गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

छत्तीसगढ़ में अफसर राज

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अफसर राज हावी है। सरकार में केवल अधिकारियों की चल रही है और इन्हीं अधिकारियों के सहारे कई विधायक और मंत्री भी लाखों कमा रहे हैं इसलिए जनप्रतिनिधि इन अफसरों के खिलाफ कुछ नहीं कहते। शायद यही वजह है कि आयकर विभाग के छापे के बाद कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल ने सीना ठोक कर कहा कि वे ईमानदार हैं और मुख्यमंत्री भी यही कहते रहें कि आयकर के रिपोर्ट को देखने के बाद ही कार्रवाई होगी जबकि इसी दौरान मध्यप्रदेश में भी छापे की कार्रवाई हुई और वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने यहां के भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने में जरा भी देर नहीं की।
छत्तीसगढ़ में अफसरों के अंधेरगर्दी का यह आलम है कि वे अपनी मनमानी पर उतर आए है। एक सचिव तो अपनी दूकान सजाने दूसरे की दुकान खाली कराने निगम पर दबाव डाल रहे हैं तो दूसरा सचिव इस्तीफा देकर सीएसईबी का चेयरमैन बनने आमदा है। कोई सचिव मौली विहार में मजे लूट रहा है तो कोई भ्रष्टाचार में गले तक उतर आया है। जिस प्रदेश के गृहमंत्री को मुख्यमंत्री के जिले के कलेक्टर और पुलिस कप्तान को दलाल व निकम्मा कहना पड़ रहा हो वहां की सरकार की व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में तो दर्जनभर सचिवों को पांच-पांच सौ करोड़ का आसामी माना जाने लगा है। ऐसे में बाबूलाल अग्रवाल जैसे आईएएस के यहां छापे की कार्रवाई "टिप आफ आइस बर्ग" है। मुख्यमंत्री से लेकर आधा दर्जन मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं।राज बनने के बाद नेताओं ने जिस बेहिसाब ढंग से जमीनें खरीदी है वह अपने आप में आश्चर्यजनक है। इन जमीनों में नामी-बेनामी करने में करोड़ों रुपए की हेराफेरी हुई है।
छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है ऐसे में बाबूलाल अग्रवाल और उनके सीए सुनील अग्रवाल का कहना है कि उन्हें फंसाया गया है कम आश्चर्यजनक नहीं है। छापे के दौरान जब्त 220 बैंक खाते और लाकरों की चाबियां जो कहानी बयान कर रही है उसके बाद भी सरकार के मुखिया नहीं जागे तो इसे अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या कहेंगे।
छत्तीसगढ़ का ऐसा कौन सा सरकारी विभाग नहीं हैं जहां भ्रष्टाचार की खबरें राह चलते सुनाई नहीं पड़ रही है। पर्यटन में बगैर नाम पते के किसी व्यक्ति को लाखों रुपया देना भ्रष्टाचार की हदें पार करना नहीं तो और क्या है। पर्यटन में नियुक्ति के नाम पर अधिकारियों के रिश्तेदारों की नियुक्ति के बाद भी मंत्री यह कहें कि सब कुछ ठीक है तो यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
यदि मुख्यमंत्री ईमानदार हैं तो उन्हें विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार पर सीधे सचिवों व मंत्रियों पर जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। लेकिन यहां तो भ्रष्ट लोगों को संरक्षण दिया जा रहा है। कमलू, विक्रमा जैसे दलालों द्वारा काम कराने के दावे किए जा रहे हैं। और सबसे बड़ी अंधेरगर्दी तो करोड़पतियों को कौड़ी के मोल सरकारी जमीनों को बांटना है। डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डॉ. सुनील खेमका को मंडी में करोड़ों की जमीनें कौड़ी के मोल सिर्फ इसलिए दे दी जाती है क्योंकि वे भाजपा के प्रमुख पदाधिकारियों के रिश्तेदार हैं। ऐसे में अधिकारी जनप्रतिनिधियों से दबने की बजाय मनमानी करें तो क्या कहा जा सकता है।

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