बुधवार, 26 जून 2024

सीजीपीएससी घोटाला- आरोपियों से साँठ-गाँठ…

 सीजीपीएससी घोटाला

सीजीपीएससी घोटाला- आरोपियों से साँठ-गाँठ…



छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार के दौरान हुए सीजीपीएससी घोटाले को लेकर अब वित्र मंत्री ओपी चौधरी की भूमिका को लेकर सवाल उठने लगे हैं। वहीं इस मामले को सीबीदाई को सौंप तो दिया गया है लेकिन अभी तक सीबीआई के जांच शुरू नहीं करने को लेकर कई तरह के सवाल भी उठने लगे हैं।

सूत्रों की माने तो इस घोटाले में जिस तरह के  नाम सामने आये हैं उन्हें बचाने की कोशिश अब उच्च स्तर पर भी होने लगी है और कहा जाता है कि सीबीआई को केन्द्र सरकार की हरीझंडी का इंतजार है लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने अभी तक हरिझंडी नहीं दी है तो उसकी वजह छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा किया गया खेल है। और अब चर्चा इस बात की भी बड़ी होने लगी है कि यहां के एक मंत्री ने ही अमित शाह से जांच को लेकर निवेदन किया है।

ज्ञात हो कि सीजीपीएससीघोटाले के मामले को न केवल भाजपा ने तूल दिया था बलि देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने भी विधानसमा चुनाव के दौरान  घोटालेबाजों को सजा दिलाने की गारन्टी दी थी। यही नहीं सत्ता आने के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और वित्तमंत्री ने तत्परता भी दिखाई थी लेकिन कहा जाता है कि अब इसमें खेल हो गया है । 


इधर सूत्रों का कहना है कि सांठगांठ के आरोप से बचने मीडिया में झूठी खबर भी प्रकाशित कराई गई कि सीबीआई की टीम ने  जांच शुरु कर दी है। जिसका पीएससी को खंडन करना पड़ा। इस खेल में कौन कौन  शामिल है कहना मुश्किल है लेकिन कहा जा रहा है कि आरोपियों ने ज़बरदस्त साँठ गाँठ कर ली है।

क्या है घोटाले की कहानी…

परीक्षा का नोटिफिकेशन साल 2021 में जारी किया था. भर्ती के लिए कुल पद 171 थे। परीक्षा का प्री एग्जाम 13 फरवरी 2022 को कराया गया ।

छत्तीसगढ़ पब्लिक सर्विस कमीशन (CGPSC). जिसका काम राज्य में विभिन्न विभागों में भर्तियां कराने का होता है. इसी में से एक भर्ती राज्य सरकार के प्रशासनिक पदों पर बैठने वालों के लिए आयोजित कराई जाती है. इसके तहत DSP, डिस्ट्रिक्ट एक्साइज ऑफिसर, ट्रांसपोर्ट सब-इंस्पेक्टर, एक्साइज सब-इंस्पेक्टर जैसे पदों के लिए भर्ती होती है. ऐसी ही एक भर्ती में 18 अभ्यर्थियों के सिलेक्शन पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

सूत्रों के मुताबिक CGPSC के चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी, राजभवन सेक्रेटरी अमृत खलको समेत कई अधिकारियों के बेटे-बेटियों और करीबी रिश्तेदारों को डिप्टी कलेक्टर और DSP जैसे पदों पर नियुक्ति देने के आरोप लगे हैं. मामले को लेकर पूर्व बीजेपी नेता ननकी राम कंवर ने हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की है। परीक्षा का प्री एग्जाम 13 फरवरी 2022 को कराया गया. जिसमें कुल 2 हजार 565 पास हुए थे. इसके बाद आई मेंस एग्जाम की बारी. 26, 27, 28 और 29 मई 2022 को मेंस परीक्षा कराई गई. जिसमें कुल 509 अभ्यर्थी पास हुए. इनको इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. जिसके बाद 11 मई 2023 को परीक्षा का फाइनल रिजल्ट जारी हुआ. 170 अभ्यर्थियों का इसमें फाइनल सिलेक्शन हुआ. 

छत्तीसगढ़ में सीजीपीएससी का मामला कोर्ट में है और  16 अक्टूबर को इसकी सुनवाई भी हुई है। जिसमें पीएससी ने हाई कोर्ट में जवाब भी पेश किया। वहीं, दूसरी ओर बीजेपी शुरू से लेकर अंत यानि अब चुनाव होने हैं इसे बड़ा मुद्दा बनाने से बिल्कुल भी पीछे नहीं हटी है।

पीएससी ने बीजेपी के आरोप को खारिज किया था


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पीएससी ने जो जवाब पेश किया है उसमें आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया गया है। आरोप ख़ारिज करते हुए परीक्षा की प्रक्रिया का उल्लेख है। पीएससी ने बताया है कि कॉपी की जांच करने वाले को पता नहीं होता कि किसकी कॉपी है। साथ ही यह भी फिक्स नहीं है कि कौन सी कॉपी कहां जाएगी।

https://youtu.be/7zDegYnq3xQ?si=qJX_4EQju_r1V8pZ


लखन लाल की लीला ...

 लखन लाल की लीला ...


विष्णुदेव साय सरकार के उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन की महापौर बनने से लेकर विधायक और फिर मंत्री बनने की अपनी अलग ही कहानी है। कहते हैं कि लीला दिखाने में माहिर लखनलाल की मुश्किल यह है कि वे सत्ता में चल रही आपानी खींचतान में फँस गये हैं, और हालत यह है कि उन्हें उनको लिलाओं की वजह से चेतावनी भी मिल चुकी है।

ऐसा भी नहीं है कि उद्योग जैसे भारीभरकम विभाग को चलाने में उन्हें कोई दिक़्क़त है। क्योकि महापौर रहते हुए उन्होंने उद्योगों के खेल को बड़ी ही नज़दीक से समझा और जाना है और जमीन भी खूब नापा है। आखिर कोरबा में जयसिंह आग्रवाल को साधना आसान भी नहीं है। लेकिन अब जिस तरह से चेतावनी मिली है उससे वे हतप्रभ है। उनने पद संभालते ही जिस तरह से स्पेशल ब्लास्ट फ़ैक्ट्री में विस्फोट हुआ वह तो जैसे तैसे निपट गया। लेकिन अब उद्योगों में जो समस्या है वह उनके गले का फांस बनता जा रहा है। श्रम क़ानून के उल्लंघन का मामला तो जैसे तैसे टाल ही दिया गया, क्योंकि गरीबों का कोई पूछने वाला नहीं होता। 

लेकिन मंत्रीमंडल के सदस्यों की बढ़‌ती सिफारिशों ने उनके लीला दिखाने के मार्ग में जरूर रोढ़ा बनता जा रहा है, उपर से अडानी की कंपनियों के विस्तार के अलावा उघोगों को दी जाने वाली छूट का  ऐसे ऐसे मामले सामने है कि एक कुँआ तो दूसरी तरफ खाई की स्थिति बन गई है। किसी और की नहीं उन पर खजाना संभालने वाले मंत्री की नजर है जो अमित शाह के करीबी तो है ही, प्रशामनिक अफसरों को भी अपनी मुट्ठी में कसकर बांध रखा है। तब उन्हें कैसी कैसी लीला करना पड़ रहा है, बता भी नहीं पा रहे हैं।

गोपाल का ग़ुस्सा…

 गोपाल का  ग़ुस्सा…


यह तो आ बैल मुझे मार की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना शांत स्वभाव के माने जाने वाले संधी गोपाल कृष्ण अग्रवाल ऐसे समय में मोदी-शाह पर गुस्सा कतई नहीं करते जब मोदी- शाह की ताकत के आगे भाजपाई भीगी बिल्ली बने बैठे हैं।

कभी अपने पीडीएम के जरिये गद्रे भवन से लेकर आदिवासी कल्याण आश्रम को रसद पहुंचाने के लिए चर्चित गोपाल कृष्ण अग्रवाल की पहचान सिर्फ इतनी भर नहीं है कि वे संघ के महानगर प्रमुख भी रह चुके हैं। और संघ के दमदार नेताओ में गिने जाते हैं।  उनकी एक पहचान तो मोहन सेठ के बड़े भाई के रूप में भी है। वही मोहन सेठ जिसकी इन दिनों पार्टी में जमकर छिछालेदर ही नहीं बे-इज्जती करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा जा रहा है।


और शायद यही वजह है कि गोपाल अग्रवाल का भाई प्रेम जाग गया और वे फेस बुक पर मीडिल क्लास की तकलीफों के बहाने  वह बात लिख गये जो दिल्ली की सत्ता को पसंद नहीं आने वाला है।



गोपाल अग्रवाल ने जो लिखा वह तो लिखा ही उनको खुश करने के चक्कर तारीफ में कई भाजपाई उनकी तारीफ़ कर गये। इनमें से एक छगनलाल मुंदड़ा जैसे भाजपाई भी है जो मोहन सेठ के विरोधियों के साथ खिच‌ड़ी पकाते रहते है। मुंदड़ा ने तारीफ क्यों की इसकी अपनी कहानी है, कहा जाता है कि वे कुछ बड़ा खेल करने वाले हैं जिसमें साथ चाहिए।लेकिन सत्ता जाते ही दान-पत्र से जमीन देने की पीड़ा झेल रहे गोपाल अग्रवाल ने फेसबुक पर यह पोस्ट क्या मोहन सेठ के कहने पर लिखी है या फिर साय सरकार से कोई काम निकलवाने द‌बाव की राजनीति है।

सवाल तो कई हैं लेकिन इस पोस्ट की चर्चा के अब दिल्ली पहुंचने की चर्चा है और लोगों से क्रिया की प्रतिक्रिया का इंतजार...!

अंजय शुक्ला की दावेदारी ने कई लोगों की नींद उड़ा दी



बृजमोहन अग्रवाल के विधायकी से इस्तीफे के बाद रायपुर दक्षिण विधानसमा के लिए भाजपा में दावेदारों की फेहरिश्त है लेकिन जब से रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अजय शुक्ला की दावेदारी सामने आई है अन्य दावेदारों में हड़‌कम्प
मच गया है। हड़‌कम्प मचने की वजह उनका युवाओं में प्रभाव के अलावा  राजनैतिक शैली है जो किसी को भी प्रभावित कर सकता है। कहा जाता है कि भाजपा के निर्धारित मापदंड में वे खरे तो उतरते ही हैं दक्षिण के रहवासी होने का भी उनको लाभ हैं।

दक्षिण के दावेदार...

भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज विधायक बृजमोहन अग्रवाल की विधायकी छुड़‌वाने के बाद अब पार्टी यहाँ किसे टिकिट देगी यह तो मोदी-शाह ही तय करेंगे लेकिन भाजपा में दावेदारों ने पार्टी की मुसिबत बढ़ा दी है।

दाबेदारों में ऐसे ऐसे नाम सामने आ रहे हैं जिनकी कल्पना ख़ुद भाजपा के स्थानीय नेताओं ने नहीं की थी, और  इनमें से  कुछ दावेदार तो ऐसे हैं जो वार्ड का चुनाव भी नहीं जीत पाये हैं लेकिन उन्हें लगता है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार और बृजमोहन अग्रवाल  की बोई फ़्रसल आसानी से चुनाव जीतवा देगा। ऐसे में कई लोग ऐसे हैं जो खामोशी से अपनी टिकिट का इंतज़ार कर रहे हैं। पार्टी नेताओ का भी मानना है कि दक्षिण में इस बार जो नाम आयेगा वह चौंकाने वाला होगा।

चौकाने वालो नाम कौन होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन क्या वह दक्षिण विधानसभा का  रहने वाला होगा ? यह सवाल अब बड़ा इसलिए हो गया है क्योंकि अब तक यहाँ चुनाव जीतने वाले मोहन सेठ पश्चिम के निवासी थे, और दक्षिण के दावेदार उनके नाम और ताकत की वजह से विरोध तो छोड़िये दावेदारी भी नहीं करते थे।

ऐसे में पार्टी के भीतर इस बार दक्षिण से ही किसी को टिकिट देने की माँग जोर शोर से उठाई जा रही है तो इसकी बड़ी वजह  मोहन सेठ की पसंद की अनदेखी करना भी है।


कहा जाता है कि दक्षिण से ही उम्मीदवार हो यह माँग सबसे पहले केदार गुप्ता ने उठाई थी, और चर्चा तो इस बात की भी है कि उन्होंने इस मांग को हवा देने का खेल भी किया।जड़ी-बूटी  वाले एक मामले में भूपेश सरकार के दौरान विवाद में आने वाले केदार गुप्ता पर लोकसभा चुनाव के दौरान मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर खेल होने और करने के भी किस्से हैं।

दरअसल  टिकिट को लेकर पार्टी की दिक़्क़त यह भी है कि दक्षिण से ही कई नेता ऐसे हैं जो दमदार माने जाते हैं, बेमेतरा के लिए टिकिट वितरण  में विलम्ब होने की वजह वाले योगेश तिवारी  के लिए भी कई लोग लगे हैं तो, सिंधी समाज के गुरु भी दावेदार हैं, इसके अलावा मीनल चौबे, मृत्युंजय दुबे भी दावेदारों की फेहरिश्त में शामिल है तो कहा जा रहा है कि यूनिर्वसिटी प्रेसिडेंट रहे अंजय शुक्ला  की दावेदारी भी बेहद मजबूत है। वे दक्षिण के रहवासी भी है तो काली माई मंदिर के ट्रस्टी  भी है, यानी भाजपा जिस धर्म के घालमेल  पर विश्वास करती है उसमें अंजय शुक्ला  भी फिट बैठते हैं ,।


कहा जा रहा है कि छात्रनेता से राजनीति में आने वाले अजय शुक्ला को  बृजमोहन अग्रवाल का  बेहतर विकल्प भी माना जा रहा है। और कहा तो यहां तक जा रहा है कि अजय को टिकिट देने से पुराने छात्र नेताओ का साथ  भाजपा को उसी तरह से मिलेगा जैसे बृजमोहन अग्रवाल को मिलता रहा है।

दावेदारों की लंबी सूची होने की एक बड़ी वजह प्रदेश  में सरकार होना भी है। ऐसे में जब फैसला मोदीशाह की जोड़ी को करना है तो किसका भाग्य खुलेगा कहना मुश्किल है।