मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

पैसा तो सिर्फ नेताओ और अधिकारियो के पास

आयकर विभाग के अफसरों ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के यहां छापे की कार्रवाई क्या की छत्तीसगढ़ में एक नई बहस छिड़ गई है प्रभाकर अग्रवाल ने सवाल पूछा कि आप तो पत्रकार हैं बताईये सबसे ज्यादा पैसा छत्तीसगढ क़े किस नेता और किस अधिकारी के पास है एक अन्य मित्र अन्नू हसन ने कहा कि मीडिया को तो राज्य बनने के बाद सर्वाधिक पैसा कमाने वाले टॉप टेन अधिकारियों और टॉप टेन नेताओं की सूची जारी करनी चाहिए। इन दोनों ही मित्रों को न तो कभी राजनीति में रूचि रही और न ही कभी ये तीन-पांच में ही रहे लेकिन इनका सवाल यह बतलाता है कि छत्तीसगढ़ में नेताओं और अधिकारियों ने जो अंधेरगर्दी मचा रखी है उसकी जानकारी आम लोगों को भी है।
राज्य बनने के पहले अधिकारियों को लेकर दो चार नाम जरूर गिनाये जाते थे उनमें भूतड़ा, बख्शी, जगने साधु जैसे नाम थे। नेताओं में भी पंखा चोर, पंचर वाले या टैक्स ड्राईवर, नाका चोर कंट्रोल दुकान वाले, सटोरिया किंग जैसे कुछ नाम चर्चित थे। इनकी अंधेरगर्दी के किस्से खूब चर्चा में रहे। राज्य बनने के बाद तो शुरुआती तीन साल में छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जाते रहे वैसे वे जब कलेक्टर थे तब भी उन पर कोडार बांध और पॉम आईल घोटालों के आरोप लगे लेकिन भाजपा की पूरी सरकार और इस दौरान प्रमुख पदों पर रहे आईएएस अधिकारियों और निगम-मंडल के संचालकों या विभागीय संचालकों पर तो खुले आम भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और इसके बाद भी भ्रष्टाचार की जांच नहीं होना, यदि जांच हुई तो कार्रवाई नहीं होना सरकार की अंधेरगर्दी को दर्शाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य का सपना देखने वाले इन परिस्थितियों से दुखी हैं तो उनके दुख से सरकार का कोई सरोकार भी नहीं है सरकार अपने में मगन हैं उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि आम आदमी इस बढती महंगाई में किस तरह से जिन्दगी गुजार रहा है। मुठ्ठीभर नेता और अधिकारी अपना भविष्य संवारने में लगे हैं और आम आदमी दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहा है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। छत्तीसगढ़ में किस मंत्री ने करोड़ों कमाये और किस अधिकारी ने करोड़ों बटोरे इसकी सूची बनाना तो आसान है लेकिन इन्हें नंबरों में सजाना मुश्किल है क्योंकि इनके बीच पैसा कमाने की जबरदस्त होड़ मची है। अखबारों ने कई विभागों के कारनामों को उजागर किया है। नौकरी से लेकर भवन निर्माण हो या सड़क निर्माण सबमें खुलेआम कमीशनबाजी चल रही है। छत्तीसगढ़ के खदानों को लीज पर बेचा जा रहा है। सरकारी जमीनों का बंदरबांट चल रहा है। जिस प्रदेश में नदियों का पानी तक बेचा जा रहा हो उद्योगों को प्रदूषण फैलाने की खुली छूट हो और खाद्य पदार्थों मे मिलावट करने वाले को पकड़ने पर पुलिस को मंत्री की तरफ से धमकी दी जा रही है। गृहमंत्री को कलेक्टर को दलाल और पुलिस अधीक्षक को निकम्मा कहना पड़ रहा हो वहां अंधेरगर्दी तो आम बात है।
सरकारी जमीनों को कौड़ियों के मोल बेचा जा रहा है। उद्योगों से लेकर कालोनी बनाने की बात हो या डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डा. सुनील खेमका जैसे पैसे वालों को करोड़ों की जमीन कौड़ी के मोल देने की बात हो सरकार कटघरे में तो खड़ी ही है। ऐसे में यह कहा जाए कि छत्तीसगढ़ में पैसा तो अधिकारियों व नेताओं के पास ही है तो अतिशेयोक्ति नहीं होगी फिर टॉप टेन की सूची तो जनता को बनाना चाहिए। ऐसी सूची जरूर प्रकाशित होगी।

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