शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

जल, जंगल, जमीन का फैसला कैसे हो?

क्या इस देश में ऐसी कोई सरकार है जिसे 50 फीसदी से अधिक लोगों ने अपना मत दिया है। शायद नहीं। नेता तो कई मिल जाएंगे जिन्हें उनके क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक लोग पसंद करते हैं। छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी ही ऐसे नेता हैं जिन्हें उनके विधानसभा क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक लोगों ने वोट देकर जीताया है। लेकिन सर्वाधिक वोट से जीतने के बाद भी वे कहां है? यह संवैधानिक व्यवस्था है या अव्यवस्था यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कुल मतदान का 30-40 फीसदी वोट पाकर सत्ता में बैठे लोग किस तरह से फैसले लेते हैं इसका उदाहरण है आजादी के 63 साल बाद के बाद भी आम आदमी का जीवन स्तर कहां है।
कैसे कोई चुनाव जीतते ही लखपति-करोड़पति बन जाता है? इस देश का आयकर, सीबीआई, अपराध ब्यूरों को क्या यह नहीं दिखता? भ्रष्टाचार की इस टोली ने जल, जंगल और जमीन तक को नहीं छोड़ा? क्या ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता कि कम से कम इन मामलों में तो आम लोगों को राय ली जाए। क्या यही व्यवस्था है कि पूरा जीवन जंगल में गुजारने वालों को जलाऊ लकड़ी काटने तक की छूट नहीं है। यह सर्व सत्य है कि जंगल आदिवासी बसाते हैं उसे बर्बाद नहीं करते। जंगल तो सिर्फ नेता-अधिकारियों और कुछ ठेकेदार नष्ट कर रहे हैं। फिर उन्हें अधिकार क्यों नहीं है। पूरे देश में जिस तरह से विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन से खिलवाड़ कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है वह आने वाले दिनों में भयंकर त्रासदी बनकर आने वाला है।
यदि नेताओं और अधिकारियों ने रातों रात अपनी तिजौरी भरी है तो उनकी तिजौरी में जमा पूंजी के 80 फीसदी हिस्सा जल, जंगल और जमीन को बर्बाद करने के एवज की की है शेष 20 फीसदी ट्रांसफर-पोस्टिंग और निर्माण कार्यों की है। क्या गांधी का नाम लेकर सत्ता पर बैठने वालों ने कभी गांधी के दर्शन पर कार्य करने की दूर सोचा भी है कि स्वराज के मायने क्या है। क्या यही स्वराज है कि पैसा कमाने के लिए नेता या अधिकारी बन जाओं। आम आदमी से टैक्स तो लो लेकिन उसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी जैसी मूलभूस सुविधा भी ना दो।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है पेंशन का खेल बंद कर यदि सरकार सिर्फ स्वास्थ्य, पानी और शिक्षा पर काम करे तो भारत अब भी सोने की चिड़िया बन सकती है। जिसे इस देश के बाहर पढ़ना है वे पढ़े। पहले भी तो गांधी-नेहरु से लेकर कितने लोगों ने विदेशों में जाकर पढ़ाई की लेकिन उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग धर्नाजन की बजाय लोकहित में लगाया। विकास के नाम पर अब जल, जंगल, जमीन की बर्बादी बंद हो। सेवा के नाम पर आम लोगों के पैसों की बर्बादी बंद होनी चाहिए। सरकार के पास अब भी समय है। नेताअओं के पास अब भी समय है कि वे अपने पैसा कमाने की भूख पर विराम लगाए वरना कल तक जो लोग सिर्फ जूता फेंककर आक्रोश व्यक्त करते रहे हैं अपना कदम आगे भी बढ़ा सकते हैं। इसलिए अब भी समय है कि आम लोगों से लिए टैक्स से अपनी सुविधा बढ़ाने का प्रपंच बंद हो जाए।
आखिर जनता के सेवा के बदले कोई व्यक्ति तनख्वाह कैसे ले सकता है। जनसेवा की कीमत वसूलने के बाद भी वह चैन से कैसे सो सकता है। इतने छल प्रपंच के बाद कोई सुखी कैसे रह सकता है। हम उस देश के वासी है जहां कर्मों के फल पर बात होती है इतना बढ़ा धोखा आम जनता से कि सेवा कर लिया जाए। समय बदल रहा है और इस समय के साथ हमारी नई आजादी को जो समर्थन और सहयोग मिल रहा है उससे व्यवस्था में बदलाव आएगा। जरुर आएगा।

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