रविवार, 17 फ़रवरी 2019

वैचारिक पत्रकारिता और दलाली




यह सच है कि वैचारिक पत्रकारिता करना बहुत कठिन है। किसी एक विचारधारा के समर्थन में खड़ा होना वह भी सीना ठोंक के आसान नहीं है। वह भी तब जब आप सत्ता के बाहर हो। छत्तीसगढ़ में वैचारिक पत्रकारिता की शुरुआत कब से हुई यह कहना कठिन है लेकिन इसकी शुरुआत युगधर्म से होने की बात कही जाती है। अपना पक्ष रखने दक्षिणपंथियों ने अखबार निकाला और फिर एक विचारधारा को लेकर संघर्ष करते रहे लेकिन यह स्वीकार्य तब भी नहीं था और न ही दैनिक स्वदेश के खुलने के बाद ही स्वीकार्य हो पाया। परिणाम स्वरुप इस एक विचारधारा के साथ खड़ा रहना मुश्किल कार्य रहा इस तरह की पत्रकारिता से न केवल अखबार को खड़ा रखना मुश्किल है बल्कि एक विचारधारा को लेकर चलने वाले पत्रकारों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं। यही वजह है कि सत्ता के दौरान फलने-फूलने वाले ऐसे पत्रकार सत्ता जाते ही गड़बड़ा जाते है।
ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद देखा जा सकता है। भाजपा की सत्ता जाते ही कल तक स्वयं को भाजपाई विचारधारा का समर्थक बताने वाले ऐसे अधिकांश पत्रकारों में स्वयं को भाजपा विरोधी साबित करने की होड़ सी मच गई है। कुछ तो पत्रकारिता छोड़ दूसरा काम धाम में रुचि ले रहे हैं तो कुछ कांग्रेसियों के सामने स्वयं को कांग्रेसी साबित करने में लग गए हैं। इनमें वे पत्रकार भी शामिल है जिन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत गद्रे भवन (पुराने भाजपा कार्यालय) में पनाह लेते थे या रात गुजारते थे। एक पत्रकार तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से अपनी नजदीकी का हवाला देते नहीं थकते और कोई भी काम करा लेने का दावा करते घूम रहा है। हालांकि यह पहले भी रमन राज में पत्रकारिता से Óयादा कमीशनखोरी का काम भी करा रहा है।
इसी तरह का एक पत्रकार जो चुनाव से पहले किसी भी सूरत में कांग्रेस की सत्ता नहीं आने का दावा करता था वह चुनाव परिणाम आते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को अपने कालेज के जमाने का साथी बताता घूम रहा है।
इसी तरह 5 हजार की तनख्वाह से रायपुर में पत्रकारिता शुरु करने वाले का ठाठ इन दिनों चर्चा में है।
भाजपा की बौखलाहट...
चुनाव में बुरी तरह बौखलाई भाजपा को अब पत्रकार कांग्रेसी नजर आने लगे। पिछले दिनों भाजपा प्रभारी अनिल जैन को एक पत्रकार का सवाल इतना नागवार गुजरा कि वे प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ही एक पत्रकार को कांग्रेसी बता गये जबकि एक अन्य घटनाक्रम में भाजपा कार्यालय में एक पत्रकार की न केवल पिटाई की गई बल्कि एक महिला पत्रकार को अभद्रतापूर्वक कक्ष से बाहर निकाला गया। इस पत्रकार की सिर्फ इतनी गलती थी कि हार की समीक्षा के दौरान हंगामा कर रहे कार्यकर्ताओं की वीडियो बनाने वह बैठ गया था।
भाजपा नेताओं के शह पर हुई इस गुण्डागर्दी के खिलाफ प्रदेशभर के पत्रकार आंदोलन पर है लेकिन भाजपा नेतृत्व को इससे कोई लेना देना नहीं है। जबकि प्रेस क्लब रायपुर ने अनिश्चितकालीन धरना दे दिया है।
फर्जी के चक्कर में असली भी गये...
रमन राज में पत्रकारिता की आड़ में कई भाजपाई धंधा करने लग गये थे और फर्जी न्यूज एजेंसी बनाकर सरकार से लाखों रुपये महिना वसूल भी रहे थे। ऐसा नहीं है कि रमन राज के इस करतूत की जानकारी किसी को नहीं थी लेकिन सत्ता बदलते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जैसे ही इस करतूत की जानकारी मिली उन्होंने तुरन्त ऐसे 17 एजेंसियों का दाना पानी बंद कर दिया। कहा जाता है कि इन एजेंसियों की आड़ में कई भाजपाई लाल हो गये थे।
और अंत में...
जब से सत्ता बदली है जनसंपर्क विभाग में भी अमूल चूल परिवर्तन दिखने लगा है। एक अधिकारी के लम्बी छुट्टी पर चले जाने को लेकर चर्चा गर्म है।