बुधवार, 17 जुलाई 2024

विकास के नाम पर मौत का विभत्स खेल...

 विकास के नाम पर मौत का विभत्स खेल...

 उद्योग पति और शासन-प्रशासन का गठ‌जोड़ छतीसगढ़ में भी


विकास के नाम पर सत्ता कैसे-कैसें खेल खेलती है, यह सिर्फ तूतीकोरिन में उद्योगपति के इशारे पर मारे गये  पुलिस द्वारा 13 प्रदर्शनकारियों से समझ पाना मुश्किल है। इस तरह का खेल इन दिनों सत्ता के लिए सहज और आम हो गई है। क्योंकि इस तरह की घटना के बाद जाँच और न्यायालयीन प्रक्रिया इतनी लंबी चलती है कि न्याय का कोई मतलब ही नहीं रहता।


स्टरलाइट कंपनी के इशारे पर पुलिम द्वारा 13 प्रदर्शनकारियों को गोली से भून देने के मामले में मद्रास हाइकोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी  पर बात


करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि सत्ता और कारपोरेट के गठजोड़

को लेकर उठते सवाल क्यों महत्वपूर्ण हो चले है। विकास किस शर्त पर होना चाहिए और सत्ता की पैसों की भूख की सीमा क्या है? इस दौर में यह सवाल इसलिए बेमानी है क्योंकि राजनेताओं का संगठित गिरोह ने लूट का नया तरीका अख़्तियार किया है। जिसने अब सीधे सीधे लोगों की जान से खिलवाह करना शुरू कर दिया है।

सवाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मित्र प्रेम का नहीं है, और न ही सवाल इलेक्ट्राल बाण्ड लेने के चलते उन दवा कंपनियों की जांच रोक देने का है जो जहर परोसने आमादा थे। सवाल तो यही है कि क्या अब सत्ता में बैठे लोगों ने यह तय कर लिया है जब तक वे हैं, मौज कर ले, मरने के बाद किसने देखा है कि दुनिया का क्या होगा?

और इसी ख़तरनाक सोच ने आम आदमी का जीवन नारकीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है।


छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी हत्याकांड सत्ता और कार्पोरेट का विभत्स चेहरा नहीं था? या फिर दुर्ग जिले के बेरला स्थित स्पेशल ब्लास्ट  फैक्टरी में हुए मौत का तांडव !

 घटना के बाद खूब हो हल्ला हुआ लेकिन क्या इस कंपनी के सभी संचालक गिरफ्तार हुए। कार्रवाई के पर किस तरह की खाना-पूर्ति की गई। उस पर क्या कांग्रेस भी सवाल उठायेगी?

छत्तीसगढ़ में भी अदानी पावर के विस्तार को लेकर तिल्दा और रायगढ़ में जनसुनवाई हो रही है। किसानों के जनसुनवाई स्थगित करने के एलान के बाद भी शासन - प्रशासन मुस्तैद है। और यदि सत्ता चाह ले तो किसानो से जमीन छिने जाने से कौन रोक सकता ।


क्या हर तरह के विरोध के बाद हसदेव अरण्य की कटाई को रोका गया, विरोध करने वालों को हिरासत में लेकर जिस तरह से वृक्षों  की कटाई की गई उसके आगे पर्यावरण को लेकर बनी तमाम संस्थाएं किस तरह मौन है? आख़िर यह परियोजना भी तो मित्र-प्रेम की इबादत है।

तब मद्रास हाईकोर्ट में चल रहे स्टरलाईट कंपनी से जुड़े इस मामले पर न्याय होगा !

कहना कठिन इस लिए भी है क्योंकि 2014 के बाद से सुनवाई के दौरान न्यायालय का ग़ुस्सा और फ़ैसले में एका दिखाई ही नहीं देता।

 स्टरलाईट के विस्तार के विरोध में ही प्रदर्शनकारियों को गोली से भून देने की इस घटना की सुनवाई के दौरान मद्रास हाइकोर्ट के जजों ने जिस तरह से सीबीआई की जाँच पर नाराजगी जाहिर करते हुए इस मौत को नियोजित बताया है क्या फ़ैसले में यह दिखाई देगा?

घटना 2018 की है, २२ और 23 मई 2018 की यह घटना स्टालाईट् के विस्तार को लेकर जनसुनवाई के दौरान हुई। जनसुनवाई के विरोध में आसपास के क्षेत्रों के लोग प्रदर्शन कर रहे थे। और जब पुलिस ने कार्रवाई शुरु की तो प्रदर्शनकारी भागने लगे और इन्हीं भागते प्रदर्शनरियों को यानी उनकी पीठ पर गोली मारी गई। 13 लोगों की मौत हो गई। प्रदर्शनकारी प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण स्टरलाईंट् के कापर स्मेलटर इकाई को बंद करने की माँग कर रहे थे।

छत्तीसगढ़ के तिल्दा और रायगढ़ में भी अदानी पावर के विस्तार का विरोध हो या हसदेव अरण्य की कटाई का विरोध प्रदूषन संबंधी चिंता ही प्रमुख वजह है।

तब सवाल यही खड़ा होता है कि क्या हसदेव की कटाई नहीं रोक देनी चाहिए। हालांकि इस मामले में कांग्रेस ने विरोध जरूर किया है लेकिन क्या यह विरोध सिर्फ बयानबाजी तक रहेगा या कटाई के दौरान कांग्रेसी हसदेव को बचाने वहां जायेंगे?