बुधवार, 18 अगस्त 2010

स्वतंत्रता किसके लिए...

क्या कभी किसी भी सरकार ने किसी भी प्रदेश की सरकार ने यह सोचा कि विधायक सांसद या अधिकारी बनते ही लोग एकाएक कैसे धनी बन गए। कल तक गांव में सामान्य जीवन जीने वाले लोग पैसे वाले कैसे हो गए। क्या कभी किसी भी सरकार ने एक भी नाम धारी व्यक्ति की बारिकी से जांच कराई कि लालू क्या थे, डॉ. रमन क्या थे, गुलाम नबी आजाद क्या थे, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह, विद्याचरण-श्यामाचरम शुक्ल क्या थे या बाबूलाल अग्रवाल, सुनील कुजूर, सुब्रत साहू या इसी तरह के नाम धारी लोग पदों में आने के पहले क्या थे और फिर क्या हो गए। बेतहाशा कमाई का क्या एक बड़ा हिस्सा आम लोगों के हिस्से का नहीं है। क्या आजादी के शुरवीरों ने ऐसे ही भारत का सपना देखा था कि पद पाते ही डकैत बन जाओ? लुटेरे बन जाओ आर आम आदमी को पानी स्वास्थ्य और शिक्षा भी न दो?


15 अगस्त 1947 को जब अंग्रजों ने भारत छोड़ा। तब पूरा देश खुशियों से लबरेज था। हर आदमी एक दूसरे को स्वतंत्रता के मायने समझाता बधाईयां दे रहा था। लेकिन आजादी के 63 साल हो रहे हैं। इन 63 सालों में गरीब से गरीब आदमी ने भी सरकार को टेक्स दिया ताकि हमारे सांसद विधायक और सरकारी अधिकारी कर्मचारी भूखे न रहे और ईमानदारी से आम लोगों के हित और देश के हित के लिए काम करें। पर क्या ऐसा हो पाया। आम आदमी से कहां चूक हुई और व्यवस्था को किस तरह से अव्यवस्थित किया गया। रिपोर्ट।
छत्तीसगढ में तोrajya बनते ही आजादी के मायने बदल गए है। वैसे तो नौकर शाह और राजनेताओं के लिए ही लोकतंत्र में असली आजादी है। और आम आदमी के लिए नियम कानून की बात की जाती है। हमने भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों की .... और आजादी को लेकर समय समय पर पाठकों को जानकारी उपलब्ध कराया है।
आजादी के मायने
प्रदेश के मुखिया के अलावा डॉ. साहब के पास उर्जा, खनिज जनसंपर्क जैसे विभाग है और इनमें से कोई विभाग नहीं है जहां घपलों की दास्तान न हो। उर्जा विभाग में आजादी का यह आलम है कि ओपन एक्सेस से लेकर ट्रासफार्मर, मीटर खरीदी में खुले आम घोटाले किये गए। खनिज में तो pusya स्टील को आज ही रजिस्टे्रशन आज ही लीज देकर रमन सरकार ने नया इतिहास रचा है। माइनिंग शर्तो का खुले आम उल्लंघन हो रहा है और इस विभाग के अधिकारी तक खुले आम पैसा खा रहे है। खनिज को लेकर तो लूट मची है।
जनसंपर्क विभाग का तो भगवान ही मालिक है। सचिव पर तो आरोप लगा ही संवाद में तो 40 करोड़ के घपले उजागर होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं है। आजादी का असली मतलब तो इस विभाग के अफसर खूब जानते है और सरकार के खिलाफ खबर देने से परहेज नहीं करते।
ननकी राम कंवर
बस्तर से लेकर सरगुजा तक आदिवासी भेड़ बकरी की तरह काटे जा रह है। राजधानी में अपराध चरम पर है और छत्तीसगढ़ के दूसरे शहरों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। पुलिस के मुखिया विश्वरंजन की अपनी स्वतंत्रता है और ननकी राम कंवर से स्वतंत्र तो कोई है ही नहीं। कलेक्टर को दलाल और पुलिस कप्तान को निकम्मा कहने वाले इस गृह मंत्री ने विधान सभा में स्वीकार किया है कि थाने वाले शराब ठेकेदारों के इशारे पर काम करते हैं।
मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल बृजमोहन अग्रवाल को खुश करने सर्वाधिक विभाग दिया गया है यह अलग बात है कि उनसे कोई भी विभाग नहीं संभल रहा है। स्वतंत्रता इतनी की नेता प्रतिपक्ष बनने मारपीट करवाने तक का आरोप लगा है और पीडब्ल्यू डी में बढ़ते कमीशन खोरी उखड़ती सड़के पयर्टन में बगैर नाम पर के करोड़ों का आबंटन motal  निर्माण से लेकर स्टेशनरी- प्रचार प्रसार में घोटाले की बाढ़, संस्कृति में आई राज के चलते बाहरी कलाकारों के नाम पर करोड़ों का आबंटन, शिक्षा में तो तवारिस बाम्बरा एच आर शर्मा एसएन सिंह गेंदाराम जैसे विवादास्पद व्यक्तियों के जिम्में जिला व कार्यालय सौंपा गया है और फर्नीचर से लेकर विज्ञान उपकरणों की खरीदी तक में घोटाले।
राजेश मूणत स्वतंत्रता तो इनके मुंह में बसी है और कार्यकर्ताओं के मुंह से सुनी जा सकती है। पहले दबाव बनाओं फिर खूब kamao की रणनीति ने इन्हें सर्किट हाउस के घोटाले का आरोपी तक बना दिया था लेकिन जब सरकार हमारी हो तो किसी का क्या बिगड़ना है। भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान में रूचि तो दिखाई लेकिन बसंत सेठिया जैसे लोगों को फायदा भी मिला। कमल विहार में छांट-छांट कर अच्छी प्लाटें किसे दी जा रही है किसी से छिपी नहीं है। पार्किंग वाली दूकाने कैसे सील हो रही है और जाहिद अली जैसे लोगों की फाइलें कहां दबी है। दबा बजार से लेकर क्रिस्टल टावर के चर्चे ही तो आम आदमी कर सकता है।
चन्द्रशेखर साहू कहने को तो साहू जी किसान नेता है लेकिन मंत्री बनते ही 270 रूपये वाला बोनस भूल गये। अब 270 रूपये की जरूरत ही क्या है जब नकली खाद से लेकर बीज तक का सफर हो। क्षेत्र में बिकते अवैध शराब की चर्चा क्या कम है जो किसानों के हित में निर्णय होंगे। यह केवल सरकार के आधा दर्जन मंत्रियों का उदाहण मात्र है कि सरकार किस तरह से स्वतंत्र कार्य कर रही है। वरना खेल मंत्री लता उसेण्डी हो या स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे हो या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू सब की अपनी स्वतंत्रता है ऐसे में छत्तीसगढ़ में आम आदमी के लिए स्वतंत्रता के क्या मायने हो सकते है आसानी से समझ जा सकता है।
आप हल्ला करते रहे कि जिन्दल पावर लिमिटेड और बाल्को सैकड़ों एकट जमीन दबा रहे हैं। सरकार कार्रवाई करना तो दूर सुनेगी ही नहीं। आप चिल्लाते रहे कि कोल ब्लाक के आबंटन में गड़बड़ी हो रही है या अवैध निर्माण से काम्प्लेक्स खड़े किये जा रहे हैं। कोई नहीं सुनेगा। बल्कि अब तो न्यायालय के फैसले तक से लोग सहमत नजर नहीं आते। गैस त्रासदी या बाल्को का जमीनी कब्जा इसका उदाहरण है कि लोग इन फैसलों से सहमत नहीं है।
आम आदमी के लिए कहां है स्वतंत्रता
वोट हमारा- राज तुम्हारा- जो लोग अपना सांसद विधायक चुनते हैं इसके लिए सरकार क्या करती है यह तो सभी जानते है लेकिन जितने वाले सांसद विधायकों को न केवल हर माह एक मोटी रकम मिलती है और भत्ता भी। यही नहीं सीट से हटने के बाद जीवन भर पेंशन भी मिलता है। नौकर शाहों का भी यही आलम है जीवन भर नौकरी करो, भ्रष्ट तरीके से पैसा कमाओ और रिटायर्ड होने के बाद सेंटिंग कर संविदा नौकरी व पेंशन पाओ।
आम आदमी के लिए सरकार की नीति यह है कि आप के घर पीने का पानी पहुंचे या न पहुंचे, टैक्स तो देना ही होगा।
जमीन आपकी है और किसी उद्योगपति को उद्योग लगाना है तो कीमत सरकार तय करेगी। जबकि वही उद्योगपति अपने उत्पादन की कीमत स्वयं तय करता है। यदि राजधानी या उद्योगों के लिए जमीन नहीं दी जायेगी तो सरकार सिर्फ एक लाईन में छिन (अधिग्रहण) लेगी और उद्योगपतियों को दे देगी।
आप विरोध करते रहो शराब ठेकेदार नियम विरूद्ब दुकानें खोल ही देगा और पुलिस भी उसकी सुरक्षा में खड़ी हो जायेगी।आप एक इंच जमीन जरूरत पड़ने पर भी कब्जा नहीं कर सकते उद्योगों को अवैध कब्जे की छूट है।
विकास के नाम पर उद्योगपतियों को जमीन दी जायेगी आम आदमी से छिन ली जायेगी।
आम आदमी के लिए पीने का साफ पानी नही लेकिन नेता अधिकारी बिसलरी पियेंगे वह भी सरकारी पैसे से
आम आदमी के लिए स्वास्थ्य सुविधा हो या न हो नेता अधिकारियों के लिए बड़े अस्पताल में मुफ्त ईलाज होगा
आम आदमी के लिए सरकारी स्कूल हो या न हो नेता अधिकारी के बच्चे नामचीन स्कूलों में पढ़ेगे अब तो एयरकंडीशन की सुविधा तक ढूंढी जाती है।
सरकारी स्कूलों में भवन या शिक्षक हो या न हो लेकिन प्राईवेट स्कूलों को grant .देंगे।
किसानों को पानी मिले या न मिले उद्योगके लिए नदिया बेच दी जायेगी।
और यह होता है आम आदमी द्वारा दी गई टैक्स की राशि से। इन्कम टैक्स देने वाले ...या लोग जितना टैक्स देते हैं वे कितने है और आम आदमी जो टैक्स देता है वह कितना है आकंलन करे तो पता चलेगा कि आम आदमी जीवन उपयोगी समान खरीकर यादा टैक्स देता है। इसके बाद भी सुविधा आम की बजाय खास लोगों को दी जाती है। योजनाएं आम की बजाए खास लोगों के लिए बनती है क्या यही है स्वतंत्रता।