रविवार, 1 अगस्त 2010

पूर्व विधानसभाध्यक्ष की बिटिया ही प्रताड़ित है सरकार से


सचिव देवेन्द्र वर्मा पर कई आरोप
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने ये भी कभी नहीं सोचा था कि जिस व्यक्ति को वे छत्तीसगढ़ के हित लिए रोक रहे है वहीं उनकी बिटिया की उन्नति के मार्ग में बाधक बनेंगे। मामला विनिता बाजपेयी का है जो विधानसभा अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक के चक्कर लगा चुकी है और इस मामले में कांग्रेसियों की चुप्पी भी आश्चर्यजनक है।
प्रदेश की सर्वोच्च संस्था विधानसभा के सचिवालय में जो कुछ चल रहा है वह सरकार की मंशा को दर्शाने के लिए काफी है। वैसे भी इस प्रदेश में बैठी सरकार की करतूतें कम नहीं है जिन अधिकारियों को जेल या फिर प्रदेश से बाहर होना चाहिए उन्हें क्रीम व कमाऊ पद पर बैठा दिया गया है। जबकि ये तीनों मध्यप्रदेश कैडेर के अधिकारी है।
विधानसभा सचिवालय में भी यही सब हो रहा है। कानून को खुंटे में टांगकर जिस तरह से मनमानी की जा रही है उससे कई तरह के सवाल ही नहीं उठ रहे है बल्कि इसकी गरिमा को भी ठेस पहुंची है। देवेन्द्र वर्मा किस तरह से छत्तीसगढ़ में जमें हुए हैं इसकी एक अलग ही कहानी है लेकिन विधानसभा सचिवालय की मनमानी से प्रताड़ित विनिता बाजपेयी इन दिनों अपने साथ हुए अन्याय के लिए सरकार से लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं तक का चक्कर लगा चुकी है।
यह विनिता बाजपेयी सिर्फ विधानसभा सचिवालय की अधिकारी होती तब भी कांग्रेसियों की चुप्पी जायज नहीं थी लेकिन वह विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की बिटिया है जिन्होंने कांग्रेस के लिए अपना जीवन होम कर दिया ऐसे स्वर्गवासी श्री शुक्ल की बिटिया के साथ किए जा रहे अन्याय पर भी कांग्रेसियों की खामोशी आश्चर्यजनक है।
दरअसल विवाद सचिवालय द्वारा जारी पदोन्नति सूची से शुरु हुआ। श्रीमती विनिता वाजपेयी 2001 में अनुसंधान अधिकारी एवं उसके समकक्ष अवर सचिव के पद पर कार्यरत थी और जब पदोन्नति आदेश निकला तो उनका नाम तो आदेश में था लेकिन न तो पद में और न ही वेतन में ही ईजाफा किया गया। इतिहास का यह पहला मामला होगा जब प्रमोशन तो दिया गया लेकिन पद और वेतनमान जस का तस रहा। जबकि छत्तीसगढ़ विधानसभा सचिवालय सेवा भर्ती एवं सेवा शतर्ें अधिनियम 1981 के नियम 4 (3) में स्पष्ट उल्लेख है कि उपसचिव के पद पर पदोन्नति अवर सचिव कैडर या अनुसंधान अधिकारी कैडर से दिए जाएंगे।
यहीं नहीं सचिवालय की मनमानी और भर्राशाही का यह नमूना है कि देवेन्द्र वर्मा जब अनुसंधान अधिकारी से पदोन्नति किए गए तो उन्हें उपसचिव बनाया गया जबकि विनिता वाजपेयी के साथ ऐसा नहीं हुआ। यही नहीं सरकार की इससे बड़ी प्रताड़ना और क्या होगी कि श्रीमती बाजपेयी को अपने से कनिष्ठ आर.के. अग्रवाल और दिनेश शर्मा से नीचे काम करना पड़ रहा है। जबकि दिनेश शर्मा को अवर सचिव पद पर बने हुए पांच साल भी नहीं हुए है। फिर भी इनका प्रमोशन कर दिया गया।
ऐसा भी नहीं है कि विधानसभा में चल रहे इस भर्राशाही और मनमानी की जानकारी प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को नहीं है लेकिन आश्चर्यजनक रुप से कांग्रेसियों ने चुप्पी ओढ़ ली है ऐसे में मामला श्रीमती सोनिया गांधी तक पहुंची तो नेता प्रतिपक्ष सहित कांग्रेसियों की क्या स्थिति होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल विधानसभा सचिवालय में चल रहे इस खेल पर सरकार की खामोशी उन्हीं पर भारी पड़ सकती है। कयोंकि आम लोगों में चर्चा का विषय बन रहे सचिवालय की करतूत से सरकार की छवि पर भी विपरीत असर पड़ेगा।

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