रविवार, 21 जुलाई 2024

गुजरात लॉबी का यह कैसा करतूत

 फिर जुड़‌ने लगा पीएमओ से तार…

गुजरात लॉबी का यह कैसा करतूत


इन दस सालों में का देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित्र शाह ने जो चक्रव्यूह रचा था, क्या उस चक्रव्यूह का खेल खत्म होने लगा है। पूंजी निवेश से लेकर बैंको के कर्जे ‌लेकर भागने का मामला हो या फिर भ्रष्टाचार के बड़े मामले, नीट पेपर लीक घोटाला हो या यूपीएससी का खेल ! आखिर सारे तार पीएमओ से क्यों जुड़ जाते है?

नीट पेपर लीक मामले में जिस तरह से गुजरात का गोधरा चर्चा में है। गोधरा के इस पेपर लीक मामले को लेकर हो रहे रोज खुलासे के बाद अब ट्रेनी आईएएस पूजा खेड्‌कर का मामला सामने आने के बाद एक बार फिर गुजरात लॉबी ही नहीं पीएमओ पर भी उंगली उठने लगी है। और इस विवाद के बीच जिस ताह से यूपीएससी के अध्यक्ष मनोज सोनी का इस्तीफ़ा सामने आया है वह हैरान करने वाला तो है ही बल्कि मोदी सत्ता के उस निर्णय की नीयत पर उंगली उठाता है जिसके तहत दर्जनौ लोगों को प्रोफेशनल नियुप्ति के नाम पर कहीं सचिव बना दिया गया तो कहीं अध्यक्ष या डायरेक्टर ।

यश बॉस के इस दौर में यह जान लेना ज़रूरी है कि आखिर मनोज सोनी के इस्तीफ़े को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,गृह मंत्री अमित शाह क्यों निशाने पर है।

क्या मनोज सोनी का इस्तीफ़ा फर्जी प्रमाणपत्र, सत्ता और विशेषाधिकार का कथित दुरुपयोग के बाद जिस तरह से कई आईपीएस और आईएएस के चयन पर उठ रही उंगली है। लेकिन पहले ये जान ले कि मोदी-शाह क्यों निशाने पर है। गुजरात के रहने वाले मनोज सोनी का अभी पांच साल का कार्यकाल बाकी था। सोनी ने अपने इस्तीफे में व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया है। सोनी का कार्यकाल 2029 में पूरा होना था। मनोज सोनी आयोग में 2017 में बतौर सदस्य नियुक्त हुए थे। उन्होंने 16 मई, 2023 को अध्यक्ष के रूप में शपथ ली। ऐसे में उन्होंने बतौर अध्यक्ष सिर्फ करीब 13 महीने काम किया। मनोज सोनी गुजरात के आणंद जिले से ताल्लुक रखते हैं। उनका परिवार मुंबई से गुजरात शिफ्ट हुआ था। उन्होंने बचपन के दिनों में अगरबत्तियां तक बेंची।

द हिंदू' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उन्होंने लगभग एक महीने पहले इस्तीफा दे दिया था। सूत्रों के अनुसार वह गुजरात के शक्तिशाली स्वामीनारायण संप्रदाय की एक शाखा अनुपम मिशन को अधिक समय देना चाहते हैं। वह 2020 में दीक्षा प्राप्त करने के बाद मिशन में एक साधु या निष्काम कर्मयोगी बन गए थे। सोनी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है, जिन्होंने उन्हें 2005 में वडोदरा में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (MSU) के कुलपति के रूप में चुना था। तब वह 40 वर्ष के थे। जिससे वह देश के सबसे कम उम्र के कुलपति बन गए थे। जून 2017 में यूपीएससी में नियुक्ति से पहले सोनी ने बाबासाहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय (बीएओयू) के 1 अगस्त 2009 से 31 जुलाई 2015 तक कुलपति रहे थे। इसके बाद वह अप्रैल 2005 से अप्रैल 2008 तक वडोदरा में स्थित महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा के कुलपति रहे थे। 

 सोनी गुजरात विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा गठित एक अर्ध-न्यायिक निकाय के सदस्य भी रह चुके हैं। मनोज सोनी की गिनती उन लोगों में होती है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र माने जाते हैं। पीएम मोदी ने मनोज सोनी के संघर्ष को देखते हुए ही मुख्यमंत्री रहते हुए एमएसयू के वीसी की जिम्मेदारी सौंपी थी। एमएसयू में मनोज सोनी के वीसी रहते हुए कई आंदोलन हुए थे, लेकिन उन्होंने नो कंप्राेमाइज का फॉर्मूला अपनाया था। आर्ट्स फैकल्टी में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों से जुड़े विवाद में वह काफी सुर्खियों में रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि इस विवाद के चलते उन्हें एमएसयू में दूसरा कार्यकाल नहीं मिल पाया था, हालांकि मनोज सोनी को बाद में बाबासाहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय (बीएओयू) का वीसी बनाया गया था।

तब सवाल यही है कि क्या प्रोफ़ेशनलों की नियुक्ति की वजह क्या है…?