सोमवार, 17 जून 2019

मोदी सरकार के मंत्रियों पर लगभग सभी तरह के अपराधिक मामले

0 सर्वाधिक भाजपा के 116 सांसदों पर आपराधिक मामले, कई गंभीर
0 223 सांसदों पर आपराधिक मामले, हर चुनाव बाद बढ़ रहे है ऐसे सांसद
विशेष प्रतिनिधि
देश के लोकतंत्र का मंदिर माने जाने वाले संसद में हर चुनाव के बाद अपराधिक मामले वाले सांसदों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इस बार तो मोदी सरकार के 22 मंत्रियों पर भी आपराधिक मामले चल रहे हैं जिसमें 16 मंत्रियों पर तो अत्यंत गंभीर मामले है। कुछ मंत्री तो हिस्ट्रीशीटर भी हैं।
राजनीति के अपराधीकरण को हटाने लेकर राजनैतिक दलों का रवैया ठीक इसके उलट नजर आ रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि जैसे जैसे देश साक्षर की ओर बढऩे की बात कर रहा है वैसे वैसे हर चुनाव के बाद लोकसभा में पहुंचने वाले आपराधिक मामलों के सांसदों की संख्या बढ़ते ही जा रही है। हैरानी की बात तो यह है कि सरकार में ऐसे गंभीर अपराधिक मामले वालों को मंत्री तक बना दिया जाता है। ऐसे में कानून व्यवस्था का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
मोदी सरकार में इस बार 22 ऐसे लोगों को मंत्री बनाया गया है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं इनमें से 16 पर तो चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर आरोप बताये जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक उड़ीसा से सांसद बने प्रताप सारंगी पर 7 तरह के गंभीर प्रकरण दर्ज है और ऐसे लोगों को भाजपा में उड़ीसा का मोदी कहकर महिमा मंडन किया जाता है। 
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेसी रिफार्म के रिपोर्ट के मुताबिक हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे आपराधिक मामले वाले सांसदों के प्रकरणों को निपटाने की मांग की जाती रही है। लेकिन कुछ नहीं होता। 2014 में संसद में अपने पहले भाषण में ही प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में लम्बा चौड़ा वक्तव्य देकर प्रकरणों के शीघ्र निराकरण के लिए विशेष पहल की बात कही थी लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। बहरहाल मोदी सरकार में जिस तरह से गंभीर आपराधिक मामले वालों को मंत्री बनाया गया है वह न केवल हैरान करने वाला है बल्कि सरकार की मंशा पर भी सवाल उठा रहे हैं।

रविवार, 16 जून 2019

पैसा है तो पढ़ाई

मोदी सरकार में पैसा है तो शिक्षा है
नहीं तो स्कूलों में नाश्ता खाना तो है ही!
0 निजी शिक्षण संस्थाओं को फीस बढ़ाने की खुली छूट
0 स्वायत्तता, निजी संस्थानों व कार्पोरेट को प्राथमिकता
0 इन्फ्रास्ट्रक्चर और रिक्त पदों के लिए पैसा नहीं
0 हर जिले में हायर एजुकेशन की बात लेकिन जमीन नहीं
0 त्रिभाषा फार्मूला, फ्रेंच, जर्मन सहित कई विदेशी भाषा में शिक्षा
0 स्कूली शिक्षा में बड़ा बदलाव- 5+3+3+4
0 मिशन तक्ष शिक्षा- मिशन नालंदा
0 प्राथमिक शाला के बच्चों को मध्यान्ह भोजन के पहले नाश्ता भी
30 जून तक सुझाव मांगे गये हैं फिर लागू होगा
विशेष प्रतिनिधि
मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के एक बात स्पष्ट कर दी कि सरकारें किसी की भी हो शिक्षा को लेकर उनका रवैया दोयम दर्जे का ही रहेगा। नई शिक्षा नीति में शिक्षा को लेकर सरकार का रवैया भी स्पष्ट हो गया है कि वे शिक्षा का स्तर तो बढ़ाना चाहते हैं लेकिन उनके पास पैसा नहीं है ऐसे में वह धीरे-धीरे निजी संस्थाओं, स्वयत्तता और कार्पोरेट पूंजी को प्राथमिकता देंगे। यदि आपके पास पैसा है तो उच्च शिक्षा ग्रहण करे वरना सरकार प्राथमिक शालाओं में नाश्ते में दूध केला और भोजन में दाल चावल देकर पेट भर रही है और मानसिक विकास तो हो ही जायेगा।
मोदी सरकार ने सत्ता में बैठते ही इस देश की नई शिक्षा नीति की घोषणा कर दी। 640 पृष्ठ के नई शिक्षा नीति के इस मसौदे में देश को सुपर नॉलेज पॉवर बनाने का सपना तो देखा गया है लेकिन बगैर पैसों का यह सब कैसे होगा यह चिंता का विषय है। क्योंकि यदि नीति का क्रियान्वयन ईमानदारी से किया जायेगा तो जो पैसे चाहिए उसका बीस फीसदी ही शिक्षा बजट है। ऐसे में नई शिक्षा नीति भी पिछले दोनों शिक्षा नीतियों की तरह मृगमरिचिका बनकर रह जाने वाला है। जबकि उच्च शिक्षा में जिस तरह से कार्पोरेट सेक्टर को आमंत्रित किया जा रहा है वह नए तरह के खतरे का संकेत है। शिक्षा नीति में भोजन के साथ नाश्ते का जिक्र तो किया गया है लेकिन शिक्षा के बाद रोजगार का क्या होगा इसका कहीं जिक्र नहीं है। नई शिक्षा नीति में इस बात का भी जिक्र नहीं है कि हर साल देश की लाखों प्रतिभा दूसरे देशों में पलायन कर रही है उसे कैसे रोका जाए और सबसे दुखद तो यह है कि निजी स्कूलों तक को फीस की खुली छूट दे दी गई है।
देश की पहली शिक्षा नीति 1968 में आई थी और इसके बाद 1986 में बनी। 1992 में संशोधन हुई तो अब तीसरी शिक्षा नीति 2019 में आई है। शिक्षा के गिरते स्तर पर सवाल उठाकर संसद तक ठप्प करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अब जब नई शिक्षा नीति की घोषणा की है तो यह नीति भी पिछले नीतियों से ज्यादा कुछ अलग नहीं है। हैरानी की बात तो यह है कि नई शिक्षा नीति में सुपर नॉलेज पावर बनाने का जो सपना देखा गया है उसे पूरा करने का कोई ठोस उपाय भी नहीं दिया गया है। हालांकि इसे मिशन तक्षशिला और मिशन नालंदा का नाम देकर इतिहास के वैभव को याद तो किया गया है लेकिन यह बगैर पैसों का कैसे पूरा होगा यह सबसे बड़ा सवाल है।
640 पृष्ठ के इस मसौदे में सरकार ने ईमानदारी से स्वीकार किया है कि प्राथमिक शिक्षा से लेकर 12वीं तक की शिक्षा के लिए इन्फ्रास्क्ट्रक्चर ही नहीं है। यही नहीं पांचवी के बाद 5 फीसदी, आठवीं के बाद करीब 30 फीसदी और 10वीं के बाद लगभग 49 फीसदी तथा बारहवीं के बाद करीब 90 फीसदी बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। हालांकि पढ़ाई छोडऩे का कोई स्पष्ट कारण सरकार ने नहीं बताया है। लेकिन सच तो यह है कि पढ़ाई छोडऩे की बड़ी वजह गरीबी के अलावा स्कूल कालेज की दूरी भी है। जब बच्चों को शिक्षा के लिए 20 किलोमीटर तक रोज जाना पड़े तो गांव का बच्चा यह सब कैसे कर सकता है। नई शिक्षा नीति में इसके कोई उपाय नहीं दिये हैं। यदि इन्फ्रास्ट्रक्चर आज से खड़ा भी किया जायेगा तो सरकार के पास जब पैसा ही नहीं है तो वह इसे कैसे करेगी।
यही नहीं जिस त्रिभाषा को लेकर 1968 में विवाद हुआ था और सरकार को कदम वापस लेने पड़े थे उसी त्रिभाषा का बेवजह जिक्र कर दक्षिण के राज्यों में विवाद और तनाव was की कोशिश की गई। इसी तरह 1995 से स्कूलों में लागू मध्यान्ह भोजन को अपर्याप्त मानते हुए नाश्ते भी देने का जिक्र किया गया है शिक्षा पर बात करते समय नाश्ते का जिक्र हैरानी भरा फैसला है जबकि अब तक मध्यान्ह भोजन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के कंधे पर है और उनसे मध्यान्ह भोजन के अलावा दूसरे भी काम कराये जाते हैं इससे रुष्ठ देशभर के  आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंदोलित है। इनका कहना है कि उनका वेतन बढ़ा जाए क्योंकि सरकार उनसे कई तरह का काम लेती है जिसकी वजह से उन्हें अपने घर परिवार के लिए समय ही नहीं मिल पाता। उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, पंजाब, राजस्थान सहित कई राज्यों के आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंदोलित है।
नीति का सबसे दोषपूर्ण पहलू यह है कि उच्च शिक्षा में कार्पोरेट जगत को लाने की कोशिश है ऐसे में पहले ही महंगी शिक्षा से त्रस्त लोगों के लिए यह कठिन हो जायेगा। जबकि शिक्षा के बाद रोजगार को लेकर नई शिक्षा नीति में कोई खास प्रावधान ही नहीं किया गया  है। एक आंकड़े के मुताबिक एमबीए करने वाले 90 फीसदी व इंजीनियरिंग करने वाले 70 फीसदी बच्चे पढ़ाई के बाद या तो बेरोजगार हो जाते है या अपनी पढ़ाई वाले कार्य को छोड़ दूसरा कार्य करते हैं। इसी तरह सीए से लेकर दूसरी तकनीकी शिक्षा का हाल है।
उच्च शिक्षा में पढ़ाई का हाल किसी से छिपा नहीं है। विश्वविद्यालयों में 70 से 80 फीसदी पद रिक्त हैं और इन्हें भर्ती के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। इसी तरह नई शिक्षा नीति में स्वायत्तता जैसी बात कही गई है यानी कुल मिलाकर नई शिक्षा नीति से पढ़ाई और महंगी होगी। यही नहीं निजी स्कूलों को फीस की खुली छूट दे दी गई है लेकिन कहा गया है कि फीस बढ़ाने में मनमानी न करे अब यह मनमानी कहां तक सीमित है कोई कैसे बता सकता है। नई शिक्षा नीति में जिस तरह से फीस बढ़ाने का अधिकार निजी संस्थानों को दिया है उसके बाद तो यह तय माना जा रहा है कि अब आने वाले दिनों में वही शिक्षा लेगा जिसके पास पैसा होगा। 
बहरहाल मोदी की सरकार की इस शिक्षा नीति को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं देखना है कि 30 मई को जारी इस ड्राफ्ट में 30 जून तक मांगे गये सुझाव को कैसे माना जायेगा। हालांकि यह ड्राफ्ट 2016 में ही तैयार हो गई थी।