शुक्रवार, 7 मार्च 2014

सत्ता ही ध्येय...


देश भर की तमाम राजनैतिक पार्टियां इन दिनों व्यस्त है। एक तरफ वे जनता पर विश्वास की कवायद में लगी है तो दूसरी ओर घोड़ा मंडी की तर्ज पर मोर्चा बंदी कर रही हैं। केन्द्र में बैठी यूपीए के खिलाफ भाजपा ने जिस अंदाज में हमला किया है और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पीएम इन वेटिंग के रूप में प्रोजेक्ट किया है इसका फायदा निश्चित रूप से भाजपा को मिला है लेकिन कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में आज भी वह दम नहीं हैं कि वह अकेले अपने बूते सरकार बना लें। यही वजह है कि वह गठबंधन की राजनीति करते हुए सत्ता हासिल करना चाहती है। इस खेल में वह इस कदर लग गई है कि उसे दूसरी पार्टियों के करतूतों पर भी ध्यान नहीं है सिर्फ सत्ता हासिल करने किसी भी दल से तालमेल और किसी को भी टिकिट देने की परम्परा से राजनैतिक दल भले ही अपने मकसद में कामयाब हो जाए पर जनता का इसमें हित नहीं होने वाला है।
पिछले दो दशकों की राजनीति ने साफ कर दिया है कि जीत सकने वालों को टिकिट और सत्ता के जादुई आंकड़े तक पहुंचाने वाले दलों से तालमेल के मायने क्या है। कैसे छोटे-छोटे दलों ने अपने को तुर्रम खां माने जाने वाली पार्टियों को घुटने तक झुका दिया है।
इस बार भाजपा और कांग्रेस ने इसी गठबंधन की राजनीति के सहारे सत्ता हासिल करने भ्रष्ट-बेईमानों को गले लगाना शुरु कर दिया है। येदिरप्पा की वापसी या लालू से घालमेल पासवान से दोस्ती से लेकर मुसलमानों से माफी की राजनीति का मकसद हर हाल में सत्ता हासिल करना नहीं तो और क्या हैं।
कांग्रेस और भाजपा में अब ज्यादा फर्क नहीं रह गया है ऐसे में तीसरे मोर्चे की कवायद केवल चुनाव तक सिमट कर रह गई है। अब तक नए ढंग से राजनीति में आए अरविन्द केजरीवाल ने किसी तरह के गठबंधन से अपने को दूर रखा है। इस नये नवेले पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में अप्रत्याशित परिणाम लाकर एक नई राजनीति की शुरुआत जरूर की है लेकिन मुद्दों को पूरा करने की जल्दबाजी से अपरिपक्वता के चलते अराजकता की हालात लाने का पैतरा कहां और कैसे सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचेगा कहना कठिन है। दिल्ली की तर्ज पर देश भर में चुनाव लडऩे की घोषणा में कई दलों की नींद जरूर उड़ गई है।
यही वजह है कि राजनीति की नई शुरुआत होने लगी थी परन्तु लोकसभा चुनाव आते आते सभी पार्टियां घुड़ दौड़ में शामिल दिखाई पड़ती है ऐसे में केजरीवाल का अकेले चुनाव लडऩे का फैसला और गठबंधन की राजनीति को दलाली साबित करने की कोशिश कैसे सफल होगी अभी से कहना कठिन है।
तमाम सिंद्धातों और मुद्दों से भटक चुकी राजनैतिक पार्टियों के लिए आम आदमी पार्टी की जीत एक सबक होने लगा था लेकिन सत्ता की दौड़ से निकलते धुल ने आंखों के सामने जो धुंध उत्पन्न किया है वह अनैतिक और नैतिक गठबंधन के बीच की लकीर को मिटा दिया है कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
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