पैसा पटाया नहीं बिल्डिंग बना दी
लगता है छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की चीज नहीं है और यदि कही सरकार है भी तो वह केवल बड़े लोगों के मुठ्ठी में कैद है। अपने को तुरम खां कहने वाले मंत्री और छोटे-छोटे लोगों के कब्जों पर बुलडोजर चलाने वाले भी बड़े लोगों की जेबों में समा गए है। तभी तो सरकार को नियम कानून की सीख देने वाला नवभारत स्वयं ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए रजबंधा मैदान में अपनी बिल्डिंग खड़ा कर लेता है और पूरा शासन-प्रशासन नपुसंक की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठा है। तब न तो उन्हें नियम कानून ही नजर आता है और न ही इसमें कोई अपराध ही नजर आता है।
महिनेभर पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर टिप्पणी की थी कि आधे राज्य में शासन ही नहीं है तब कांग्रेसी भी चुप रह गए थे लेकिन अब इसकी जमीनी सच्चाई सामने आने लगी है कि सरकार किनके द्वारा चुनी जाती है और वह किसके हित के लिए काम करती है। मीडिया भी सरकार के गलत नीतियों की आलोचना करने से क्यों परहेज करती है।
दरअसल बेशकीमती जमीनों के बंदरबाट में जिस तरह से मीडिया खासकर प्रिंट मीडिया भागीदार बनते जा रही है उससे सरकार को मनमानी करने की छूट मिली हुई है। रायपुर में भी दो-पांच सौ छपने वाले अखबारों को भी जिस तरह से कौड़ी के मोल जमीन दी गई है और इन जमीनों का व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है वह सरकार और उसके पूरे कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है कि किस तरह से गलत लोगों को सरकार संरक्षण दे रही है। यहां हम छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित माने जाने वाले दैनिक अखबार नवभारत को आबंटित जमीन और उस पर किए गए अवैधानिक निर्माण की चर्चा कर रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने दैनिक नवभारत को 1985-86 में रजबंधा मैदान स्थित भूमि ब्लाक नम्बर 9, प्लांट नंबर 1 में से रकबा 60750 वर्ग फीट जमीन प्रेस स्थापना के लिए स्वीकृत की थी। इस घोषणा के साथ ही नवभारत को अग्रिम आधिपत्य मिल गया था और शासन ने निर्देश दिया था कि निर्धारित राशि पटाए जाने पर ही पट्टा निष्पादन किया जाए लेकिन नवभारत ने राज्य बनने के बाद तक न तो पैसा पटाया और न ही उसे पट्टा ही दिया गया। बावजूद नवभारत की बिल्डिंग बन गई। अब सवाल यह उठता है कि आखिर नवभारत को किस नियम के तहत बिल्डिंग बनाने की अनुमति दी गई। क्या बिल्डिंग का नक्शा पास कराया गया और नक्शा किस नियम के तहत पास किया गया। किस अधिकारी ने पास किया। इस समय इस निर्माण पर रोक क्यों नहीं लगाई गई। ऐसे कितने ही सवाल है जो आम आदमी के जेहन में उठ रहे हैं। क्या नवभारत का इतना प्रभाव है कि किसी सरकार ने नियम विरुद्ध कार्रवाई के खिलाफ कार्रवाई नहीं की या सरकार सिर्फ बड़े लोगों का संरक्षक बनकर रह गई है।
ऐसे कई मामले हैं जो सरकार और नवभारत के सांठगांठ की कहानी को उजागर करता है। सब कुछ गलत फिर भी सरकार की तरफ से एडवांश? भू-उपयोग भी गलत होता रहा सरकार खामोश रही। एमजी रोड से लेकर मालवीय रोड, जीई रोड में कितने बार अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चला तब किसी की हिम्मत क्यों नहीं हुई। क्या सरकार अब भी ऐसे लोगों के हाथों की कठपुतली रहेगी जो अपने प्रभाव और पैसों से गलत करे रहेगें।
jiyo jiyo, brahmanpara kaa naam aise hi roshan karte raho kaushal.......
जवाब देंहटाएंghar me andheraa aur shahar me roshni karte raho....
jiyo jiyo