सोमवार, 31 दिसंबर 2012

वांटेड मन्नू को पकडऩे में पुलिस के हाथ पांव फूल रहे!



रायपुर। करोड़ों के वायदा कारोबार में धमकी-चमकी और अपहरण के मामले पुलिस ने दर्ज तो कर लिये हैं लेकिन इस कांड के सरगना मन्नू उर्फ अभिनंदन नत्थानी को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है जबकि वह लगातार नेताओं और अधिकारियों के संपर्क में है। करोड़ों के वायदा कारोबार को लेकर शहर के धनाड्य वर्गों में जबरदस्त रूचि है। चूंकि मामला लाखों-करोड़ों का है इसलिए इसकी वसूली भी इसी तरीके से की जाती है। चूंकि पूरा मामला नम्बर दो का है इसलिए वायदा कारोबारी पैसा वसूली में दो नंबरी लोगों का ही उपयोग करती है कही वजह है कि इस कारोबार में किसी गंभीर वारदात की आशंका है। चूंकि इस मामले में दोनों की पक्ष धनाड्य व अपने को ई"ातहार मानते हैं इसलिए भी मामला पुलिस तक पहुंचने के पहले ही जैसे-तैसे सुलझा लिया जाता है।
चूंकि एक मामला पुलिस तक पहुंच गया इसलिए इस धंधे के पीछे का सच लोग जान पाये। इधर अभय नाहर अपहरण कांत में पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ा जरूर है लेकिन वह मन्नू नत्थानी को गिरफ्तार नहीं कर पा रही है इससे पुलिस पर उसे बचाने का भी आरोप लगाया जा रहा है। हालांकि पुलिस ने उसे वांटेड घोषित जरूर कर दिया है लेकिन उसे अभी मन्नू तक पहुंचने में सफलता नहीं मिली है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि मन्नू नत्थानी लगातार शहर में मौजूद अपने शुभ चिंतकों के संपर्क में है और उसके पास पुलिस की गतिविधियों की भी सूचना पहुंच रही है। मन्नू इन दिनों मोबाईल नंबर बहल-बदल कर या लैंड लाईन से अपने शुभचिंतकों के संपर्क में है।
ज्ञात हो कि सोने चांदी की ऑनलाईन बुुकिंग के जरिये करोड़ों का खेल दो नंबर में बिना लिाख पढ़ी के हुआ है सूत्रों का कहना है। मन्नू उर्फ अभिनंदन नत्थानी, नीतिन चोपड़ा और सन्नी नायडू इस बाजार के बड़े खिलाड़ी के रूप में अपने को प्रचारित किया था। एजेटों के माध्यम से बेहिसाब कटिंग के चलते वसूली में दिक्कत हुई फिर वसूली के लिए भाई गिरी का रास्ता अख्तियार किया गया।
बताया जाता है कि शहर में अभी भी तीन दर्जन से अधिक एजेंट हैं जो बेहिसाब कटिंग कर रहे हैं जबकि इस खेल में किसी प---पृथ्वानी के दादागिरी करने की चर्चा भी दब  जोर पकडऩे लगी है। एकांश जैन सहित कोठारी बंधु भी अपने दो वायदा बाजार का बड़ा खिलाड़ी बताकर वसूली के लिए धमकी चमकी का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं।
वायदा कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि कई लोग अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं और पैसा देने में आना-कानी कर रहे हैं चूंकि पूरा खेल दो नंबर में हुआ है इसलिए वसूली के लिए भाईगिरी वाला रास्ता ही अख्तियार किया जा रहा है।
इधर खबर है कि अनीस भंडारी, प्रवीण मालू, निलेश बेगानी विकास अग्रवाल जैसे वायदा कारोबारियों पर पुलिस की नजर लगी हुई है। चूंकि में लोग राजनैतिक पहुंच रखते हैं इसलिए पुलिस इन पर हाथ नहीं डाल पा रही है।
बहरहाल वाटेंड मन्नू को पुलिस द्वारा गिरफ्तार नहीं करने से आम लोगों में कई तरह की प्रतिक्रिया है जो ठीक नहीं कही जा सकती।

रविवार, 30 दिसंबर 2012

अवैध निर्माण बना कमाई का जरिया ...


छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर को सुंदर बनाने की जिम्मेदारी जिन पर है वे ही निगम को चूना लगाने आमदा है । बजबजाती नालियां, भयंकर धूल और खौफनाक म'छर राजधानी की पहचान बन चुका है । कभी धूल मुक्त शहर का दावा करने वालों को जनता ने धूल चटा ही । इसके बाद भी हालात कुछ नहीं बदला है ।
बेतरतीब निर्माण ने तो शहर को बेढंगा कर ही दिया है इसकी वजह से यातायात की समस्या भी शहर वालों को झेलना पड़ रहा हैं । निगम के अधिकारियों से तो इन अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद ही बेमानी है और जिन पाषदों पर उम्मीद की जा रही है वे भी ऐसे अवैध निर्माण को कमाई का जरिया बना चुके है ।
यहां तक कि इन अवैध निर्माण करने वालों से मंत्रियों तक पैसा पहुंचाने की चर्चा गरम है ।
शहर के ह्दय स्थल माने जाने वाले जयस्तम्भ चौक में स्थित किरण बिल्डिंग को लेकर क्या कुछ नहीं हुआ । नक्शे के विपरित निर्माण से लेकर नियम-कानून की ध"िायां उड़ाते यह अब भी वैसा ही खड़ा है । पहले तो जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई करने का बहाना बनाया गया और जब जांच रिपोर्ट आ गई तब भी कुछ नहीं हो रहा है । कमिश्रर से लेकर महापौर सहित तमाम जिम्मेदार लोगों पर पैसों को लेकर उंगलिया उठ रही है । हल्ला मचाने वाले भाजपाई भी खामोश है और वार्ड पार्षद को तो मानों इससे कोई मतलब ही नहीं है ।
जब शहर के जयस्तम्भ जैसी जगह का यह हाल है तो आसानी से समझा जा सकता हे कि दूसरे काम्प्लेक्सों का क्या हाल होगा । कार्रवाई नहीं करने का मतलब  साफ है कि तिजोरियां भरी जा रही है । Óयादा दिन नहीं हुए है शंकर नगर में राजकुमार चोपड़ा के काम्प्लेक्स की दूकानों पर सील लगाई गई थी । मंत्री राजेश मूणत तक नाराज थे । क्रिस्टल टावर का भी यही हाल था । सील लगाई गई । फिर खोल दी गई । सील खोलने के एवज में क्या सौदा हुआ । कोई नहीं जानता । पार्किंग की समस्या यथावत है काम्प्लेक्स नियम कानून को चिढ़ाते खड़े है । पार्षद बनते ही जिन्दगी बदलने लगी । गाडिय़ां खरीदी जा रही है । क्या-कांग्रेस और क्या भाजपा, निर्दलीय तो पहले ही सौदेबाजी कर मजे में है ।
शहर का बुरा हाल हे । निगम राजनीति का अड्डा बनते जा रहा है । विकास में बाधा के लिए एक दूसरे के सिर ठिकरा फोड़ा जा रहा है लेकिन धूल और म'छर से परेशान जनता की पीड़ा कोई नहीं देख रहा है । नगर निगम पहले दिन घोषणा करता है कि सड़कें नहीं खोदने दी जायेगी दूसरे दिन पुलिस वाले मोतीबाग के पास धड़ा-धड़ सड़क खोदते है । कुछ नहीं होता है।
धर्मार्थ के नाम पर बिल्डिंग बन गई है लेकिन यहां खुले आम दूकानदारी चल रही है लेकिन निगम को यह सब देखने की फुरसत  ही नहीं है । सच तो यह है कि टैक्स बचाने के एवज में भी पैसे वसूले जा रहे है ं ।
राÓय बनने के बाद से निगम की राजनीति में जबरदस्त गिरावट आई है । लाखों रूपए चुनाव में खर्च किये जा रहे हैं । लोग हैरान है कि पार्षद जैसे पद के लिए लाखों खर्च करके चुनाव जीतने की कोशिश क्यों हो रही है ।
बैजनाथ पारा के उपचुनाव में तो एक मंत्री द्वारा 60-70 लाख रूपये खर्च करने की चर्चा है । खर्च तो कांग्रेसीयों ने भी कम नहीं किया है । इतने खर्च के बाद क्या जन सेवा होगी । आसानी से समझा जा सकता है ।
मूंदी आंख से ..
बैजनाथ पारा में पार्षद उपचुनाव में भले ही मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच कही जा रही हो लेकिन वास्तव में कांग्रेस यहां अपने ही लोगों से मुकाबले पर नजर आ रही थी । ढेबर गुटको पटकनी देने कौन सा गुट सक्रिय था और वह कितना कारगर होगा यह तो वक्त की बात है लेकिन भाजपाई भी अपने मंत्री की रूचि से हैरान थे ।

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

अवैध कालोनी की सूची बने साल बीत गये पर कार्रवाई नहीं...



रायपुर। यह तो राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना नगर एवं ग्राम निवेश द्वारा अवैध कालोनियों की सूची बगैर कार्रवाई के सवा साल तक यू ही पड़ी नहीं होती। कहा जाता है कि राजनैतिक पहुंच से लेकर पैसे वालों की इस जमात ने अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक के मुंह में नोट भर दिये हैं। इसलिए कार्रवाई होने की बात तो दूर इन्हें नोटिस तक नहीं दिया गया और गुपचुप ढंग से पैसा खाकर इन्हें बचाया जा रहा है।
राजधानी में पदस्थ अधिकारियों की खाओं पियों नीति के चलते भू-माफियाओं ने जबरदस्त ठंग से अवैध कालोनी बना रखा है और वे शासन प्रशासन को अपनी जेबों में रखने का दावा करते हुए आम लोगों को मनमाने कीमत पर जमीन व मकान बेच रहे हैं।
इस संबंध में आरटीओ कार्यकर्ता इंदरजीत छाबड़ा, राकेश चौबे से बात की गई तो उन्होंने बताया कि सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के बाद सरकार में बैठे मंत्री और अधिकारियों की नीति के चलते ही आम आदमी ठग जा रहा है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश ने ऐसे 204 लोगों की सूची बनाई है जिन लोगों के द्वारा ग्राम बोरियाखुर्द, डोमा, माना, डूण्डा, कांदुल, धरमपुर, बनरसी टेमरी, दतरेंगा, भठगांव, संकरी, पिद्दा जोरा मडिया देवपुुरी, काठाडीह, कचना, धनेली, छपोरा व सेजबहार में अवैध रूप से प्लाटिंग, अवैध व्यपर्तन व अवैध कालोनी का निर्माण कर रहे हैं।
यह सूची 10-08-2010 को बन गई है लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। आखिर सरकार क्या यह चाहती है कि इनके झांसे में आकर लोग अपने घर का सपना परा करे फिर सरकार इसे तोड़ दे? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सरकार को देना चाहिए? सरकार की इस नीति के चलते आम आदमी ठगा जा रहा है। ग्राम व नगर निवेश द्वारा तैयार सूची के अनुसार माना में दलजीत सिंह पिता कुलदीप सिंह चावला, जनक बाई पिता मनराखन, मनोज पिता नंदकुमार सिंहा, ग्राम बोरियाखुद में श्रीमती मथुरा बाई पिता प्रेमलाल, सुरेश सिंह पिता चंद्रपाल सिंह, ग्राम डूण्डा में मो. मोहसिन पिता अब्दुल जलील, विनोद अंदानी पिता स्व. नरसिंह दासअंदानी, कमलजीत कौर पिता हरजीत सिंग छाबड़ा, ग्राम सेरीखेड़ी में अनिल कुमार थौरानी पिता मंशाराम थौरानी, ग्राम धरमपुरा में मनोहरलाल पिता आसन दास, घनाराम पिता बिसाहू, कार्तिक पिता बिसाहू, अमरू पिता कार्तिक, सरजू पिता भोकलू, ग्राम टेमरी में विजय कुमार पिता शुभकरण, ग्राम बनरसी में तापस चन्द्र दास और ग्राम काठाडीह में विमल कुमार पिता मोतीलाल जैन शामिल है।
सूत्रों के मुताबिक इस 17 लागों की सूची में शामिल लोगों ने नियम कानून को ताक पर रखकर काम किया है और इन्हें बचाने में मंत्री स्तर के लोग भी लगे हुए हैं। बताया जाता है कि सरकार का काम ऐसे लोगों पर कार्रवाई कर आम लोगों को ठगी से बचाना है लेकिन कार्रवाई की बजाय इनसे पैसा लेकर मामले को रफा-दफा किया जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि इस मामले में भाजपाईयों को ही बचाया जा रहा है बल्कि कांग्रेस के लोग भी शामिल है जिसके चलते यह कहावत को भी बल मिला है कि लूट की राजनीति में दोनों ही दल माहिर है।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि इस मामले में अधिकारियों की जेबें Óयादा गरम हुई है और मंत्रियों या नेताओं को सिर्फ रोटी डाला गया है तब भी कार्रवाई नहीं की गई।

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

क्या करोगे नहीं लिखेंगे रिपोर्ट...


वर्दी वाला गुण्डा, पुलिस को कोई यूं ही नहीं कहता ! छत्तीसगढ़ में तो कम से कम हर वर्दी वाला अपनी मर्जी का मालिक है । उसे लगेगा कि रिपोर्ट लिखी जाय तो लिखा जायेगा नहीं तो नहीं । कोई क्या कर लेगा । मुंह में तो मानों गाली की घुट्टी पिलाई गई हो । वे यह भी नहीं देखते कि आजू-बाजू से महिलाएं गुजर रही है । और वर्दी का रौब तो सिर्फ शरीफों के लिए है वरना ऐसा कौन सा थाना नहीं है जहां अपराधियों की घुसपैठ न हो ।
अब पंकज अग्रवाल का मामला ही देख लें । उसके आफिस में उसे धमकाया जाता है । वह जब इसकी शिकायत लेकर थाना पहुंचता है तो उसे थाने से चलता कर दिया जाता है । पंकज पैसे वाला है इसलिए वह शहर के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और मुख्यमंत्री रमन सिंह तक पहुंच जाता है । तब कहीं जाकर पुलिस रिपोर्ट भी लिखती है और आरोपियों को पकड़ भी लेती है । छत्तीसगढ़ में  यह सिर्फ अपवाद नहीं है । रोज ऐसे कितने लोग है जिन्हें थाने से लौटा दिया जाता है अब सबके पास न तो राजनैतिक पहुंच है न पैसा ऐसे में उनकी कौन सुनेगा । लोग गुस्से में है लेकिन वे कर भी क्या सकते हैं । पुलिस भी जानती है कि उसके मुंह के आगे सब बेबस है इसलिए वह खुले आम मन मर्जी चला रही है ।
एक तरफ मंत्री से लेकर वरिष्ठ अधिकारी अपनी बातों में नागरिकों के सम्मान, पुलिस-नागरिक संबंध सुधारने और अपराधियों में भय की दुहाई देते रहते हैं लेकिन थानों में इसका उलट होता है । थानों में उलट इसलिए होता है क्योंकि थाने वाले जानते हैं कि उनका काम भाषण देना भर है । उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं है तभी तो पंकज की रिपोर्ट नहीं लिखने वाले अब भी थाने में बैठे हैं उनका कभी नहीं बिगड़ेगा । आखिर सब पंकज जैसे तो है नहीं जिनके लिए मंत्री फोन कर दे और कार्रवाई हो जाए ।
अब पंडरी मोवा में ही संध्या द्विवेदी वाले थाने की करतूत क्या कम है । थाने की शिकायतों का अंबार है । लेकिन न तो पुलिस वालों की हिम्मत है और न ही मंत्री ही उन्हें हटा पा रहे हैं ।
ऐसे में जनता का गुस्सा कभी न कभी-फुट पड़ेगा तब क्या होगा ! इसकी भी परवाह पुलिस वालों को नहीं है उन्हें मालूम है कि उनकी लाठी के आगे किसी की नहीं चलती । तभी तो दिल्ली में हुए बलात्कार को लेकर रायपुर में सड़क पर निकलने वाले युवाओं व महिलाओं को खुले आम धमकाया गया यह सच है कि लॉ एंड आर्डर बनाये रखने की जिम्मेदारी पुलिस पर है लेकिन गाली-गलौच देने की जिम्मेदारी भी क्या पुलिस की है ।
छत्तीसगढ़ में सम्रांट लोगों या पीढि़तों से थाने में दुव्र्यवहार के मामले लगातार बढ़ रहे है । यह सरकार के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए क्योंकि पुलिस का गुस्सा कहीं न कहीं उतरेगा और यह गुस्सा सरकार के खिलाफ भी निकल सकता है ।
चलते-चलते

उरला थाने की कमाई का सबसे बड़ा जरिया कबाड़ के नाम पर बिकने वाले चोरी के लोहे के अलावा अवैध शराब के अड्डे हैं । सर्वे के अनुसार इस थाना क्षेत्र में आधादर्जन सट्टा अड्डा हे तो एक दर्जन से उपर अवैध शराब कोचिये हैं । कार्रवाई नहीं होती तो वजह वरिष्ठ अधिकारी स्वयं समझे तो अ'छा है ।

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

गुस्से की वजह

गुस्से की वजह
दिल्ली में हुए बलात्कार के बाद दिल्लीवासियों का गुस्सा जिस तरह से फट पड़ा । वह हैरान कर देने वाला रहा । इतना गुस्सा ।
इसके उलट राजधानी में हफ्ते भर में बलात्कार की तीन घटनाएं हुई । चार साल के मासूम तक को नहीं छोड़ा । तब भी लोग सड़क पर नहीं आये और सड़क पर आये तो दिल्ली के लिए । छत्तीसगढ़ में शिक्षा  कर्मियों का आन्दोलन भी उतना उग्र नहीं हुआ । भाजपा ने एक नहीं दो बार अपने घोषणा पत्र बनाम संकल्प पत्र में शिक्षा कर्मियों के संविलियन की बात कहीं है लेकिन अपने संकल्प को वह सत्ता में आते ही भूल गई । पहले संकल्प के दौरान तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह स्वयं प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे ।
संकल्प तो किसानों को 270 रूपये बोनस देने का भी था लेकिन उसे भी भूल गई । किसानों ने भी आन्दोलन किया लेकिन न सरकार झूकी और न ही किसानों को इतना गुस्सा आया । गुस्सा तो तब भी नहीं दिखा जब नई राजधानी से लेकर उद्योगों के लिए खेती की जमीन कौडिय़ों के मोल किसानों से ले ली गई और न ही गुस्सा तब भी आ रहा है जब भ्रष्टाचार के किस्से गली चौराहे पर हो रही है ।
कृषि उपज मंडी की जमीन डाक्टरों को कौडिय़ों के मोल दे दी गई । तब भी गुस्सा नहीं आया ।
छत्तीसगढ़ राÓय आन्दोलन के दौरान भी कभी आन्दोलन में हिंसा ने अपना स्थान नहीं लिया और अब भी किसी भी आन्दोलन में हिंसा का कोई स्थान नहीं है । और न ही हम किसी भी आन्दोलन के हिंसा का समर्थन ही करते हैं । लेकिन हम सरकार से एक बात जरूर कहते हैं कि वह छत्तीसगढ़ की स्थिति को ऐसा न होने दे ।
सत्ता के लिए राजनीति जरूर करें लेकिन ऐसे वादे न करे जिसे पूरा करने में दिक्कत हो । कांग्रेस सरकार के लाठी चार्च से नाराज शिक्षा कर्मियों के वोट के लिए संविलियन का संकल्प जब पूरा नहीं करना था तब ऐसा संकल्प लिया ही क्यों गया ? ऐसे में आज जब शिक्षा कर्मी इसी संकल्प को पूरा करने सड़क पर उतर आये हैं तो गलती किसकी है । उनके सड़क पर उतरने से नौनिहालों की पढ़ाई का क्या होगा । इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ।
उपर से आन्दोलन को कुचलने का सरकारी प्रयास क्या गुस्से को भड़काने वाला नहीं है । क्या भाजपा को इस झूठे वादे के लिए माफी मांगकर शिक्षाकर्मियों को समझाना नहीं चाहिए । हमारी तो सभी राजनैतिक दलों से गुजारिश है कि सिर्फ सत्ता के लिए ऐसा आश्वासन या वादे न करे जिसे पूरा नहीं किया जा सकता । क्योंकि ऐसे वादों से ही आन्दोलन में हिंसा को बल मिलता है और जिसकी सजा ईमानदार या आम लोगों को भुगतना पड़ता है । अब लोगों को सिर्फ झूठे वादों से Óयादा दिन नहीं बहलाया जा सकता । लोगों में जागरूकता आई है और वे अपना अधिकार भी समझने लगे हैं । अब पहले सा जमाना नहीं रहा कि लोग वादे भूल जाते थे या अपने जनप्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार को नजर अंदाज कर देते थे ।
अब लोग अपने हक के लिए सड़कों तक आने लगे है और उन्हें समय रहते नहीं समझाया गया तो सरकार के लिए दिक्कत हो सकती है ।

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

दबाव पर भारी पड़ते प्रतिस्पर्धा...


इन दिनों राजधानी के बड़े मीडिया समूह में प्रसार संख्या बढ़ाने की होड़ मची हुई है कोई प्रदेश में स्वयं को नम्बर वन बताने लगा है तो कोई राजधानी में अपने को नंबर वन बता रहा है । नबंर वन बनने की इस प्रतिस्पर्धा में उपहार तो बांटे ही जा रहे हैं विज्ञापन दरों पर भी समझौते हो रहे हैं । ऐसे कार्यक्रमों में मीडिया पार्टनर बने जा रहे हैं जिनके आयोजकों पर उंगली उठ रही है ।
यह प्रतिस्पर्धा खबरों पर भी दिखने लगी है । लेकिन कुछ खबरों पर विज्ञापन की मजबूरी भी झलकने लगी है । खबरों से संस्थान के नाम गायब हो जाते है या फिर खबरें छायावाद पर बन जाती है  ।
इस सार्धा से पत्रकार बिरादरी खुश है कम से कम उन्हें रूटीन की खबर पर दबाव नहीं फेलना पड़ रहा है । यह अलग बात है कि राज बनने के बाद ग्रामीण रिर्पोटिंग व खोजी पत्रकारिता को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा है ।
कभी- सर्वाधिक ग्रामीण रिपोटिंग प्रकाशित करने वाला देशबंधु प्रसार में पीछे छूट गया है तो इसकी वजह कहीं न कहीं विज्ञापनदाताओं का दबाव ही है ।
सरकार केविज्ञापन का दबाव तो अब भी कम नहीं हुआ है अब तो पत्रकार बिरादरी भी सरकार के कई किस्से सुनाते नहीं थकते । पत्रिका को पास जारी नहीं करना भी सरकारी दबाव का एक हिस्सा है । वैसे भी कौडिय़ों के मोल सरकारी जमीन लेकर कार्मशियल उपयोग की गलती हो तो दबाव तो झेलने ही पड़ेंगे । लेकिन कई अखबार वाले तो केवल सरकारी विज्ञापन के लालच में ही दबाव झेल रहे है ।
मजे में ब्यूरों
छत्तीगढ़ से निकलने वाले पत्र पत्रिकाओं से Óयादा मजे में दूसरे प्रदेश से निकलने वाले पत्र-पत्रिकाओं के पत्रकारों के मजे है । विज्ञापन भी इन्हें खूब मिल रहा है और घूमने-फिरने के लिए जनसंपर्क से वाहन भी उपलब्ध हो जाते हैं ।
अब यह अलग बात है कि पत्रकारों के सत्कार में जितने पैसे खर्च नहीं होते उससे अधिक का बिल बन जाता है ।
रिश्तेदारी पर प्रहार...
भले ही इसे प्रतिस्पर्धा का नाम दिया जाये पर सच तो यह है कि अपने को मालिक का रिश्तेदार बताकर धौंस जमाना एक पुलिस अधिकारी को भारी पडऩे लगा हैं अब इसी अखबार के रिपोर्टर नाराज हैं और ढूंढ-ढूंढ कर खबरें बनाई जा रही है । आखिर थाने में रोज की करतूत कम नहीं है । यानी रिपोर्टर की जय हो ।
और अंत में ...
छत्तीसगढ़ में स्थापित होने छल-प्रपंच करने वाले एक अखबार को अब विज्ञापन वाला अखबार कहा जाने लगा है । आखिर इतना बड़ा काम्प्लेक्स कोई यूं ही खड़ा नहीं करता ।

रविवार, 23 दिसंबर 2012

गरीबों का आशियाना ढहा दिया..

.इधर  जब सरकार उद्योग लगाने उद्योगपतियों को पुचकार रही है तब दूसरी तरफ औद्योगिक दादागिरी को नजर अंदाज किया जा रहा है । वंदना हो या जिन्दल, एस के एस हो या लक्ष्मी सीमेंट इनकी दादागिरी पर भाजपाई नाराज है लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है । वन्दना समूह के इशारे पर तो 25 साल से रह रहे 8 परिवार के घर उजाड़ देने से भाजपा नेता और विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष बनवारी लाल अग्रवाल के तक निंदा कर दी लेकिन रमन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है ।
रमन सरकार के उद्योग प्रेम की वजह से इन दिनों छत्तीसगढ़ में जगह-जगह लोगों की नाराजगी खुलकर सामने आने लगी हैं बावजूद सरकार को आम लोगों से Óयादा उद्योग लगाने की चिंता है । और इस उद्योग प्रेम की वजह से आम लोगों पर हो रहे औद्योगिक अत्याचार पर भी कार्रवाई नहीं हो रही है । उल्टा उन्हें पुरस्कार तक दे दिया जाता है ।
वंदना समूह द्वारा कोटवा जिले में स्थापित किये जा रहे पावर प्लांट की करतूत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है । जमीनों पर कब्जे, तालाबों पर कब्जे के बाद अब गरीबों के आशियाना ढहाने को लेकर वंदना समूह एक बार फिर सुर्खियों में है ।
जानकारी के अनुसार ग्राम सलोरा व छुरीखुर्द की जमीन पर वंदना विद्युत लिमिटेड प्रबंधन द्वारा संयंत्र का निर्माण कराया गया है । इस संयंत्र के लिए राखड़ बांध का निर्माण ग्राम झोरा में कराया जा रहा है । संयंत्र से राखड़ बांध तक पाईप लाइन बिछाने का कार्य प्रबंधन करा रहा है, जिसके लिए भूमि का अधिग्रहण वह कर चुका है । यह पाईप लाइन गंगापुर से होकर गुजरनी है । पाईप लाइन के रास्ते में गंगापुर निवासी 7 कृषकों व एक महिला के आवास आ रहे थे । इन आवासों को वंदना प्रबंधन ने शुक्रवार की सुबह एकाएक गांव में पहुंचकर कटघोरा तहसीलदार आर के मार्बल की उपस्थिति में लगभग ढाई सौ पुलिस जवानों के साये में गिरवा दिया ।
बताया गया कि शासकीय भूमि पर लगभग &0 वर्षो से काबिज एवं मकान बनाकर खेती-बाड़ी करते हुए हरिराम रिर्मलकर, भोजराम निर्मलकर, लखनलाल, छतराम, यशवंत यादव, मुखीराम, छत्रपाल यादव व रसियानों बाई सपरिवार निवासरत थे । मुखीराम द्वारा किराना दुकान का संचालन भी किया जा रहा था  जबकि भोजराम ने बाड़ी लगाया था । इन परिवारों का आशियाना वंदना प्रबंधन के इशारे पर उजाडऩे की कार्रवाई करने के साथ ही सरकारी जमीन पर संचालित होटल को भी तहस-नहस कर दिया गया । वहीं किराना व्यवसायी मुखीराम यादव ने महिला पटवारी पर आरोप लगाया है कि उसने कार्रवाई के दौरान गल्ले से 5 सौ रूपये निकाल लिए और वापस नहीं किया ।
सूत्रों के मुताबिक वंदना विद्युत लिमिटेड के अधिकारियों द्वारा उपरोक्त  ग्रामीणों के पास पिछले दिनों पहुंचकर मकान खाली करने कहा गया था । ग्रामीणों ने तहसील कार्यालय पहुंचकर तहसीलदार से शिकायत कर मदद की गुहार लगाई थी । तहसीलदार ने पूरी तरह सहयोग का आश्वासन किसानों को दिया ।
इसके कुछ दिन बाद वंदना प्रबंधन के अधिकारी दोबारा ग्रामीणों के पास गए तब ग्रामीणों ने उनसे बसाहट की सुविधा मांगी । & दिन पहले तहसीलदार ने ग्रामीणों को कार्यालय बुलाकर समझाईश दी थी, जिस पर ग्रामीण जमीन छोडऩे तैयार हो गए थे । इस सहमति के बाद  जिस तरह का रवैया वंदना प्रबंधन ने अपनाया उसे क्षेत्रवासी अनुचित और गुण्डागर्दी पूर्ण कार्रवाई बता रहे हैं ।

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

गृहमंत्री साहब ! अपराध तो बढ़ेंगे ही ...


जब प्रदेश के गृह मंत्री शराब ठेकेदारों के हाथों थाने बिकने की सिर्फ बात करता हो, पुलिस कप्तान को निकम्मा तो कहता हो लेकिन कार्रवाई नहीं कर पाता हो तब अपराध तो बढ़ेगे ही । अब  तो लोगों को सोच लेना चाहिए कि उनकी सुरक्षा उन्हें स्वयं करना है
क्योंकि वर्दी का सारा रौब तो यातायात सुधारने के बहाने की जाने वाली वसूली में निकल जाती है और थोड़ी बहुत ताकत बचती है वह वीआईपी ड्यूटी की भेंट चढ़ जाती है ।
भाजपा के इस दूसरे शासन काल में बढ़ते अपराध पर बेवजह कांग्रेसी हल्ला मचा रहे हैं । जब गृह मंत्री की बेबसी उनके शब्दों में बाहर आ रही हो तब भला पुलिस की मनमर्जी तो चलेगी ही । फिर कोई सरकार को कैसे दोष दिया जा सकता है ।
अब राजधानी की पुलिस को ही देख लीजीए ।  जो आई जी बने हंै उन पर एक आईपीएस राहूल शर्मा को लेकर गंभीर आरोप है लेकिन सरकार मुक्त में तनख्वाह देगी नहीं और काम लेना है तो भेज दिया रायपुर । फिर ऐसे अफसर की शायद सरकार को भी जरूरत है जो बेहद चालाक हो ।
इसके बाद पुलिस कप्तान दीपांशु काबरा को समझ ले । कहने को तो किसी भी आईपीएस को एक स्थान पर तीन साल से Óयादा नहीं रहना चाहिए लेकिन वे चार साल से कप्तानी संभाल रहे है । इस बीच कई गंभीर अपराध हुए । मन्नू नत्थानी से लेकर राजेश शर्मा जैसे अपराधी नहीं पकड़े जा सके । हत्या के कितने ही मामलों का पता नहीं चला । इस बीच कई थानेदार बदल गये । उनके नीचे के कई अधिकारी बदल गये । अपराधियों में दहशत पैदा करने वाले रत्नेश सिंह - शशिमोहन सिंह हो या मुकेश गुप्ता जैसे आई जी हो सब चले गए लेकिन काबरा साहब चार साल से जमें हुए हैं ।
राजधानी के थानों और यहां की थानेदारी के किस्से भी कम नहीं है । हर थाने के अपने किस्से है । मोटे तौर पर पीडि़तों को परेशान करने का आरोप के अलावा सटोरियों-जुआडिय़ों और अवैध शराब बेचने वालों से महिना वसूलने का आरोप साबित होने पर भी कुछ नहीं होता । खासकर पंडरी मोवा और टिकरापारा में तो थानेदारों के कारनामों से आम आदमी तक परेशान है । शिकायतें दर्ज करने की बजाय पीडि़तों को भगाकर थाने का आर सी सुधारने में ये माहिर है और यहि धोखे से मामला कप्तान तक चल दे तब भी कोइ्र फिक्र नहीं क्योंकि ऐसी शिकायतों को रद्दी की टोकरी में कैसे फेंकना हैे यह कप्तान साहब भी जानते हैं । और Óयादा हल्ला हुआ तो कुछ नहीं करना है बस एक आई आर लिख दो ।
भले ही राजधानी की पुलिस अपने यहां अपराध रोकने में फेल हो गई हो लेकिन पड़ोसी जिले में कुछ हुआ नहीं कि भरपूर नाकेबंदी की जाती है । अरे नाके बंदी करनी हो तो चौक चौराहों की बजाय प्रवेश स्थल पर कर लो लेकिन नहीं वहां जाने का झंझट कौन पाले । शहर में ही पकड़ लेंगे ।
ऐसा नहीं है कि दीपांशु काबरा जी चार साल से जमें है इसलिए रायपुर का यह हाल है । दूसरी जगह भी स्थिति अ'छी नहीं है ।
चांपा-जांजगीर, रायगढ़ में तो पुलिस अद्योग पतियों के इशारे पर काम कर रही है । जबकि अंबिकापुर सरगुजा में तो अब भी माफिया गिरी हो रही है । कोयला चोर हो या जंगल तस्कर सबसे पैसा मिल रहा है । जबकि बस्तर क्षेत्र में तो नक्सली दहशत उन्हें रोक रखी है । लेकिन वहां के पुलिस वालों के घरों के फर्नीचर किसी से छिपे नहीं है ।
पुलिस के दुश्मन मीडिया वाले है । नेता तो सेट हो जाते है । मामला बना दो नेता चुप । लेकिन मीडिया का तोड़ ढूंढना मुश्किल है ।
चलते - चलते ...
डाल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा, वायदा कारोबारी मन्नू नत्थानी के अलावा शहर में ही दर्जन भर से Óयादा ईनामी अपराधी को पुलिस नहीं ढूढ़ पा रही है लेकिन सीबीआई जांच  की सिफारिश नहीं होगी ? आखिर पुलिस भी जानती है कि .इनके पीछे किसका हाथ है ?

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

पार्षदों की चाहत, शहर वासी आहत...


राजधानी का नगर निगम इन दिनों राÓय सरकार के लिए राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है । सत्ता में बैठी राÓय सरकार के दो मंत्री अभी भी यह बात हजम नहीं कर पा रहे हैं कि जनता ने भाजपा को नकार दिया है । वे यह बात देखना ही नहीं चाहते कि उनकी पैसे की भूख को लोगों ने देख लिया है । निगम के अधिकारी भी सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं ।
 आयुक्त के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वे हर हाल में राजधानी में ही रहना चाहते हैं । ऐसे में ठुकुर -सुहाती तो करनी ही पड़ेगी । फिर तहसील के पाप भी तो कम नहीं है ।
महापौर किरणमयी नायक तो अभी से विधानसभा चुनाव की तैयारी में है । विदेश यात्रा भी कम नहीं हो रहा है । छत्तीसगढिय़ा वाद को लेकर स्वाभिमान यात्रा अब पद के साथ गुम होने लगा है तभी तो प्रभारी महापौर मनोज कंदोई के हिस्से में चला जाता है । अब शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदर चंद धाड़ीवाल पर भी तो दबाव बनाना है और भाजपा तो राजनैतिक बैरी है ही ।
पहले इस राजनैतिक बैरी को साधने की कोशिश हुई । स्वयं सेवकों पर फूल बरसाये गये लेकिन जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि इससे कोई फायदा नहीं है । इसलिए यह गलती दोहराई नहीं गई ।
अब व्यवस्था व नियम को लेकर सभापति संजय श्रीवास्तव और महापौर में ठन गई है । यानी शहर विकास से Óयादा राजनीति जरूरी है । और ऐसे में जब बैजनाथ पारा वार्ड में चुनाव हो तो राजनीति जोरदार होनी तय है ।
कांग्रेस को अब भी यहां मुस्लिम वोटों पर भरोसा है । जबकि भाजपा समझने लगी है कि वोट कहां से हासिल होंगे । लेकिन जनता भी समझ गई है कि जो लोग खड़े हैं उनमें वार्ड की चिंता किसे Óयादा है । पहले भी देश में कई चुनावों में किन्नरों की जीत हुई है । यहां भी एक किन्नर प्रत्याशी है ?
वैसे भी राजधानी के 70 पार्षदों का हाल जनता अ'छे से जान रही है । कौन पार्षद कहां से पैसे कमा रहा है  किसी से छिपा नहीं है । गुमटी और पानठेला लगाने के एवज में कहां-कहां वसूली चल रही है । बगैर नक्शा स्वीकृत कैसे मकान बन रहे है और पार्षद को कितना मिल रहा है । यह भी छिपा नहीं है ।
हद तो यह है कि सफाई कर्मियों की उपस्थिति को लेकर भी पैसा कमाया जा रहा है। कई पार्षद के रिश्तेदार तो निगम के ठेकेदार तक बन गये है । और महिला पार्षदों से Óयादा तो उनके पति लगे रहते है भले ही पार्षद पति को लोग शार्ट कट में पाप कह रहे हो लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता आखिर राजनीति तो मोटी चमड़ी वाले ही करते है ।

बंद आंख से ...
शंकर नगर क्षेत्र के एक पार्षद की दादागिरी चरम पर है । कार्यक्रम के लिए पैसा नहीं देने वाले गुमटी वाले को दूकान बंद कर भागना पड़ा । जब कब्जा ही अवैध हो तो पार्षद की दादागिरी ऐसी ही चलती है ।  दूसरा मामला स्टेशन क्षेत्र का है । भतीजे की ठेकेदारी की करतूत सड़क पर दिखने लगी है और पाप बाहर आने से रोका जा रहा है ।

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

गर्भाशय कांड के डाक्टरों से भी करोड़ों वसूली !

गर्भाशय कांड के डाक्टरों से भी करोड़ों वसूली !
रमन राज में चल रहा राम नाम की लूट !
छत्तीसगढ़ सरकार में मची राम नाम की लूट का एक और चौकाने वाला मामला उÓाागर हुआ है । पैसों की लालच में गर्भाशय निकालने के आरोपी डाक्टरों को बचाने करोड़ों रूपये वसूलने जाने का आरोप सामने आया है । लोगों की जान के एवज में चल रहे इस गोरख धंधे में प्रदेश सरकार के मंत्री से लेकर सचिव स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत की खबर है । छत्तीसगढ़ में सत्ता में बैठे लोगों की पैसे की हवस समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है । ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां भ्रष्टाचार की नदियां नहीं बह रही हो । स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कोल ब्लाक मामले में आरोपी है ओपन एक्सेस घोटाले से खनिज घोटाले, रतनजोत घोटाले में सीधे मुख्यमंत्री पर आरोप लग रहा है जबकि रोगदाबांध से लेकर सरकारी जमीनों के मामले भी गर्म है ।
स्वास्थ्य विभाग में घोटाला चरम पर है । हालत यह है कि सरकार गरीबों की जान की कीमत लगाने लगी है और गरीबों की जान से खिलवाड करने वाले डाक्टरों को बचाने तक पैसा वसूले जाने की चर्चा है ।
नेत्र कांड में अब तक करीब सौ लोगों की आंखे फोड़ दी गई और स्मार्ट कार्ड घोटाले के आरोपी को पकडऩे में भी प्रशासन असफल रहा है ।
ताजा सनसनीखेज मामला गर्भाशय कांड के डाक्टरों को बचाने का है । हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों की माने तो इस कांड में फंसे डाक्टरों को बचाने के एवज में करोड़ों रूपये वसूले गए है । ज्ञात हो कि ईलाज के नाम पर छत्तीसगढ़ के करीब दर्जनभर डाक्टरों ने बेवजह गर्भाशय निकालकर गरीबों से आपरेशन के एवज में पैसे वसूले थे । कम उम्र की इन महिलाओं का पैसे के लिए गर्भाशय निकालने का मामला जब प्रकाश में आया तो डाक्टरों की करतूत से अ'छे-अ'छे के रोंगटे खड़े हो गए ।
जांच में ऐसे सैकड़ों मामले सामने आये जिनमें डाक्टरों की करतूत सामने आई और जांच में दोष्शी पाये जाने वाले करीब 9 डाक्टरों का पंजीयन रद्द कर दिया गया ।
सूत्रों का क हना है कि पंजीयन रद्द होने से क्षेत्र के बाकी डाक्टरों में हड़कम्प मच गया और वे सरकार से आरपार की लड़ाई पर उतर आये ।
डाक्टरों की धमकी से घबराकर सरकार ने गर्भाशय कांड की एक और जांच शुरू करने की घोषणा कर दी और निलंबन समाप्त कर दिया ।
सूत्रों का कहना है कि डाक्टरों का निलंबन समाप्त करने प्रत्येक डाक्टरों से 50 लाख से लेकर एक करोड़ तक लिये गये । सूत्रों की माने तो यह रकम सचिव से लेकर डाक्टरों की जेब में पहुंच चुका है ।
स्लाटर हाऊस में तब्दिल होतते नर्सिंग होम के खिलाफ कार्रवाई की बजाय उनके प्रति सरकार का रवैया आश्चर्यजनक है । दूसरी तरफ निलंबित डाक्टरों ने बहाली के बाद फिर जोरशोर से अपना पुराना खेल शुरू कर देने की चर्चा है ।
रमन राज में भ्रष्टाचार के इस तरह के शर्मनाक खेल की चर्चा तो अब चौक चौराहों में होने लगी है ।
इधर गर्भाशय कांड के मामले की जांच की घोषणा तो कर दी गई है लेकिन सूत्रों का दावा है कि यह केवल विषय से ध्यान भटकाने के लिए किया गया है । जबकि वास्तविकता यह है कि लेनदेन का सारा मामला रफा दफा कर दिया गया है ।

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

स्वास्थ और नैतिकता ...

स्वास्थ और नैतिकता ...
 अब राजनीति में नैतिकता नहीं रह गई है । रेल दुर्धटना में रेल मंत्री का इस्तीफा इतिहास बन गया है । अब नैतिकता कहीं बची है तो सिर्फ विरोधियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए ही बच गया है ।
छत्तीसगढ़ की राजनीति से तो यह पूरी तरह से गायब हो चुका है । सरकार में बैठे जो लोग कल तक नैतिकता की दुहाई देते नहीं थकते थे आज सत्ता  में बैठते ही केवल पैसे कमाने में लग गये हैं ।
बालोद नेत्र कांड से लेकर बागबाहरा  नेत्र कांड में करीब सौ लोगों की आंखे फोड़ दी गई । लेकिन कुछ नहीं हुआ । न स्वास्थ मंत्री का इस्तीफा आया और न ही किसी डाक्टर पर ही कार्रवाई की गई । आखिर गरिबों की जान की कीमत ही क्या है । Óयादा हल्ला मचेगा तो मुआवजा दे दो । कौन सा अपनी जेब से देना है ।
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है । सरकारी अस्पतालों में घोर लापरवाही चल रही है । और निजी अस्पताल तो किसी स्लाटर हाऊस से कम नहीं रह गया है । और सरकार में बैठे लोगों ने तो अपनी आंखे बंद कर ली है । ऐसे में आम आदमी के सामने क्या स्थिति है यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।
छत्तीसगढ़ सरकार भले ही लाख दावा करे लेकिन वह आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है । स्मार्ट कार्ड घोटाला हो या गर्भीशय कांड का मामला हो । सरकार डाक्टरों के सामने असहाय साबित हो  चुकी है ।
अब तो आम लोगों में यह चर्चा साफ सुनी जा सकती है कि सरकार में बैठे लोगों का ध्येय सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना रह गया है उन्हें आम लोगों की जिंदगी से कोई लेना देना नहीं है ।
एक तरफ मुख्यमंत्री हर व्यक्ति के लिए &0 हजार रूपये तक का मुफ्त ईलाज करने के लिए योजना बना रहे है तो दूसरी तरफ ईलाज के अभाव में या डाक्टरों की लापरवाही से लोगों की जान पर बन आई है । एक तरफ जब सरकारी अस्पतालों में लापरवाह डाक्टर मौजूद हो, दवाई न हो तथा दूसरी तरफ निजी अस्पताल केवल पैसे कमाने की मशीन बन कर स्लाटर हाऊस में तब्दिल हो रहे हो तब &0 हजार नहीं &0 लाख रूपये के मुफ्त ईलाज की योजना बना दिया जाए । आम लोगों को क्या लाभ होगा । 
जब तक सरकार में बैठे लोगों की पैसों भूख समाप्त नहीं होगी किसी भी योजना का कोई मतलब नहीं रह जाता । ऐ वहीं भाजपा है जो सोते जागते राजनैतिक सुचिता और नैतिकता की बात करते नहीं थकते थे लेकिन सत्ता में आते ही सब भूल बैठे । ये वहीं मुख्यमंत्री है जिनकी छवि को लेकर भाजपा ने पिछला चुनाव जीता था लेकिन इस बार वे स्वयं कोयले की कालिख से पूते हुए है ।
ऐसे में मंत्रियों या अधिकारियों से नैतिकता की उम्मीद कैसे की जा सकती है ।
हद तो यह है कि चर्चा यहां तक आ पहुंची है कि आंख फोड़वा कांड के डाक्टरों को बचाने पैसे लिये जाते है । गर्भाशय कांड के दोषी आधा दर्जन डाक्टरों से उन्हें बचाने करोड़ो लिये गये । हद तो यह भी है कि सोची समझी इस गर्भाशय कांड के दोषियों के द्वारा आज भी उन्ही क्लीनिक में मजे से प्रेक्टिस चल रहा है ।
यह कैसी सरकार है जो आंख फोडऩे या गर्भाशय हजम करने या गरीबों के ईलाज वाले स्मार्ट कार्ड का पैसा हजम करने वालों पर कार्रवाई नहीं करती  । हद तो यह भी है कि ऐसे मामले में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी हल्ला मचाने के अलावा Óयादा कुछ नहीं करती । चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर आम लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने वालों को बख्शने की यह कोशिश नैतिकता का कौन सा परिभाषा गढ़ रही है यह तो राजनैतिक दल ही जाने लेकिन यह ठीक नहीं है और यह बात राजनैतिक दलों को समझ लेना चाहिए कि एक और सर्वो"ा सत्ता है जिसकी लाठी बेआवाज होती है

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

छत्तीसगढ़ में दागी व विवादास्पद आईएएस अफसरों का जमावड़ा...

छत्तीसगढ़ में दागी व विवादास्पद आईएएस अफसरों का जमावड़ा...

 छत्तीसगढ़ में कार्यरत अधिकांश आईएएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा के इन अधिकारियों की विवादास्पद छवि के चलते जनता के करोड़ों रुपए डकारे जा रहे हैं। पदों का दुरुपयोग खुलेआम किया जा रहा है और डॉ. रमन सरकार इन बेकाबू होते अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर उन्हें संरक्षण देने में आमदा है।
छत्तीसगढ़ में जिस तरह से लूट-खसोट मची है वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के दामन में एक बदनुमा दाग बनकर सामने आने लगा है और एक बारगी तो सीधे सरकार से गठजोड़ दिखाई देने लगा है। हालत यह है कि बेहिसाब संपत्ति के मालिक इन अफसरों पर अंकुश लगाने में सरकार पूरी तरह विफल है। सर्वाधिक चर्चित अफसरों में इन दिनों बाबूलाल अग्रवाल का नाम सबसे ऊपर है। उनके साथ तो सीधे सीएम हाउस से गठजोड़ की खबर है जबकि अन्य अफसरों में विवेक ढांड का नाम भी सामने आया है। कहा जाता है कि रायपुर के इस अफसर ने अपने पद का दुरुपयोग इतनी चालाकी से किया है कि अ'छे-अ'छे नटवर लाल भी फेल हो जाए ताजा मामला तो उनके स्वयं के दुकान सजाने व गृहनिर्माण मंडल के बंगले को रेस्ट हाउस के लिए किराए से देने का है।
मालिक मकबूजा कांड में फंसे नारायण सिंह को किस तरह से पदोन्नति दी जा रही है यह किसी से छिपा नहीं है जबकि सुब्रत साहू पर तो धमतरी कांड के अलावा भी कई आरोप है। दूसरे चर्चित अफसरों में सी.के. खेतान का नाम तो आम लोगों की जुबान पर चढ गय़ा है। बारदाना से लेकर मालिक मकबूजा के आरोपों से घिरे खेतान साहब पर सरकार की मेहरबानी के चर्चे आम होने लगे हैं।
ताजा मामला जे. मिंज का है माध्यमिक शिक्षा मंडल के एमडी श्री मिंज पर रायपुर में अपर कलेक्टर रहते हुए जमीन प्रकरणों में अनियमितता बरतने का आरोप है। सरकारी जमीन को बड़े लोगों से सांठ-गांठ कर गड़बड़ी करने के मामले में उन्हें नोटिस तक दी जा चुकी है। एम.के. राउत पर तो न जाने कितने आरोप हैं जबकि अब तक ईमानदार बने डी.एस. मिश्रा पर भी आरोपों की झड़ी लगने लगी है। अजय सिंह, बैजेन्द्र कुमार, सुनील कुजूर तो आरोपों से घिरे ही है। आरपी मंडल के खिलाफ तो स्वयं भाजपाई मोर्चा खोल चुके हैं लेकिन वे भी महत्वपूर्ण पदों पर जमें हुए हैं। जबकि अनिल टूटेजा पर तो हिस्ट्रीशिटरों के साथ पार्टनरशिप के आरोप लग रहे हैं। कहा जाता है कि देवेन्द्र नगर वाले इस शासकीय सेवा से जुड़े अपराधी को हर बार बचाने में अनिल टुटेजा की भूमिका रहती है।

अधिकांश आईएएस की करतूतों का क'चा चि_ा सरकार के पास है आश्चर्य का विषय तो यह है कि जब भाजपा विपक्ष में थी तब इनमें से अधिकांश अधिकारियों की करतूत पर मोर्चा खोल चुकी है लेकिन सत्ता में आते ही इनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर उन्हें महत्वपूर्ण पदों से नवाजा गया। बताया जाता है कि आईएएस और मंत्रियों के गठजोड़ की वजह से करोड़ों रुपए इनके जेब में जा रहा है। यहां तक कि जांच रिपोर्टों को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है। बहरहाल छत्तीसगढ़ में बदनाम आईएएस अफसरों का जमावड़ा होता जा रहा है और सरकार भी इनकी करतूत पर आंखे मूंदे है।

रविवार, 16 दिसंबर 2012

उद्योगों की गुण्डागर्दी पर सरकारी चुप्पी !


ऐसा नहीं है कि वंदना समूह की मनमानी की कहानी समाप्त हो गई है वह बेधड़क जारी है लेकिन ताजा मामला दुर्ग जिले के अहिवारा के समीप स्थापित हो रहे जे के लक्ष्मी सीमेंट की गुण्डागर्दी का है । एक तरफ सरकार इनवेस्टर मीट के नाम पर करोड़ों खर्च कर उद्योगों को भरपूर सुविधा देने की घोषणा करती है दूसरी तरफ यहां आकर उद्योग गुण्डागर्दी कर रहे है क्या ऐसे में उद्योग यहां आने चाहिए ?
विशेष प्रतिनिधि
ऐसा नहीं है कि वंदना समूह की मनमानी की कहानी समाप्त हो गई है वह बेधड़क जारी है लेकिन ताजा मामला दुर्ग जिले के अहिवारा के समीप स्थापित हो रहे जे के लक्ष्मी सीमेंट की गुण्डागर्दी का है । एक तरफ सरकार इनवेस्टर मीट के नाम पर करोड़ों खर्च कर उद्योगों को भरपूर सुविधा देने की घोषणा करती है दूसरी तरफ यहां आकर उद्योग गुण्डागर्दी कर रहे है क्या ऐसे में उद्योग यहां आने चाहिए ?
पिछले चार अंको में हमने वन्दना समूह के करतूतों पर विस्तार से प्रकाश डाला था इस बार एक और उद्योग के कारनामें बताये जा रहे है । इस उद्योग को जमीन दिलाने शासन प्रशास
न ने न केवल फर्जी जनसुनवाई की बल्कि विरोध करने वाले ग्रामीणों की पिटाई व गिरफ्तारी भी हुई । हालत यह हे कि गांव वाले आन्दोलित हे लेकिन विपक्षी कांग्रेस के नेता नदारत है । स्वाभिमान मंच ने जरूर यहां किसानों व गांव वालों का साथ दिया लेकिन सरकार तो हर हाल में उद्योग के साथ खड़ा दिख रहा है ।
छत्तीसगढ़ सरकार की नीतियों के चलते जल जंगल जमीन और दवा तक में उद्योगों का हक होने लगा है । अहिवारा विधानसभा क्षेत्र खासाडीह अहिवारा, गिरहोला,भलपुरी खुई, सेमरिया के किसान इन दिनों आन्दोलित है उनका न केवल जेके लक्ष्मी सीमेंट प्रबंधक पर गलत तरीके से जमीन हासिल करने का आरोप है बल्कि स्थानीय लोगों की उपेक्षा का भी आरोप है । आश्चर्य का विषय तो यह हे कि यह संयंत्र लगभग पूरी तरह कृषि भूमि पर स्थापित हे । लगभग दो हजार एकड़ जमीन कौडिय़ों के मोल खरीदने में सरकार की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता सूत्रों की माने तो लघु उद्योग लगाने के नाम पर किसानों से जमीन ट्रकड़े-ट्रकड़े में ली गई और गांव की सरकारी जमीनों पर बेतहाशा कब्जा किये जाने का आरोप किसान लगा रहे हें । यहां तक कि बगीचे, चरागन और श्मशान घाट तक उद्योग में शामिल कर लिये गए और जब गांव वालों ने इसका विरोध किया तो उनके खिलाफ ही कार्रवाई की जा रही हे ।
सूत्रों की माने तो संयंत्र प्रबंधन ने किसानों को उद्योंगों में नौकरी देने का झांसा देकर कौडिय़ों के मोल जमीन हथियायी और अब नौकरी देने से मना किया जा रहा है । यहां तक कि कंपनी के लेटर पैड पर नौकरी का आश्वासन देने की चर्चा है और ऐसी शिकायतों पर पुलिस कार्रवाई करने से साफ मुकर रही है । इधर अपने को ठगा महसूस कर किसान जब आन्दोलन करने लगे तो उन्हें सुरक्षा गार्डो से पिटवाया गया और जब वे थाने पहुंचे तो वहां भी उनकी सुनवाई नहीं हुई ।
इधर किसानों के मुताबिक संयंत्र स्थापना से पहले होने वाली जनसुनवाई भी नहीं हुई और पर्यावारण मंडल मे उद्योग स्थापना की अनुमति भी दे दी । यही नहीं जनसुनवाई का विज्ञापन जानबहुझकर दिल्ली और रायपुर से प्रकाशित होने वाले ऐसे अखबार में कराया गया जिन्हें अहिवारा क्षेत्र के लोग ठीक से जानते ही नहीं है । सूत्रों की माने तो उद्योग से ही विकास की रणनीति की अवधारणा पर चल रही भाजपा की रमन सरकार को ग्रामीणों की तकलीफ से कोइ्र सरोकार नहीं है जबकि उद्योगों को बिजली पानी जमीन की सुविधाएं दी जा रही है ।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

कप्तान पर भारी पड़ते थानेदार...

कप्तान पर भारी पड़ते थानेदार...
राÓय के नये डीजीपी राम निवास यादव ने आते ही अपनी ताकत पीएचक्यू यानी पुलिस मुख्यालय में दिखा दी । इस यादवी फेरबदल का असर क्या होगा यह तो वही जाने लेकिन मुख्यालय की चर्चा सड़कों तक पहुचने लगी है । सरकार नहीं चाहती थी कि इस चुनावी साल में कोई भ्रष्ट अफसरों को लेकर कोई बखेड़ा खड़ा हो इसलिए डीएस अवस्थी को छापामारी से हटा दिया ।
अब सरकार के लिए इतना तो करना ही था आखिर सिनियर संत कुमार पासवान को नजर अंदाज कर रामनिवास यादव पर जो भरोसा किया गया है । यह सरकार तो वैसे भी भ्रष्टाचारियों की संरक्षक मानी जाती है ऐसे में चुनावी साल बहाना ही है और जब प्रदेश के लोकतंात्रिक मुखिया पर ही कोयले की कालिख पूती हो तो फिर उनसे इससे Óयादा उम्मीद बेमानी है ।
हाथ-पांव तोडऩे के लिए चर्चित आई जी मुकेश गुप्ता तो स्वयं हटना चाहते थे और फिर सरकार भी नहीं चाहती थी कि मुकेश गुप्ता को लेकर कार्यकर्ताओं के मन में उठने वाले सवालों का सामना करें इसलिए उन्हें भी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया लेकिन ये क्या जिसे बिठाया गया उस पर कम आरोप नहीं है । जी पी सिंग को आईजी बनाते समय शायद यह नहीं सोचा गया कि उन पर तो सीधे आई पी एस राहूल शर्मा की मौत को लेकर गंभीर आरोप है । और राजधानी के आई जी पर जब ऐसे आरोप हो तो सवाल उठने से रोक पाना आसान नहीं है । हालांकि पुलिस वालों को ऐसे आरोप से फर्क नहीं पड़ता लेकिन सरकार को फर्क पड़ सकता है । राजधानी के दिग्गज मंत्रियों की सलाह से यदि जीपी सिंग को आई जी बनाया गया है तो फिर सांसद रमेश बैस या नंदकुमार साय कितना भी पुलिस को नियंत्रण करने की बात करें कोई मतलब नहीं है ।
वैसे भी बैस जी कब मुंह खोले और कब पलटी मार दे कोई ठीकाना नहीं है । भतीजे को पड़ी तो बोल दिये । बाद में ऐसा नहीं कहा करने में कितनी देर लगेगी । यानी पुलिस को क्लीन चिट मिलना तय है । नहीं तो गृहमंत्री यदि किसी पुलिस कप्तान को निकम्मा कहे और उसके बाद भी कप्तानी रहे यह ल"ााजनक बात नहीं मानी जाती ।
राजधानी में चार साल से जमें पुलिस कप्तान दीपांशु काबरा भले ही खुशबू के अपहरकर्ताओं को पकडऩे के लिए अपनी पीठ थपथपा ले लेकिन सच तो यह है कि जिले के कई थानेदार उनकी नहीं सुनते ।
अब मोवा थाने का ही मामला ले । यहां पदस्थ श्रीमती संध्या द्विवेदी की रोज शिकायत हो रही है । यहां लूट की घटना को चोरी बता दिया जाता है । अवैध शराब से लेकर जुआरियों और सटांरिये तक से महिने वसुलने की शिकायतें है । बिल्डरों के पक्ष में पीढि़तों को चमकाने की शिकायत है । अपराधियों से गठजोड़ की तो शिकायतों का अंबार है लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई ही नहीं होती है ।
अब तो दहेज प्रताडि़त एक महिला Óाया शर्मा ने मोवा थाने पर रिपोर्ट नहीं लिखने की शिकायत कर दी है लेकिन कप्तान को इससे मतलब ही नहीं है । अब लोग कहते रहे हैं कि थानेदार के आगे कप्तान की नहीं चलती । न तो सरकार को फर्क पड़ता है और न ही मुख्यालय में बैठे अफसरों को ही इससे फर्क पड़ता है । आखिर पुलिस की छवि ऐसी बनी रहेगी तभी तो खर्चा चलेगा ।
खर्चा चलेगा तभी तो सेहत बनेगी । तभी तो फरार होने वाले कैदियों को पकडऩे में ताकत लगेगी । अब कांकेर में बस स्टैण्ड से तीन जवानों को चकमा देकर कैदी भाग गया तो इसमें पुलिस वालों की गलती कैसे ? लेकिन लोगों का ध्यान रखना है इसलिए तीनों निलंबित कर दिये गये । लोगों की याददाश्त Óयादा होती नहीं इसलिए कुछ दिन में बहाल कर दिये जायेगे । आखिर बल की कमी है और बल की कमी न भी हो तब भी बैठा के वेतन देना ठीक नहीं है । तभी तो थाने में हुई हत्याओं के दोषी पुलिस कर्मी मजे से दूसरी जगह डूयूटी बजा रहे हैं मरने वाले का क्या । वह लौट के तो आयेगा नहीं लेकिन जो दोषी जिन्दा है उन्हें कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए ।

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

नियंत्रण नहीं पर लाभ चाहिए...

नियंत्रण नहीं पर लाभ चाहिए...
कोलगेट कांड को दबाने के लिए जी न्यूज और जिंदल समुह में सौदे की खबर से मीडिया शर्मसार हुआ है। और यह सवाल जोर पकडऩे लगा है कि यह मीडिया पर सरकार का नियंत्रण जरूरी हो गया है! इस घटना में न तो जिंदल समूह के भ्रष्टाचार कम आंके जा सकते है और न ही जी न्यूज की इस खेल को ही नजर अंदाज किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ राÓय बनने से पहले यहां की पत्रकारिता को जो सम्मान मिलता रहा है ह उसमें कमी आई है। राÓय बनने के बाद मीडिया मैनेजमेंट का नया खेल शुरू हुआ है जिसमें बड़े-बड़े मीडिया समूह भी शामिल हो गये है। वे या तो खबरों के एवज में सीधे रकम ले रहे हैं या फिर विज्ञापन को माध्यम बता रहे है। पेड-चूज का यह आलम है कि सभी नेता व कार्पोरेट घराने इस खेल में शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ में बड़े अखबार समूहो ने सरकार से फायदे के सीधे रास्ते के अलावा अप्रत्यक्ष फायदे का खेल शुरू कर दिया अखबार के अलावा दूसरे धंधो में सरकार से फायदा लेने का तिकइम जनता के सामने है। अखबार चलाने के नाम पर कौडिय़ों के मोल सरकारी जमीने ली गई और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स तक ताने गये। सरकारी जमीनों के इस बेचा इस्तेमाल पर कार्रवाई करने की हिम्मत न तो किसी अधिकारी में है और न ही राजनेताओं में। इन जमीनों के लीज रेट को लेकर भी खेल चला। अखबार को सरकार से सारी सुविधाएं चाहिए। जनसंपर्क से विज्ञापन पर दबाव, वाहनों के लिए दबाव यहां तक कि घूमने फिरने तक के लिए दबाव बनाये जाते हैं।
विदेश तक घूम आये...
छत्तीसगढ़ के मीडिया बिरादरी को खुश करने सरकार विदेश तक ले जा चुकी है बैकांक- पटाया जा चुके पत्रकारों के नाम पर खूब खर्च हुए। जनता की गाढ़ी कमाई पर अपव्यय को लेकर छापने वाले पत्रकार न संपादक को यह विदेश यात्रा कभी अपव्यय नहीं लगा। और न ही उन्हें सरकारी सुविधाएं लेने में कभी हिचक हुई।

और अंत में...
पत्रकार अब सरकारी खर्चे पर किताब लिखने लगे है। सरकार से पैसा एंठने में इस नये खेल में ईमानदारी का ढि़ंढोरा पिटने वाले कई शामिल है।

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

लोहा-कोयला से छग में
10 साल में 50 हजार
करोड़ की लूट
छत्तीसगढ़ में पिछले 10 सालों में लौह अयस्क व कोयला के अवैध उत्खनन में 50 हजार करोड़ रूपये से अधिक राशि की सरकारी तिजोरी को चूना लगाया गया है । अवैध उत्खनन से सरकारी तिजोरी को करो व अन्य शुल्क से पहुंचे नुकसान की राशि इससे अधिक हो सकती है । रमन सरकार के कार्यकाल के दौरान इन खनिजों के अवैध उत्खनन में हुई बेतहाशा वृद्धि का आलम यह है कि इससे अधिकारियों से लेकर सत्ता में बैठे मंत्रियों तक को फायदा पहुंचाया गया है । यह मंत्रालय डॉ. रमन सिंह के पास है

इस मामले से जुड़े खनिज विभाग के अफसरों का कहना है कि चूंकि प्रदेश में खनिज मंत्रालय सीधे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पास है इसलिए अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाई और जिस किसी अफसर ने कार्रवाई की जरूरत की उसे खामियाजा तक भुगतान पड़ा ।
खनिज मामलों के विशेषज्ञों का मानना हे कि यदि व में अनिल लुनिया के मामले में कार्रवाई हुई होती तो लूट इस कदर नहीं बढ़ती । ज्ञात हो कि भैंसा कद्दार में अवैध खनन को लेकर विधानसभा में भी हंगामा मचा था जबकि पुष्य स्टील का मामला अभी-भी गरम है और इस मामले में कांग्रेस के वरिष्ट नेता मोतीलाल वोरा पर भी आरोप लगे हैं ।
खनिज मामले के विशेषज्ञों का दावा है कि पूरे छत्तीसगढ़ में हुई उद्योगों ने करोड़ों टन लौह अयस्क व कोयला का अवैध खनन किया है और कई मामले में तो इन अयस्कों को प्रदेश के बाहर भेजने की भी खबर है । सूत्रों की माने तो अवैध उत्खनन के चलते रमन राज में सरकारी तिजोरी को हर साल करीब 7 से 8 हजार करोड़ रूपये का नुकसान केवल लोहा और कोयला से हुआ हे ।
सूत्रों का दावा है कि वन विकास शुल्क, वैट, एस टी व रायल्टी का पूरा आकलन किया जाये तो यह राशि 50 हजार करोड़ रूपये से अधिक की होगी । यही नहीं इस खेल में न केवल खनन माफिया, उद्योगपति बल्कि सत्ता में बैठे मंत्रियों व अधिकारियों के अलावा विपक्ष के कई विधायकों को भी बड़ी राशि मिली है ।
विशेषज्ञ सूत्रों का कहना है कि यदि लिज होल्डरों पर नजर रखी जाती तो यह स्थिति नहीं बनती जबकि अवैध उत्खनन की शिकायतों को भी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया और अप्रत्यक्ष रूप से इस लूट का हिस्सा बन गए ।
इधर हमारे सूत्रों का कहना है कि कोयला खदान व लौह अयस्क के अवैध खनन और बिकी के आकंड़ों में भी कभी बताई गई । कहा जाता है कि कोयला खदान में भारी पैमाने पर अवैध खनन किया गया और इस मामले में विभाग की भूमिका भी संदिग्ध रही ।
सूत्रों का कहना है कि इस खेल में तत्कालीन खनिज सचिव का रोल जबरदस्त था और इसी वजह से उनके रिटायर्ड होने के बाद भी सरकार ने उन्हें संविदा नियुक्ति दी । 
 

बुधवार, 13 जून 2012

फाईलो में विकास...


छत्तीसगढ़ में इन दिनों विकास की ईबादत फाईलों में लिखी जा रही है। लगातार हर क्षेत्र में पुरस्कार पाते विभागों की असली कहानी मैदान में आते ही दम तोड़ जाती है। दशक भर पहले के हालात आज भी वैसे है यह कोई नहीं कह सकता लेकिन जिस मापदंडो को विकास का आधार बनाया गया है वह फाईलों तक सिमट कर रह गया है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी में ही दर्जनों झुग्गी बस्तियों में आज भी लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए न केवल जद्दो जहद करनी पड़ रही है। बल्कि पीने का पानी तक ठीक से उपलब्ध नहीं है। बजबजाती नालियों के उपर निस्तार कर रहे लोग नारकीय जीवन जीने मजबूर है। ग्रामीण क्षेत्रों का हाल तो और भी बुरा है पानी, शिक्षा व चिकित्सा सुविधा के अभाव में कितनी ही जिंदगी काल के गाल में समा रही है। सबसे दुखद स्थिति तो नक्सली प्र्रभावित क्षेत्रों का है जहां कुपोषण का कहर आज भी जारी है। कानून व्यवस्था की बिगड़ती हालत ने शहरी जीवन को ही नहीं ग्रामीण जीवन को भी अपनी चपेट में ले रखा है। लूट-डकैती चोरी, बलात्कार और यहां तक की हत्या के वारदातों पर भी ईजाफा हुआ है।
राज्य बनने के बाद जिस तरह से यहां माफिया राज हावी हुआ है उसके चलते विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है खासकर खनिज संपदा, को जिस तरह से लूटा जा रहा है और जंगलों की बैधड़क कटाई हो रही है वह आने वाले दिनों में गंभीर खते का संकेत है।
आज 21वीं सदी में भी हम गांवो में चिकित्सा सुविधा नहीं दे पा रहे है जिससे असमय काल के गाल में पहुंचने वालों की संख्या बढ़ी है। मोतियाबिंद के ईलाज के नाम पर जिस तरह की लापरवाही हुई और उसके बाद डॉक्टरों को बचाने का जो खेल हुआ वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। शिक्षा की आड़ में निजी स्कूलों को बढ़ावा देकर जिस तरह से आम लोगों की जेब काटी जा रही है। वह भी दुर्भाग्य पूर्ण है। सरकार स्कूलों को जानबुझकर कमजोर करने की वजह से यह स्थिति बनी है और हम विकास की ईबादत लिख रहे हैं?
 

सोमवार, 11 जून 2012

भाजपा में दबाव की राजनीति...


एक पुरानी कहावत है कि यदि हाथी कुंए में गिर जाता है तो उसे मेढ़क भी लात मारते हैं। कमोवेश भाजपा में यही स्थिति बन गई है। कमजोर नेतृत्व ने महत्वकांक्षियों को सिर उठाने का जो मौका दिया है वह न तो थमने का नाम ले रहा है और न ही उसे कोई रोक ही पा रहा है। इस वजह से भाजपा की न केवल थू-थू होने लगी है कार्यकर्ताओं में भी निराशा घर करने लगी है।
केन्द्र की सरकार जिस तरह से भ्रष्टाचार और मंहगाई के मुद्दे पर घिरी है उसकेे बाद इसे भुनाने का भाजपा के पास अच्छा मौका था लेकिन वह अपने ही जाल में उलझ कर रह गई है। घीरे हुए अध्यक्ष के नकारापन ने जहां महत्वकांशी नेताओं को सिर उठाने का मौका दिया है वह सत्ता के दम पर पैसा कमाने वालों ने लोकतंत्र की खाल से जूते बनाने का खेल शुरू कर दिया है।
जिस असहाय स्थिति से आज भाजपा गुजर रही है वैसा तो दो सीट में सिमटने के दौरान भी नहीं हुआ। पैसों की ताकत से नेतृत्व को गरियाने का जो खेल भाजपा में शुरु हुआ है वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। यदिरप्पा, वसुंधरा के बाद नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से नेतृत्व को अपने जूतों तले रौंदा है वह आने वाले दिनों में दूसरे नेताओं के लिए सबक बन जाये तो आश्चर्य नहीं है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में डॉ.रमन सिंह भी अपनी चला रहा है। कार्यकर्ता नाराज है। भ्रष्टाचार के आंकठ में डूबी सरकार के खिलाफ बोलने वालों को आंख दिखाने का खेल बंद नहीं किया गया तो सत्ता और पैसे की ताकत पाटी पर भारी पड़ सकती है।
छत्तीसगढ़ में तो डॉ. रमन सिंह पर ही कोयले की कालिख लगी है और हाल ही में उसके करीबी प्रदीप गांधी, कमलेश्वर अग्रवाल से लेकर न जाने कितने लोगों के कारनामों की चर्चा आम लोगों की जुबान पर चढऩे लगा है ऐसे में नेतृत्व की एक अनदेखी पाटी पर भारी पड़ सकती है।

रविवार, 10 जून 2012

डिंपल की जीत...


उत्तर प्रदेश में कन्नौज की सीट पर डिम्पल यादव की निर्विरोध जीत को लोकतंत्र का काला दिन कहा जाये तो गलत नहीं होगा। डिम्पल यादव के निर्विरोध के पीछे का सच पूरा देश देखता रहा। तमाम राजनैतिक दलों को जिस तरह से सपा सरकार ने घुटने टेकने मजबूर किया यह डिंपल के लिए भले ही ऐतिहासिक क्षण हो पर इसे देश के लिए गंभीर खतरा माना जाना चाहिए। आज डिंपल के लिए राजनैतिक दलों ने घुटने टेके कल किसी और के दबंगई के आगे घुटने टेकने पड़ेंगे। वैसे भी लोकतंत्र के मंदिर में अपनी ताकत के बल पर पहुंचने वालों की कमी नहीं है लेकिन डिंपल का पहुंचना कुछ अलग ही मायने रखता है।
यूपी में सत्ता संभालने जिस तरह की खबरें आ रही है वह कतई ठीक नहीं है। सपा की दादागिरी चरम पर है और इस दादागिरी के बीच बाकी सबका मैदान छोडऩे का अर्थ क्या निकाला जाना चाहिए।
हम यहां निर्विरोध निर्वाचन के अलावा डिम्पल के लोकसभा तक पहुंचने के गलत तरीके के अलावा मुलायम सिंह के उस बयान पर भी चर्चा करना चाहेंगे कि लोकसभा में महिला बिल पेश करते समय मुलायम सिंह ने क्या कुछ नहीं कहा था। महिला बिल का पुरजारे विरोध करते समय मुलायम सिंह ने औरतो की नुमाईस और सीटी बजाने तक की बात कहीं थी लेकिन जब कन्नौज उपचुनाव में उन्होंने अपनी बहु डिम्पल यादव को टिकिट दी तब यह सवाल भी उठना लाजिमी है कि क्या महिला आरक्षण के मुद्दे को लेकर दो तरह की सोच रखने वाले मुलायम सिंह अब किस मुंह से कहेंगे कि लोकसभा में सिटिंया बजेंगी?
राजनीति के पल-पल बदलते तेवर के बीच जिस तरह स बसपा कांग्रेस और भाजपा ने कन्नौज में किया है उसका खामियाजा उसे भुगतना होगा?

शुक्रवार, 8 जून 2012

भू अधिग्रहण...


विकास की ओर अग्रसर छत्तीसगढ़ में इन दिनों खेती की जमीनों को लेकर लोगों का गुस्सा फूटने लगा है। नई राजधानी क्षेत्र के किसानों का गुस्सा चरम पर है और सरकार की ठोस नीति के अभाव में किसानों के सामने मरने-मारने की स्थिति निर्मित हो गई है। नई राजधानी के निर्माण को लेकर जिस तरह से भू अधिग्रहण करने में सरकार ने पक्षपातपूर्ण नीति अपनाई है उससे किसान नाराज है।
रमन राज में खेती की जमीन की बर्बादी पर अब लोग खुलकर बोलने लगे हैं कृषि मंत्री चंद्र्रशेखर साहू ने पांच-छाह माह पहले ही कह दिया था कि अब खेती की जमीनों का अधिग्रहण को लेकर कड़े कानून बनाये जायेंगे। वैसे तो पूरे देश में खेती की जमीनों की बरबादी को लेकर सवाल उठने लगे है। भू अधिग्रहण कानून बनाने की मांग हो रही है और इसे लेकर केन्द्र सरकार भी नये कानून ला रही है।
सवाल यह है कि आखिर विकास कैसे और कहां होना चाहिए? हमने छत्तीसगढ़ में निर्माणाधीन नई राजधानी को लेकर पहले ही कह दिया है कि इसकी जरूरत क्या है? राज्य निर्माण की मांग के दौरान पेड़ के नीचे विधानसभा लगाने की बात कहने वाले नेता अब नई राजधानी के नाम पर करोड़ों-अरबों फूंके जाने पर खामोश है। किसानों के सामने  घर-बार छोडऩे की पीड़ा को कोई समझने तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ में आज भी गांवो में पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा ठीक से नहीं है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग नारकीय जीवन जीने मजबूर है और दूसरी तरफ नई राजधानी के नाम पर अरबों रूपयें खर्च किये जा रहे है। नई राजधानी की भव्यता के किस्से गढ़े जा रहे है और लोगों के सामने जीवन जीने के लाले पड़े है।
विकास होनी चाहिए लेकिन क्या इसके लिए खेती की जमीने बरबाद करनी जरूरी है? क्या जनप्रतिनिधि व अफसरों के लिए एयर कंडीशन व भव्य बंगले पर ही करोड़ों खर्च होने चाहिए।
नई राजधानी के नाम पर चल रहे तमाशे से किसानों में रोष है और इसके लिए सरकार को पक्षपात पूर्ण रवैैया छोड़कर नये सिरे से नीति बनाना चाहिए अन्यथा यह आक्रोश सरकार के लिए मुसिबत बन सकता है।

गुरुवार, 7 जून 2012

क्यों मांगे माफी...


सत्यमेव जयते के एक एपिसोड में अमीर खान ने डॉक्टरों की जब पोल खोलना शुरू किया तो इंडियन मेडिकल एसोसियेशन को बहुत बुरा लगा और अब वे अमीर खान से माफी मांगने सड़क पर उतरने आमदा है।
ये सच है कि आज भी डॉक्टरों का एक बड़ा वर्ग न केवल इस पेशे को सेवा मानता है बल्कि जनता की नजर में भी डॉक्टरों की एक ईज्जत है। लेकिन पिछले कुछ सालों में डॉक्टरों ने जिस तरह से इस पेशे की आड़ में अस्पतालों को स्लाटर हाऊस और स्वयं को यमराज के एजेंट के रूप में स्थापित करना शुरू किया है उससे आम लोग त्रस्त है। छत्तीसगढ़ में ही डॉक्टरों की लूट किसी से छिपी नहीं है। हम इस पेशे में भूल वश पेट में कैची छूट जाने वाली घटनाओं की बात नहीं कर रहे है हम तो दवाई से लेकर ईलाज में मची लूट खसोट की बात कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में ही शासन से अनुदान लेने वाले अस्पतालों की कमी नहीं है राजधानी में ही आधा दर्र्जन से अधिक अस्पताल सरकार से अनुदान ले रही है लेकिन इन्हीं अस्पतालों में पैसों के लिए लाश रोक देने की घटना सामने आते रही है। क्या डॉक्टर दवा कंपनियों के आगे बिक नहीं गए है। जो दवा कंपनी ज्यादा कमीशन देता है उसकी दवाईयां क्या नहीं लिखी जा रही है भले ही उससे सस्ती दवाईयां बाजार में उपलब्ध हो। अब तो जांच में भी कमीशन तय है और मरीज व उनके परिजनों को जरूरत नहीं होने पर भी जांच के लिए न केवल दबाव डाला जाता है बल्कि इतना डराया जाता है कि वे मजबूर होकर जांच कराते हैं।
यह ठीक है कि राजधानी में चिकित्सा सुविधा  बढ़ी है लेकिन क्या यहां के डॉक्टर उतने ही निष्ठुर नहीं है? क्या पैसे के एवज में वे मानवता को किनारे नहीं रखते। गरीबों को अस्पताल में फटकने तक नहीं देने के किस्से आम है और दवा कंपनियों से पैकेज डील करने में वे इतने माहिर है कि बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ दी जाती है।
सत्यमेव जयते के जिस एपीसोड के लिए इंडियन मेडिकल एसोसियेशन आगबबुला हुआ है इस एपीसोड से आम आदमी खुश है एसोसियेशन को चाहिए कि वे ऐसे डॉक्टरों व दवा कंपनियों के खिलाफ कड़ा रूख अपनायें।

बुधवार, 6 जून 2012

अफसरों की मनमानी...



जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक से दूसरी बार अफसर नदारत रहे और जनप्रतिनिधियों को धरने पर बैठना पड़ा। यह रमन राज में जारी अफसरशाही का एक ऐसा नमूना है जो कभी देखने को नहीं मिलेगा। जिला पंचायत में भाजपा का कब्जा है। अध्यक्ष भाजपा की है और प्रदेश में सरकार भी भाजपा की है इसके बावजूद भाजपा के जनप्र्रतिनिधियों को धरना में बैठना पड़े तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक बात क्या हो सकती है।
ऐसा नहीं है कि जिला पंचायत के सीईओ श्रीमती शम्मी आबादी ने ऐसा पहली बार किया है पहले भी वह बैठक में नहीं पहुंची थी तब अन्य अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझा लिया गया था लेकिन कल भी जब यही रवैया रहा तो अध्यक्ष लक्ष्मी वर्मा को धरने पर बैठना पड़ा। श्रीमती वर्मा ने अफसरशाही पर भी टिप्पणी की।
हम यहां पर पहले ही लिख चुके है कि डॉ रमन सिंह के राज में अफसर बेकाबू हो गए है और जनप्रतिनिधियों को अपमानित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जाता जिस प्रदेश में गृहमंत्री तक की बात नहीं सुनी जाती उस प्रदेश का क्या हाल होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। कुछ एक मंत्री को छोड़ अफसरों के सामने बाकी मंत्री पानी भरते है। खुद रमन सिंह के विभाग में भ्रष्टाचारियों की संरक्षण दिया जा रहा है। मनोज डे से लेकर बाबूलाल अग्रवाल मामले में मुख्यमंत्री के कारनामें सबके सामने हैं ऐसे में जब अब पैसे लेकर पद दे रहे हो तो कोई अफसर कैसे किसी से डरेगा। घोटाले और भ्रष्टाचार में गले तक तर सरकार के मुखिया का चेहरा ही जब कोयले की कालिख से पूति हो तो कोई अफसर कैसे डरेगा? ईमानदार अफसरों को फटकार और बेईमानों को सेवानिवृत्ति के बाद भी नौकरी पर रखने की परंपरा ने इस सरकार को लेकर कई सवाल खड़े किए है। झूठ के महल में टिकी सरकारों का जब उद्देश्य सिर्फ पैसा हो तो अफसरशाही को हावी होने से कैसे रोका जा सकता है। हमने इसी जगह पर पहले ही कहा था कि यूपीए को गरियाने वाले पहले अपने गिरेबां में झांक तो लें। यदि आज भाजपा सत्ता में है तो इसकी वजह कांग्रेस की करतूत है और यदि यही हाल रमन राज का रहा तो फिर आखिर जनता किस पर भरोसा करेगी।

मंगलवार, 5 जून 2012

विकास और बेदखली...


मानव अधिकारियों को लेकर गठित एक समूह ने आजादी के बाद विकास के नाम पर बेदखली का जो आंकड़ा सामने लाया है वह न केवल चौंकाने वाला है बल्कि सरकार के लिए चेतावनी भी हैं। इस आंकड़े में कहा गया है कि बेदखली का सबसे ज्यादा शिकार आदिवासी व दलित हुए हैं।
दुनियाभर में अपने घरों से विस्थापित होने को मजबूर लोगों के ये आंकड़े सरकार के रवैये की करतूत खोलने के लिए काफी है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जिस तरह से यहां की सरकार ने विकास के नाम पर बेदखली किया है उसके आंकड़े तो अलग से नहीं है लेकिन हमारा दावा है कि बेदखली लोगों में मूल छत्तीसगढिय़ों की संख्या अधिक है और इनमें आदिवासी दलित के आंकड़े भी चौंकाने वाले होंगे।
हम यहां सरकार की नासमझी से चलाए गए सलवा जुडूम की वजह से पांच सौ से अधिक गांवो के उजड़ जाने की बात नहीं कर रहें है हम यहां केवल विकास के नाम पर, नई राजधानी, उद्योग, सड़क और बांध की वजह से विस्थापित लोगों पर ही चर्चा कर रहे हैं। जिस पर सरकार का रवैया गैर जिम्मेदराना रहा है। बेदखल लोगों के पुर्नवास का ही पता नहीं और न ही मुआवजे ही ठीक ढंग से दिए गए। नई राजधानी से लेकर रायगढ़ के केलोडेम और बस्तर से लेकर अंबिकापुर के उद्योगों की वजह से दादागिरी के साथ लोगों को बेदखल किया गया और अब भी बेदखली का सिलसिला जारी है। इनकी मदद को आये लोगों को जेल में डालने के आंकड़े भी कम नहीं है।
विकास के नाम पर जिस तरह की ईबादत छत्तीसगढ़ सरकार ने लिखी है इसके आंकड़े आने वाले दिनों में जब सबके सामने आयेगा तो हमारा दावा है कि खुद सरकार में बैठे लोग अपनी छाती पिटते नजर आयेंगे।
छत्तीसगढ़ में नजूल व फालतू जमीनों की कमी नहीं है इसके बाद भी जिस तरह से अपने सुखसुविधा के लिए बेदखली का कुचक्र रचा गया वह आने वाले दिनों में इस शांत प्रदेश पर भी असर डालेगा और तब पर्यावरण को लेकर चिंतित लोग वृक्ष लगाते या हल्ला करते नजर आयेंगे।

रविवार, 3 जून 2012

ईनाम का फंडा...


ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जिसके लिए रमन राज को पुरस्कार नहीं मिला है। सत्ता में आते ही मिल रहे पुरस्कार की झड़ी थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और लोग हैरान है कि ऐसा क्या हो रहा है।
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में असंतुलित विकास और भ्रष्टाचार ने आम आदमी का जीवन कठिन कर दिया है। राजधानी  में ही शराब की नदिया बह रही है। शिक्षा के बाजारूपन ने पालक को ग्राहक बना दिया है। खेती की जमीने बरबाद हो रही है। केन्द्र्रीय योजनाओं से मिल रहे रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। उद्योगपति के आगे सरकार नतमस्तक है। अपराधिक गतिविधियों में सौ फीसदी से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। नक्सली घटना ही नहीं नक्सली क्षेत्रों का लगातार विस्तार हो रहा है। कलेक्टर का अपहरण हो रहा है और पुलिस कप्तान की संदिग्ध हत्या हो रही है। पर्यावरण का कोई माई बाप नहीं है और कोयला माफिया, लोहा माफिया, खनन माफिया, भू माफिया, शराब माफियाओं के आगे प्रशासन की बोलती बंद है। प्रदेश के गृहमंत्री एसपी को निकम्मा कलेक्टर को दलाल और थाने को बिकाऊ कहते घूम रहे है। भाजपा के सांसद खुले आम सरकार के क्रियाकलापो पर उंगली उठा रहे है। प्रदेश के मुखिया पर कोयले की कालिख पूति हो और रातों रात करोड़पति बनते जनप्रतिनिधियों के बीच आम लोगों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह चरमरा चुकी है। निजी अस्पताल स्लाटर हाउस और डॉक्टर यमराज के एजेंट बनते जा रहे है और सरकार को फिर भी ईनाम मिल रहा है। क्या ईनाम के लिए भी सेटिंग होती है या आंकड़े बाजी के मक्कडज़ाल ही ईनाम का हकदार होता है। यह सवाल आज इस लिए उठ रहा है क्योंकि छत्तीसगढ़ के विकास ग्रोथ को लेकर मुखिया खुश है लेकिन आम आदमी...!
छत्तीसगढ़ में चल रहे इस खेल को न कोई समझ  पा रहा है और न ही किसी के पास समझाने के लिए ही कुछ बचा है। जिस विकास की बात पर नम्बर बढ़ाये जाते हैं वह विकास कहां है। गांव-गांव में शिक्षा स्वास्थ्य और पानी के अभाव में लोगों को नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ में तो मानव तस्करी तक बड़े पैमाने पर हो रही है इसके बाद भी ईनाम की गारंटी है तो कहीं न कहीं  मामला गड़बड़ नजर आता है।

शनिवार, 2 जून 2012

ग्रामीणों का गुस्सा...


नई राजधानी और रायगढ़ में कल गांव वालों ने प्रशासन की जमकर बजा दी। दोनों ही जगहों पर ग्रामीणों ने गुस्से ने सरकार की जनहित की कलई खोल कर रख दी। किसानों को बरबाद होने के हद तक पहुंचाने में लगी रमन सरकार के प्रति गुस्सा चरम पर है। नई राजधानी में गांव वालों ने न केवल काम बंद करवाया बल्कि अफसरों को बंधक तक बना लिया यही हाल रायगढ़ के केलोडेम के प्रभावितों का है यहां मुख्यमंत्री 14 जून को केलोडेम का उद्घाटन करने जा रहे हैं और यहां के किसानों को अब तक मुआवजा ही नहीं दिया गया है।
पूरे प्रदेश में छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों के साथ चल रहे इस दोयम दर्जे से हाहाकार की स्थिति है। जमीने कभी विकास के नाम पर तो कभी सड़क या उद्योगों के नाम पर छीनी जा रही है और मुआवजा या हक की लड़ाई लडऩे वालों को वर्दी वालों के सहारे पीटा जा रहा है। कांग्रेस इस मामले में केवल बयानबाजी तक सीमित है और लोग नेतृत्व के अभाव में अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।
चौतरफा मची इस लूट को लेकर लोगों में बेहद गुस्सा है। और मुख्यमंत्री से लेकर अधिकारियों के भ्रष्टाचार के किस्से इस गुस्से में आग में घी डालने का काम कर रहा है। नई राजधानी और रायगढ़ में कल प्रशासन ने पुलिस के दम पर आंदोलनकारियों को मना तो लिया लेकिन यह कब तक चलेगा। आखिर मुआवजा और व्यवस्थापन को लेकर सरकार कोई ठोस नीति क्यों नहीं बनाती।
हम पहले भी कह चुके है कि छत्तीसगढ़ में अभी विकास की बहुत संभावनाएं है। सड़क से लेकर उद्योग व सरकारी भवनों की जरूरत है लेकिन हम किसी की लाश पर विकास कतई नहीं चाहते। नई राजधानी के औचित्य को लेकर हम सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर जनप्रतिनिधियों को महलों या बंगलो में रहने की जरूरत क्यों हैं? विधायक बनते ही उनके रहन सहन में राजसू ठाट के लिए सरकारी व्यवस्था की क्या जरूरत है। केलो डेम में भी गांव के किसानों के साथ सरकार छल कर रही है लेकिन जनता के हितैषी कहलाने वालों का कहीं पता नहीं है। नई राजधानी में भी यह हाल है लोग अपनी लड़ाई स्वयं लड़ रहे हैं और सरकार इन लोगों को मुआवजा या व्यवस्थापन की बजाय कुचलने में लगी है।

शुक्रवार, 1 जून 2012

देख लो डाक्टर साहब...


क्या प्रदेश भर के निजी अस्पतालों को बिमारी फैलाने, दवाई के नाम पर लूट की छूट और ईलाज में लापरवाही पर इसलिए छूट मिली हुई है क्योंकि प्रदेश के मुखिया डॉक्टर है। नहीं, यह वजह कतई नहीं है। असली वजह है सरकार में बैठे लोगों की खाओ पियो नीति। जिसके चलते प्रदेश के गरीब व उनके परिजन चौतररफा लूट के शिकार हो रहे हैं।
हमारे मित्र  आज तक तस्वीर भेजकर यह सोचने को मजबूर कर दिया कि किस तरह से निजी असप्ताल संचालकों के द्वारा अस्पताल के अपशिष्टों को कहीं पर भी फेंककर आम आदमी को मौत के मुुंह में ढकेलने पर आमदा है। पिछलें दिनों आमिर खान के एक एपीसोड में दिखाया गया कि कैसे डॉक्टरों ने अपने पेशे को धंधा बना रखा है और लोगों को अनचाहे मौत की ओर ढकेला जा रहा है। पूरे छत्तीसगढ़ में निजी अस्पतालों का एक मात्र काम मरीज और उनके परिजनों की जेब खाली करना रह गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी हो या दूरस्थ अंबिकापुर या बस्तर सब जगह दवाई से लेकर ईलाज के नाम पर मची लूट-खसोट ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। दवा कंपनियों से मिलने वाले कमीशन ने उनके भीतर की मानवता को समाप्त कर दिया है और ईलाज में घोर लापरवाही से लेकर लाश उठाने तक के पैसे वसूले जा रहे हैं। रमन राज में चल रहे इस खेल में मुख्यमंत्री कितने दोषी है यह कहना मुश्किल है लेकिन पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा एक भी अनुदान प्राप्त निजी अस्पताल नहीं है जहां 25 फीसदी गरीबों का ईलाज मुफ्त में किया जाता हो। अनुदान प्राप्त अस्पताल एस्कार्ट से लेकर नारायण और रामकृष्ण से लेकर ढेरो नाम है लेकिन सब जगह लूट मची है और पूरी सरकार शिकायतों के बाद भी इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं तो इसकी एक ही वजह हो सकती है इन अस्पतालों से मिलने वाली रिश्वत की रकम। बीमारों की सीने पर चढ़कर पैसा कमाने की कोशिश में अधिकारी से लेकर मंत्री तक शामिल है वरना यहां भी महाराष्ट्र की तर्ज पर दर्जनों अस्पतालों की मान्यता ही नहीं छीनी जाती बल्कि डिग्री तक जब्त करने लायक स्थिति है। दवाई दूकान खोलकर सीधे दवा कंपनियों से रेट तय कर दवाई खरीदी जा रही है। सस्ती दवाईयों की बजाय महंगी दवाईयां मरीजों को परोसा जा रहा है। जेनेटिक की जगह बीमारी को न्यौता देने वाले ईलाज हो रहे है लेकिन यह सब को दिख रहा है नहीं दिख रहा है तो केवल डॉक्टर साहब को।

गुरुवार, 31 मई 2012

आदिवासी वोट बैंक...



छत्तीसगढ़ में इन दिनों राजनैतिक दलों  2013 में होने वाली विधानसभा के लिए तैयारी शुरू कर दी है। छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा में से 35 विधानसभा आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है और कांग्रेस-भाजपा ही नहीं नवगठित स्वाभिमान मंच की नजर भी इन 35 सीटों पर है। ये सीटें ही छत्तीसगढ़ में सत्ता तय करती है। पिछले दो चुनावों में आदिवासियों ने भाजपा पर भरोसा किया था।
आजादी के 6-7 दशक बाद भी आदिवासियों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। इन्हें वोट बैंक ही समझा गया। विकास के नाम पर लालीपॉप थमाया गया और इसका दुष्परिणाम यह है कि आदिवासी ईलाका नक्सलियों का गढ़ बन गया है। पिछले दो चुनावों में आदिवासियों की बदौलत सत्ता हासिल करने वाली डॉ रमन सिंह की सरकार ने भी सात-आठ सालों में कुछ खास नहीं किया। योजनाएं तो बनी लेकिन मूलभूत जरूरतों को नजर अंदाज किया गया। यही वजह है कि आदिवासी क्षेत्रों में लोग ईलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। पीने तक का साफ पानी नहीं मिलने से यहां स्वास्थ्य पर भी बुरा असर हुआ है और शिक्षा के नाम पर केवल ढकोसला किया गया। मौलिक अधिकार से वंचित आदिवासियों के सामने सबसे दिक्कत यह है कि वे किनका भरोसा करें।
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की स्थिति तो और भी खराब है। नक्सलियों और पुलिस के बीच उनका जीना दूभर हो गया है। इधर कुआं उधर खाई की स्थिति से वे उबर ही नहीं पा रहे हैं। पांच सौ से अधिक गांव उजड़ गए और राहत शिविर में उन्हें रहना पड़ रहा है।
भाजपा 3 जून से आदिवासी क्षेत्रों में सम्मेलन बुला रही है और इन सम्मेलनों को मुख्यमंत्री रमन सिंह भी संबोधित करेंगे। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए है अपनी मांगो को लेकर आने वाले आदिवासियों की राजधानी में जमकर पिटाई हुई है। ऐसे में भाजपा को डर है कि आदिवासी वोट यदि खिसक गया तो उनकी सरकार बननी मुश्किल हो जायेगी। इसलिए दुबारा सत्ता हासिल करने आदिवासी क्षेत्रों में सम्मेलन बुलाए जा रहे हैं। लेकिन जिस तरह से आदिवासी क्षेत्रों से खबर आ रही है वह भाजपा के लिए ठीक नहीं है। अपनी पिटाई को आदिवासी अब तक भूले नहीं है और उनकी नाराजगी सम्मेलनों में भी दिख सकती है ऐसे में सरकार को इस बात के लिए पहले से तैयार रहना होगा। सिर्फ वोट के लिए राजनीति व सम्मेलन उचित नहीं है।

बुधवार, 30 मई 2012

आग की आंच...


यदि पड़ोसी के घर लगी आग नहीं बुझाओगे तो इसमें खुद के घर भी जल जाने से नहीं रोक सकते। इतनी सी बात न तो प्रदेश के मुखिया को समझ आती है और न ही भारतीय जनता पार्टी के जेहन में बैठ रही है। मैनपाट में भाजपा नेता पर गाड़ी चढ़ाकर हत्या की कोशिश पूरी तरह से खनिज उत्खनन का मामला है। जमीन विवाद भी एक वजह हो सकती है लेकिन अभी ज्यादा दिन नहीं बीते है हमारे पड़ोसी मध्यप्र्रदेश में खनन माफियाओं ने एक अफसर को ट्रेक्टर से कुचल कर मार डाला था। इसके बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार ने कोई सबक नहीं लिया है। पूरे प्रदेश में खनिज का अवैध उत्खनन हो रहा है और इस विभाग के मंत्री स्वयं डॉ रमन सिंह के होने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर केवल खाना पूर्ति हो रही है। खनन माफियाओं को खुले आम संरक्षण दिया जा रहा है और उनके हौसले इतने बुलंद है कि वे किसी पर भी हमला करने का दम रखते हैं।
उद्योगों द्वारा किए जा रहे अवैध उत्खनन की तो अपनी कहानी है। लाफार्ज बाल्को अल्ट्राटेक से लेकर नवीन जिंदल औरर हीरा ग्रुप सब पर अवैध उत्खनन के आरोप है लेकिन इनके खिलाफ कभी कठोर कार्रवाई नहीं हुई। बल्कि जेब भरने की रणनीति से इन्हें हमेशा ही संरक्षण दिया गया। हालत यहां तक पहुंच गई थी कि भैसा कंछार में भूपेश बघेल जैसे कांग्रेस नेता के साथ मारपीट तक की नौबत आ गई थी लेकिन जब विभाग प्रदेश के मुुखिया के पास हो तो क्या कौन अवैध उत्खनन करने वालों के खिलाफ आवाज उठा सकता है।
पूरे प्रदेश में चल रहे अवैध उत्खनन से हर साल छत्तीसगढ़ को करोड़ो रूपए का राजस्व का नुकसान हो रहा है और खनिज विभाग के अधिकारियों से मिली भगत कर छत्तीसगढ़ को बरबाद करने की साजिश हो रही है। रायगढ़ के पास टीपाखोल में जिस तरह से वैध -अवैध उत्खनन के नाम पर पर्यटन स्थल व सिंचाई विभाग के डेम को बरबाद किया जा रहा है कभी भी गांव वालों या विरोध करने वालों के साथ बड़ी घटना हो सकती है। यहां अधिकारियों पर हमले इसलिए भी नहीं हो रहे है क्योंकि इस विभाग के मुखिया मुख्यमंत्री होने की वजह से कोई अवैध माफियाओं से पंगा लेने की जरूरत नहीं कर रहा है। ईमानदार अधिकारी भी अपनी नौकरी बचाने इन सब बातों को नजरअंदाज कर रहे है। बदत्तर स्थिति में पहुंच चुके हालात पर यदि काबू नहीं किया गया तो कभी भी गंभीर वारदात हो सकती है।

मंगलवार, 29 मई 2012

अब तो भगवान ही मालिक...

अब तो भगवान ही मालिक...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक महिला सिपाही ही गैंग रेप का शिकार हो गई। 15 दिन पहले कटोरा तालाब में हुए गोलीकांड के बाद हमने इसी जगह पर लिखा था कि छत्तीसगढ़ जैसे शांत प्रदेश में कानून व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। भ्रष्टाचार में लिप्त मुख्यमंत्री से लेकर पूरा सरकारी अमला सिर्फ और सिर्फ अपनी तिजौरी भरने में लगा है और आम आदमी के लिए मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
भय भूख और भ्रष्टाचार के नारे से सत्ता में आई रमन सरकार ने अपनी कथनी के ठीक विपरीत करनी करने में लगे हैं। आम आदमी कानून व्यवस्था से भयभीत है। किसानों की जमीने छीन ली जा रही है और बढ़ती मंहगाई से उनके सामने भूखों मरने की नौबत ला दी है जबकि भ्रष्टाचार की कालिख से प्रदेश के मुखिया तक रंगे हो तो फिर इस प्रदेश का भगवान ही मालिक नहीं होगा तो क्या कहा जाए। हम शुरू से ही यह बात कह रहे हैं कि जिस प्रदेश के गृहमंत्री को एसपी निकम्मा कलेक्टर दलाल और दस-दस हजार में थाना बिकने की बात कहनी पड़ रही हो वहां हालत कितने बदतर है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है लेकिन यहां तो बिल्ली के भाग से छींका टूटा है तो धूल तक निगला जा रहा है। कल तक पुलिस पर हमला केवल नक्सली ही करते रहे हैं तब जंगल में लक्ष्य को लेकर बहस होती रहती है लेकिन अब तो छत्तीसगढ़ में हत्या लूट बलात्कार की घटना यूपी बिहार की याद दिलाने लगी है और जब पुलिस वाले ही सुरक्षित नहीं है तब वे किस तरह से दूसरे की रक्षा करेंगे।
रमन सिंह के कार्यकाल में पुलिस वालों का मनोबल गिरा है जब प्रदेश के मुखिया अपराधियों के साथ मंच पर खड़े हो रहे हैं तब भला अपराधियों के हौसले क्यों नहीं बुलंद होंगे।
कल रात जिस तरह से सूचना पाने के बाद भी महिला सिपाही हादसे की शिकार हुई है उसके लिए कहीं न कहीं सरकार भी दोषी है उसने व्यवस्था ही ऐसी बना रखी हैं कि पुलिस का मनोबल टूटने लगा है। अपराधियों को छुड़ाने थाने तक फोन जाता है और कहना नहीं मानने वाले शशिमोहन सिंह जैसों को प्रताडि़त किया जाता हो उस सरकार से क्या उम्मीद की जा सकती है।

सोमवार, 28 मई 2012

निगम में राजनीति...


वैसे तो पूरे प्रदेश में नगरीय निकायों में राजनीति के चलते बुरा हाल है। नगर निगम राजनीति का अड्डा बन चुका है। सत्ता में बैठे मंत्री से लेकर अधिकारियों की राजनीति के चलते आम आदमी अपनी मूलभूत जरूरत से दूर होता जा रहा है और इसकी परवाह किसी को नहीं है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का तो सर्वाधिक बुरा हाल है। यहां महापौर कांग्रेस की है और प्रदेश भाजपा की सरकार होने के वजह से एक दूसरे पर हावी होने की राजनीति के चलते निगम के अधिकारी व कर्मचारी बेलगाम हो गए हैै। महापौर की नहीं चलली तो मंत्री के पास चले जाते हैं और मंत्री नाराज हुए तो महापौर से संरक्षण मिल जाता है। हालत यह है कि निगमायुक्त तक की नहीं सुनी जा रही है। सालों से एक ही पदों पर बैठे निगम के तनखईया के आगे सब बेबस है और इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। कमाई वाली जगह पर बैठने की ललक और झंझट वाली जगह से छुटकारे की राजनीति का शिकार आम आदमी हो रहा है। इस भीषण गर्मी में पानी के लिए राजधानी में त्राहि मचा हुआ है। सुबह से रात तक टेंकरो से पानी की आपूर्ति में करोड़ो रूपए की घपलेबाजी हो रही है। सफाई के नाम पर पार्षद तक लूट मचा रहे हैं और बजबजाती नालियों के चलते कई क्षेत्रों में बिमारियों ने दस्तक शुरू कर दिया है।
अवैध निर्माण को संरक्षण देने में भी पार्षद से लेकर निगम अधिकारियों की भूमिका सामने आ रही है और कब्जा करने वाले बेधड़क आम लोगों का रास्ता रोक रहे है। गोलबाजार, सदर, मालवीय रोड, एमजी रोड जैसे व्यस्ततम इलाकों का तो सबसे ज्यादा बुरा हाल है।
इस सरकार में यही हाल पूरे प्रदेश भर में है, नगरीय निकाय राजनीति का अड्डा बन चुका है इसकी प्रमुख वजह राज्य व केन्द्र्र से मिल रहे बेहताशा पैसा है जिससे अपनी जेब गरम करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जा रहा है और एक दूसरे पर हावी होने की राजनीति से निगम में कार्यरत अधिकारी इसका फायदा उठाने से गुरेज नहीं करते। राजनांदगांव, अंबिकापुर, रायगढ़ से लेकर जगदलपुर में मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने की बजाय दलगत राजनीति का अखाड़ा बन चुका है।
दूसरी तरफ पानी के टैक्स में बढ़ोत्तरी से आम आदमी परेशान है। व्यवसाय के नाम पर लगातार बढ़ रहे टैक्स वसूली से आम आदमी त्रस्त है और भ्रष्टाचार के चलते सुविधाओं से वंचित होती जनता केवल तमाशा देख रही है ऐसे में राजनीति का अड्डा बन चुके निगम को ठीक नहीं किया गया तो आनेवाले दिनों में इसका गंभीर परिणाम होगा।
 

रविवार, 27 मई 2012

उद्योगों की दादागिरी...


छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर रमन सरकार ने उद्योग के लिए रास्ते खोले हैं। उद्योगपति अब अपनी जेब में सरकार को रखने लगे है। खुलेआम कब्जे और पेड़ो की कटाई के साथ भयंकर प्रदूषण फैला रहे उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई करने की सरकार में हिम्मत भी खत्म हो गई है। श्रम कानून का खुलेआम उल्लंघन से लेकर ऐसे कितने मामले हैं जो सरकार का मुंह चिढ़ा रहे हैं लेकिन सरकार तो मानों उनके गोद में बैठी है। रायगढ़ में कल जिंदल समूह के एक उद्योग में जिस तरह से भारी दबाव में कलेक्टर को जांच के लिए भेजना पड़ा और वहां जो कुछ जांच टीम ने किया वह सरकार की असलियत की कलई खोलने के लिए काफी है। जिंदल समूह के रायगढ़ स्थित इस उद्योग को लेकर जब शिकायते बढ़ गई तो भारी दबाव में जिला प्रशासन ने वहां छापे की कार्रवाई तो की लेकिन छापे का नेतृत्व करने वाले जिला प्रशासन के अधिकारी सहायक कलेक्टर गोयल और एसडीएम चौरसिया वहां जाकर जिंदल के एक बड़े अधिकारी के एसी चेम्बर पर बैठ गए। यहीं नहीं न तो शिकायत कर्ताओं को ही साथ रखा और न ही पत्रकारों को ही वहां घुमने दिया गया। जिंदल समूह पर जमीन कब्जे से लेकर प्रदूषण फैलाने तक के अलावा भी ढेरो शिकायते हैं। जिंदल समूह के इस पतरापाली स्थित फैक्ट्री में भारी अनियमितता की भी शिकायत है लेकिन उद्योग समूह ने सब मैनेज कर लिया। अब रिपोर्ट क्या होगा आसानी से समझा जा सकता है।
रायपुर में भी उद्योगपतियों की दादागिरी किसी से छिपी नहीं है। रमन सिंह जगह-जगह उद्योगों की तालाब साफ करने व सौंदर्यीकरण के लिए कहते घूम रहे हैं लेकिन उद्योगपति उनकी बात ही नहीं सुन रहे है। राजधानी के दर्जनभर तालाबों की सफाई करने की बात उद्योगपतियों ने की थी लेकिन कलेक्टर के दबाव के बाद भी कुछ नहीं किया गया और इसके चलते तालाबों की हालत खराब हो गई है।
उद्योगपतियों की दादागिरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करोड़ों रूपए के बिजली का बिल बाकी रहने के बाद भी इनसे वसूली नहीं हो पा रही हैं। अवैध निर्माण से लेकर अवैध कब्जों की शिकायतों पर कार्रवाई की बजाय चंदा लेने में भरोसा ज्यादा है।
           

शनिवार, 26 मई 2012

भाजपाई सद्बुद्धि !


छत्तीसगढ़ में सत्ता में काबिज भाजपाईयों ने पेट्रोल के दाम में बढ़ोतरी को लेकर जिस तरह से कांग्रेस भवन में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया यह आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ को किस दिशा में ले जायेगा यह कहना कठिन है लकिन वह किसी भी हाल में उचित नहीं कहा जा सकता।
ये सच है कि पेट्रोल की बेतहाशा किमत बढऩे से आम आदमी का जीना दूभर हो जायेगा। पहले ही बढ़ी हुई महंगाई ने आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। लोगों में इसे लेकर बेहद आक्रोश है और वे सड़कों तक उतर कर अपना रोष जाहिर भी कर रहे है लेकिन इस सबके बाद भी किसी पार्टी कार्यलय में प्रदर्शन कितना उचित है। आज भाजपाईयों ने पेट्रोल की कीमतों को लेकर कांग्रेस भवन में प्रदर्शन करने की कोशिश की है। राज्य मे भाजपा की सरकार है और उसके किसी निर्णय पर कहीं कांग्रेसी भी कोशिश करने लगे तो फिर क्या होगा?
पश्चिम बंगाल में एक पार्टी के लोग दूसरे पार्टी पर जानलेवा हमला करने से भी गुरेज नहीं करते? और छत्तीसगढ़ में आज भी पार्टी की विचारधारा से परे कांग्रेसी और भाजपाई आपस में मेल-जोल रखते है और ऐसी स्थिति मे पेट्रोल की आग को लेकर राजनैतिक प्रतिद्वंदिता को एक दूसरे से सीधे मुकाबले तक ले जाना कतई उचित नहीं है।
छत्तीसगढ़ मे भाजपा की सरकार है और ऐसी स्थिति मे भाजपाईयों को और भी संयमित होने की जरूरत है। फिर भाजपाई ये क्यूं भूल जाते है कि प्रदेश में उनकी सरकार ने कोयले की कालिख से लेकर न जाने कितने मुद्दे  कांग्रेसियों के  हाथों सौंपा है। इसी पेट्रोल में राज्य सरकार 25 फीसदी वेट ले रही है जबकि दूसरे राज्यों ने अपने लोगों को राहत पहुंचाने वेट में कमी की है और इसी मुद्दे को लेकर कल कहीं कांग्रेसी सीएमहाऊस की बजाय भाजपा कार्यलय को निशाना बनाये तब यहां के सौहाद्र का क्या होगा।
यह परम्परा ठीक नहीं है। और इसे विराम देते हुए भाजपा नेतृत्व को अपने कार्यकर्ताओं के  ऐसे उत्साह पर कार्रवाई करनी चाहिए। अन्यथा छत्तीसगढ़ के इस शांत राजनैतिक फिजा में दूसरे प्रांतों के  कीड़े न पनप सके।
               

शुक्रवार, 25 मई 2012

मोदी और रमन...


मुम्बई में चल रहे भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह की नितिन गडकरी ने तारीफ की,छत्तीसगढ़ भाजपा के लिहाज से यह महत्वपूर्ण है। कोयले की कालिख सहित कई तरह के भ्रष्टाचार में फंसी सरकार की जब आम लोगों में साख गिर रही है तब राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तारीफ एक तरह से रमन विरोधियों को पटकनी देने से कम नहीं है। छत्तीसगढ़ सरकार के काम काज को लेकर भाजपा के रमेश बैस,श्रीमती करूणा शुक्ला, नंदकुमार साय सहित कई लोग नाराज है। कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन रिहाई मामले में सरकार की भूमिका की यहां थू-थू हो रही है वहांं पीठ थपथपाई जा रही है। राजनीति के इस गुढ़ रहस्य को तो आम लोग भी नहीं समझ पा रहे है कि आखिर जिस मामले में सरकार की किरकिरी हो रही है। जिस मुख्यमंत्री के राज में अफसरशाही हावी बताये जा रहे है प्रशासनिक ढीलापन की बात कही जा रहा है। उसी मुख्यमंत्री को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  कुशल प्रशासक बता रहे है।
दरअसल कोयले की कालिख में नीतिन गड़करी का नाम भी जुड़ा है और जब भाजपा में आंतरिक गुटबाजी चरम पर है। मोदी येदिरप्पा,अरूण जेटली, सुषमा स्वराज जैसे लोग आंख दिखा रहे हो तब डॉ.रमन सिंह ही बच जाते है जो नितिन गड़करी के साथ है शायद यह वजह भी मायने रखती है। दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी ने अपनी जिद पूरी करवा  कर ही बैैठक में पहुुंचे। संजय जोशी से उनकी टकराहट और नितिन गड़करी का संजय जोशी को समर्थन का यह पेचिदा मामला मोदी के जिद के आगे  नेस्तनाबूत हो गया और नितिन गडकरी की जबरदस्त हार के रूप में इसे देखा जा रहा है। राजनैतिक विश्लेषक नरेन्द्र मोदी की इस जीत पर हैरान है। और अब तो भाजपा में यह राष्ट्रीय अध्यक्ष के हैसियत भी नापी जा रही है।
कहा जाता है कि यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष ही कमजोर हो तो कोई भी आंख दिखा सकता है फिर नरेन्द्र मोदी तो वैसे भी भाजपा मेें बड़े नेता बनकर उभर चुके है। उनकी लोकप्रियता के आगे नितिन गडकरी कहीं नहीं टिकते है। और येदिरप्पा से पहले ही परेशान नितिन के लिए मोदी से लडऩा आसान भी नहीं था। यही वजह है कि सिडी कांड के लिए चर्चित संजय जोशी को इस्तीफा देना पड़ा। यही वजह है कि मोदी की पीठ नहीं थपथपाने के बाद भी वह हीरो बनकर उभर गये!
               

गुरुवार, 24 मई 2012

आग में घी...


यह आग में घी डालने का काम नहीं है तो क्या है। पहले ही मंहगाई से आहत जनता को जिस तरह से यूपीए सरकार ने अपने तीसरे वर्षगांठ पर पेट्रोल के दरों में बढ़ोत्तरी की है वह आम लोगों में गुस्सा बढ़ाने के सिवाय और कुछ नहीं है।
इस मुल्य वृद्धि का चौतरफा विरोध पर जिस तरह से वित्त मंत्री प्रणय मुखर्जी का पेट्रोल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण नहीं है वाला ब्यान आया वह बेहद गैर जिम्मेदाराना है। यह बात सच है कि तेल कंपनियां ही पेट्रोल की कीमते तय करती है लेकिन सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है कहना सरासर बेईमानी है। यदि ऐसा नहीं तो अब जनता के गुस्से को वह कैसे रोकेगी। केन्द्र सरकार पहले ही घोटाले की वजह से संकट में है। सत्ता में बैठे रहने की मजबूरी को गठबंधन की मजबूरी बताकर अपने पाप को कम करनेे में लगी यूपीए सरकार आखिर कब तक जनता को बेवकूफ बनाते रहेगी।
हर जरूरी चीजों की कीमत लगातार बढ़ रही है आम आदमी का जीना कठिन होता जा रहा है। नीचे से उपर तक फैले भ्रष्टाचार से नौकरशाह और जनप्रतिनिधि गुलछर्रे उड़ा रहे है और आम आदमी बदतर जीवन की ओर चला जा रहा है। आखिर सरकारे होती किसलिए है। नियंत्रण में नहीं है तो नियंत्रण के लिए कानून क्यों नहीं बनना चाहिए। आखिर जनता को उसके मौलिक अधिकार से वंचित रखने की कोशिशें क्यों होनी चाहिए।
राजनैतिक तिकड़म के चलते जब सरकार बगैर बहुमत के  होते हुए चल सकती है तब पेट्रोल की कीमतों पर वृद्धि रोकने राजनैतिक तिकड़म का सहारा क्यों नहीं लिया जा रहा है। यह ठीक है कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के चलते कई चीजों में सब्सिडी की वजह से सरकार को घाटा उठाना पड़ रहा है लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि खुद भ्रष्टाचार करके सात पीढ़ीयों की व्यवस्था कर लो और आम  आदमी को मंहगाई से मार डालो। पेट्रोल की कीमतों में हुई यह वृृद्धि आम लोगों का गुस्सा बढ़ाने वाला है। भले ही ममता नहीं मुलायम जयललीता नहीं मायावती से समर्थन पाकर यूपीए अपना सरकार बचा ले लेकिन वह लोगों के गुस्से से कैसी बचेगी।
                                  

बुधवार, 23 मई 2012

निजी शिक्षण संस्थानों पर उठते सवाल...


इस बार फिर बारहवी के रिजल्ट में सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूल फिसड्डी साबित हुए है। पिछले साल भी कमोबेश यही स्थिति रही  है लेकिन यह बात सरकार को दिखाई नहीं देती  और निजी स्कूल माफियाओं से होने वाली अवैध कमाई के चलते सरकारी स्कूलों को बर्बाद करने का षडयंत्र चल रहा है।
दरअसल शिक्षा माफियाओं ने तामझाम कर एक ऐसी लकीर खींच दी है कि मध्यवर्ग तक इससे प्रभावित है और आज जब एक रिक्शावाला या मजदूर तपके के लोग भी अपने बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा देना चाहते है। तब भला सरकार अपनी संस्थानों में अंग्रेजी शिक्षा क्यों शुरू नहीं करना चाहती यह घोर आश्चर्यजनक है।
शिक्षा माफिया का दबाव सरकार पर है और अब यह साफ दिख रहा है। जब हर साल सरकारी स्कूलों का परिणाम निजी स्कूलों से बेहतर हो तब सरकार का यह रवैया साफ बताता है कि सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियों को केवल अपनी जेब गरम करने से मतलब है।
छत्तीसगढ़ में शिक्षा माफियाओं ने चारों तरफ अपना पैर पसार लिया है और सरकार उनके इशारे पर भले ही नहीं नाच रहे हो लेकिन सरकारी अधिकारियों का एक बड़ा समूह निजी स्कूलों को बढ़ावा देने सरकारी स्कूलों में गड़बडिय़ां कर रहे है। लेकिन इससे सरकार की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती और सरकारी स्कूलोंं के लिए कहीं न कहीं सरकार की नीति व जनप्रतिनिधि भी दोषी है। केवल अंग्रेजी शिक्षा की वजह से ही निजी स्कूलों का भाव बढ़ा है और सरकार यदि अपनी संस्थानों में अंग्रेजी शिक्षा प्रारंभ कर दे तो आधे से ज्यादा निजी शिक्षण संस्थान बंद हो जायेंगे? जहां आम आदमी टाई,ड्रेस,बेल्ट,जूता,मोजा,कॉपी-किताब के नाम पर लूटा जा रहा है। लकिन सरकार को जानबुझकर इस तरफ से आंख बंद किये हुए है। निजी शिक्षण संस्थानों की लूट बढ़ते ही जा रही है जबकि इस पैमाने पर  वहां पढ़ाई नहीं होती यह बात हर आदमी जानता है कि निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई उतनी अच्छी नहीं होती। शिक्षकों को शोषण होता है और यहा के 90 फीसदी बच्चे कोचिंग व ट्यूशन पर निर्भर होते है। जबकि सरकारी स्कूलों के 10 फीसदी बच्चे ट्यूशन व कोचिंग का सहारा लेते है और इसके बाद भी रिजल्ट निजी स्कूलों से बेहतर आता है। ऐसे में सरकार को नये सिरे से शिक्षा नीति बनानी होगी।
               

मंगलवार, 22 मई 2012

घोर निराशाजनक सरकार.


यू पी ए. के तीन साल पूरे हो गये पहले तो हमने सोचा था कि इस पर कुछ नहीं लिखेंगे। आखिर तीन साल में सरकार ने ऐसा कुछ किया ही नहीं कि कुछ लिखा जाए। गठबंधन में बैठी ममता बेनर्जी ने वामदलों को हराने की खुशी में आपे से बहार है और देश के प्रधानमंत्री तो कुछ बोल ही नहीं सकते। वित्त मंत्री ने जब यह कह दिया कि अगले दो सालों तक गठबंधन की मजबूरी में बंधे रहेंगे तो फिर इस सरकार पर क्या लिखा जाए।
घोटाले-भ्रष्टाचार पर कोई कितना भी लिखे और फिर यह सब यूपीए में ही नहीं सभी राज्य की सरकारें कमोबेश घोटाले में फंसी हुई है। छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक कि सरकार कोयले की कालिख में पूति है। सत्ता पाने का मतलब  अपने आने वाले सात पीढिय़ों की व्यवस्था करना रह गया हो। सरकारी नौकरी का मतलब बंधी-बंधाई तनख्वाह से आगे की कमाई का हो तब अन्ना-बाबा का तानाशाही रवैया कितना अनुचित कहा जायेगा?
यूपीए सरकार की गिरती साख के बीच मनमोहन सिंह ने जरूर रिकार्ड बनाया है नेहरू गांधी के बाद लम्बे समय तक प्रधानमंत्री के पद पर बने रहने का। यह रिकार्ड आगे भी चलता रहेगा। आखिर सत्ता शीर्ष पर अब राजनैतिक पार्टियां दो ही तरह के लोगों को पसंद करती है या तो वे कुछ न करे या फिर जरूरत से ज्यादा करें।
लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे निराशाजनक बात यह है कि सत्ता में बैठने लोगों को केवल 40-42 फीसदी लोग ही पसंद करते है शेष 58-60 फासदी लोग तो विरोध मेें मत देते है लेकिन विधायक सांसदों की संख्याबल के कारण सत्ता मेे बैठ जाते है।
पूरा देश भ्रष्टाचार की चपेट मे है। रमन सिंह से लेकर मनमोहन सिंंह पर भ्रष्टाचार की कालिख पूति हुई है लेकिन बहुमत साथ है तो फिर अन्ना-बाबा जैसे लोग चिखतेे रहें क्या फर्क पड़ता है? इन तीन सालों में यूपीए का तीस हाल हो चुका ह। गठबंधन की मजबूरी की बात कहकर हर मामले को टाल दिया जाता है। दरअसल यह गठबंधन नहीं सत्ता में बने रहने की मजबूरी है लेकिन सच बोलने से परहेज करने के लिए नई परिभाषा गढ़ दी जाती है। वरना देश हित से ज्यादा सभी को सिर्फ पार्टी हित सर्वोपरि हैै।
                          

सोमवार, 21 मई 2012

सरकार की सोच...


प्रदेश के राजा ने कह दिया कि वे नक्सलियों से कहीं भी बातचीत के लिए तैयार है लेकिन अभी बातचीत का महौल नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा  कि बगैर बातचीत के शांति संभव नहीं है।
इस बयान की आखिरी लाईन ही महत्वपूर्ण है और सरकार भी का बगैर बातचीत के शांति की बात उसकी कमजोरी को दर्शाता है या सरकार के नक्सलियों के प्रति पल-पल बदलते सोच को बताया है यह कहना कठिन है। एक तरफ सरकार शांति वार्ता की बात करती है  तो दूसरी ओर सेना की बात से गुरेज नहीं करती। मुखिया कुछ और कहते है। गृहमंत्री और पुलिस वाले भी अलग-अलग बात करते है ऐसे में नक्सली समस्या का हल कैसे होगा ।
नक्सली लगातार आम लोगों को मार रहे है, खुलेआम लाशें बिछाई जा रही है और आदिवासी गांव-घर छोड़ शिविरों में रहने मजबूर है और सरकार की सोच में बार-बार तब्दिल हो रही है। हर एक घटना के बाद सरकार की बदलती सोच ये साबित करती है कि इस समस्या के इलाज का न तो वे तरीका जानते है और न ही इसके  ईलाज के कोई ठोस योजना ही बनाते है!
छत्तीसगढ़ में करीब 17 जिलों में नक्सलियों की प्रभाव है और वे यहा मार-काट कर पैसे कमाने का काम कर रहे है या तो पुलिस वाले मारे जा रहे है या आम आदमी। सरकार अपने 7-8 साल के शासन में जर्दनों बार रणनीति बदली है। कभी वह सलवा जुडूम चलाती है तो कभी वह सेना की बात करती है। कभी वह शांति वार्ता की बात करती है तो कभी राष्ट्रीय समस्या के रूप में पेश करती है। कोई स्थाई सोच नहीं रख पाने का दूष्परिणाम आम आदमी को भूगतना पड़ रहा है।
कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के मामले वह कुछ करती है तो ग्रामीणों के अपहरण पर कुछ और करती है। आतंक के साये में जीतें लोगों की दुविधा यह है कि वह कहां जाए। कब तक उपनों की मौत पर आंसू बहाये और सरकार से उम्मीद भी अब टूटने लगी है । कलेक्टर एलेक्स अपहरण कांड में सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है सरकार के पास झुठ का खजाना है और वह इसे इस्तेमाल कर अपने राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति करना चाहती है। अब तो एक ही सवाल है कि यदि कलेक्टर की रिहाई हो सकती है तो शांति के लिए नक्सलियों से बातचीत क्यों नहीं हो सकती? नक्सलियों और सरकार के बीच क्या कुछ चल रहा है? क्यों नक्सली लूट-खसोट बंद नहीं कर रहे है? नक्सली क्या चाहते है जिसे सरकार पूरा नहीं कर रही है। बार-बार सरकार ब्यान क्यों बदल रही है।
                  

रविवार, 20 मई 2012

पारा का चढऩा...


राजधानी ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ में सबका पारा चढ़ा हुआ है। सूर्य के रौद्र रूप से लोग जहां परेशान है और क्रांकिट के जंगल में तब्दिल होते योजनाओं को कोस रहे है तो राहुल गांधी के  दौरे के बाद कांग्रेसियों का पारा चढ़ा हुआ है। मैक्लाड तो स्टेज पर ही चढ़ गई और इस्तीफा तक दे डाला तो जोगी,पटेल,महंत और चौबे का पारा भी खुब चढ़ गया है और राहुल गांधी के खिलाफ भले ही कुछ न बोल पा रहे हो लेकिन मन ही मन कोस जरूर रहे होंगे कि आखिर उन्हें बुलाने की योजना क्यों बनाई।
पारा तो भाजपा ही नहीं पूरे सरकार का चढ़ा हुआ है। राहुल की वजह से कम सौदान सिंह और नक्सलियों की वजह से ज्यादा हो सकता है। लगातार नक्सली हमले और भ्रष्टाचार के आरोप ने उनका पारा चढ़ा दिया है। भ्रष्टाचार के नाम पर तो वह तिलमिलाने लगी है ऐसे में राहुल के आने पर सुशासन का विज्ञापन से अपनी बौखलाहट सामने ला बैठे।
सौदान सिंह अलग अनुशासन का डंडा पकड़े  हुए है। संघ के रीति नीति के विपरित चल रही सरकार पर संघ की खामोशी की वजह सौदान सिंह ही है। आखिर संघ  कैसे कहे  कि उनके लोग इतने भ्रष्ट कैसे हो गये । बचपने से साखा लगाने की शिक्षा में आखिर क्या कमी रह गई है। पारा तो संघ का भी चढ़ा हुआ है लेकिन मोदी और येदिरप्पा को संभालने में लगे कि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे प्रदेश पर ध्यान लगाये।
आदिवासियों का पारा भी चढ़ा है। वे राजधानी में हुए अपनी मार-कुटाई को नहीं भूल पा रहे है और उन्हें कांग्रेस पर भी बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है। हरिजन तो पहले ही अपना पारा चढ़ाये हुए है। उनके चढ़े पारे की नजर से ही सरकार के मुखिया गिरोधपुरी नहीं जा सके थे।
नक्सलियों का पारा तो गर्मी के साथ लगातार चढ़ रहा है। अपहरण और हत्या की वारदातों को लगातार अंजाम दे रहे है। उन्हें मालूम है कि सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती 10 हजार करोड़ का सलाना धंधा है उसकी रक्षा करने के  लिए लगातार पारा चढ़ा रहे है।
इन सबके बीच पारा चढऩे की चिंता में मंत्रियों का पारा चढ़ा हुआ है। डेढ़ साल बाद चुनाव होने है और उसकी तैयारी और खर्चे को सोचकर उनका पारा चढऩा स्वाभाविक है।
पारा यदि नहीं चढ़ रहा है तो वह आम छत्तीसगढिय़ा ही है जिनका पारा नहीं चढ़ पा रहा है। खुद की जमीन से हकाले जाने के बाद नौकरी में भी जगह नहीं देने के षडय़ंत्र के बाद भी उनका पारा नहीं चढ़ रहा है।                                          
                                      

शनिवार, 19 मई 2012

कुत्ते की दूम...


छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी आये अपनों से मिले और चले गये। तीन दिनों के जद्दोजहद के बाद कांग्रेस किस तरह से सत्ता हासिल करेगी यह तो वहीं जाने लेकिन इन तीन दिनों का आखिरी अध्याय कांग्रेस के बड़े नेताओं के लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं रहा। गुटबाजी और महत्वकांक्षी मेंं डूबे बड़े नेताओं ने एक दूसरे को निपटाने में कोई कमी नहीं की। अध्यक्ष अपनी चाल चल रहे थे तो नेता प्रतिपक्ष अपनी चाल,विद्याचरण शुक्ला की अपनी पीड़ा तो मोतीलाल वोरा का अपना मजा। और पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की पीड़ा से किसी को कोई लेना-देना नहीं रहा। पहले दो दिन अपने को आपस में बांधने की कोशिश तीसरे दिन जिस तरह से सामने आई वह कांग्र्रेस के लिए अच्छे संकेत कतई नहीं कहा जा सकता। मैक्लाड की इस्तीफे की कहानी छोड़ भी दे तो जिस तरह से गुटबाजी दिखाई दी है उस पर राहूल गांधी भी क्या कर पायेंगे यह तो वही जाने। लेकिन यह तय है कि अजीत जोगी,विद्याचरण शुक्ला,नंदकुमार पटेल और रविन्द्र चौबे में सामनजस्य बिठाने में प्रभारी महासचिव बीके हरिप्रसाद कमजोर साबित हो चुके है और उन्होंने अपनी कमजोरी को ढांकने जिस तरह से राहुल गांधी को मीडिया से दूर रखा यह निहायत गैर राजनीतिक फैसला रहा। भले ही इस फैसले पर प्रदेशाध्यक्ष और नेताप्रतिपक्ष की सहमती रही हो लेकिन राहुुल गांधी को वास्तविक्ता से दूर रखना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित होगा।
बकौल राहुल,गुटबाजी छोड़ दो,कांग्रेस अपनी करतूतों से हारती है और पैसे वालों के सामने मेहनत टिकती है, जैसी बातें किसी नौटंकी से कम नहीं है। हालांकि गुटबाजी का प्रशिक्षण कार्यक्रम के पहले दिन से ही दिखने लगा था जब हरिप्रसाद व नंदकुमार पटेल अपनी चला रहे थे और अजीत जोगी अपनी चाल चल रहे थे। वीसी,नेताम,कर्मा और न जाने कितने लोग तब मन ही मन सोच रहे होंगे कि आने दो चुनाव बताते है। लगभग यही सोच अजीत जोगी की भी रही हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ये सच है कि नंदकुमार पटेल के अध्यक्ष बनने के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस की सक्रियता बढ़ी है लेकिन वे उस घेरे को नहीं तोड़ पा रहे है जो कांग्रेस की हार की वजह मानी जाती है। पैसों का खेल अब भी भारी दिख रहा है और चंदा दबाने वालों को बांटने की जिम्मेदारी देने से क्या हश्र हो रहा है यह सबके सामने है। कार्यकर्ताओं ने राहुल के सामने जिस तरह से पदाधिकारियों को लेकर आक्रोश दिखाया है वह आगे भी मायने रखेगी। कुल मिलाकर राहुल गांधी के दौरे ने कांग्रेस की आपस खींचतान को उजागर किया ही है भाजपा को खुश होने का मौका भी दे दिया है।
                            

शुक्रवार, 18 मई 2012

अब कौन सुरक्षित...


नक्सलियों ने हमला तेज कर दिया है। अब वे मंत्रियों के घर तक पहुंचने लगे है और अब इस प्रदेश में सुरक्षित कौन है कहना कठिन है। ज्यादा दिन नहीं बीते है जब डॉ. रमन सिंह ने नक्सली प्रभावित जिले में ग्राम सुराज चलाते वाहवाही लुटी थी। तब पूरी भाजपा व उसकी सरकार ने यह प्रचारित किया था कि नक्सलियों की मांद में सरकार घुस गई है। छत्तीसगढ़ पुलिस के तमाम उच्च अधिकारियों को भी यह बात कहे ज्यादा दिन नहीं बीता है कि हम अबुझमाड़ के 15 फीसदी जगह से नक्सलियों को खदेड़ चुके है।
इन दो दावों से जनता आश्वस्त भी नहीं हो पाई थी कि कलेक्टर का अपहरण हो गया। तब सरकार के पास कहने के लिए शब्द थे कि कलेक्टर खुद मरने गया था। लेकिन अब जब कोण्डागांव में प्रदेश की मंत्री लता उसेंडी के घर हमला हुआ तब सरकार क्या यह कह पायेगी कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहोगे तो हमला तो होगा या फिर इसकी गंभीरता को समझेगी।
अब तक नक्सली केवल जंगलों पर औकात दिखाते रहे हैं तब सरकार के पास सफाई का पूरा मौका होता था लेकिन अब तो यह सरकार की नाकामी की इंतीहा हो गई है। नक्सली, मंत्रियों के घरों तक में हमला कर रहे है। लता उसेंडी के घर तक पहुच जाना ही सरकार के लिए  बड़ी चुनौती है और अब भी सरकार ने अपने आसपास के नकारा व मीठलबरा अधिकारियों को नहीं हटाया तो आगे इससे भी बड़ी वारदात हो सकती है। सरकार को राजधानी में मौजूद सीनियर अधिकारियों को तत्काल नक्सली क्षेत्र में पदस्थ करना चाहिए। सिर्फ पुलिस कप्तान बदलने से मामला नहीं सुलझने वाला है सीनियर आईएएस को भी नक्सली क्षेत्र में पदस्थ करनेे की जरूरत है।
इन सबके अलाव डॉ. रमन सिंह को अपने चंडाल चौकड़ी के लोगों का भी परिक्षण करना चाहिए क्योंकि अब तक वे इन्हीं चंडाल चौकड़ी की राय लेते रहे है और इससे सरकार के हाथ सिर्फ बदनामी ही हाथ लगने वाली है यह साबित हो चुका है।
हम यहां नक्सलियों की ताकत की बात नहीं कर रहे है और न ही सरकार की नाकामी गिना रहे है। लेकिन जिस तरह से सरकार चल रही है उसे कतई ठीक नहीं कहा जा सकता है। डॉ.रमन सिंह व उनके मंत्रियों को यह सोचना ही होगा कि यही हाल रहा तो बंदूक की गोली का शिकार और कौन-कौन हो सकते हैं।
                              

गुरुवार, 17 मई 2012

चुनाव की छटपटाहट


अभी छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में पूरे डेढ़ साल है लेकिन राजनैतिक दलों की छटपटाहट साफ दिखनेे लगा है। कांगे्रस जहां सत्ता छिनने में लगी है तो भाजपा में सत्ता बचाने की छटपटाहट साफ दिख रहा है। पिछले 7-8 सालों में छत्तीसगढ़ में बैठी भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सरकार का प्रदर्शन को लेकर भाजपाई खुद परेशान है। कोयले की कालिख में पूति सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप आम लोगों के जुबान पर है ऐसे में आदिवासियों की पिटाई और हरिजन अत्याचार के साथ किसानों से वादा खिलाफी ने रमन सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा दी है।
भाजपा के  सामने एक दिक्कत गुटबाजी और असंतोष भी है। प्रदेश के दिग्गज भाजपाई चाहे रमेश बैस हो या जूदेव या फिर नंदकुमार साय हो या फिर करुणा शुक्ला सरकार के काम काज के तरीकों से बेहद नाराज है। यह अलग बात है कि भाजपा में अनुशासन का डंडा भी जबरदस्त है इसलिए विवाद मूर्त रूप नहीं ले पा रहा है। लेकिन भीतर ही भीतर सुलग रहे असंतोष ने कहीं विधानसभा में अपना असर दिखाया तो सत्ता बचा पाना मुश्किल हो जायेगा।
भ्रष्टाचार के अलावा कानून व्यवस्था को लेकर भी रमन सरकार कटघरे में है। खासकर कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन अपहरण कांड को लेकर तो डॉ.रमन सिंह पर नक्सलियों से समझौते के जो आरोप लगे है वह रमन सिंह की छवि को लेकर भाजपा में चिंता स्वाभाविक है।
दूसरी तरफ तमाम गुटबाजी के बाद भी नंदकुमार पटेल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में नये सिरे से उत्साह तो जगा है लेकिन बड़े नेताओं की गुटबाजी किस हद तक जायेगी यह कहना कठिन है। हालांकि दस साल के वनवास से चिंतित कांग्रेसी चुनाव में गुटबाजी भुलाकर सत्ता वापसी का दावा तो कर रहे है लेकिन यह कितना कारगर होगा कहना कठिन है।
दोनों ही पार्टी इस बात को जानते है कि छत्तीसगढ़ में सरकार पर वहीं बैठेगा जो बस्तर-सरगुजा फतह करेगी। ऐसे में बस्तर को लेकर दोनों ही पार्टियों की छटपटाहट स्वाभाविक है। बस्तर कांग्रेस में जहां गुटबाजी के चलते कांग्रेस की हालत खराब रही है तो आदिवासियों की पिटाई और नक्सलियों के बढ़ते प्रभाव से भाजपा भी बुरी तरह घिर गई है ऐसे में मैदानी इलाकों में भाजपा अधिकारिक जोर देना तो चाहती है लेकिन किसानों की नाराजगी और हरिजनों की नाराजगी को दूर करना ही होगा।
                     

बुधवार, 16 मई 2012

कहां है छत्तीसगढिय़ा...


जिस तरह से छत्तीसगढ़ में रमन राज का काम काज चल रहा है उसके बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि छत्तीसगढ़ राज क्या इसी दिन के लिए बनाया गया था। जहां तक हमारी जानकारी में छत्तीसगढ़ की मांग की वजह छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा प्रमुख रही है लेकिन राज बनने के  बाद भी शोषण जारी है तो फिर आम छत्तीसगढिय़ा कर क्या रहे है। रोज खबरें आ रही है कि किस तरह से छत्तीसगढिय़ों को प्रताडि़त किया जा रहा है। ताजा विवाद नौकरी का है जहां पूरी सरकार साजिशपूर्वक छत्तीसगढिय़ों को नौकरी से वंचित करने में आमदा है।   पीएससी से लेकर छोटे-बड़े सभी नौकरी में छत्तीसगढिय़ों को साजिशपूर्वक भगाया जा रहा है और दूसरे प्रांत के लोगों को प्राथमिकता दी जा रही है। नियमों की अनदेखी कर सरकार में बैठे प्रमुख लोग और अफसर साजिश रचकर छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा कर रहे है और छत्तीसगढिय़ा जनप्रतिनिधि खामोश है।
सिर्फ नौकरी ही नहीं हर क्षेत्र में छत्तीसगढिय़ों की घोर उपेक्षा की जा रही है और छत्तीसगढियों का राज मांगने वाले नेता दो चार सौ के चक्कर में पड़े है। हालत यह है कि बस्तर से लेकर सरगुजा तक छत्तीसगढिय़ों की जमीनें छीनी जा रही है। यहां तक की नई राजधानी के निर्माण के नाम पर भी केवल छत्तीसगढिय़ों की जमाने छिनी गई और बाहरी लोगों की जमीने बचाने साजिश रची गई।
छत्तीसगढ़ राज निर्माण की प्रमुख वजह को सरकार ने जिस तरह से साजिशपूर्वक दरकिनार किया वह शर्मनाक है। लेकिन इस बारे में अपने को छत्तीसगढिय़ा नेता कहलाने वाले भी खामोश है।
क्या यह नहीं सोचना चाहिए कि आखिर छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा कब तक की जाती रहेगी। क्या कांग्रेस-भाजपा से जुड़े छत्तीसगढिय़ां नेताओं का इस माटी के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है और आम छत्तीसगढिय़ा अपने शोषण के खिलाफ कब खड़े होंगे। ये ऐसे सवाल है जो छत्तीसगढ़ की दशा और दिशा को रेखांकित करते है। छत्तीसगढिय़ों के खिलाफ साजिशपूर्वक जिस तरह से नौकरी से लेकर घर द्वार, खेत खार छिनने की कोशिश हो रही है । और यह कब तक बर्दाश्त किया जा सकता है।
सारे नियमों को दरकिनार कर लूट-खसोट में लगी सरकार ने जिस पैमाने पर जल-जंगल और जमीन को नुकशान पहुंचाया है वह अंयंत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा। विकास के नाम पर भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है और आम छत्तीसगढिय़ा के बजाय बाहरी को प्राथमिकता से छत्तीसगढ़ अपराधगढ़ बनता जा रहा है
               

मंगलवार, 15 मई 2012

राजधानी है भाई...


अब जाकर सही मायने में अपना रायपुर राजधानी बना है वरना रायपुर को जानता कौन है। नक्सली आतंक की घटना बस्तर में होता थी और लोग बेवजह रायपुर का नाम लेते है। नेशनल वालों को मालूम नहीं है कि रायपुर से बस्तर इतनी दूर है और वहां चल रहे नक्सली मार-काट का यहां कोई लेना देना नहीं है लेकिन वे तो पेले पड़े है।
रायपुर अब जाकर राजधानी का शक्ल अख्तियार कर रहा है। अब दूसरी राजधानी के तरह यहां भी गोलियां चलने लगी है। बलात्कार,लूट,डकैती,चोरी बढ़ गई है और अब हमे भी नेशनल खबर में आने से कोई नहीं रोक सकता।
नेशनल खबर में रायपुर को लाने के लिए राजधानी वासियों को सरकार और पुुलिस विभाग को धन्यवाद करना चाहिए लेकिन लोग बेवकूफ है बेवजह सरकार को कोस रहे है। कानून व्यवस्था को बदतर कहना सरकार को गाली देना है जबकि इसमें पुलिस का क्या दोष है। उनका सारा वक्त तो नेताओं और अधिकारियों की खुशामद में गुजर जाता है इस सबके बीच समय बचा तो यातायात सुधारने में लग जाता है। यातायात सुधारे जयेंगे तो वसूली भी जरूरी है आखिर सरकार इतनी तनख्वाह नहीं देती कि घर-परिवार चलाया जा सके।
आजकल बेवजह कोसने का चलन बढ़ गया है। हर आदमी अपना फ्रस्टेशन सरकार पर निकालता है और पुलिस तो मानों गाली खाने के लिए ही बना है। अपना फ्रस्टेशन निकालने में लोग भूल जाते है कि पुलिस के पास कोई जादू की छड़ी तो है नहीं कि नक्सलियों की हथियार तस्करी की खबर उसे लग जाये। और फिर भंडाफोड़ तो पुलिस ने ही किया चाहे वो हैदराबाद के ही क्यों न हो। लेकिन लोग यहां भी मीन मेख निकालने में लगे रहते है।
राजधानी वालों को समझना चाहिए कि यहां पुलिस का काम केवल जूआं सट्टा पकडऩा बस नहीं है या आपराधियों को पकडऩे बस का  काम नहीं है। राजधानी में जरूरी काम तो वीआईपी ड्यूटी का सफल संचालन है। और राजधानी की पुलिस का परफारमेन्स का जवाब नहीं है। दूसरी जगह मंत्री चप्पल खा रहे है हमारे यहां पुलिस के रहते किसी की मजाल नहीं है। रहा सवाल गोली,हत्या,लूट, डकैती का तो सबका एक साथ भंडाफोड़ कर देंगे कोई पकड़ में तो आये। राजधानी के साथ यह बुराई  आती ही है परेशान होने की जरूरत नहीं है। जब राजधानी मांगते समय नहीं सोचा तब अब क्यों जबरिया पुलिस को गाली दे रहे है।

सोमवार, 14 मई 2012

ये कैसा समझौता...


डॉ.रमन सिंह ने कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन की रिहाई में नक्सलियों से समझौते की जो कहानी सुनाई थी वह अब भी तार-तार हो गई है। झूठ सबके सामने है? और नक्सलियों की मार-काट जारी है। सरकार समझौैते के नाम पर माला जप रही है और आम आदमी सोचने मजबूर है कि समझौते क्या हुआ है। क्या सचमुच मेनन की रिहाई में के एवज में रूपयों का लेन देन हुआ है और मिशन 2013 के फतह का खेल हुआ है?
समझौता वार्ता के दौरान नक्सली हिंसा को यह कहकर टालने की कोशिश हुई कि सूचना नहीं पहुंंच पाने की वजह सेे सब हो रहा है लेकिन अब क्या हुआ? सरकार ने क्या समझौता कर लिया है कि कलेक्टर बस को छोड़ दो चाहे जिसे जैसा मारना चाहो छूट है। हम नहीं पकड़ेंगे? और पकड़ेंगे भी तो उन्हें छोड़ देंगे?
वास्तव में डॉ.रमन सिंह नक्सली मामले में पूरी तरह फेल हो चुके है। उनकी सत्ता में बैठने के बाद नक्सलियों ने न केवल अपने क्षेत्र का विस्तार किया है  बल्कि हिंसक वारदातों में भी बढ़ोतरी की है। सलवा जुडूम के बीमारी ने गांव के गांव उजाड़ दिये और डॉ.रमन सिंह व पूरी भाजपा अपनी कमजोरी छिपाने केन्द्र से गुहार लगाकर शब्दो को लच्छेदार चासनी में लपेट रही है।
कलेक्टर के अपहरण का ड्रामा अब खत्म हो चूका है। डॉ. रमन सिंह के सरकार का नया ड्रामा चल रहा है आबकारी एक्ट में बंद गुडिय़ारी के युवक को नक्सली समझौैैते के तहत छोडऩे ड्रामा भी खत्म हो गया है लेकिन नक्सली कोई ड्रामा नहीं कर रहे है वे लगातार मारकाट मचा रहे है। सरकार की नीति से पुलिस का मनोबल कम हुआ है।
ऐसी स्थिति में केन्द्र की खामोशी भी आश्चर्यजनक है। सिर्फ करोड़ो रुपये देकर ऐसा सरकार के  भरोसे जवानो और आम लोगों को छोड़ दिया है जो नक्सलियों को छोडऩे एवज में समझौते  कर रहे है। जान माल की हिफाजत करने में पूरी तरह से असक्षम सरकार के बारे में भी केन्द्र ही नहीं अब तो आम लोगों को भी सोचना होगा कि आखिर सरकार क्यों चूक रही है। इतने लोगो की मौत बाद भी सरकार केवल भाषणों में नक्सलियों से लडऩे का दावा कर रही है। आखिर नक्सली क्यों छोड़े जाने चाहिए? क्या जवानों की कुर्बानी व्यर्थ है या सरकार के कहने पर सलवा जुडूम चलाने वाले बेवकूफ थे। क्या सरकार पर भरोसा करना गलत है? यह सवाल अब चर्चाओं में है और इसका जवाब डॉ.रमन सिंह को देना ही होगा।
                   

रविवार, 13 मई 2012

सरकार और उद्योगपति...


छत्ततीसगढ़ में उद्योगपतियों की दादागिरी पर सरकार की खामोशी का क्या अर्थ है यह तो वही जाने लेकिन आम लोगों में जिस तरह से चर्चा है उसका लब्बोलुआब तो यहीं है कि जब आप गलत होंगे तो आप किसी को गलत करने से नहीं रोक सकते है न ही अच्छे कार्य के लिए दबाव भी बना  सकते है।
यहीं वजह है कि पैसों के दम पर उद्योगपति मनमानी कर रहे है और सरकार में बैठे अफसर-मंत्री उनके सामने दूम हिलाते नजर आ रहे है। छत्तीसगढ़ में उद्योगों के लिए रमन सरकार ने जिस तरह से जमीने व दूसरी सुविधाएं दी इसके एवज में उद्योगों ने इस प्रदेश को क्या दिया। इस पर यहां बाद में चर्चा करेंगे लेकिन राजधानी के  दर्जन भर तालाबों की सफार्ई व सौंदर्यीकरण से उद्योगों ने जिस तरह से मुंह मोड़ा है वह गाल में तमाचा मारने से कम नहीं है ।
राजधानी के तालाबों के सौंदर्यीकरण के इस योजना को उद्योगपतियों ने पलीता लगा दिया और आज तालाब के पास रहने वाले लोग परेशान है। उनकी निस्तारी की सुविधा भी सरकार नहीं कर पा रही है तालाबों की गंदगी बजबजाने लगी है और सरकार व नगर निगम यह सोचकर हाथ पर हाथ धरे बैठी है कि यह सब उद्योगपति करेंगे।
उद्योगपति के यह रूख के पीछे की कहानी क्या है यह तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि उसने सरकार से मिली सुविधा का नगद भुगतान कर दिया है इसलिए वे सरकार मेंं बैठे लोगों को आंख दिखाते है और अवैधानिक व आपराधिक कृत्य में लिप्त है।
छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन राज के आने के बाद उद्योगपतियों की दादागिरी व आपराधिक कृत्य किसी से छिपा नहीें है। अवैध निर्माण,अवैध उत्खनन,पेड़ों की कटाई,जमीन पर कब्जा और दादागिरी चरम पर है लेकिन सरकार को यह सब नहीं दिख रहा है। सरकार को यह सब क्यों नजर नहीं आ रहा है यह तो बाद की बात है। इतनी मनमानी के बाद सरकार जिस तरह से उद्योगों के लिए अपने बनाये कानून को नजरअंदाज या अवहेलना कर रही है यह साबित करता है कि पैसों की ताकत सरकार से बड़ी हो गई है। उद्योगों को जमीन देने जनसुनवाई के नौटंकी से लेकर बिजली बिल की वसूली और टेक्सों में माफी तक दी जाती है लेकिन इतनी सुविधा पाने के बाद भी राजधानी के तालाबों की सफाई जैसे काम में वह पीछे हट जाती है और सरकार के लोग गिड़गिड़ाते रहे तो ऐसी सरकार के होने या न होने का फायदा क्या है।