रविवार, 7 जुलाई 2024

कुपोषण से बच्चों की जा रही किडनी


 यूनीसेक के बाद अब एम्स ने की चेतावनी 

कुपोषण से बच्चों की जा रही किडनी

एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  इस देश को विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति  के रूप में स्थापित करने का सब्जबाग़ दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ देश के बच्चों की हालत दिनों दिन खराब होते जा रही है, हालत यह है कि विश्व रैकिंग मैं खुशहाली गरीबी के बाद अब कुपोषण के मामले में भी भारत अपने पड़ोसी देशों से भी बदतर स्थिति में पहुंच गया है। और अब एम्स के ताजा रिपोर्ट साफ़ कर किया है कि कुपोषण के चलते बच्चों को कई तरफ की गंभीर बीमारियों के अलावा बड़ी संख्या में बच्चों की किडनी पर भी असर पड़‌ने लगा है और देश के पांच फीसदी बच्चों व किशोरों की किडनी खराब हो गई है। 

ज्ञात हो कि अभी हाल ही में यूनीसेफ ने विश्व में कुपोषण के बढ़ते मामले को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि भारत में ४१ फिसदी बच्चे कुपोषण का शिकार है और इनमें से कई बच्चों की स्थिति बेहद खराब है। यूनिसेफ़ ने रिपोर्ट में यह भी दावा किया था कि भारत की स्थिति अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बंगला देश और श्रीलंका से भी बदतर है। भारत से बेहतर  स्थिति केवल अफ़गानिस्तान की है।

लेकिन कारपोरेट की आँख के सहारे देश की आर्थिक स्थिति को देखने वाली मोदी लत्ता के लिए इस हक़ीक़त को नजर अंदाज किया जा रहा है।

देश में बढ़‌ती मंहगाई और बेरोजगारी के चलते आम लोगों का जीवन नारकीय होता जा रहा है और सत्ता पाँच किलो अनाज बाँट कर कापरिट के गोद में जा बैठी है। धर्म के आसरे राजनीति को प्राथमिकता देने वाली मोदी सत्ता के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए । लेकिन मित्र-प्रेम के चलते स्थिति भयावह होते जा रही है।

बताया जाता है कि यह रिपोर्ट देश के बठिंडा ओर विजयपुर स्थित एम्स और ग्लोबल हेल्थ इंडिया ने जारी की है।

रिपोर्ट के मुताबिक – 

 देश में लगभग पांच फीसदी बच्चे और किशोर किडनी, गुर्दे के सही से काम न करने या खराब किडनी फंक्शन से पीड़ित हैं। राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में सामने आया है कि किडनी को नुकसान पहुंचने से जैसे-जैसे समय बीतता है यह समस्या और भी जटिल और लाइलाज हो जाती है। बाद में यह धीरे-धीरे क्रोनिक किडनी डिजीज के रूप में तब्दील हो जाती है। यह अध्ययन बठिंडा और विजयपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से किया है। इसके नतीजे स्प्रिंगर लिंक नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इसका प्रमुख कारण क्या है और इससे कितने बच्चे पीड़ित हैं, इसके सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। यह अध्ययन 2016 से 18 के बीच पांच से 19 वर्ष की आयु के 24,690 बच्चों और किशोरों के राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वेक्षण के अनुसार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक मामले सामने आए, जबकि तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, राजस्थान और केरल में यह प्रचलन कम था।

ज्यादातर को बीमारी का पता नहीं

अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, 10 लाख की जनसंख्या पर लगभग 49 हजार बच्चे और किशोर (4.9 फीसदी) किसी न किसी रूप में किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं। आश्चर्यजनक रूप से इन लोगों में से आधे से अधिक लोगों और उनके अभिभावकों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह समस्या अधिकतर ऐसे इलाकों में है, जहां स्वास्थ्य संबंधी अच्छी सुविधाओं की पहुंच लगभग नगण्य है। जिन लोगों को इस समस्या की जानकारी है उनका इलाज भी अधिकतर हकीमों के भरोसे है।

मुख्य समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में

राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के अनुसार, यह समस्या मुख्य तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पाई गई। अभिभावकों खासतौर से माताओं में शिक्षा की कमी, बच्चों और किशोरों का शारीरिक विकास न हो पाना और बौनापन इसके मुख्य कारण हैं।

नियमित जांच जरूरी : शोधकर्ताओं ने बच्चों में क्रोनिक किडनी रोग से बचने के तरीके भी सुझाए हैं। इसमें नियमित जांच और मूत्र परीक्षण कराना जरूरी है। स्वस्थ और संतुलित आहार जिसमें सोडियम, फास्फोरस और पोटेशियम कम हो, किडनी के कार्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही बच्चों को फल, सब्जियां, साबुत अनाज और प्रोटीन खाने के लिए प्रोत्साहित करना और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और स्नैक्स से बच्चों को दूर रखना जरूरी है। ऐसे भोजन जिनमें चीनी और नमक अधिक होता है, से भी परहेज जरूरी है।


नायडू की डिमांड का मतलब…

 नायडू की डिमांड का मतलब…

 


चन्द्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार से 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक फंड की डिमांड की और इसे पूरा करने के अलावा मोदी सत्ता के पास कोई चारा नहीं है क्योंकि मोदी की न का मतलब सत्ता जाना है । तब क्या मोदी सरकार सत्ता में बने रहने विदेशी क़र्ज़ लेगी या दूसरे राज्यो का हिस्सा काटेगी?

इकनॉमिक टाइम्स  के न्यूज के अनुसार नायडू ने शुक्रवार को नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के साथ अलग-अलग बैठकें कीं। एवं 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया, छह अन्य केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की... 

 छह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री; नितिन गडकरी, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री; पीयूष गोयल, वाणिज्य मंत्री; शिवराज सिंह चौहान, कृषि मंत्री और हरदीप सिंह पुरी, पेट्रोलियम मंत्री थे... 

 इस महीने के तीसरे सप्ताह में मोदी 3.0 सरकार के पहले बजट से पहले ये बैठकें महत्वपूर्ण हैं... 

सीतारमण के साथ बैठक में टीडीपी प्रमुख ने चन्द्र बाबू नायडू की प्रमुख मांगों में आंध्र प्रदेश को राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 3 प्रतिशत की राजकोषीय घाटे की सीमा को इस वित्तीय वर्ष में 0.5 प्रतिशत तक बढ़ाकर अधिक उधार लेने की अनुमति देना, अमरावती में नई राजधानी बनाने के लिए लगभग 50,000 करोड़ रुपये का पूंजीगत समर्थन और पोलावरम सिंचाई परियोजना के लिए 12,000 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता शामिल है... 

नायडू ने पूंजी निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना के तहत अतिरिक्त आवंटन की मांग की है, जिसमें सड़क, पुल, सिंचाई और पेयजल परियोजनाओं जैसे आवश्यक क्षेत्रों को लक्षित किया गया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बुंदेलखंड पैकेज की तर्ज पर आंध्र प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों के लिए भी सहायता चाहते हैं। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी के साथ बैठक के दौरान नायडू ने आंध्र प्रदेश में और अधिक तेल रिफाइनरियां स्थापित करने का मामला उठाया... 

अंतर-राज्यीय संबंधों पर नायडू ने 7 जुलाई को तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के साथ होने वाली बैठक का जिक्र किया। नायडू ने कहा, “हम दोनों राज्यों के हित में काम करेंगे... "

नरेंद्र मोदी सरकार चलाने के लिए नायडू की टीडीपी और एक अन्य गठबंधन पार्टी – जनता दल (यूनाइटेड) पर निर्भर है....

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू भी पूर्वी राज्य बिहार के लिए विशेष वित्तीय सहायता पैकेज की मांग कर रही है.. 

आंध्र प्रदेश द्वारा मांगे गए 1 ट्रिलियन रुपये से अधिक के वित्तीय पैकेज में निम्नलिखित शामिल हैं... 

मार्च 2025 तक वित्तीय वर्ष के लिए अतिरिक्त 0.5% उधारी की अनुमति देकर राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक राजकोषीय घाटे की सीमा को बढ़ाना। यह लगभग 7000 करोड़ रुपये के बराबर है। अमरावती की नई राजधानी बनाने के लिए 50,000 करोड़ रुपये, जिसमें से 15,000 करोड़ रुपये चालू वित्त वर्ष में आवंटित किए जाएंगे.... 

पोलावरम सिंचाई परियोजना के लिए इस वित्तीय वर्ष में 12,000 करोड़ रुपये, तथा भविष्य में और अधिक धनराशि उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता, अगले पांच वर्षों में बकाया ऋण चुकाने के लिए 15,000 करोड़ रुपये,संघीय सरकार की 50 वर्षीय ऋण योजना के तहत बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 10,000 करोड़ रुपये.... 

ऐसे में मोदी सरकार क्या अपनी सत्ता बचाने फिर विदेश से क़र्ज़ा लेगी या दूसरे राज्यों की अनदेखी करेगी ।

कमाहूँ नहीं त काला खाहूँ…

  कमाहूँ नहीं त काला खाहूँ…



साम्प्रदायिकता के सहारे चुनाव जीतकर विधायक बने ईश्वर साहू के बारे में कहा जाता है कि वे शुरू से ही खाटी भाजपाई रहे हैं और पेलिहा संग पंगनहा हारे की तर्ज पर उनका चाल-चलन गांव से लेकर पूरे विधानसभा में चर्चित होने लगा है लेकिन अब वे भी खाटी भाजपाई की तरह पूरे प्रदेश में फेमस हो गये है तो उसकी वजह उन पर लगने वाला वह आरोप है जिससे भाजपा के सभी विधायक ही नहीं पार्टी भी सकते में हैं।

पार्टी ने साजा विधानसमा से दिग्गज कांग्रेसी रविन्द्र चौबे  के खिलाफ जब ईश्वर साहू को टिकिर दिया था तो उसने भी नहीं सोचा था कि ईश्वर साहू इतने बड़े फ़क़ीर निकलेगे। अब जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जनदर्शन लगाना शुरू किया तो पहले ही जनदर्शन में ईश्वर साहू की पोल खुल गई। मामला दबाने के लिए ईश्वर साहू पर दो लाख रुपये लेने का आरोप लग गया।

भले ही सरकार ने इस खबर को प्रमुख मीडिया संस्थानों में छपने से रोक कर पार्टी की इज्जत बचा लिया हो लेकिन खबरे तो लोगों तक पहुंच ही गई है। तो दूसरी ताफ ईश्वर साहू के दूसरे खेल का खुलासा भी होने लगा है।

हालांकि ईश्वर साहू तो पैसों को लेकर उसी दिन चर्चा में आ गये थे, जब विधानसमा चुनाव में खर्च का ब्योरा सामने आया था। उन्होंने खर्च के मामले में विष्णुदेव साय तो छोड़िये मोहन सेठ को भी पछाड़ दिया था, जबकि उसकी कमाई तब 25 हजार रूपये महिना की थी। अब यह पैसा कहाँ से आया, क्या कोई  एजेंसीं जांच करेगी , यह एक अलग सवाल है।

लेकिन पार्टी को समझ नहीं आ रहा है कि मामला जब विधानसभा में उठेगा तो क्या जवाब दिया जाएगा ।