सोमवार, 3 जून 2013

आतंक...आतंक... और आतंक...!

 छत्तीसगढ़ में इन दिनों चौतरफा आतंक मचा हुआ है। प्रशासनिक राजनैतिक आतंक के गठजोड़ के चलते जहां माफिया गिरी बढ़ी है वहीं औद्योगिक और नक्सली आतंक के चलते आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। भले ही रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने चावल, लैपटाप, साइकिल बांटकर अपनी राजनीति को मजबूत किया है लेकिन सच तो यह है कि माफिया गिरी के चलते जिस ढंग से छत्तीसगढ़ की खनिज संपदाओं, और जमीनों पर डकैती डाली गई है। उससे नहीं लगता कि सरकार नाम की भी चीज यहां है। अपराधों के आंकड़े बताते हैं कि रमन राज में अपराध कई गुणा बढ़े हैं और पुलिस की गुण्डागर्दी चरम पर है। राजधानी पर करोड़ों रूपया तो फूंका गया लेकिन स्कूल और अस्पतालों की अनदेखी की गई। विकास के नाम पर करोड़ों रूपये फूंकने के दावे तो किये गए लेकिन गांवों तक विकास पहुंचा ही नहीं। कैग की रिपोर्ट बताती है कि रमन सरकार ने आर्थिक अनियमिताओं के सारे रिकार्ड तोड़ डाले और संचेती से लेकर अदानी गु्रप को फायदा पहुंचाने छत्तीसगढ़ को करोड़ों अरखों का नुकसान पहुंचाने से पीछे नहीं हटी। बस्तर में सरकार नहीं होने और लाल आतंक का साया है तो भाजपाई आतंक का अदाहरण भी कम नहीं है। जिस प्रदेश का मुखिया देखलुंगा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता हो सवाल करने वाले या पार्टी में विरोध करने वालों पर पुलिसिया रौब दिखलाता हो वहां सरकार क्या और कैसी होगी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
बस्तर में कांग्रेस नेताओं पर हुए नक्सली हमले ने सरकार को घेरे में आज लिया हो। लेकिन सच तो यही है कि छत्तीसगढ़ में सरकार नहीं होने की बात लोग पहले से ही कर रहे है।