बुधवार, 5 मई 2010

सिर्फ अनुदान लेने से काम नहीं चलेगा...


छत्तीसगढ़ इन दिनों भीषण गर्मी की चपेट में हैं। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मचा हुआ है और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी पानी बचाने की अपील करते नहीं थक रहे हैं लेकिन राजधानी में ही उनके अपील का किस तरह धाियां उड़ाई जा रही है इससे वे शायद वाकिफ भी होंगे। गौरव पथ निर्माण के नाम पर ऐतिहासिक तेलीबांधा तालाब पाटा जा रहा है। यहां से मंदिर तक हटाई गई लेकिन गौरवपथ का निर्माण सड़क के दूसरी तरफ से चौड़ा कर तालाब बचाया जा सकता था। तेलीबांधा तालाब कहने को तो 42 एकड़ क्षेत्र में फैला है लेकिन वास्तविकता इससे परे है एक तरफ गौरवपथ के नाम पर तालाब पाटी जा रही है तो दूसरी ओर अवैध कब्जाधारियों ने इस ऐतिहासिक तालाब पर कब्जा कर रखा है। ऐसे में मुख्यमंत्री की करनी और कथनी में फर्क का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि राजधानी में सिर्फ यही एक तालाब पाटे जा रहे हैं आमापारा बाजार स्थित कारी तालाब भी पाटा जा रहा है। इस तालाब को पाट कर बिल्डिरों को बेची जाएगी और कांक्रीट का एक और महल तैयार कर लिया जाएगा। राजधानी में पानी की भीषण समस्या है। जलस्तर दिन ब दिन गिरता जा रहा है और ऐसे में तालाबों को पाटा जाना कहां तक उचित है। आखिर इसके पहले जो तालाब पाटे गए उससे आम लोगों का कितना भला हुआ है। एक तरफ सरकार से लेकर नाबार्ड तालाब खोदने पैसा दे रही है और दूसरी तरफ सरकार के नाक के नीचे राजधानी में तालाबों को संवारने की बजाए तालाबों से अवैध कब्जे हटाने की बजाय उसे पाटा जाना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
छत्तीसगढ़ ही नहीं राजधानी में ही पर्यावरण को लेकर दो दर्जन से अधिक संस्थाएं कार्य कर रही है। ये लोग पोस्टर से लेकर वृक्षारोपण का भरपूर प्रचार करते हैं पानी बचाने आंदोलन का भी दावा करते है इसके बदले में इन संस्थाओं को सरकार अनुदान भी देती है लेकिन राजधानी में पाटी जा रही है तालाबों से इनका कोई लेना देना नहीं है। अवैध कब्जा होते तालाबों के मामले में हम यह मान लें कि यह विवादास्पद है इसलिए ये हाथ नहीं डालते लेकिन तालाब पाटने की घटना तो सरकारी स्तर पर हो रही है। शराब से लेकर बिल्डरों के आगे नतमस्तक सरकार से आम लोगों के जीवन बचाने की कल्पना बेमानी होने लगी है लेकिन सरकार से अनुदान लेकर पानी बचाने के लिए ताम-झाम कर रही संस्थाएं भी यदि खामोश बैठ गई तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।आज अप्रेल में पारा 44 के पार जा रहा है कल मार्च या फरवरी में जाने लगेगा तब आने वाली पीढ़ियों के लिए या अपने बच्चों के लिए कम से कम हमें सोचना होगा। वरना वर्तमान अंधेरगर्दी का खामियाजा पूरी पीढ़ी को भुगतना होगा।

अनुमति मिली नहीं कोल ब्लॉक 32 करोड़ में बेच दी...

भाजपा नेता का मामला सुर्खियों में
केन्द्र सरकार द्वारा 14 कोल ब्लाकों को अनापत्ति देने से मना करने से राय सरकार ही नहीं भाजपा के एक नेता की भी नींद उड़ गई है। इस नेता ने स्पंज आयरन के लिए कोल ब्लाक मांगा था लेकिन इसे उसने महाराष्ट्र की एक कंपनी को 32 करोड़ में बेच दिया था। अब केन्द्र सरकार द्वारा अनुमति नहीं देने से बवाल मच गया है।
उल्लेखनीय है कि राय सरकार की मांग पर केन्द्र के पर्यावरण मंत्रालय ने प्रदेश के 14 बड़े कोल ब्लाकों को अनापत्ति देने से साफ तौर पर मना कर दिया है। हालांकि इसकी वजह से दर्जनभर बिजली परियोजनाएं अटक गई है। पर्यावरण विभाग के इस रोड़े से राय सरकार में हड़कम्प तो मचा ही है कोल ब्लाक लेने वाले कई उद्योगपतियों में भी हड़कम्प मच गया है।
जिन कोल ब्लाकों को अनुमति नहीं मिली उनमें हाल ही में सीबीआई छापे का शिकार प्रकाश इण्ड्रस्ट्रीज के अलावा श्रीराधे इण्ड्रस्ट्रीज, अक्षय स्पात उद्योग, एमएसपी स्टील, शारदा एनर्जी, अल्ट्राटेक, सींघन इंटरप्राईजेस, नवभारत कोलफिल्ड, वंदना एनर्जी, अंजली स्टील शामिल है। बताया जाता है कि इनमें से एक कोल ब्लाक प्रदेश के एक भाजपा नेता को भी आबंटित किया था कहने को तो वे स्पंज आयरन के लिए कोल ब्लाक मांगा था और भाजपाई होने के कारण राय सरकार ने उन्हें आबंटित भी कर दिया था। लेकिन इस भाजपा नेता की मंशा का पता अभी चला जब केन्द्र की आपत्ति के बाद महाराष्ट्र की उस पार्टी ने अपने 32 करोड़ वापस मांगे।
कभी राजिम से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके इस भाजपा नेता ने जिस तरह से पर्यावरण का मुखौटा लगाया है उससे भी उनकी इस मंशा का अंदाजा लगाना मुश्किल है। बताया जाता है कि अपनी पहुंच का फायदा उठाकर कोल ब्लाक महाराष्ट्र की कंपनी को 32 करोड़ में बेचे जाने की चर्चा जबरदस्त है और इसमें सरकार में एक मंत्री के शेयर की भी कहानी अब सामने आने लगी है।
बताया जाता है कि प्रदेश में पार्टी की सरकार होने का कई भाजपा नेता फायदा उठाने लगे हैं और कई खदानों में पार्टनर बनकर बैठ गए है या अनाप शनाप कीमत में बेच रहे हैं। इसी तरह अन्य कोल ब्लाक को लेकर भी कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि कई लोगों को सोची समझी रणनीति के तहत कोल ब्लाक दी जा रही थी।
बहरहाल भाजपा नेता के द्वारा महाराष्ट्र की कंपनी को 32 करोड़ में कोल ब्लाक बेचे जाने की यहां जमकर चर्चा है और कहा जा रहा है कि रुपए भी डकारे जा रहे हैं और अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर महाराष्ट्र की कंपनी को दो टूक भाषा में भगा दिया गया।

बहु को नहीं पकड़ पा रही पुलिस!

घोटालेबाजों का जमाना
महाधिवक्ता है सुराना - 7
छत्तीसगढ़ में पुलिस विभाग किस तरह से सरकार के आगे नतमस्तक है इसका उदाहरण श्रीमती चेतना सुराना के केस से समझा जा सकता है। कोर्ट में पेश करने के आदेश के बाद भी स्थानीय पुलिस को श्रीमती सुराना नहीं मिल पा रही है या वे दबाव में कार्रवाई नहीं कर रही है यह तो पुलिस महकमा ही जाने लेकिन इस मामले की चर्चा जोरों पर है कि शासन से सांठगांठ कर अपराधी आसानी से बच जाते हैं।
मंदिर की जमीन से लेकर आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोप में फंसे सुराना परिवार के ऊपर कई तरह के आरोप है उनके पार्टनर रह चुके कई लोगों ने तो सत्ता के दुरूपयोग का कई आरोप लगाया है। ऐसा ही मामला सुराना परिवार की बहु श्रीमती चेतना सुराना पर भी लगाया जा रहा है। बताया जाता है कि श्रीमती चेतना सुराना पति आनंद सुराना ने डीपी गांधी व अन्य के खिलाफ थाना गोल बाजार में आपराधिक प्रकरण 420, 467, 468, 471 एवं 34 भादवि के तहत मामला दर्ज करवाया था। प्रभावशाली होने के कारण गोलबाजार पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया लेकिन जांच में यह मामला झूठा पाया गया और न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।इस संबंध में छत्तीसगढ़ शासन के पुलिस निदेशक की शिकायत जांच रिपोर्ट में कहा गया कि श्रीमती चेतना सुराना और उनके मुख्तयार पति आनंद सुराना को आभास था कि वे झूठी शिकायत कर रहे हैं फिर भी उसने प्रशासन को गुमराह करते हुए थाना स्तर पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर प्रकरण दर्ज कराया। इसके बाद थाना प्रभारी गोल बाजार ने श्रीमती चेतना सुराना के विरुध्द इस्तगासा 12009 अंतर्गत धारा 182, 211 के तहत दंडित कराने माननीय न्यायालय में पेश किया जहां वह उपस्थित नहीं हुई और पुलिस भी उसे पेश नहीं करा सकी। बहरहाल सुराना परिवार पर लग रहे आरोपों की कई तरह की चर्चा है और लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि इतने आरोपों के बाद भी कोई महाधिवक्ता कैसे बन सकता है?