बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

सरकार का सच ! सुराज का झूठ...


गाँव से लेकर शहर तक सुराज और विकास का ढिंढोरा पिटने में लगी रमन सरकार भले ही सत्ता की चकाचौंध में आम आदमी की पीड़ा नहीं देख पा रही हो, अपनी चमचमाती गाडिय़ों के फर्ऱाटे से उड़ रही धूल की दिक्कतों से वे अनजान हों या लालबत्ती की धौंस से यातायात में फ़ंसने वाली भीड़ की परेशानी गाडिय़ों के काले शीशे से वे पार न देख रहे हों पर हकीकत में सिफऱ् दो रुपए किलो चावल दे देने से जीवन नहीं चलता।
जीवन चलता है रोटी कपड़ा मकान के अलावा बेहतर शिक्षा, बेहतर चिकित्सा सुविधा और भयमुक्त वातावरण से। लेकिन 9 साल में रमन सरकार ने विकास की जो लकीर खींचने की कोशिश की है। उसका आम आदमी की तकलीफ़ों से कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि खेती की बरबादी और नदियों के पानी को प्रदूषित करते उद्योग से आने वाली पीढियों के लिए खतरा साफ़ नजर आ रहा है।

सुराज का सपना तो रमन सरकार ने अपने पहले ही संकल्प से मुकर कर तोडऩा शुरु कर दिया था और दूसरी पारी के लिए संकल्प से दूर भागने की कोशिश ने रही सही कसर पूरी कर दी। नौ साल में सरकार ने कितना विकास किया है और कैसा सुराज है यह उनके जनदर्शन ही नहीं जिला कलेक्टरों को मिल रहे आवेदनों की संख्या से साफ़ दिखने लगा है। आवेदनों की बढती संख्या से साफ़ है कि लोग भ्रष्ट तंत्र, निरंकुश नौकरशाह और मूलभूत सुविधाओं के अभाव से त्रस्त हैं और इसकी अनदेखी का परिणाम भयावह हो सकता है। राÓय बनने के बाद किसी ने नहीं सोचा था कि सरकार की प्राथमिकता इस कदर बदल जाएगी कि लोग बेहतर चिकित्सा सुविधा, बेहतर शिक्षा से वंचित हो जाएगें। निजी स्कूलों और निजी स्कूलों और निजी चिकित्सालयों को लूट की खुली छूट होगी और निजी संस्थानों को बढाने सरकारी संस्थानों को बरबाद कर दिया जाएगा। राÓय निर्माण के दौरान कर मुक्त राÓय और सरप्लस बिजली के चलते हर खेत में पानी की बात बेमानी हो जाएगी और सफ़सरों व नेताओं का राजधानी प्रेम के चलते ग्रामीण अंचल उपेक्षित हो जाएगा। यह सच है कि सरकार के पास जादू की छड़ी नहीं होती कि रातों रात समस्याएं दूर हो जाए लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर ब्लाक में सर्वसुविधा युक्त अस्पताल और बेहतर कालेज न खोला जा सके। ताकि लोगों को इसके लिए भी राजधानी का मोहताज रहना पड़े।  सरकार भले ही निजी क्षेत्रों को बढावा देने कौडिय़ों के मोल जमीन दे रही है। लेकिन यह भी सरकार की सोच की वजह से राजधानी तक ही सिमट कर रह गया है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित लोगों का आक्रोश चरम पर है और रमन सरकर सुराज के झूठ पर खड़ी नजर आ रही है। तभी तो भ्रष्टाचार और अव्यवस्था ने लोगों की सहनशीलता को तार-तार करना शुरु कर दिया है। अपनी मांगों के लिए लोग कानून हाथ में लेने लगे हैं। हालांकि हम किसी भी मांग के लिए कानून हाथ में लेने की किसी भी मांग का समर्थन नहीं करते लेकिन अपने हक के लिए लोगों को न केवल बाहर आना चाहिए बल्कि अव्यवस्था के खिलाफ़ आवाज बुलंद करना चाहिए। राजधानी के पेंशनबाड़ा स्थित प्री मैट्रिक छात्रावास के ब'चों ने जिस तरह बेबाकी और हिम्मत से काम किया है वह बाकी लोगों के लिए सीख बन सकती है। छात्रावास में रहने वाले इन ब'चों ने अव्यवस्था के लिए सबसे शिकायत की थी और जब उनकी नहीं सुनी गई तो इन ब'चों ने छात्रावास में ताला जड़ सहायक आयुक्त को अव्यवस्था देखने के लिए मजबूर कर दिया। यहाँ तक कि सहायक आयुक्त आर के सिदार को कलेक्टोरेट से छात्रावास तक कार छोड़कर पैदल जाना पड़ा। छात्रावास के ब'चों के इस कदम से प्रशासनिक तंत्र में हड़कम्प है और सरकार के माथे पर बल पडऩा भी स्वाभाविक है लेकिन इस एक घटना से सरकार का सच तो सामने आया ही है सूराज के झूठ से भी परदा उठा है। राजधानी में यह हाल है कि तो प्रदेश के दूसरे हिस्सों का क्या हाल होगा। यह सुराज एवं विकास के दावे करने वालों को सोचना होगा।?सुराज का सपना तो रमन सरकार ने अपने पहले ही संकल्प से मुकर कर तोडऩा शुरु कर दिया था और दूसरी पारी के लिए संकल्प से दूर भागने की कोशिश ने रही सही कसर पूरी कर दी। नौ साल में सरकार ने कितना विकास किया है और कैसा सुराज है यह उनके जनदर्शन ही नहीं जिला कलेक्टरों को मिल रहे आवेदनों की संख्या से साफ़ दिखने लगा है। आवेदनों की बढती संख्या से साफ़ है कि लोग भ्रष्ट तंत्र, निरंकुश नौकरशाह और मूलभूत सुविधाओं के अभाव से त्रस्त हैं और इसकी अनदेखी का परिणाम भयावह हो सकता है। राÓय बनने के बाद किसी ने नहीं सोचा था कि सरकार की प्राथमिकता इस कदर बदल जाएगी कि लोग बेहतर चिकित्सा सुविधा, बेहतर शिक्षा से वंचित हो जाएगें। निजी स्कूलों और निजी स्कूलों और निजी चिकित्सालयों को लूट की खुली छूट होगी और निजी संस्थानों को बढाने सरकारी संस्थानों को बरबाद कर दिया जाएगा। राÓय निर्माण के दौरान कर मुक्त राÓय और सरप्लस बिजली के चलते हर खेत में पानी की बात बेमानी हो जाएगी और सफ़सरों व नेताओं का राजधानी प्रेम के चलते ग्रामीण अंचल उपेक्षित हो जाएगा।
यह सच है कि सरकार के पास जादू की छड़ी नहीं होती कि रातों रात समस्याएं दूर हो जाए लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर ब्लाक में सर्वसुविधा युक्त अस्पताल और बेहतर कालेज न खोला जा सके। ताकि लोगों को इसके लिए भी राजधानी का मोहताज रहना पड़े।
सरकार भले ही निजी क्षेत्रों को बढावा देने कौडिय़ों के मोल जमीन दे रही है। लेकिन यह भी सरकार की सोच की वजह से राजधानी तक ही सिमट कर रह गया है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित लोगों का आक्रोश चरम पर है और रमन सरकर सुराज के झूठ पर खड़ी नजर आ रही है।
तभी तो भ्रष्टाचार और अव्यवस्था ने लोगों की सहनशीलता को तार-तार करना शुरु कर दिया है। अपनी मांगों के लिए लोग कानून हाथ में लेने लगे हैं। हालांकि हम किसी भी मांग के लिए कानून हाथ में लेने की किसी भी मांग का समर्थन नहीं करते लेकिन अपने हक के लिए लोगों को न केवल बाहर आना चाहिए बल्कि अव्यवस्था के खिलाफ़ आवाज बुलंद करना चाहिए।
राजधानी के पेंशनबाड़ा स्थित प्री मैट्रिक छात्रावास के ब'चों ने जिस तरह बेबाकी और हिम्मत से काम किया है वह बाकी लोगों के लिए सीख बन सकती है। छात्रावास में रहने वाले इन ब'चों ने अव्यवस्था के लिए सबसे शिकायत की थी और जब उनकी नहीं सुनी गई तो इन ब'चों ने छात्रावास में ताला जड़ सहायक आयुक्त को अव्यवस्था देखने के लिए मजबूर कर दिया। यहाँ तक कि सहायक आयुक्त आर के सिदार को कलेक्टोरेट से छात्रावास तक कार छोड़कर पैदल जाना पड़ा।
छात्रावास के ब'चों के इस कदम से प्रशासनिक तंत्र में हड़कम्प है और सरकार के माथे पर बल पडऩा भी स्वाभाविक है लेकिन इस एक घटना से सरकार का सच तो सामने आया ही है सूराज के झूठ से भी परदा उठा है।
राजधानी में यह हाल है कि तो प्रदेश के दूसरे हिस्सों का क्या हाल होगा। यह सुराज एवं विकास के दावे करने वालों को सोचना होगा।?

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