सोमवार, 24 जून 2024

चोपड़ा पर भारी, सेठ की यारी...

चोपड़ा पर भारी 

सेठ की यारी...


महासमुंद से  निर्दलीय चुनाव लड़‌कर विधायक बन चुके विमल चोपड़ा को उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी की साय सरकार उन्हें इस बार लाल बत्ती दे ही देगी। दो बार भाजपा को आँख दिखाकर चुनाव लड़ चुके विमल चोपड़ा की परेशानी ये है कि भाजपा की टिकिट पर वे चुनाव नहीं जीत पाये और न ही राजधानी वाले सेठ की यारी ही छोड़ पा रहे हैं।

और जब रायपुर वाले सेठ को ही साय सरकार पसंद नहीं करती तो फिर लाल बत्ती के सपने का क्या होगा । कहते हैं कि भाजपा से बार-बार बगावत करने की वजह से महासमुद्र के भाजपाई उन्हें पसंद नहीं करते हैं और लाल बत्ती की चर्चा ने उनके विरोधियों को लामबंद कर दिया है, हालांकि वे इन दिनों संगठन और रमन सिंह का खूब चक्कर लगा रहे हैं।क्योंकि सेठ की हालत क्या है वह किसी से छिपी नहीं है, सेठ की हालत ऐसी है कि अपना धोए या…।

वैसे भी सेठ की राजनीति का केंद्र रामपुर है और वे विमल चोपड़ा की बजाय मोहन चोपड़ा पर ज्यादा दांव लगाने में विश्वास रखतें है, यही कारण है कि पिछ‌ली बार माहेन चोपड़ा को बच्चों वाले विमाग में बिठाने में वे सफल हो गये थे क्योंकि तब रंगा-बिल्ला की धमक नहीं थी।और नाम ख़राब करने वाले बिल्डर्स को सब बर्दाश्त कर गये।

ऐसे में कहा जा रहा है कि विमल चोपड़ा इन दिनों सफाई देते घूम रहे हैं कि उनका सेठ से  कोई लेना-देना नहीं है लेकिन सच छुपने की चीज तो है नहीं।इसलिए लालबत्ती की होड़ में यदि सेठ को गाली भी देना पड़े तो क्या हुआ, राजनीति में सब जायज़ है।लेकिन सेठ ऐसे वैसे तो है नहीं, इसलिए लालबत्ती की राह का यह रोढ़ा हटाना आसान काम नहीं है।

साय की मुश्किलें क्यों बढ़ी

 छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की मुसीबत बढ़ी, चौतरफ़ा दबाव

मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ को पर्याप्त महत्व नहीं देने के अलावा बलौदाबाज़ार हिंसा मॉब लिंचिंग के अलावा इन मुद्दों के साथ पार्टी में अंदरूनी झगड़े ने साय की मुश्किलें बढ़ा दी


मोदी मंत्रिमंडल में  छत्तीसगढ़ को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने को लेकर कांग्रेस ने साय सरकार पर ज़बरदस्त हमला किया है । राज्य बनने के बाद से ही  बीजेपी को छत्तीसगढ़ से बम्फ़र जीत मिलते रही है लेकिन यहाँ से मंत्री बनाने के मामले में मोदी सत्ता के द्वारा अनदेखी पर अब सवाल उठने लगे है ।

कांग्रेस नेता चरणदास महंत ने तो साय सरकार से इस्तीफ़े की माँग भी कर दी है तो दूसरी तरफ़ बलौदा बाज़ार हिंसा को लेकर भी गृह मंत्री निशाने पर हैं।

इधर मंत्रिमंडल  और निगम मंडल में नियुक्ति भी  पार्टी के भीतर लड़ाई को तेज कर दिया है 

कहा जा रहा है कि सरकार के क्रियाकलाप को लेकर अब आम कार्यकर्ताओं में भी असंतोष पनपने लगा है 

ऊपर से वित्त मंत्री ओपी चौधरी की प्रसाशनिक चौधराहट के क़िस्से ने सरकार के लिए नई मुसीबत पैदा कर दी है।

https://youtu.be/-YMK5r525mw?si=yjhlVeCaAwNkhTm9

नीट-प्रेमी साय…

साय का नीट प्रेम...


इन दिनों पूरे देश में नीट को लेकर हंगामा मचा है, समूचा विपक्ष इस मामले में मोदी सत्ता पर हमलावर है, तो शराब प्रेमियों का  नीट को लेकर अलग ही नजरिया है, कुछ इसे सेहत के लिए नुकसानदेह मानते हैं तो कुछ लोग तो नीट ही मार देते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में तो महुआ का शराब ही चलता है, जिसमें न तो पानी न बर्फ का ही हस्तेमाल होता है। और ऐसा भी नहीं है कि सभी आदिवाली महुआ ही पीते हैं। कुछ तो शहरी क्षेत्रों में आकर बढ़ि‌या विदेशी शराब का सेवन करते हैं।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी आदिवासी वर्ग से आते हैं लेकिन उनकी रुचि इसमें है या नहीं किसी को नहीं पता। लेकिन इन दिनों चर्चा उनके नीट प्रेम की है।


कहा जाता है कि सत्त्रा मिलते ही विष्णु देव साथ के सामने सबसे बड़ी चुनौति सीजीपीएससी के घोटाले को निपटाना था । तो उन्होंने सबसे पहला काम इस मामले को सीबीआई को सौंप कर पूरा कर दिया। फिर घपला न हो इसके लिए उन्होंने जो कदम बढ़ाया वह था प्रदीप जोशी को सलाहकार बनाना। प्रदीप जोशी मध्यप्रदेश वाले व्यापाम कांड का चर्चित चेहरा, -प्रदीप जोशी यानी एन टी ए का चेयरमेन । एनटीए मानी नीट का आयोजन कर्ता ।

कांग्रेस ने प्रदीप जोशी को लेकर विष्णुदेव साय सरकार पर हमला भी कर दिया है, कि प्रदीप जोशी को सलाहकार से हटाया जाए। लेकिन हटाना आसान नहीं है क्योंकि प्रदीप जोशी संघ ही नहीं मोदी सरकार के भी खास हैं फिर ओपी चौधरी के मार्फत हुए इस नियुक्ति में कौन-कौन नाराज होंगे कहना मुश्किल है।

ऐसे में भले ही प्रदीप जोशी और एनटीए के चेयरमेन में हो लेकिन उनकी पहचान तो नीट ने ही देश में बढ़ाई है तब भला साय के इस जोशी प्रेम को लोग नीट प्रेम से जोड़ रहे हैं तो भाजपा क्यों तिलमिला रही है।

चला मुरारी हीरो बनने…

 मोहन सेठ की सीट पर राजीव सेठ की नजर...


हर विधानसभा चुनाव में रिकिट के लिए जी तोड़ कोशिश करने वाले भारतीय जनता पार्टी के राजीव सेठ की नजर अब मोहन सेठ की खाली हुई दक्षिण विधानसमा सीट पर लग गई है। यहां उपचुनाव होना है। वैसे तो इस सीट के लिए भाजपा के भीतर ही दर्जन भर दावेदार है और कहा जा रहा है कि जिस तरह से मोहन सेठ को किनारे लगाया गया है उसके बाद एक बात तो तय मानी जानी चाहिए कि यहाँ उसे टिकिट मिलेगी जो बृज‌मोहन अग्रवाल का विरोधी भले ही न हो कम से कम करीबी न हो यानी मोहन सेठ जिसे उँगली में न नचा पाये।

 कहा जाता है कि वैसे तो सभी दावेदार अपने अपने ढंग से टिकिट के लिए जोर आजमाईश कर रहे है लेकिन इन दावेदारों में अशोका रतन वाले सेठ यानी राजीव अग्रवाल ने जोर आजमाईश में कोई कसर बाकी नहीं रखा है। खल्लारी से लेकर रायपुर ग्रामीण से पहले ही दावेदारी कर चुके राजीव सेठ ने संगठन का काम भी किया है और कहा जाता है कि पैसे के दम पर उन्होंने न केवल जिला भाजपा के अध्यक्ष बने बल्कि कई तरह के ज़मीन विवादों को भी निपटाया है। क्या है बिल्डर्स का खेल इस पर चर्चा लंबी है लेकिन उनकी टिकिट की गाड़ी कहां अटक जाती है यह शोध का विषय है। 

ऐसा भी नहीं है कि वे टिकिट के मामले में निरंक हो। पार्टी ने उन्हें दो-दो बार टिकिर दी है वह भी पार्षद का लेकिन वे कभी चुनाव नहीं जीत पाये।

दो बार पार्षद चुनाव नहीं जीत पाने वाले राजीव सेठ को लगता है कि पार्षद का चुनाव छोटा चुनाव है और वे हार इसलिए गये, क्योंकि वार्ड के लोग उन्हें इच्छी तरह से जानते है, और विधानसभा बड़ा चुनाव है दूसरे वार्ड वाले उन्हें कम जानते है इसलिए' 'कमल' के ज़रिए चुनाव जीत ही जायेंगे। 

अब ये अलग बात है कि अभी शहर इतना बड़ा भी नहीं हुआ है कि राजीव सेठ क्या हैं लोगों से छिपा हुआ रह जाये वे क्या बला है।हालाँकि इस बार वे निगम मंडल के लिये भी ताक़त लगाये हुए है लेकिन पार्टनर के कारण यह भी बाधित न हो जाये।


अग्निवीर को बंद से कम पर तैयार नहीं युवा

 अग्निवीर योजना को लेकर कांग्रेस के रुख़ से मोदी सत्ता की नींद उड़ी 


अग्निवीर योजना के शुरुआत से ही इसे बेरोज़गारों से छल बताया जाता रहा है लेकिन मोदी सत्ता के अड़ियल रुख़ के चलते तमाम विरोध का मतलब नहीं रह गया था। अब जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना दिया तो मोदी सरकार उसने बदलाव को तैयार तो हो गई है लेकिन इस बदलाव को कांग्रेस मानने तैयार नहीं है तब क्या इस योजना को बंद करना ही अंतिम उपाय है 

भारतीय सेना में लाई गई अग्निवीर योजना आजकल चर्चा  का विषय बना हुआ है। आए दिन इस योजना को लेकर कई सवाल खड़े कर रहे हैं। वहीं हरियाणा के रोहतक लोकसभा से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने अग्निवीर योजना को लेकर कुछ बातें रखी। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से एक बात सामने आ रही है कि सेना के इंटरनल सर्वे में 'अग्निपथ' से जुड़ी बहुत सारी खामियों का जिक्र किया जा रहा है।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि उनमें से कुछ बातें निकलकर सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि अग्निवीर की नौकरी 4 साल से बढ़ाकर 7 साल की जा सकती है। साथ ही, 25 प्रतिशत की जगह 60-70 फीसदी जवानों को रिटेन किया जा सकता है। साथ ही अग्निवीरों की ट्रेनिंग पीरियड को बढ़ाया जाए। दीपेंद्र हुड्डा ने साफ किया कि कांग्रेस पहले ही कहती है कि ये योजना न तो देश के हित में, न सेना के हित में और न ही युवाओं के हित में है। हमारा शुरू से कहना है कि इस योजना को रोका जाए, और फौज की पक्की भर्ती दोबारा से शुरू की जाए। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि इस योजना की खामियों और गलतियों को सरकार स्वीकारे औप पूर्ण रूप से इस योजना को वापिस लिया जाए। साथ ही पक्की भर्ती जो अग्निपथ योजना 2022 से पहले देश में होती रही देश की फौज में उस पक्की भर्ती को पूर्ण रूप से दोबारा शुरू किया जाए। दीपेंद्र ने कहा कि रिपोर्ट बता रही हैं कि ये योजना देश की फौज के लिए बड़ी घातक योजना साबित हुई।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सेना की इंटरनल रिपोर्ट में कुछ बातें निकलकर सामने आई हैं। जिसमें एक ये कि अग्निवीर योजना से सेना के मनोबल, आपसी भाईचारे और एक-दूसरे के लिए मर-मिटने की भावना में गिरावट आई है। जो कि फौज के मनोबल के लिए ठीक नहीं है। दूसरा ये कि अग्निवीरों की 6 महीने की ट्रेनिंग का समय पर्याप्त नहीं है। इसलिए ट्रेनिंग पीरियड को 37 से 42 हफ्ते तक बढ़ाने की बात कही जा रही है। अग्निवीर से सेना भर्ती में कमी आई है और ये कहा जा रहा है कि 2035 तक सेना में भारी शॉर्टफॉल देखने को मिलेगा। दीपेंद्र ने बताया कि इन सभी बातों को देखते हुए कुछ अहम कदम उठाए जाएंगे।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अग्निवीर योजना को सिरे से ख़ारिज करती है। उन्होंने कहा कि ये कोई राजनीतिक विषय नहीं है, क्योंकि देश की फौज कभी राजनीति का विषय नहीं हो सकती। दीपेंद्र ने कहा कि सरकार से मांग करती है कि सेना में पहले की तरह पक्की भर्ती शुरू की जाए। हुड्डा ने कहा कि चुनावी नतीजों में स्पष्ट दिखता है कि जिन राज्यों के युवा फौज में सबसे अधिक भर्ती होते हैं वहां से भाजपा को लॉस हुआ है। 

गौरतलब है कि लोकसभा के चुनावी कैंपेन के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी हर रैली में अग्निवीर योजना को कूड़ेदान में डालने की बात करते थे। जिसका फायदा भी कांग्रेस पार्टी को चुनाव में हुआ। हालांकि कांग्रेस सत्ता में नहीं आई, लेकिन अब संसद में अग्निवीर के मुद्दे को जोर शोर से उठाने की तैयारी है।

कांग्रेस ने साफ़ कहा कि यह योजना ना देश के सुरक्षा के हित में, ना देश के नौजवान के हित में, और न देश के हित में पाई गई और ना ये योजना भाजपा के घोषणा पत्र में थी तो आखिर ये योजना लाए कैसे गई। ना ही इस योजना को लागू करने की कोई मांग कर रहा था। दीपेंद्र ने सरकार से सवाल किया कि किसके सुझाव पर यह योजना लेकर आई, जो देश की फौज के लिए नुकसान साबित हुई।

इधर बीजेपी इस योजना को हर हाल में जारी रखना चाहती है लेकिन युवाओं ने जिस तरह से इस योजना के ख़िलाफ़ खड़ा होने लगे हैं उससे संघ के भी पसीने छूट गये हैं और अब कहा जा रहा है कि संघ ने भी इस योजना को बंद करने कह दिया है। अब देखना है कि एनडीए के बाक़ी दलों का क्या रुख़ रहता है।

https://youtu.be/aslptx5g9P8?si=94BVnHUibnBu4fkp