मंगलवार, 9 मार्च 2010

नई आज़ादी को सलाम


२४ साल की पत्रकारिता में शयद पहली बार मैंने महसूस किया की आज मेरे पास शब्द नहीं है ? महिला बिल का पास होना नई आजादी है मैंने १९४७ की आज़ादी नहीं देखी है लेकिन मेरा दावा है यह नई आज़ादी भी उससे कम किसी हल में नहीं है

महिलाए सिर्फ मां नहीं बहन नहीं वह पुरुष की जीवन संगिनी भी होती है ऐसी जीवन संगिनी जो हर हाल में अपनो की ख़ुशी के लिए अपना सर्वत्र निछावर कर देती है मै ये नहीं कहता की मै कुछ नया कह रहा हूँ और न ही मै किसी को यह सब याद ही दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ दरअसल इस नई आज़ादी की ख़ुशी ने मुझे भीतर तक गुदगुदा दिया है मै नहीं जानता की इस खुशी को कैसे व्यक्त करना चाहिए लेकिन इतना जानता हूँ कि आज़ादी मिली है

मेरा देश अब और अच्छे से जीयेगा क्योकि घर बनाने वाली अब देश बनाएंगी

क्या कहूँ -----


डंडे की चोंट पर भ्रष्टाचार,बृजमोहन अग्रवाल के सभी विभागों में घोटाले!



छत्तीगढ़ में वैसे तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है और अधिकारियों ने राम नाम की लूट मचा रखी है लेकिन राजधानी के दमदार मंत्री माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के विभागों की समीक्षा में यह बात खुलकर आई है कि उनके विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है और अधिकारियों ने चौतरफा लूट मचा रखी है।
राजधानी के विधायक और मुख्यमंत्री के प्रबल प्रतिद्वंदी माने जाने वाले लोक निर्माण शिक्षा और पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को सुर्खियों में बने रहना आता है और इसके चलते वे अक्सर विवादों में भी घिर जाते है। ताजा मामला स्कूली शिक्षा विभाग द्वारा खरीदे जाने वाले चयनित पुस्तकों का है। कहा जाता है कि इन चयनित पुस्तकों को परिवर्तन करने का दबाव के अलावा पसंदीदा प्रकाशकों से लेन-देन के आरोप भी मंत्री जी पर लगने लगे हैं।
बताया जाता है कि इस संबंध में अखिल भारतीय महिला प्रकाशक संघ ने तो बृजमोहन अग्रवाल पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए यहां तक कहा है कि यहां दलाल राजेन्द्र अग्रवाल और आर.एन. सिंह ने महिला प्रकाशकों को भी यह कहकर टरका दिया कि मंत्री जी से मिलना हो तो रात 12 बजे के बाद आइये। महिला प्रकाशकों ने इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री से भी किए जाने की जानकारी दी है।
महिला प्रकाशकों का आरोप कितना सही है यह तो वही जाने लेकिन शिक्षा विभाग जिस तरह से अनियमितता चल रही है वह आश्चर्यजनक है। तवारिस से लेकर बाम्बरा मामले में बृजमोहन की रूचि से पार्टी के ही लोग नाराज हैं। जबकि तवारिस पर कई गंभीर आरोपों के अलावा कांग्रेसी होने का भी आरोप है। बताया जाता है कि प्रकाशकों को साफ तौर पर बृजमोहन अग्रवाल के दलालों द्वारा खुले आम पैसा मांगे जाने का आरोप लगाया जा रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जो प्रकाशक सबसे ज्यादा कमीशन देगा काम उसे ही मिलेगा।
महिला प्रकाशकों ने पुस्तक खरीदी मामले का उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग करते हुए बृजमोहन अग्रवाल व उनके रिश्तेदारों की संपत्ति की भी जांच की मांग की है। ऐसा नहीं है कि बृजमोहन अग्रवाल और उनके समर्थकों पर भ्रष्टाचार का आरोप पहली बार लगा हो बल्कि समता से लेकर अग्रोहा और जब वे गृहमंत्री थे तब उनके भाईयों की करतूतों की भी खबरें स्थानीय मीडिया में छपते रही हैं।
यही नहीं इस शासनकाल में भी पर्यटन विभाग हो या संस्कृति विभाग का मामला हो अधिकारियों की करतूतों के कारण बृजमोहन अग्रवाल सुर्खियों में रहे हैं। जबकि पीडब्ल्यूडी में तो ठेकेदारी में खुलेआम कमीशनखोरी अभी भी जारी हैं और घटिया सड़कों से लेकर डामर घोटालों के आरोपियों को बचाए जाने को लेकर विवाद कायम है। बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल के विभागों पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, पर्यटन और संस्कृति में डंके की चोंट पर भ्रष्टाचार चल रहा है और यही स्थिति रही ते आने वाले दिनों में सरकार को मुसिबतों का सामना करना पड़ सकता है।
बृजमोहन की सुर्खियां
शिक्षा विभाग- 1. पुस्तक क्रय में 2. तवारिस की बहाली 3. संविदा नियुक्ति
पर्यटन विभाग- 1. बगैर नाम पते का करोड़ो भुगतान 2. स्टेशनरी घोटाला 3. संविदा नियुक्ति 4. प्रचार-प्रसार घोटाला 5. घास बसुंडी 6. विदेश यात्रा
संस्कृति विभाग- राज्योत्सव बनाम लुटोत्सव 2. संविदा नियुक्ति 3 . प्रचार-प्रसार घोटाला 4. स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा 5. बाहर के कलाकारों में दलाली 6. कुंभ
पीडब्ल्यूडी विभाग- खुलेआम कमीशनखोरी 2. घटिया सड़कें 3. डामर घोटाला

जिद् करो...अखबार बदलो

जिद करो और दुनिया बदलों का स्लोगन लिए देशभर में अपने साम्राय स्थापित करने की होड़ में अपने घर को ही नहीं बचा पाने की चर्चा इन दिनों मीडिया जगत में छाई हुई है तो इसकी वजह इस अखबार की वह करतूत है जो आंख बंद कर तेज दौड़ने वालों के साथ अक्सर होती है।
जी हां! यहां हम अग्रवाल परिवार के दैनिक भास्कर की बा कर रहे हैं। इन दिनों दैनिक भास्कर में जो कुछ हो रहा है उसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता। जिस तेजी से अखबार ने अपने पैर पसारे थे आज वह उतनी ही तेजी से बिखरने लगा है। ताम-झाम में माहिर इस अखबार को राजधानी रायपुर में मिल रहे लगातार झटके से इसके प्रसार संख्या में भी गिरावट की खब है और इसके पीछे प्रबंधन तंत्र की लापरवाही को बताया जा रहा है। वैसे तो राज एक्सप्रेस, नईदुनिया, राजस्थान पत्रिका जैसे बड़े अखबारों के अलावा नेशनल लुक जैसे अखबारों के द्वारा भी भास्कर से दुश्मनी की चर्चा है। नईदुनिया ने तो भा्कर में तोड़फोड़ की ही नेशनल लुक ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखा और अब राज एक्सप्रेस और राजस्थान पत्रिका पर तो कील ढोकने की कोशिश के आरोप लगने गे हैं।
यहीं नहीं भास्कर के 14 माले का शापिंग माल का सपना भी तोड़ने कई लोग आमदा है। सरकार द्वारा कौड़ी के मोल मिले स्वयं की जमीन होते हुए भी किराये के भवन में जाने को लेकर भी यहां चर्चा गरम है। ऐसे में घटती प्रसार संख्या का तोहमत वह कैसे दूर करेगी यह ता वही जाने लेकिन कहा जा रहा है कि अंदरूनी हालात के चलते मनीष दवे को बिलासपुर भेज दिया गया है। जबकि बाहर से आए वे लोग सीटी संभालने लगे हैं जिन्हें न राजधानी का ज्ञान है और न ही यहां की गलियों से ही परिचित है।
और अंत में
अखबारों में प्रतिस्पर्धा नई नहीं है प्रसार संख्या बढ़ाने बड़े अखबारों में क्या कुछ नहीं होता लेकिन इन दिनों भास्कर की प्रसार संख्या घटाने एक मंत्री की रूचि चर्चा का विषय है। अपने लुक में पैसा लगाने वाले इस मंत्री के द्वारा इस काम में अपने मुखिया से भी सहमति लेने की चर्चा अब तो चौक चौराहों पर भी होने लगी है।

राहुल का चला रंग , संघ हुआ बदरंग



यह तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना सिद्वांतों की दुहाई देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह चेहरा भोपाल में आयोजित हिन्दू समागम में कभी नहीं दिखाई देता। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बढती लोकप्रियता के कारण बौखलाए संघ ने हिन्दू समागम के नाम पर ठेकेदारों, बिल्डरों और बदनाम अफसरों का मेला लगा लिया जहां संघ के प्रशिक्षित कार्यकर्ता कम नेता अधिक नजर आए।
राष्ट्रीय सेवक संघ वैसे तो शुरु से ही विवादों में रहा है और उनकी सत्ता की भूख समय-समय पर दिखती भी रही है लेकिन इसके बावजूद सिध्दांतों की बलि देने की ऐसी कोशिश तब भी नहीं हुई थई जब सत्ता सुंदरी के लिए अटल बिहारी की टीम ने राम मंदिर, धारा 370 और एक समय नागरिक संहिता की बलि दी थी। लेकिन भोपाल में हिन्दू समागम के नाम पर जिस तरह से निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया गया अऔर बिल्डरों, ठेकेदारों, भ्रष्ट अफसरों के साथ भाजपा के कमाऊ नेता-मंत्रियों को तरहीज दी गई उससे संघ का नया चेहरा दिखाई देने लगा है। संघ का यह चेहरा राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण बदरंग होते साफ महसूस किया जा रहा है।
दरअसल इन दिनों भाजपा की पराजय ने संघ को लहूलुहान कर दिया है और संघ के सरसंघचालक अखिल भारतीय प्रवास पर हैं। जगह-जगह वे समाज के विभिन्न तबको को अपने साथ जोड़ने उन्हें संघ-वाणी पिला रहे हैं। छत्तीसगढ क़ी राजधानी रायपुर के बाद मध्यप्रदेश में भी भागवत का कार्यक्रम हुआ। दोनों ही जगह भापा की सरकार है। इसलिए सामाजिक सद्भाव बैठक और हिन्दू समागम में सरकार ने भीड़ जुटाने पूरी ताकत झोंक दी और संघ का राजनैतिक प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ा।
भोपाल में तो आयोजित कार्यक्रम की समिति का अध्यक्ष पूर्व डीजीपी एच.एस. जोशी को बनाया गया लेकिन जैसे ही उनके पुत्र व पुत्रवधु के यहां आयकर के छापे पड़े और करोड़ों रुपए बरामद हुआ। जोशी जी को हटाकर न्यायमूर्ति आर.डी. शुक्ला को आयोजन समिति का अध्यक्ष बना डाला। जबकि श्री शुक्ला की पहचान संघ से यादा समाजवादी पृष्ठभूमि की है। आयोजन समिति में संघ के निष्ठावान कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को शामिल करने की बजाय भाजपा की नेतागिरी करने वाले को रखा गया। यही नहीं आयोजन समिति का सदस्य व्यवसायी दीपक शर्मा को बनाया गया जो भाजपा नेता लक्ष्मीनारायण शर्मा के पुत्र हैं। हालांकि लक्ष्मीनारायण शर्मा को उमा भारती समर्थक होने के कारण भाजपा में भाव नहीं दिया जाता लेकिन अर्थ युग होने की वजह से दीपक शर्मा का भाजपा में प्रभाव है।
सबसे रोचक बात तो यह है कि इस कार्यक्रम में होल्डिंग व प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी बिल्डरों व ठेकेदारों को दी गई और अफसरों को भी अघोषित तौर पर भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई। यही वजह है कि संघ का यह कार्यक्रम सम्पन्न तो हो गया लेकिन सफल नहीं हुआ।
संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक संघ की इस नई रणनीति से हैरान है जबकि एक वर्ग का मानना है कि संघ जैसे भी उपाय कर ले लेकिन राहुल का जलवा के आगे उसकी सारी गणितबाजी फेल होगी। बहरहाल संघ के इस नए चेहरे से बिल्डर, ठेकेदार और भ्रष्ट अफसर खुश है कि चलों उनके लिए किसी ने तो मंच स्थापित किया है लेकिन आम लोगों में संघ के इस नए चेहरे पर तीखी प्रतिक्रिया है।