बुधवार, 7 अप्रैल 2021

लॉकडाउन का अर्थ...

 

क्या कोरोना से निपटने का लॉकडाउन ही एकमात्र उपाय है? पिछला अनुभव बेहद कटु है? लॉकडाउन से देश में हाहाकार मच गया था, भूखे-बिलखते बच्चे, पटरी में मरते परिवार और प्लेटफार्म में मृत मां के साथ बच्चे, पुलिसिया अत्याचार से लेकर संवेदनहीन सरकारों के चेहरे सामने आ जाते हैं, लॉकडाउन समस्या का हल होता तो देश में लॉकडाउन के बाद कोरोना का विस्तार नहीं होता!

तब क्या उपाय है? इस सवाल को उठाये जाने की जरूरत है! एक लॉकडाउन के तुगलगी फरमान को जनता ने भुगता है, मर मर के जीते लोग और सिसक-सिसक के मरते लोगों की पीड़ा को पूरे देश ने महसूस किया है। असल में यह देश उस ढंग का बना ही नहीं है कि लॉकडाउन किया जा सके, न हमारी जीवनशैली वैसी है। तब एक ही उपाय है, जागरुकता और सख्ती! उससे न व्यापारियों को दिक्कत होगी न आम लोगों को। इस भीषण गर्मी में यदि सुबह 6 बजे से शाम पांच बजे तक ही कारोबार की छूट हो तो घर से वहीं निकलेंगे जिन्हें जरूरी है।

लेकिन शर्मनाक तो यह है कि कोरोना को राजनीति ने भी अपनी जुगाड़ बना लिया है, आपदा को अवसर में बदलने की राजनैतिक महत्वांकाक्षा आसमान पर है। पांच राज्यों के चुनाव से लेकर कुंभ तक राजनीति अपने चश्में से देख रहा है। तब लॉकडाउन का अर्थ केवल लोगों को परेशान करना नहीं तो और क्या है?

ये सच है कि कोरोना का यह दौर बेहद डरावना और भयावह है, और केन्द्र सरकार की तुगलगी फरमान ने इसे और भयावह बना दिया है। लोगों की नौकरी जाने लगी और गरीबी, भूखमरी बढऩे लगी। लेकिन यकीन मानिये यदि कोरोना नहीं आता तब भी केन्द्र की नीति से यह सब होना तय था।

जो देश आरबीआई के रिजर्व फंड और अपने संसाधनों को बेचता चला जाता है वहां आम आदमी की खुशहाली पर ग्रहण लगता ही है। ऐसे में कोरोना का आना दुबले पर दो आषाढ़ है, पहला आषाढ़ तो हमने चुना है लेकिन दूसरा आषाढ़ से बचा जा सकता है, शाम से सरकारी सख्ती और दिन में जरूरी हो तभी घर से निकलने के नियम का पालन!