वह भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेगा और इतिहास में भी दर्ज होगा!