मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

मुख्यमंत्री के खिलाफ छाप लो, संवाद प्रभारी के खिलाफ छापा तो नौकरी गई...


छत्तीसगढ़ में अफसर राज हावी है इसका यह नमूना मात्र है। छत्तीसगढ़ में सरकारी विज्ञापन के मोह ने पत्रकारिता की ऐसी-तैसी करने में कोई कमी नहीं छोड़ा है। यही वजह है कि यहां अधिकारियों के खिलाफ खबर छपते ही उसकी तीखी प्रतिक्रिया होती है।
पिछले दिनों मृत्युजंय मिश्रा ने अपनी नौकरी से हटाये जाने को लेकर संवाद प्रभारी कोरेटी के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ली। ढसाढस भरे प्रेस कांफ्रेंस में वैसे तो सभी अखबारों के पत्रकार मौजूद थे लेकिन रोज निकलने वाले अखबारों में से दो-तीन अखबारों में ही यह खबर प्रकाशित हो पाई। इनमें से प्रतिदिन राजधानी में भी यह खबर प्रमुखता से छप गई। इस खबर को ठाकुर नामक पत्रकार ने बनाया था। जैसे ही अखबार में खबर छपी हड़कम्प मच गया। जब हमने पत्रकारिता की शुरुआत की थी मुझे याद है। तब हड़कम्प मचाने वाली खबरों पर संपादन के द्वारा पत्रकारों की पीठ थपथपाई जाती थी लेकिन यहां तो उल्टा ही हो गया। इस पत्रकार की नौकरी ही चली गई।
पत्रकारिता के इस नए मापदंड से कोई पत्रकार हैरान भी नहीं है क्योंकि ऐसा यहां अक्सर होने लगा है और कभी नेता या अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को नौकरी से निकलवाने की धमकी नई भी नहीं है। लेकिन सिर्फ सरकारी विज्ञापन के लिए जनसंपर्क के अधिकारियों से ऐसी घनिष्ठता आश्चर्यजनक है। छत्तीसगढ़ में यही सब कुछ हो रहा है और विज्ञापन देने वाली इस संस्था के अधिकारियों का प्रभाव बड़े-बड़े बैनरों पर भी स्पष्ट देखा जा सकता है। कई पत्रकार तो अब आपसी चर्चा में व्यंग्य तक करने लगे हैं कि मुख्यमंत्री के खिलाफ छाप सकते हो लेकिन जनसंपर्क या संवाद के अधिकारियों की करतूत को छापोगे तो नौकरी चली जाएगी। छत्तीसगढ़ में अखबार मालिकों के इस रवैये की वजह से ही शासन-प्रशासन में स्वेच्छाचारिता बढ़ी है और यही हाल रहा तो पत्रकारिता पर यह कलंक धुलने वाला नहीं है।
और अंत में...जनसंपर्क में नौकरी वही लोग कर सकते हैं जो अपना वेतन भी अधिकारियों पर कुर्बान कर दे। ऐसे ही एक युवक यहां अपने नियमित होने के इंतजार में आधा वेतन अधिकारियों के लिए छोड़ देता है। इसके सर्टिफिकेट भी फर्जी होने की चर्चा है।

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