गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

कानून से उपर सत्ता और बेबसी...

 

नक्सली हमले के बाद देश के गृहमंत्री अमित शाह का छत्तीसगढ़ दौरा इन दिनों सुर्खियों में है तो उसकी वजह बगैर मास्क की वे तमाम तस्वीरें है जो साबित करती है कि सत्ता के आगे जनता कितनी बेबस है।

अब जब न्यायालय में कार में अकेले सफर करने वाले को मास्क लगाने को उचित बता रहा है तब सोचिये देश के गृहमंत्री की इन तस्वीरों का मतलब क्या है। कहते हैं कि हर अपराधी की शुरुआत झूठ बोलने की आदत से शुरु होती है और यह सफर रंगा-बिल्ला या कुख्यात तक पहुंच जाता है, इसी तरह सार्वजनिक जीवन में छोटी-छोटी बातों का महत्व है। यही छोटी बात आम आदमी के जीवन को प्रभावित करता है।

ये सच है कि हर व्यक्ति का अपने जीवन में बहुत कुछ निजी होता है लेकिन जो लोग सार्वजनिक जीते है उनकी छोटी सी छोटी बात भी जनमानस को प्रभावित करता है। ऐसे में गृहमंत्री का मास्क नहीं लगाना चुनावी रैलियों में भीड़ और कुंभ या सामाजिक कार्यक्रमों में भीड़ का क्या प्रभाव पड़ता होगा यह सहज ही समझा जा सकता है।

देश केवल कोरोना की महामारी से त्रस्त नहीं है बल्कि झूठ, नफरत और अफवाह के उस जंजाल में भी फंस चुका है जिसके चलते हालात बदतर होते जा रहे हैं। हमारा दावा है कि कोरोना जैसी महामारी नहीं भी आती तब भी देश के हालात इसी तरह केे होते क्योंकि सत्ता पाने के लिए जो बीज बोया गया है उसका परिणाम तो दुखद होना ही था।

कानून को सत्ता के दम पर ठेंगा दिखाने की परम्परा चल पड़ी है, कितने ही उदाहरण है जब सत्ता ने अपनी मनमानी से जनता को बेबस कर दिया है, और अब तो झूठ, नफरत और अफवाह की चाशनी में सत्ता ने जनमानस के दिमाग में नस्लवाद का ऐसा जहर भर दिया है जिसका असर आसानी से जाने वाला इसलिए भी नहीं है क्योंकि सत्ता पाने की राह में सभी जहर बो रहे हैं। याद कीजिए सीएए के विरोध में बैठे लोगों को किस हद तक जलील किया गया वह याद नहीं है तो किसान आंदोलन को ही याद कर लीजिए, अफवाहबाजों ने क्या कुछ नहीं किया। इसके बाद भी यदि किसी को स्यिूमर स्पीड सोसायटी पर भरोसा है तो इसका मतलब साफ है कि विरोध का हर स्वर मुल्ला मुलायम या ममता बेगम के तमके के लिए तैयार रहे।

क्या इस देश में कोई बहुसंख्यक समाज का व्यक्ति किसी अल्पसंख्यक के लिए खड़ा नहीं हो सकता! पूरी दुनिया में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की खबरें नई नहीं है और सत्ता के लिए राजनैतिक दल ये दावा करने से नहीं चुकते कि अल्पसंख्यक उनका हक छिन रहे हैं और पहले ही अव्यवस्था से दुखी व्यक्ति आसानी से ऐसे लोगों की बातों में आ जाते हैं।

ऐसे में यदि अमित शाह के मास्क नहीं पहनने पर उनकी पार्टी के लोग खामोश हो या दूसरे का पाप गिनाने लगे तो समझ लिजिए पट्टा ने दिल और दिमाग दोनों को अलग कर इस हद तक जकड़ लिया है कि मस्तिष्क कुंद हो गया है। और जनता बेचारी तो बेबस है।