बुधवार, 15 सितंबर 2010

47 के आंकड़े नहीं बढ़े तो...

छत्तीसगढ में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था तब भाजपा ने 50 सीट जीतकर सत्ता में वापसी की थी। डॉ. रमन सिंह की बढ़ाई में कसीदे गढ़े गए और इसके बाद वैशालीनगर में हुए उपचुनाव में भाजपा को 50 से 49 में ला पटका। जिस चावल योजना से वह सत्ता में आने की बात कह रही थई वही योजना वैशालीनगर में फेल हो गया। चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग ने वैशालीनगर में भाजपा को उखाड़ फेंका। हालांकि इसके पीछे बिहारियों के खिलाफ किए गए विष वमन भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
भाजपा के दो विधायकों के असमायिक निधन ने उन्हें 49 से 47 में ला पटका है। फिलहाल तो भटगांव में ही उपचुनाव है। कहने को तो भाजपा यहां से स्व. त्रिपाठी की पत्नी रजनी त्रिपाठी को उतारकर सहानुभूति वोट लेने के फेर में हैं। जबकि कांग्रेस की राजनीति पहल और उनके विरोधियों के बीच जा टिकी है। भटगांव विधानसभा क्षेत्र कई मामले में वैशालीनगर की तरह समानता रखता है। भटगांव भी नई सीट है और यहां भी सरोज पाण्डेय की तरह स्व. त्रिपाठी जी लम्बे अंतराल से जीत दर्ज की थी। यहां भी कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति वैशालीनगर की तरह अस्त-व्यस्त रही और इसका फायदा मुख्य चुनाव में भाजपा को मिला।
वैशालीनगर की तरह यहां भी बिहारी वोटरों की संख्या महत्वपूर्ण है ऐसे में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बयान की यहां चर्चा हुई तो भाजपा को बिहारी वोटरों के कोपभाजन का शिकार होना पड़ सकता है। सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तो सरकार की चावल योजना का है। इस योजना से मध्यम वर्ग त्रस्त है। मध्यम वर्ग का मानना है कि इस योजना की वजह से मजदूरों के भाव बढ़ गए हैं। खेती किसानी से लेकर घरेलु काम में दिक्कतें आ रही हैं जबकि एक बड़ा वर्ग महंगाई की प्रमुख वजह चांवल योजना को मानता है। ऐसे में मध्यम वर्ग की नाराजगी का असर वैशालीनगर की तरह हुआ तो भाजपा यहां भी मुसीबत में फंस सकती है।
इसके अलावा सरकार की शराब नीति से महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है। गांव-गांव में शराब ने आम लोगों की शांति भंग कर दी है। वैशालीनगर चुनाव ें यह मुद्दा कारगर रहा है और महिलाओं के बड़े वर्ग द्वारा भाजपा से नाराजगी की चर्चा है इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के दौरे के दौरान आदिवासियों की उपेक्षा भी भटगांव चुनाव में असर डाल सकती है। हालांकि भाजपा अपने 47 के अंक से आगे जाने की हरसंभव कोशिश में है क्योंकि यह अंक सरकार के लिए कभी भी मुसिबत खड़ी कर सकता है इसलिए स्व. त्रिपाठी की पत्नी रजनी त्रिपाठी को टिकिट देकर वह सहानुभूति वोट तो अर्जित करना चाहती ही है बृजमोहन अग्रवाल जैसे दमदार मंत्री को प्रभारी बनाकर साम-दाम-दंड भेद की नीति भी अख्तियार करना चाहती है। ज्ञात हो कि बृजमोहन अग्रवाल की छवि पैसे फेंकने के अलावा जोड़-तोड़ में माहिर की है।
भटगांव चुनाव में सरकारी अंधेरगर्दी के किस्से तो अभी से सुनाई पड़ने लगे है। लोगों को बरगलाने सरकारी प्रयास की शुरुआत 6 सितम्बर से पहले भी दिखाई देने लगा था। पूरी सरकार झोंकी गई तो आम लोगों को क्या दिक्कतें होती है यह नीतिन गडकरी के दौरे में राजधानी के लोगों ने नजदीक से देखा है।