रविवार, 28 फ़रवरी 2021

कब्र खोदने में माहिर कांग्रेसी...

 

क्या कांग्रेस का अब महात्मा गांधी से वास्ता नहीं रहा या अब गांधई के नाम से चुनाव नहीं जीता जा सकता? यह सवाल इसलिए उठ खड़ा है क्योंकि मध्यप्रदेश कांग्रेस ने जिस बाबूलाल चौरसिया को कांग्रेस का सदस्य बनाया है वह गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का न केवल समर्थक रहे हैं बल्कि एक समय वे गोडसे का मंदिर बनाने की बात भी करते रहे हैं ऐसे गोडसे भक्त को कांग्रेस की सदस्यता देने का क्या मतलब है?

भाजपा ने तो एक सामान्य प्रतिक्रिया में कह दिया कि कांग्रेस का गांधी के सिद्धांत से कोई वास्ता नहीं रह गया है लेकिन इस प्रतिक्रिया के पीछे का सच क्या यह नहीं है कि चूंकि अब गांधी के नाम से वोट नहीं मिलने और सत्ता तक पहुंचने के लिए वोट चाहिए इसलिए बेमेल समझौते कांग्रेस की मजबूती है?

हालांकि बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस प्रवेश को लेकर कांग्रेस के भीतर भी विरोध के स्वर तेज होने लगे है लेकिन अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाबूलाल कांग्रेस में रहेंगे या नहीं रहेंगे। क्योंकि इस सच ने कांग्रेस के नेताओं का दिवालियापन उजागर कर ही दिया है। और ऐसे कब्र एक बार फिर खोद दिया है जिसकी गूंज से कांग्रेसी बिफरते रहेंगे?

दरअसल संघ और भाजपा के बढ़ते प्रभाव से कई कांग्रेसी इस हद तक विचलित हो गये है कि वे बिना गैती-फावड़ा के ही अपना कब्र खोदने आतुर नजरर आते हैं। खासकर चुनाव के समय वे अपनी हरकतों और जुबान से भाजपा को ऐसा मौका दे देते है जिससे कांग्रेस की मुसिबत ही नहीं बढ़ती बल्कि हंसी के पात्र बन जाते हैं।

अभिषेक मनु सिंघवी, सलमान खुर्शीद से लेकर दिग्विजय सिंह के बोल क्या अब भी नहीं गूंजते? मध्यप्रदेश उपचुनाव में तो कमलनाथ की महिला विधायक को लेकर की गई टिप्पणी ने भाजपा को सत्तासीन करने में पूरी मदद की। और अब जब पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहा है तब बाबूलाल चौरसिया जैसे गोडसे भक्त का कांग्रेस प्रवेश क्या कांग्रेस के लिए मुसिबत खड़ी नहीं करेगा। अब कांग्रेस किस मुंह से गोडसे भक्तों की आलोचना करेगा। जबकि यह सर्वविदित है कि गोडसे भक्त आज भी महात्मा की तस्वीर से रक्त बहते देखने की चेष्टा करते रहते हैं।