बुधवार, 9 जून 2010

बाबूलाल दमदार,लाचार है सरकार!

ऐसे फैसलों से ही ईमानदार होते हैं हताश
वैसे तो पहले से ही इस बात का अंदेशा था कि आईएएस बाबूलाल अग्रवाल साफ बच निकलेंगे। अपनी दमदारी का लोहा मनवा चुके पूर्व कृषि सचिव बाबूलाल को जिस तरह से निलंबित करने में सरकार ने विलंब किया था उतनी ही जल्दी आनन फानन में बहाली का आदेश भी निकाल दिया। प्रदेश सरकार के इस निर्णय ने एक बार फिर ईमानदारों में हताशा पैदा हुई है वहीं बाबूलाल अग्रवाल की दमदारी भी सामने आई है।
कभी स्वास्थ्य सचिव रहे बाबूलाल अग्रवाल के कार्यकाल में हुए घपले की कहानी अभी लोग ठीक से भूले भी नहीं थे और उन पर होने वाली कार्रवाई से निगाह भी नहीं हटी थी कि उनकी बहाली आदेश ने आम लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया कि आखिर सरकार को हो क्या गया है। राजनैतिक सुचिता और नैतिकता की दुहाई देने वाली भाजपा अचानक सत्ता पाते ही कैसे बदल गई।
बाबूलाल अग्रवाल के निवास में जब आयकर विभाग ने छापे की कार्रवाई की तब देर है अंधेर नहीं का राग अलापने वाले भी सरकार के इस फैसले से हतप्रभ है। तब आयकर विभाग ने बाबूलाल अग्रवाल पर आय से अधिक संपत्ति का मामला बनाया था दो-चार सौ करोड़ की अनुपातहीन संपत्ति का दावा किया गया और कहा जाने लगा था कि बाबूलाल अग्रवाल का बच पाना आसा नहीं है। हालांकि अंदेशा तब भी था कि अपनी पहुंच और ताकत के बल पर राज करने वालों पर कार्रवाई आसान नहीं है।
इधर पता चला है कि उच्च स्तरीय राजनैतिक दबाव के चलते सरकार ने निर्णय लिया है इसके लिए मध्यप्रदेश में भाजपा विधायक ने भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं से चर्चा की थी और मुलाकात भी कराई थी। कहा जाता है कि सरकार पर भाजपा के ही राष्ट्रीय नेताओं का जबरदस्त दबाव था और इसके चलते ही यह तय माना जा रहा था कि बाबूलाल अग्रवाल की बहाली शीघ्र हो जाएगी। इधर सरकार के इस फैसले से आम आदमी में तीखी प्रतिक्रिया व्याप्त है और कहा जा रहा है कि इससे सरकार की छवि पर भी विपरित प्रभाव पड़ने वाला है।
गौरतलब है कि इस छापे में आयकर दस्ते ने श्री अग्रवाल व उनके परिजनों के यहां से 70 करोड़ रुपए से अधिक की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया था। 4 फरवरी से 7 मार्च तक आयकर दस्ते की जांच में पारिवारिक व्यवसाय में श्री अग्रवाल के निवेश के भी दस्तावेज जब्त किए थे। इससे उन पर अपनी आय से अधिक अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने के भी आरोप लगाए थे। आयकर विभाग की फौरी रिपोर्ट के आधार पर राय शासन ने 12 फरवरी को एक आदेश जारी कर श्री अग्रवाल को निलंबित कर दिया था। इसके बाद से श्री अग्रवाल अपनी बहाली के लिए प्रयासरत थे। उनकी बहाली में छापे को लेकर आयकर विभाग की मुकम्मल रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा था। इस रिपोर्ट के लिए आयकर विभाग की लंबी जांच प्रक्रिया जारी थी। 90 दिनों के भीतर राय सरकार को आयकर रिपोर्ट के हवाले से श्री अग्रवाल को आरोप पत्र दिया जाना था। जो संभव नहीं हो पाया। इसे देखते हुए राय सरकार ने अपनी तरफ से (बिना आयकर रिपोर्ट के) जांच शुरु करते हुए श्री अग्रवाल से अघोषित व आय से अधिक संपत्ति के मामले में पूछताछ की थी। इस पर श्री अग्रवाल ने मय दस्तावेज अपनी आय व चल अचल संपत्ति का ब्यौरा के साथ अपनी बहाली के लिए राय शासन को आवेदन भी प्रस्तुत किया था। जवाब के परीक्षण के बाद राय शासन ने गुरुवार को श्री अग्रवाल का निलंबन खत्म कर सेवा में बहाल कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक श्री अग्रवाल को राजस्व मंडल बिलासपुर में सदस्य नियुक्त किया गया है। इन्हें मिलाकर राजस्व मंडल में दो सदस्य हो गए हैं। श्री अग्रवाल के अलावा आर.सी. सिन्हा भी सदस्य है। बहरहाल अग्रवाल की बहाली ने राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल तो उठाये ही है साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि यह कदम भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला होगा।

नक्सलियों से सिर्फ भरमार ,क्यों खेलती है सरकार!

नक्सलियों को बड़ा आतंकवादी मानने वाले प्रदेश के मुखिया ने क्या कभी यह सोचा है कि नक्सलियों से मुठभेड़ के बाद हथियार के नाम पर सिर्फ भरमार बंदूक ही क्यों बरामद होती है जबकि दूसरी तरफ नक्सलियों के अत्याधुनिक हथियार से लैस बताया जाता है। इसके पीछे सरकार और पुलिस की मंशा की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ इन दिनों नक्सली आतंकवाद की चपेट में है कभी सिर्फ पुलिस को निशाना बनाने वाले लोग अब आम लोगों की जान के पीछे पड़ गए है और यह सरकार की दिवालिया पन नहीं तो और क्या है कि मुखबीर के नाम पर आम लोगों की हत्या करने पर भी कभी यह नहीं कहा गया कि वे आम आदमी को कत्लेआम कर रहे हैं।
80 के दशक से छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या ने घर करना शुरु किया तब पूर्ववर्ती सरकारों ने इसे सामाजिक समस्या का हवाला देकर इसे नजरअंदाज किया धीरे-धीरे नक्सली ताकतवर होते गए और आज समूचे बस्तर में उनकी सकरार कही जाए तो अतिसंयोक्ति नहीं होगी। इन सबके बीच सरकार और पुलिस की भूमिका भी कई मामले में संदेहास्पद रही है। सरकार और पुलिस ही दावा करती है कि नक्सली अत्याधुनिक हथियारों से लैस है लेकिन पिछले 5-6 सालों में नक्सली मुठभेड़ से बरामद हथियारों की पड़ताल करे तो कुछ एक मामले को छोड़कर कभी भी पुलिस ने मुठभेड़ के बाद आधुनिक हथियार बरामद करने की बात नहीं की।
इस संबंध में यह भी चर्चा है कि पुलिस जानबूझकर अपने पुराने स्टाक से भरमार बंदूक लाकर रख देती है और हथियार बरामद करने का दावा करती है। सूत्रों का दावा है कि यदि उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो कई बातें सामने आएंगी। बहरहाल मुठभेड़ में सिर्फ भरमार बंदूकों की जब्ती को लेकर सवाल तो उठाए ही जा रहे है सरकार की भूमिका की भी जमकर आलोचना की जा रही है।