मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

यूं हीं नहीं होता कोई बड़ा अखबार...

पिछले दिनों जब कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल के यहां छापे की कार्रवाई चल रही थी तब एक मित्र उचित ने मुझे मेरे मोबाइल पर एक एसएमएस भेजा नवभारत इस प्रदेश का सबसे तेज अखबार है इसलिए उसने माह भर पहले ही अपने यंग एचिव में बाबूलाल अग्रवाल का साक्षात्कार प्रकाशित कर दिया था। यह एसएमएस के पीछे क्या वजह थी यह तो उचित ही जाने लेकिन नवभारत की तेजी को लेकर उनके कमेन्ट्स पर मुझे व्यंग्य ही नजर आ रहा था।
वास्तव में छत्तीसगढ़ में मीडिया का अपना प्रभाव है और आज भी लोगों को सबसे यादा किसी अखबार पर भरोसा है तो उसमें नवभारत की गिनती होती है। राज्य बनने के बाद सरकारी विज्ञापन हासिल करने की होड़ में बड़े अखबारों ने जिस तरह से खबरों पर लीपा-पोती की है और विभागीय विज्ञापन हासिल करने जिस तरह से अधिकारियों की खुशामद शुरु की है उससे कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में पदस्थ कई अधिकारियों पर गंभीर आरोप हैं। मालिक मकबूजा कांड से लेकर दूसरे बड़े घोटालों में आरोपी हैं ऐसे में उनकी तारीफ में छापने से पहले उनकी पूरी पृष्ठभूमि की जानकारी जरूरी है। अन्यथा आम लोगों में जो प्रतिक्रिया होगी वह मेरे मित्र उचित की तरह होगी जो मीडिया का साख गिराने वाला होगा। विभाग की जानकारी लेना और विभाग के कार्यक्रमों को छापना अलग बात है लेकिन हम जब किसी के पर्सनल जिन्दगी पर छापते हैं तो कई तरह की सावधानियां जरूरी है।
मैं यहां किसी को पत्रकारिता या पत्रकारिता का मापदंड सिखाने की कोशिश नहीं कर रहा हूं लेकिन राज्य बनने के बाद पत्रकारिता की कमजोरी का फायदा जिस तेजी से अधिकारी व नेता उठा रहे हैं उससे हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।
और अंत में....
शहर के प्रतिष्ठित माने जाने वाले एक अखबार के प्रथम पृष्ठ पर पूरा पेज विज्ञापन देखकर एक पाठक ने हमें कमेन्ट्स भेजा कि यूं ही कोई सात-आठ सौ करोड़ का आसामी नहीं हो जाता इसके लिए काम करने वालों का आह लेना पड़ता है।

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