सोमवार, 3 मार्च 2014

कोयला बना काल


जीवनदायनी हसदेव नदी राख से पट रही
कोरबा देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में
हर साल मर रहे सैकड़ों लोग, हर साल बर्बाद हो रही खेती
छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में बिजलीघरों ने आफत खड़ा कर दिया है। बिजलीघरों के प्रदूषण से स्थिति बेहद गंभीर होती जा रही है। इसके चलते असामयिक मौत के आंकड़े तो बढ़े ही है अस्थमा, श्वसन रोग और ह्दय रोग के मामलों में असाधारण ईजाफा हुआ है। कोयला भंडार की बदौलत खड़े किये जा रहे ताप बिजलीघरों से निकलने वाली राख से खेती तो बरबाद हो ही रही है यहां रहने वालों पर भी शामत आई है।
कोयला भंडारों के दोहन और इससे स्थापित बिजली घरों को लेकर ग्रीनपीस नामक सर्वे कंपनियों की रिपोर्ट न केवल चौंकाने वाली है बल्कि विकास के नाम पर किये जा रहे अंधानुकरण की कलई खोलने के लिए काफी है। छत्तीसगढ़ का पॉवर हब माने जाने वाले कोरबा ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में किस कीमत पर गौरव हासिल कर रहा है यह कम चौकाने वाला नहीं है। देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में कोरबा का नाम चौथे-पांचवे नम्बर पर आ चुका है। यहां सात पॉवर प्लांट से 6 हजार मेगावाट से अधिक विद्युत उत्पादन होता है और प्रतिदिन यहां से 45 हजार मिट्रीक टन से अधिक राख उत्सर्जित होती है। राख का भंडारण राखड़ बांध में किया जा रहा है जिसकी वजह से इसके आसपास की जमीन तो बंजर हो ही रही है इसके चिमनियों से निकलने वाले धुंए की वजह से वायु प्रदूषण भी चरम पर है। यही नहीं कोरबा की जीवनदायिनी मानी जाने वाली हसदेव बागो नदी भी राख से पटने लगी है। जबकि छत्तीसगढ़ सरकार ने कोयला उत्पादन के क्षेत्र में अभी तीन दर्जन से अधिक कंपनियों से अनुबंध कर रखे हैं जिनमें उत्पादन होना बाकी है। ग्रीन पीस सहित अन्य सर्वे कंपनियों की रिपोर्ट पर नजर डालें तो ताप बिजली घरों की वजह से आम लोगों सिर्फ गंभीर बीमारियों के शिकार बस नहीं हो रहे हैं बल्कि यह तबाही मौतो के बढ़ते आंकड़े तक जा पहुंचा है। सर्वे के मुताबिक छत्तीसगढ़ के बिजली घरों के कोयले से निकलने वाली राख में अति सूक्ष्म कणों की साईज 4 से 5 माइक्रोन है जिसकी वजह से यह अधिकाधिक क्षेत्र में तेजी से फैलती है। यही नहीं कोयले की राख से पीएस-10 जैसे खतरनाक तत्वों के अलावा सल्फर डाई आक्साईड नाइट्रोजन आक्साईड और पारे की मात्रा भी अधिक रूप से घुली होती है। यही वजह है कि इसके चलते गंभीर बीमारियों के मामले तो बढ़ ही रहे है मौत के आंकड़े भी बढ़े है। सर्वे के अनुमान के मुताबिक बिजलीघरों के कोयले की राख से हर साल दस हजार से अधिक लोग असामयिक मौत मर रहे है जबकि गंभीर बीमारियों के आंकड़े इससे कहीं बहुत अधिक है। हालांकि सरकारी महकमा का दावा है कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के समुचित उपाय किये गए हैं एक भी बिजलीघर बगैर अनापत्ति प्रमाणपत्र के नहीं चलाए जा रहे हैं और उत्सर्जन की सीमा तय है।
बहरहाल ताप बिजलीघरों के प्रदूषण से आम लोगों के लिए काल साबित होते पॉवर प्लाटों को नियंत्रित नहीं किया गया और प्रदूषण रोकने के समुचित इंतजाम नहीं किये गए तो आने वाले दिनों में यह समस्या गंभीर बन जायेगी।