रविवार, 14 मार्च 2021

खेला होबे...

 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने जब कहा कि खेला होबे (खेल हो गया) तो देश के दूसरे राज्यों में बैठे लोगों ने क्या समझा होगा? देश की जनता के साथ तो पहले ही खेला होवे हो चुका है।

राजनीति में जुमले और नारों का अपना महत्व है, अच्छे दिन आयेंगे और मोदी है तो मुमकीन है के नारों से जिस तरह से आम जनमानस को जोड़ा गया उसका सच क्या खेला होबे के साथ सामने नहीं है?

ये सच है कि अन्ना हजारे के आंदोलन ने कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में माहौल खड़ा कर दिया था तब देश में मंहगाई बढऩे लगी थी, लोकपाल बिल भी लोगों की प्राथमिकता में शामि था, राम मंदिर, धारा-370 जैसे मुद्दों ने कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश खड़ा कर दिया था। हालांकि रोजी-रोटी को लेकर उतना झंझट नहीं था, लेकिन आखिर वे इस देश में मजे से बिरयानी कैसे खा सकते हैं का सवाल बेवजह खड़ा किया गया। काला धन, भ्रष्टाचार और राजनैतिक अपराध को इस देश से उभारा गया कि इससे बुरा दिन तो कोई हो ही नहीं सकता था! पटेल-सुभाष बाबू की उपेक्षा और सिर्फ गांधी परिवार को प्राथमिकता के झूठ के उस अच्छे दिन की कल्पना लोक में विचरण का मार्ग प्रशस्त किया जो मोहक लगने लगा।

लेकिन परिणाम क्या हुआ! क्या सुभाष बाबू के मौत का वह रहस्य पिछले 6 सालों में उजागर हो पाया! सिर्फ धारा 370 के एजेंडे को छोड़ दे तो देश को क्या मिला?

इस पर चिंतन करने की जरुरत ही नहीं बेबाक बोलने की भी जरुरत है, असहमति के स्वर को दबाने देशद्रोह कानून का सहारा लिया गया! संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनियता तार-तार हो चुकी है! गैर सिलेण्डर की कीमतों ने फिर चूल्हे की ओर लौट जाने मजबूर कर दिया है, बढ़ती बेरोजगारी से कितने ही लोग रोज आत्महत्या कर रहे हैं या अपराध में चले गए। भ्रष्टाचारी-दूराचारी और माफिया एक ही छत के नीचे इकट्ठे होने लगे है, न अपराधियों-भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है और न ही कालाधन आने की उम्मीद ही बची है?

सार्वजनिक उपक्रमों के बंद होने और बेचे जाने से किसकी नौकरी जा रही है, बढ़ती महंगाई से कौन ज्यादा पीडि़त है! उद्योगपतियों के बढ़ते कर्ज को बट्टा खाने में डालने से बैंक किससे पैसा वसूल रही है! ये सवाल पूछना भी देशद्रोह हो चला है तब दूसरी तरफ नजर भी दौडऩा चाहिए कि क्या उन लोगों के मजे लेकर बिरयानी खाने में दिक्कतें आई है, बिल्कुल नहीं आई है वे  अब भी मजे से बिरयानी खा रहे हैं हां हमारे खाने में परेशानी जरूर बढ़ गई है।

तब यदि ममता बैनर्जी कहती है खेला होबे यानी खेल हो गया तो बरबस ही देश के दूसरे राज्यों से आवाज सुनाई देती है खेला तो हमारे साथ पहले ही होबे है।