गुरुवार, 22 अगस्त 2024

हमने मारी औरतें…

 हमने मारी औरतें....


पिछले दस दिनों से देश का प्रायः हर राज्य औरतों के बलात्कार की घटना से स्तब्ध है । लगातार हो रही अपराधों में सबसे विभत्स अपराध को लेकर बहस भी हो रही है कि इस बढ़ते अपराध लिए कौन दोषी है, इसका कारण  क्या है।जबकि ऐसे अपराधों पर सज़ा के कानून भी कड़े बना दिये गए है फिर भी अपराध पर अंकुश क्यों नहीं लग रहा है।

हर रोज 87 बलात्कार ! क्या किसी  सभ्य समाज को विचलित नहीं करते। चर्चा में कहा जा रहा है मोबाईल और बाजारवाद ही इसका प्रमुख कारण है लेकिन कलकत्ता जैसे महानगर से लेकर सुदूर बस्तर जैसे इलाके में हो रही घटनाओं की असली वजह से कौन भाग रहा है।

सबके अपने अपने विचार और सुझाव है लेकिन किसी ने राजनैतिक दलो पर ऊँगली उठाने की हिम्मत नहीं की जो इन घटनाओं के बढ़ने में सबसे बड़े दोषी के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

राजनीति का अपराधीकरण को लेकर अब कोई बहस भी नहीं कहना चाहता। तब बलात्कारियों के लिए संरक्षक बन चुके इन संगठित गिरोह पर उंगली उठाना आसान भी नहीं है।

बेटी बचाओ - बेटी पढ़‌ाओ के नारे जितने सुन्दर लगते है, नारा लगाने वालों की करतूत उतनी ही भयावह हो चली है। बेशर्मी की पराकाष्ठा तक पहुंच चुके लोग अब बलात्कार को भी राजनैतिक नफ़ा-नुक़सान के तराजू से तौलने लगे हैं।

शायद यही वजह है कि कल तक जो राजनैतिक दल बलात्कारियों को टिकिट देने से या पार्टी संगठन में बड़े पद देने से कतराती थी वे अब खुले आम बलात्कारियों के संरक्षक बने हुए है।

जैसी राजा-वैसी प्रजा कहना बेहद कठोर हो जायेगा लेकिन सन्च तो यही है कि बलात्कार के आरोपियों को टिकिट देकर, या पद देने के बाद भी लोगों की खामोशी से राजनैतिक दलों के हौसले इतने बुलंद हो गये कि इन दलों  ने बलात्कारियों का पक्ष लेना, स्वागत करना और रिहाई का इंतजाम करने जैसे फैसले बेशर्मी से करने लगे।

कांकेर में कल हुए गैंगरेप के बाद किसी ने सोशल मीडिया में अपना गुस्सा उतारते हुए लिख मारा कि जब यौन शोषण के आरोप के बाद बीजेपी  ने सांसद की टिकिट दे दी और जनता ने जीता दिया तो फिर झेलो...।

ग़ुस्सा कितना जायज है? लेकिन कठुआ के बलात्कारियों का स्वागत करने की बेशर्मी पर चुप्पी  और बिल्किस बानों के बलात्कारियों की समय पूर्व रिहाई और  स्वागत  पर लोगों की ख़ामोशी क्या विचलित नहीं करता। या देश का गौरव बढ़ाने वाली महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह को सत्ता संरक्षण पर लोगों की चुप्पी ? क्या राजनैतिक दलों के हौसले बुलंद नहीं करता ?

राजनैतिक दलों के हौसले कितने बुलंद है, 'सत्ता का हौसला किस तरह उफान मारता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो बलात्कारी और छिछोरे राम-रहीम का हर चुनाव के पहले पैरोल पर रिहा हो जाना है। अब तक इस बलात्कारी को 12 बार से अधिक पैरोल मिल चुका है।

सत्ता के इस कृत्य पर किसने विरोध जताया। तब कदम, कदम पर राज्य दर राज्य आ  रहे बलात्कारियों के चेहरे और बढ़‌ती घटनाए क्या यह तय नहीं करती कि हम सबने मिलकर औरतों  को मारा है और रोज मार रहे हैं...।