आजादी के 63 साल बाद भी आम आदमी को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है, शिक्षा और चिकित्सा सुविधा का भगवान ही मालिक है। लोग दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और इस देश के सांसदों और विधायकों को 16 हजार रुपए महिना भी कम पड़ रहा है। इस शर्मनाक स्थिति को रोका नहीं गया तो न नेताओं को कोई पिटने से बचा पाएगा और न ही लोगों को सडक़ों पर उतरने से कोई सरकार रोक पाएगी।
जनप्रतिनिधि कहलाने वाले इस देश के सांसदों व विधायकों ने अपनी सुविधा बढ़ाने आम लोगों का जीवन दांव पर लगा दिया है। रोजमर्रा की चीजे सिर्फ महंगी इसलिए हुई है क्योंकि इस पर भारी भरकम टैक्स लागू है और इस टैक्स में से बड़ी राशि सांसदों-विधायकों के वेतन भत्ते और पेंशन में चले जाते हैं। जिस देश के आम आदमी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है उस देश के सांसद और विधायक अपनी सुविधाओं में कटौती कराने की बजाए सुविधाएं बढ़ाने लड़ रहे हो इससे शर्मनाक स्थिति और क्या होगी?
क्या किसी सरकार ने कभी सोचा है कि उसके राज में हर व्यक्ति को शिक्षा, चिकित्सा और पानी की सुविधाएं उपलब्ध है। भोजन तो दूर की बात है। इस देश का ऐसा कोई हिस्सा नहीं होगा जहां ये तीन मूलभूत सुविधाएं आम लोगों को पूरी तरह मिल रही हो। जब आजादी के 63 साल बाद भी ये तीन चीजें आम लोगों तक नहीं पहुंचाई जा सकी है तो फिर इन्हें वेतन किस बात का? सिर्फ एय्याशी या लोकतंत्र के मंदिर में हंगामा करने का?
सवाल यह नहीं है कि सांसदों-विधायकों का वेतन क्यों नहीं बढ़े? बल्कि अब आम आदमी यह सवाल करने लगा है कि इन्हें आखिर वेतन ही क्यों दिया जाए? जब सवाल करने पैसे ये लेते हैं? सवाल नहीं करने के पैसे ये लेते हैंं? उद्योगों के हित में नीति बनाते समय पैसे ये खाते है? कब किसका टैक्स बढ़ाना है घटाना है के एवज में पैसे का लेनदेन होता है और संसद या विधानसभा की कार्रवाई के दौरान इन्हें जब भत्ते दिए जाते है तब वेतन क्यों।
क्या आम आदमी इस बात से अनभिज्ञ है कि पांच सौ पैतालीस सांसदों में से तीन सौ से ज्यादा सांसद करोड़पति है? इन्हें वेतन की जरूरत क्यों और किसलिए दी जानी चाहिए? आम लोगों के खून पसीने की कमाई पर अपना हित साधने की कोशिश अब बंद करनी ही होगी वरना इसका दुखद परिणाम भुगतने के लिए देश को तैयार होना होगा। इस देश का प्रति व्यक्ति की आय कितना है और नेताओं को कितना वेतन भत्ता सुविधा दिया जा रहा है? सकारी आंकड़े सच्चाई से कोसो दूर होता है और औसत के फेर में गरीब कैसे मरता है इसका उदाहरण है भारत का प्रति व्यक्ति आय। सरकारी आकड़े के मुताबिक भारत के प्रति व्यक्ति की आय लगभग 40 हजार रुपए वार्षिक है यानी महिने में तीन साढ़े तीन हजार रुपए। ऐसे में सांसदों-विधायकों को इससे ज्यादा वेतन की बात ही बेमानी है।
अब तो लोग आक्रोशित है और आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा। यदि बगैर वेतन के काम करने वाले लोग चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें ही जनता अपना वोट देगी और यह स्थिति बनने भी लगी है।
00मालामाल सांसद
0 पांच सौ पैतालीस सांसदों में तीन सौ से ज्यादा करोड़पति है।
0 देश के प्रधानमंत्री भी विश्व बैंक में पूर्व नौकरीशुदा।
0 तीसरे मोर्चे की कमान संभालने वाले यादव बंधु दोनों अआय से अधिक संपत्ति के मामलों में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं।
0 गरीब और दलित लोगों के मसीहा पासवान हो या मायावती लोगों के पास कितना पैसा यह किसी से छुपा नहीं।
00 मंत्री बनने के बाद यह मिलता है सांसदों को
0 टाइप 8 बंगला, राज्यमंत्रियों को टाइप 7 बंगला।
0 कोई किराया नहीं, बिजली के बिल पर कोई लगाम नहीं।
0 मूल वेतन 16 हजार रुपए, भत्ता 1 हजार रुपए
0 संसदीय क्षेत्र भत्ता 20 हजार रुपए।
0 टेलीफोन : दो फोन और एक लाख 75 हजार फ्री कॉल।
0 हर साल ढाई हजार रुपए मोबाइल भत्ता।
0 मोबाइल हैंडसेट फ्री।
0 नि:शुल्क एयर टिकट।
0 परिवार के लिए साल में 48 यात्राएं।
0 जितना चाहें उतनी एसी कोच में यात्रा परिवार के साथ
स्टाफ : पर्सनल स्टाफ में इन लोगों की नियुक्ति किया जा सकता है।
एक प्राइवेट सेक्रेटरी, एक एडिशनल पर्सनल सेक्रेटरी, दो पर्सनल असिस्टेंट, एक हिन्दी स्टेनो, एक ड्राइवर, एक क्लर्क एक जमादार या चपरासी।
( यह केवल मंत्री का स्टाफ है मंत्रालय से अलग से स्टाफ मिलता है।)
जन समर्थन के तर्क और पैमाने शायद कुछ अलग हैं.
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