शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

पार्षदों की चाहत, शहर वासी आहत...


राजधानी का नगर निगम इन दिनों राÓय सरकार के लिए राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है । सत्ता में बैठी राÓय सरकार के दो मंत्री अभी भी यह बात हजम नहीं कर पा रहे हैं कि जनता ने भाजपा को नकार दिया है । वे यह बात देखना ही नहीं चाहते कि उनकी पैसे की भूख को लोगों ने देख लिया है । निगम के अधिकारी भी सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं ।
 आयुक्त के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वे हर हाल में राजधानी में ही रहना चाहते हैं । ऐसे में ठुकुर -सुहाती तो करनी ही पड़ेगी । फिर तहसील के पाप भी तो कम नहीं है ।
महापौर किरणमयी नायक तो अभी से विधानसभा चुनाव की तैयारी में है । विदेश यात्रा भी कम नहीं हो रहा है । छत्तीसगढिय़ा वाद को लेकर स्वाभिमान यात्रा अब पद के साथ गुम होने लगा है तभी तो प्रभारी महापौर मनोज कंदोई के हिस्से में चला जाता है । अब शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदर चंद धाड़ीवाल पर भी तो दबाव बनाना है और भाजपा तो राजनैतिक बैरी है ही ।
पहले इस राजनैतिक बैरी को साधने की कोशिश हुई । स्वयं सेवकों पर फूल बरसाये गये लेकिन जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि इससे कोई फायदा नहीं है । इसलिए यह गलती दोहराई नहीं गई ।
अब व्यवस्था व नियम को लेकर सभापति संजय श्रीवास्तव और महापौर में ठन गई है । यानी शहर विकास से Óयादा राजनीति जरूरी है । और ऐसे में जब बैजनाथ पारा वार्ड में चुनाव हो तो राजनीति जोरदार होनी तय है ।
कांग्रेस को अब भी यहां मुस्लिम वोटों पर भरोसा है । जबकि भाजपा समझने लगी है कि वोट कहां से हासिल होंगे । लेकिन जनता भी समझ गई है कि जो लोग खड़े हैं उनमें वार्ड की चिंता किसे Óयादा है । पहले भी देश में कई चुनावों में किन्नरों की जीत हुई है । यहां भी एक किन्नर प्रत्याशी है ?
वैसे भी राजधानी के 70 पार्षदों का हाल जनता अ'छे से जान रही है । कौन पार्षद कहां से पैसे कमा रहा है  किसी से छिपा नहीं है । गुमटी और पानठेला लगाने के एवज में कहां-कहां वसूली चल रही है । बगैर नक्शा स्वीकृत कैसे मकान बन रहे है और पार्षद को कितना मिल रहा है । यह भी छिपा नहीं है ।
हद तो यह है कि सफाई कर्मियों की उपस्थिति को लेकर भी पैसा कमाया जा रहा है। कई पार्षद के रिश्तेदार तो निगम के ठेकेदार तक बन गये है । और महिला पार्षदों से Óयादा तो उनके पति लगे रहते है भले ही पार्षद पति को लोग शार्ट कट में पाप कह रहे हो लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता आखिर राजनीति तो मोटी चमड़ी वाले ही करते है ।

बंद आंख से ...
शंकर नगर क्षेत्र के एक पार्षद की दादागिरी चरम पर है । कार्यक्रम के लिए पैसा नहीं देने वाले गुमटी वाले को दूकान बंद कर भागना पड़ा । जब कब्जा ही अवैध हो तो पार्षद की दादागिरी ऐसी ही चलती है ।  दूसरा मामला स्टेशन क्षेत्र का है । भतीजे की ठेकेदारी की करतूत सड़क पर दिखने लगी है और पाप बाहर आने से रोका जा रहा है ।