बुधवार, 1 सितंबर 2010

गुस्सा तो बहुत है पर जाहिर कैसे हो...

कुल मिलाकर सांसदों ने अपनी तनख्वाह तीन-चार गुणा बढ़ा ही ली, अब कई राज्यों के विधायक  भी अपनी तनख्वाह बढ़ाने की  कवायद में लग गये हैं। मिलबांटकर अपने लिए सब कुछ पा लेने की रणनीति से आम आदमी के बारे में सोचने के लिए किसी  के पास समय नहीं है।आम आदमी इस मामले को  लेकर गुस्से से लाल-पीला हो रहा है। पिछले दिनों मुझे समारू मिल गया, देखते ही फट पड़ा! क्या तिवारी जी!कुछ लिखते क्यों नहीं! ये मनमानी नहीं तो और क्या है। यहां दो जून की रोटी के लाले पड़े हैं और हमारे नेता लाख रूपये महिने का  जुगाड़ कर चुके हैं?
मैनें कहा समारू इस गुस्से को  पीना नहीं। ऐसे ही जगह-जगह जाहिर करते रहना और यदि तुम्हारे गांव में सांसद-विधायक  आ जाए तो उससे पूछने के लिए खड़े हो जाना। हिचकना नहीं। समारू और गुस्सा गया। वह कहने लगा। हमने अपना जनप्रतिनिधि चुना है। नौकर नहीं। और जो काम के बदले पैसा ले वह नौकर कहलाता है जनप्रतिनिधि नहीं। इन सा.. को  तो गोली से उड़ा देना चाहिए।
तभी पान ठेले वाला भड़क  गया। वह भी इस वेतन बढ़ोत्तरी पर आक्रोषित  था। वह कह उठा। आप लोगों का  तो मजा है? लेकिन  क्या आप को  लगता है कि तनख्वाह बढ़ा देने से ये लोग चोरी करना बंदकर देंगे?
मैने कहा इन लोगों का  तो यही ·हना है कि वेतन बढ़ेगा तो भ्रष्टाचार कम होगा?
कुछ कम नहीं होगा तभी पीछे से आवाज आई मैं पलट कर देखा तो विजय खड़ा था। वह बोले जा रहा था। इन सा.... को  तो पैसों की  भूख है जितना भी दे दो कम पड़ेगा?
मैंने कहा अगली बार मत चुनना इन्हें ऐसे लोग तलाश लो जो वेतन-पेंशन न लें?
क्या भैया आप भी ऐसी बात करते हैं? गांधी के देश में क्या कोई नहीं बचा जो वेतन-पेंशन नहीं लेने की घोषणा करें?
कुल जमा यह है कि एक  भी व्यक्ति मुझे नहीं मिला जो सांसदो-विधायको के वेतन-पेंशन को लेकर खुश हो? लोग गुस्से में है लेकिन उन्हें नहीं पता कि वे अपना गुस्सा कहां जाहिर करें।
इस देश में नेताओं की छवि को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। वेतन बढ़ाने के लिए कहा जा रहा है कि पेट भरा रहेगा तो अच्छे से काम कर सकेंगे ? पर यह सच नहीं है? आधा सच भी नहीं है। सिर्फ भत्तों पर जिन्दा रखो तो ये लोग कार्वेंट में अपने बच्चे नहीं पढ़ा सकेगे तब सरकारी स्कुल  से इन के बच्चे निकलेंगे और जो बच्चा सरकारी या म्यूनिस्पल से पढ़कर नि·लेगा उसमें ही देश-प्रेम का जज्बा होगा, उसमें ही मानवता होगी और वे ही आम लोगों के हित में निर्णय लेगा।
विकास का निर्णय लेने वाले, बेहतर शहर की बसाहट का नक्शा बनाने वाले आम लोगों को पीने का पानी नहीं अपने लिए बिसलरी का इंतजाम करते हैं।
शिक्षा के विकास के लिए सरकारी स्कूलों  के स्तर बढ़ाने की बजाए नई-नई कार्वेंट शिक्षा पद्धति लाते हैं जो नागरिक  नहीं मशीन का निर्माण करते हैं।
समारू हो या विजय ये सिर्फ गुस्सा कर सकते हैं। इनमें हिम्मत भी नहीं है कि वे अपने गुस्से का इजहार कर सके। और शायद ये बात कार्वेंट वाले जानते है और हमारे राजनैतिक  दल भी...।