गुरुवार, 4 मार्च 2010

मंत्री के दबाव में तवारिस हुई बहाल, पार्टी में बवाल



फर्जी प्रमाण पत्र सहित आर्थिक अनियमितता व कई अन्य मामलों में निलंबित गारमेंट स्कूल की पूर्व प्राचार्या श्रीमती जया तवारिस को शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के दबाव में बहाल करने का सनसनीखेज मामला इन दिनों चर्चा में है। जबकि उनके खिलाफ न्यायालय में भी मामला चलने की खबर है। इधर इस मामले को लेकर पार्टी में भी बवाल मचने की चर्चा है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा विभाग में इन दिनों पदोन्नति से लेकर अन्य नियमों की जमकर धज्जिया उड़ाई जा रही है। कहा जाता है कि निलंबित लोगों को बहाल करने का खेल चल रहा है और उच्च स्तरीय लेन-देन की खबरों के बीच यह भी चर्चा है कि श्रीमती बाम्बरा व श्री चन्द्राकर के खिलाफ आए मामले को दबाया जा रहा है।
इधर अपने कार्यकाल के दौरान विवादों में रही श्रीमती जया तवारिस को बहाल करने के मामले में शिक्षा विभाग में भूचाल आ गया है और इस वजह से कई लोग बेहद नाराज है। दरअसल श्रीमती जया तवारिस पर अपने प्रमाणपत्रों में की गई कूटरचना से लेकर कई तरह के आरोपों के चलते उन्हें निलंबित किया गया था।
सूत्रों का कहना है कि निलंबन को रद्द कराने कांग्रेस के नेता भी लगे हुए थे और जब मामला शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पास आया तो पहले तो उन्होंने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया था लेकिन अचानक सप्ताहभर पहले उनका बहाली आदेश निकाल दिया गया। चर्चा है कि उनके बहाली आदेश के पीछे मंत्री का हाथ है।
इधर भाजपा सूत्रों ने भी श्रीमती जया तवारिस को बहाल करने को लेकर पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी की बात कही है और इसकी शिकायत मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से भी किए जाने की चर्चा है। एक भाजपा नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ऐसे ही कारणों से भाजपा की बदनामी हो रही है और इसका नुकसान भी पार्टी को उठाना पड़ रहा है।
बहरहाल श्रीमती जया तवारिस की बहाली के मामले को लेकर भाजपा में जबरदस्त हलचल है और इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से हुई तो इसका परिणाम क्या होगा इसे लेकर भी भारी उत्सुकता है।

अधिकारियों के इशारे पर होते हैं अवैध उत्खनन,मंत्री के नाम पर कमीशन

यह तो जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर खनिजों का अवैध उत्खनन नहीं होता। कभी कार्रवाई हुई तो खानापूर्ति के लिए की जाती है और अवैध उत्खनन करने वालों से विभागीय मंत्री तक के नाम पर कमीशन लेने की परंपरा है जबकि इन दिनों खनिज विभाग मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के पास है।
छत्तीसगढ़ में खनिजों का अकूत भंडार है और लीज पर खदानें दी जाती है। सभी खदानों का निर्धारित रकबा है लेकिन निर्धारित रकबों के अलावा भी उत्खनन का कार्य बड़े पैमाने पर चल रहा है। बताया जाता है कि अवैध उत्खनन तो सीधे अधिकारियों की जानकारी में होने लगा है। मंजीत सिंह ने बताया कि बगैर अधिकारियों की जानकारी के अवैध उत्खनन का काम हो ही नहीं सकता और इसके एवज में लाखों रुपया दिया जाता है।
एक अन्य लीज धारक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि अवैध उत्खनन के खिलाफ जो भी कार्रवाई होती है वह सब पूर्व निर्धारित और खानापूर्ति के लिए की जाती है। एक अन्य ठेकेदार ने बताया कि अकेले रायपुर जिले में हर साल दर्जनों मामले पकड़े जाते हैं और उन पर जुर्माना भी लगाया जाता है। नियमानुसार बार-बार पकड़ाये जाने वाले लीज धारकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन कड़ी कार्रवाई तो दूर जुर्माना तक ठीक से नहीं वसूला जाता।
बताया जाता है कि अकेले रायपुर शहर में आधा दर्जन लोग हैं जो बार-बार अवैध उत्खनन करते पकड़ा चुके हैं। इनमें से कई तो प्रभावशाली है और खनिज अधिकारी तक इनसे बात करने से घबराते है ऐसे लोगों की लीज रद्द की जा सकती है लेकिन अधिकारियों को गले तक पैसा खाने की आदत की वजह से सरकार को हर साल लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान केवल रायपुर जिले में हो रहा है।
बहरहाल जब रक्षक ही भक्षक बन जाए और विभागीय मंत्री अपने में मस्त हो तो प्रदेश की दुर्दशा स्वाभाविक है खनिज विभाग में इन दिनों यही सब हो रहा है अपने सीधे व सरल छवि के चक्कर में मुख्यमंत्री को फुरसत ही नहीं है कि वे अपने ही खनिज विभाग के अधिकारियों के कारनामों पर कार्रवाई करें। ऐसे में सरल और सीधे बने रहने के औचित्य पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...,किसान पर राजनीति गर्म

यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना छत्तीसगढ़ की रमन सरकार किसानों को लेकर चुनावी घोषणा पत्र में किए वादों को पूरा करने की बजाए केन्द्र में जाकर राजनीति नहीं करती। कांग्रेस और भाजपा के इस मिलीजुली कुश्ती से छत्तीसगढ़ के किसान हैरान है और वे भाजपा से वादा निभाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन की तैयारी में लग गए हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र जिसे वह संकल्प पत्र भी कहता है में किसानों को 270 रुपए प्रति क्विंटल बोनस और मुफ्त में बिजली देने की बात कही थी लेकिन चुनाव जीतकर सत्ता में आते ही भाजपा अपने इस संकल्प को टालने लगी तब छत्तीसगढ़ के किसानों ने आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया।
संयुक्त मोर्चा बनाकर आंदोलनरत किसानों को रोकने सरकार ने बहुत कोशिश की और जब पूरे प्रदेश में धरना और चक्काजाम कर रहे किसानों ने उग्र तेवर दिखाये तो सरकार ने 50 रुपए बोनस बढ़ा दी। इससे भी किसान जब नहीं माने और महाबंद का ऐलान किया तो इस महाबंद को असफल करने सरकार के नुमाईदों ने बेशर्मी पूर्वक आंदोलनकारियों को तोड़ने व व्यापारी जमात पर आंदोलन का विरोध करने दबाव बनाया।
सूत्रों की बात पर भरोसा करें तो सरकार ने आंदोलन को कमजोर करने भाजपा के लोगों का सहारा लिया और भाजपा किसान मोर्चा किसानों का साथ देने की बजाए अपने को आंदोलन से न केवल अलग कर लिया बल्कि यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि बंद की अपील वापस ली जा रही है ताकि भ्रम की स्थिति बन जाए।
वर्तमान राजनीति में सुचिता की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार का किसानों के प्रति यह रवैया आश्चर्यजनक है। जबकि किसान भाजपा को उसके वादों के अनुरूप कार्य करने की सिफारिश ही कर रहे हैं।
इधर किसान मोर्चा के नेता वीरेन्द्र पाण्डे, द्वारिका साहू, जागेश्वर प्रसाद, दिनदयाल वर्मा ने कहा कि किसान अब चुप बैठने वाला नहीं है। विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को घेरने राजधानी में 5 लाख किसान आ सकते है।
दूसरी तरफ इस मामले में कांग्रेस की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। बंद का समर्थन देने वाले कांग्रेसी बंद के दौरान कहीं नहीं दिखे। इसे लेकर भी कई तरह की चर्चा है। चर्चा तो रमन सिंह के केन्द्र में राजनीति करने को लेकर भी है और आम किसानों का कहना है कि पहले रमन सिंह अपने वादे निभाये फिर छत्तीसगढ़ के किसान दिल्ली जाने तैयार है।
बहरहाल किसान आक्रोशित है और सरकार ने उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं की तो इसका गंभीर परिणाम पड़ेगा ही विधानसभा सत्र भी सरकार को भारी पड़ सकता है।