गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

कोरोना की दूसरी लहर और मोदी सत्ता...

 

कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयावह होगी, यह किसने सोचा था? क्या पहली लहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए चेतावनी थी कि वह पूरा ध्यान स्वास्थ्य सुविधा पर दे? सवाल कई है क्योंकि अस्पताल और दवाई से जूझ रहे लोगों को यह जानना चाहिए कि पिछले साल कोरोना की पहली लहर से निबटने डब्ल्यू.एस.ओ, आईएमएफ और एशियन डेवलपमेंट बैंक ने भारत को करीब 53 हजार 620 करोड़ रुपए दिये थे ताकि मोदी सत्ता स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करे। इसके अलावा पीएम केयर फंड में भी करोड़ों अरबों रुपए जमा हुए थे! लेकिन मोदी सत्ता ने क्या किया?

सवाल बहुत से है लेकिन सारे सवाल का हिन्दू-मुस्लिम ही जवाब हो तो फिर गुस्सा और करुणा में लाशें गिनने के अलावा जनता कर भी क्या सकती है। देश का कोई राज्य नहीं है जहां स्वास्थ्य सुविधा मजबूत हो, हर जगह सरकारी लापरवाही साफ दिख रहा है, उपर से कुंभ और चुनाव ने मोदी सत्ता की लापरवाही के सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं?

कोरोना को लेकर जब पिछले साल सारी दुनिया उपाय ढूंढ रही थी तब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नमस्ते ट्रम्प के चक्कर में थे लेकिन इसका दुष्परिणाम क्या हुआ। न यार मिला न बिसार सनम के तर्ज पर कोरोना तो बढ़ा ही अमेरिका से दुश्मनी अलग मोल ले ली। लापरवाही यही नहीं रुकी जब तक मध्यप्रदेश में सत्ता नहीं बन गई तब तक हाथ बांधे इंतजार किया गया। राहुल गांधी ने जब कोरोना को सुनामी और अर्थव्यवस्था को लेकर चेतावनी दी तो मोदी सत्ता सहित पूरी भाजपा मजाक बनाने लगे। यानी जिस सत्ता को विपक्ष का अच्छा सुझाव भी गंवारा नहीं उस सत्ता के अहंकार का असर जनता ही भुगतेगी। लेकिन सत्ता इन सब बातों से इसलिए बेपवाह है क्योंकि उनके पास लोगों का दिल जीतने धर्म और राष्ट्रवाद का ब्रम्हा है।

खैर सवाल तो यही है कि सालभर के समय मिलने के बाद भी मोदी सत्ता ने अस्पताल दवाई और डॉक्टर के बारे में क्या किया। कुछ नहीं किया और हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा कहा जाए तो गलत नहीं है। दुनिया की शायद यह पहली सत्ता है जिसका विरोध करना देशद्रोह है, पैसों का हिसाब मांगना देशद्रोही और हिन्दू विरोधी है। कब्रिस्तान की तरह श्मशान में बढ़ोत्तरी की मंशा सबके सामने है। उपर से सत्ता का जिम्मेदारी से भागना तो बेशर्मी की हद पार करना है। हर बात पर हिन्दू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद के ढोंग ने देश के सामने भयावह संकट खड़ा कर दिया है। चिकित्सा सुविधा को मजाक बना देने और निजी अस्पतालों को प्रश्रय देने का नतीजा सबके सामने है। तब सवाल है आम आदमी क्या करे, एक तरफ सरकारी अस्पतालों में सुविधा का अभाव और दूसरी तरफ निजी अस्पतालों की महंगी होती चिकित्सा सुविधा में आम जन मरे नहीं तो क्या होगा। हम निजी अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था को लूट इसलिए नहीं कहेंगे क्योंकि ये सिस्टम क अंग है। जब सरकार ही सुविधा देने के नाम पर कमीशनखोरी और लूट मचा रखी है तब किसी एक संस्थान पर लूट का आरोप बेमानी है।

जब सत्ता ही आपदा को अवसर में बदलने का राग अलाप रहा हो तो कालाबाजारी कैसे गलत हो सकता है आखिर वे गलत क्या कर रहे है। जैसी राजा वैसी प्रजा तो 2014 के बाद से चल रही है।