बुधवार, 12 दिसंबर 2012

नियंत्रण नहीं पर लाभ चाहिए...

नियंत्रण नहीं पर लाभ चाहिए...
कोलगेट कांड को दबाने के लिए जी न्यूज और जिंदल समुह में सौदे की खबर से मीडिया शर्मसार हुआ है। और यह सवाल जोर पकडऩे लगा है कि यह मीडिया पर सरकार का नियंत्रण जरूरी हो गया है! इस घटना में न तो जिंदल समूह के भ्रष्टाचार कम आंके जा सकते है और न ही जी न्यूज की इस खेल को ही नजर अंदाज किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ राÓय बनने से पहले यहां की पत्रकारिता को जो सम्मान मिलता रहा है ह उसमें कमी आई है। राÓय बनने के बाद मीडिया मैनेजमेंट का नया खेल शुरू हुआ है जिसमें बड़े-बड़े मीडिया समूह भी शामिल हो गये है। वे या तो खबरों के एवज में सीधे रकम ले रहे हैं या फिर विज्ञापन को माध्यम बता रहे है। पेड-चूज का यह आलम है कि सभी नेता व कार्पोरेट घराने इस खेल में शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ में बड़े अखबार समूहो ने सरकार से फायदे के सीधे रास्ते के अलावा अप्रत्यक्ष फायदे का खेल शुरू कर दिया अखबार के अलावा दूसरे धंधो में सरकार से फायदा लेने का तिकइम जनता के सामने है। अखबार चलाने के नाम पर कौडिय़ों के मोल सरकारी जमीने ली गई और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स तक ताने गये। सरकारी जमीनों के इस बेचा इस्तेमाल पर कार्रवाई करने की हिम्मत न तो किसी अधिकारी में है और न ही राजनेताओं में। इन जमीनों के लीज रेट को लेकर भी खेल चला। अखबार को सरकार से सारी सुविधाएं चाहिए। जनसंपर्क से विज्ञापन पर दबाव, वाहनों के लिए दबाव यहां तक कि घूमने फिरने तक के लिए दबाव बनाये जाते हैं।
विदेश तक घूम आये...
छत्तीसगढ़ के मीडिया बिरादरी को खुश करने सरकार विदेश तक ले जा चुकी है बैकांक- पटाया जा चुके पत्रकारों के नाम पर खूब खर्च हुए। जनता की गाढ़ी कमाई पर अपव्यय को लेकर छापने वाले पत्रकार न संपादक को यह विदेश यात्रा कभी अपव्यय नहीं लगा। और न ही उन्हें सरकारी सुविधाएं लेने में कभी हिचक हुई।

और अंत में...
पत्रकार अब सरकारी खर्चे पर किताब लिखने लगे है। सरकार से पैसा एंठने में इस नये खेल में ईमानदारी का ढि़ंढोरा पिटने वाले कई शामिल है।

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