मंगलवार, 13 मई 2025

युद्ध से भी बड़ा ज़हर…

 युद्ध से भी बड़ा ज़हर…


इसी ज़हर के भरोसे आरएसएस अपनी राजनीति साधते रही है , यह बात हर मंच से उठते रहा है 

क्या है वह ज़हर…

कहते है इंसान की फ़ितरत नहीं बदलती, और जब अमेरिका के सीजफ़ायर की घोषणा से बौखलाए नफ़रती चिंटुओं ने जब कर्नल सौफ़िया पर विषवमन शुरू किया तो इस खेल में बीजेपी के मंत्री विजय शाह ही नहीं पूरी बीजेपी एक्सपोज़ हो गई, क्या विजय शाह को हटाया जाएगा, 

लेकिन शुरुआत तो शिवांगी नरवाल और विदेश सचिव विक्रम मिस्सी से हो चुकी थी 

इन सभी को गाली देने वाले एक ही थे, 

शालीनता की हर सीमा लांघने में तत्पर ये लोग कुछ भी कर सकते हैं 

यक़ीन मानिए ये लोग आतंकवादियों से भी ख़तरनाक है…

लेकिन आज हम एक और मुद्दा उठाना चाहते है , आख़िर आतंक के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में भारत अकेले क्यों पड़ गया, जबकि पूरा विश्व आतंक के ख़िलाफ़ है

कूटनीति फेल क्यों हो गई जबकि प्रधानमंत्री मोदी सौ देश घूम आए है

क्या इसकी वजह सिर्फ़ अदाणी है 

क्या है हमारे दूसरे देशों से रिश्ते…

भारत आज विश्व में अकेला है।

और ये किसी युद्ध की वजह से नहीं —

बल्कि “नफरती चिंटू” गैंग की वजह से है कहा जाय तो ग़लत नहीं होगा..


11 साल की विदेश नीति देखने के बाद इतना तो कोई भी समझ सकता है —इन नफ़रती चिंटू गैंग ने हमारी कूटनीति का बहुत नुकसान किया है


पहले पड़ोसी देशों को देखिए:


● मालदीव — जहाँ “इंडिया फर्स्ट” था, अब “इंडिया आउट” है। लक्षद्वीप विवाद में “नफरती चिंटू गैंग” ने ट्रोलिंग से देश की छवि डुबो दी। चीन ने मौक़ा देख लिया।


● बांग्लादेश — जिसे आज़ादी दिलाई, उसे हर चुनाव में “घुसपैठिया” कहा गया। CAA-NRC ने रिश्ते जला डाले। सीमा पर गोलीबारी है, ढाका खामोश है।


● श्रीलंका — जब ज़रूरत थी, भारत पीछे रहा। चीन ने बंदरगाह खरीद लिया। “नफरती चिंटू” तमिल भावनाओं की बात तो करता रहा, ज़मीनी मदद नहीं दी।


● नेपाल — 2015 की नाकाबंदी, फिर रामजन्मभूमि की राजनीति। आज हमारी ज़मीन उसके नक्शे में है — नफरती चिंटू उसे हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है और दिल्ली चुप है।


● भूटान — जो कभी सबसे करीबी था, अब कहता है — "भारत अब दोस्त नहीं, दबाव है।"


● म्यांमार — सेना ने लोकतंत्र कुचला, भारत ने चुप्पी साध ली। नफरती चिंटू गैंग रोहिंग्या पर नफ़रत फैलाकर नैतिक धरातल भी गंवा दिया।


और ग्लोबल मंच पर?


● रूस — शीतयुद्ध का साथी अब चीन के साथ है। भारत बस तेल का ग्राहक बन गया।


● अमेरिका — हथियारों की डीलें हैं, लेकिन लोकतंत्र और प्रेस फ्रीडम पर वहाँ बार-बार भारत को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।


● फ्रांस — राफेल के बाद भी भारत की गिरती रैंकिंग और मुसलमानों के प्रति घृणा को लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुका है।


● ईरान — भारत का कभी विरोध नहीं किया ,  “नफरती चिंटू” ने इस्लाम को गाली दी और चाबहार पोर्ट से भारत हटा, चीन आ गया। 


● मलेशिया-इंडोनेशिया — मुस्लिम विरोधी नैरेटिव ने वर्षों पुराने सांस्कृतिक रिश्तों को भी तोड़ दिया।


● फिलिस्तीन — भारत दशकों तक साथ था। अब सरकार इज़रायल के साथ हथियारों में व्यस्त है, जनता अकेली खड़ी है।


दरअसल दुनिया दोस्ती, भरोसे और स्थिरता की भाषा समझती है।