शनिवार, 4 अप्रैल 2020

जनआवाज की सुविधानुसार परिभाषा...


मीडिया की विश्वसनियता पर जब सवाल उठने लगे हैं तब यह सवाल मौजूदा वक्त में बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? मीडिया की भूमिका में कहा चूक हो रही है। क्या उसने सचमुच जन सरोकार की तरफ से आंख मूंद लिया है? या फिर वह अपनी सुविधानुसार खबरें छापने लगा है? सवाल यह भी है कि क्या सरकार की पसंद नापसंद पर मीडिया की भूमिका सिमटता चला जा रहा है? तब फिर जन सरोकार की पैरवी कौन करें।
सवाल यह नहीं है कि मीडिया की विश्वसनियता क्यों समाप्त हो रही है बल्कि सवाल यह है कि मीडिया अपनी भूमिका निभाने में कहां चूक कर रही है। अपना प्रचार बढ़ाने या टीआरपी बढ़ाने की अंधी दौड़ में वह कहां चली जायेगी। मीडिया की भूमिका विवाद बढ़ाने की है या विवाद को समाप्त करने की है।
मौजूदा दौर में जब सब कुछ बदल रहा है तो मीडिया की भूमिका के बदलाव पर चर्चा जरुरी हो गया है। राजनीति के रंग से दूर जन सरोकार में मीडिया क्योंं पीछे होते चली जा रही है। क्या राजनेताओं की बयानबाजी और भ्रष्टाचार ही मीडिया का एकमात्र हथियार हो गया है या शिक्षा स्वास्थ्य बेरोजगारी बिजली-पानी भी पत्रकारिता का ह्स्सिा है?
राज्य बनने के पहले छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता को जिन उंचाईयों पर देखा जन सरोकार के मुद्दों ने जिस तरह से सरकार की चूलें हिला दी थी। क्या वैसी खबरें राज्य बनने के बाद देखने को मिल रही है। इसका जवाब में ही मीडिया की विश्वासनियता का पैमाना जुड़ा हुआ है।
राज्य बनने के बाद पत्रकारिता ने नई करवट ली। चूंकि छत्तीसगढ़ की राजधानी में मीडिया की बाढ़ आ गई तो पत्रकारिता भी यहीं से चलने लगी। राजधानी में नेताओं अफसरों और माफियाओं के गठजोड़ ने सबसे पहले तो मीडिया को घेरना शुरु किया और विज्ञापन के दबाव तले पत्रकारिता को दबाने की कोशिश होने लगी। नेताओं की बयानबाजी और भ्रष्टाचार की खबरों ने अखबारों या चैनलों की जह को घेरना शुरु किया तब स्कूल में टीचरों या अस्पतालों में दवाओं का अभाव पर खबरें कम होती चली गई। रिपोर्टिंग जैसी चीज तो लुप्त प्राय: होने लगी और यह किसी से नहीं देखा कि कांक्रीट में तब्दिल होते शहर में प्रदूषण का स्तर कहां जा रहा है।
पत्रकारिता के रवैये में आई इस तब्दिली के इस दौर में एक खास बात और हुई कि मीडिया सत्ता केन्द्र के आगे मंडराने लगी और यह सब इतना खुला होने लगा कि आम जन भी इसे आसानी से देखने लगे और यहीं से उनकी विश्वसनियता पर सवाल उठने लगे और जब सवाल उठेंगे तो निशाना भी वहीं होंगे इसलिए जैसे ही सोशल मीडिया का दौर आया सबसे पहले निशाने पर मीडिया ही आया।
मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रहार करने की कोशिश में वे लोग भी जुड़ गए जो माफियागिरी चला रहे थे। भ्रष्टाचार में लिप्त थे और अनैतिक कार्य कर रहे थे। यह सब साजिशन भी हुआ क्योंकि उनके खिलाफ मीडिया में खबरें आने पर जनआक्रोश बढ़ सकता था तो जनआक्रोश को दबाने के लिए ही मीडिया की विश्वसनियता पर सवाल उठाये गए।