मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

दस लाख दो, मान्यता लो

लगता है छत्तीसगढ सरकार में बैठे मंत्री और अफसरों को आम लोगो के जीवन को खतरे में डालने का निर्णय ही कर लिया है। यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग में बड़ी कार्रवाई के बाद भी घपलों की कहानी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। ताजा मामला बगैर मापदंड के पैरामेडिकल प्रशिक्षण चला रहे संस्थाओं को मान्यता देने का है। पता तो यह भी चला है कि इन संस्थानों में कई बड़े नेता और अफसरों के पैसे लगे हैं। इसलिए नियम कानून को ताक पर रखकर न केवल धरतीपुत्रों की उपेक्षा की जा रही है बल्कि आम लोगों के जीवन से खेलने का षड़यंत्र रचा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य विभाग इन दिनों सरकारी नियंत्रण से बाहर चला गया है। पूर्व स्वास्थ्य सचिव से लेकर कई संचालकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और रोज नई कहानी बाहर आ रही है। हालत यह है कि यहां बैठे अफसर अपनी जेबें गरम कर रहे है और सरकार तमाशाबीन है। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने तीन दर्जन से अधिक संस्था काम कर रही है। इन संस्थाओं में सार्वा, मधुलिका सिंह से लेकर कई मंत्री और अफसरों के पैसे लगे हैं। यही वजह है कि नर्सिंग काउसिंल एक्ट की धज्जिया उड़ाते हुए इन संस्थाओं को छत्तीसगढ़ में मान्यता दे दी गई। हालांकि इस तरह की मान्यता की जिम्मेदारी डॉ. आर.एन. वर्मा के पास है और कहा जाता है कि संस्थाओं को मान्यता देने 10-10 लाख रुपए तक लिए गए।
आल इंडिया नर्सिंग काउसिंल ने मान्यता के लिए करीब दर्जनभर नियम बनाये है और छत्तीसगढ में जिन संस्थाओं को मान्यता दी गई है उनमें से एक भी संस्था ऐसी नहीं है जो काउसिंल एक्ट के नियमों का पालन करती है इसके बाद भी मान्यता देने का अर्थ आसानी से समझा जा सकता है। कई लोग तो 2008 से संस्था चला रहे है और प्रत्येक संस्थान में 30 से यादा स्टूडेंट है इस तरह से इन संस्थानों ने बेरोजगार युवकों को बगैर मान्यता के भारी भरकम फीस वसूल कर धोखाधड़ी की हैं क्योंकि बगैर मान्यता प्राप्त संस्थानों की डिग्री का कोई औचित्य नहीं है।
यहीं नहीं इन संस्थानों में छत्तीसगढ क़े बाहर से आए लोगों को प्रवेश दिया गया है जिनकी डिग्री को लेकर भी सवाल उठ रहे है। बहरहाल पैरामेडिकल प्रशिक्षण संस्थानों को लेकर चल रही चर्चा थमने का नाम नहीं ले रही है और स्वास्थ्य विभाग का कारनामा बढ़ता ही जा रहा है।

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