गुस्से की वजह
दिल्ली में हुए बलात्कार के बाद दिल्लीवासियों का गुस्सा जिस तरह से फट पड़ा । वह हैरान कर देने वाला रहा । इतना गुस्सा ।
इसके उलट राजधानी में हफ्ते भर में बलात्कार की तीन घटनाएं हुई । चार साल के मासूम तक को नहीं छोड़ा । तब भी लोग सड़क पर नहीं आये और सड़क पर आये तो दिल्ली के लिए । छत्तीसगढ़ में शिक्षा कर्मियों का आन्दोलन भी उतना उग्र नहीं हुआ । भाजपा ने एक नहीं दो बार अपने घोषणा पत्र बनाम संकल्प पत्र में शिक्षा कर्मियों के संविलियन की बात कहीं है लेकिन अपने संकल्प को वह सत्ता में आते ही भूल गई । पहले संकल्प के दौरान तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह स्वयं प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे ।
संकल्प तो किसानों को 270 रूपये बोनस देने का भी था लेकिन उसे भी भूल गई । किसानों ने भी आन्दोलन किया लेकिन न सरकार झूकी और न ही किसानों को इतना गुस्सा आया । गुस्सा तो तब भी नहीं दिखा जब नई राजधानी से लेकर उद्योगों के लिए खेती की जमीन कौडिय़ों के मोल किसानों से ले ली गई और न ही गुस्सा तब भी आ रहा है जब भ्रष्टाचार के किस्से गली चौराहे पर हो रही है ।
कृषि उपज मंडी की जमीन डाक्टरों को कौडिय़ों के मोल दे दी गई । तब भी गुस्सा नहीं आया ।
छत्तीसगढ़ राÓय आन्दोलन के दौरान भी कभी आन्दोलन में हिंसा ने अपना स्थान नहीं लिया और अब भी किसी भी आन्दोलन में हिंसा का कोई स्थान नहीं है । और न ही हम किसी भी आन्दोलन के हिंसा का समर्थन ही करते हैं । लेकिन हम सरकार से एक बात जरूर कहते हैं कि वह छत्तीसगढ़ की स्थिति को ऐसा न होने दे ।
सत्ता के लिए राजनीति जरूर करें लेकिन ऐसे वादे न करे जिसे पूरा करने में दिक्कत हो । कांग्रेस सरकार के लाठी चार्च से नाराज शिक्षा कर्मियों के वोट के लिए संविलियन का संकल्प जब पूरा नहीं करना था तब ऐसा संकल्प लिया ही क्यों गया ? ऐसे में आज जब शिक्षा कर्मी इसी संकल्प को पूरा करने सड़क पर उतर आये हैं तो गलती किसकी है । उनके सड़क पर उतरने से नौनिहालों की पढ़ाई का क्या होगा । इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ।
उपर से आन्दोलन को कुचलने का सरकारी प्रयास क्या गुस्से को भड़काने वाला नहीं है । क्या भाजपा को इस झूठे वादे के लिए माफी मांगकर शिक्षाकर्मियों को समझाना नहीं चाहिए । हमारी तो सभी राजनैतिक दलों से गुजारिश है कि सिर्फ सत्ता के लिए ऐसा आश्वासन या वादे न करे जिसे पूरा नहीं किया जा सकता । क्योंकि ऐसे वादों से ही आन्दोलन में हिंसा को बल मिलता है और जिसकी सजा ईमानदार या आम लोगों को भुगतना पड़ता है । अब लोगों को सिर्फ झूठे वादों से Óयादा दिन नहीं बहलाया जा सकता । लोगों में जागरूकता आई है और वे अपना अधिकार भी समझने लगे हैं । अब पहले सा जमाना नहीं रहा कि लोग वादे भूल जाते थे या अपने जनप्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार को नजर अंदाज कर देते थे ।
अब लोग अपने हक के लिए सड़कों तक आने लगे है और उन्हें समय रहते नहीं समझाया गया तो सरकार के लिए दिक्कत हो सकती है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें