शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

झीरम का भूत ...

 झीरम का भूत ...


लगता है. झीरम का भूत आईपीएस मयंक श्रीवास्तव का पीछा ही नहीं छोड़ रहा है, २००६ बैच के इस अधिकारी ने वैसे तो पुलिस कप्तान के रूप में बस्तर के कई जिले संभाले हैं, जिले कैसे संभाल रहे थे, इसका एक अलग ही कहानी है लेकिन इन दिनों  प्रदेश सरकार ने उन्हें पत्रकारों को संभालने का जिम्मा देते हुए डायरेक्टर के पद पर जनसंपर्क विभाग में नियुक्त किया हुआ है।

 लिखने-पढ़ने, कविता - कहानी के शौकीन मयंक श्रीवास्तव को यह रास नहीं आ रहा है, और वे किसी रेंज में आईजी बनने के लिए छटपटा रहे हैं। लेकिन कहा जाता है कि राज्य सरकार उनके नाम से डरी हुई है और नहीं चाहती कि बेवजह विपक्षी कांग्रेस को मौका मिले।

दरअसल 2013 में जब झींरम घाटी काण्ड हुआ था जिसमें कांग्रेस के कई दिग्गज नेता नक्सली हमले में मारे गए थे उस दौरान मयंक श्रीवास्तव ही एस पी थे। घटना के तत्काल बाद उन्हें हटा दिया गया था। लेकिन वे अब भी कांग्रेस नेताओ के निशाने पर है।


ऐसे में सरकार के सामने दिक़्क़त यह है कि उनकी पोस्टिंग यदि जिले में की जाती है तो कांग्रेस इस मामले को लेकर हल्ला मचायेगी। 2018 में सत्रा परिवर्तन के बाद से मयंक श्रीवास्तव लूप लाईन में  चल रहे हैं और भूपेश सरकार  के दौरान वे अग्निशमन, आपातकालीन‌ सेवा, एसडी आर एफ जैसा काम संभालते रहे हैं।


2023 में सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हें उम्मीद थी कि कहीं न कहीं फिट कर दिये जायेगे लेकिन यूपी वाले इस साहब को जनसंपर्क में बिठा दिया गया। हालांकि जनसंपर्क में बैठने वाले वे पहले आईपीएस नहीं है। जिनसे उन्होंने चार्ज लिया वह दीपांशु काबरा भी आईपीएस ही है, अब दीपांशु काबरा की अपनी अलग कहानी है, ईडी के राडार में  रहने वाले दीपांशु काबरा से चार्ज लेने वाले मयंक श्रीवास्तव का मन इस विभाग से भर गया है तो इसकी वजह वर्दी के रौब में आई कमी है और अब वे आईजी बनने की छटपटाहट में ऐसे ऐसे लोगों का चक्कर लगा रहे हैं जो उनके सामने बैठने की हिम्मत नहीं कर पाते थे।